सृजन-सम्मान द्वारा आयोजित सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक ब्लॉग पुरस्कारों की घोषणा आज कर दी गई है । इस चयन समिति के सदस्य श्री रवि रतलामी, बालेन्दु दाधीच जी और संयोजक जयप्रकाश मानस थे । चयन समिति ने समस्त ज्ञात हिन्दी ब्लॉगों पर व्यापक रूप से विचार करने के उपरांत(भले ही प्रविष्टियाँ भेजी गई हों या नहीं)फुरसतिया(प्रथम), शब्दावली(द्वितीय) और ममताटीवी(तृतीय) को वर्ष 2007 के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग के रूप में चयन हेतु अपनी अनुशंसा की है।
समिति द्वारा प्रस्तुत सूची और रेटिंग इस प्रकार है-
विजेता ब्लॉग-
http://shabdavali.blogspot.com/ 7/10
http://www.hindini.com/fursatiya/ 7/10
http://mamtatv.blogspot.com/ 6.5/१०
शीर्ष क्रम पर चयनित अन्य ब्लॉग
http:// sarthi.info 6.5/10
http://hgdp.blogspot.com/ 6.5/10
http://alizakir.blogspot.com/ 6.5/10
http://nirmal-anand.blogspot.com 6/10
http://paryanaad.blogspot.com/ 6/10
http://unmukt-hindi.blogspot.com/ 6/10
http://mahavir.wordpress.com 6/10
http://drparveenchopra.blogspot.com/ 6/10
http://paryanaad.blogspot.com/ 6/10
http://nahar.wordpress.com/ 6/10
http://subeerin.blogspot.com/ 6/10
http://paramparik.blogspot.com/ 6/10
http://poonammisra.blogspot.com/ 5/10
http://rajdpk.wordpress.com/ 5/10
http://hemjyotsana.wordpress.com/ 5/10
http://antariksh.wordpress.com/ 5/10
http://hivcare.blogspot.com/ 5/10
http://sehatnama.blogspot.com/ 5/10
http://chhoolenaasmaan.blogspot.com/ 5/10
http://vigyan.wordpress.com/ 4/10
http://nanovigyan.wordpress.com/ 3/10
http://parulchaandpukhraajka.blogspot.com/ 3/10
ज्ञातव्य हो कि छत्तीसगढ़ की बहुआयामी सांस्कृतिक संस्था “सृजन-सम्मान” ने हिंदी ब्लॉगरों को, प्रिंट माध्यम के साथ-साथ वेब माध्यम में प्रसारित रचनात्मक हिंदी, साहित्य, विचार लेखन को सम्मानित करने का निर्णय लिया था ताकि मूल लेखन के समानांतर वेब पर सक्रिय हिंदी ब्लॉगरों के योगदान का मूल्याँकन प्रारंभ हो सके, प्रिंट व अन्य माध्यमों में सक्रिय रचनाकारों, पत्रकारों एवं संस्कृतिकर्मियों को वेब पर पलक झपकते ही विश्व के कोने-कोने तक पहुँचने वाली सशक्त माध्यम ब्लागिंग की सम्यक जानकारी भी मिल सके, रुझान पैदा हो सके । कदाचित् यह गंभीर हिंदी और खासकर साहित्यिक दुनिया में यह नया कदम साबित हो सके और हिंदी, साहित्य, संस्कृति के ब्लॉगरों का अकादमिक मूल्याँकन कार्य़ की शुरुआत भी हो सके ।
रवि रतलामी की टिप्पणी -एक चयनकर्ता का एकालाप
पहली चीज पहले, पुरस्कारों और विवादों का चोली-दामन का साथ रहा है। अब चाहे गांधीजी को शांति का नोबल पुरस्कार नहीं देने पर नोबल पुरस्कार समिति का वेरी डिलेडआत्मावलोकन कि वे अपने उस कृत्य पर शर्मिंदा हैं - या फिर स्थानीय स्तर पर आयोजित पुष्प सज्जा प्रतियोगिता में किसी अच्छे से सजे पुष्प के बजाए किसी अन्य अच्छे से सजे पुष्प को पुरस्कृत किया जाना। यानी विवाद हर जगह होते हैं क्योंकि पुरस्कारों के लिए हर एक काअपना अलग एंगल अलग विज़न हो सकता है और यह वाजिब भी है। विवाद इसीलिए ही होते हैं।जब मुझे इन पुरस्कारों के लिए चयनकर्ता के रूप में चुना गया था तो मेरे मन में ये बातें पहले से ही थीं। पिछले वर्षों में इंडीब्लॉगीज से लेकर तरकश द्वारा हिन्दी चिट्ठों को दिए गएपुरस्कारों में थोड़े-मोड़े विवाद उठे ही हैं। इस दफ़ा भी, हो सकता है कि जो चयन हमने किएहों, वो कुछ को किसी भी एंगल से बिलकुल भी न जंचें तो कुछ को पूरी तरह जस्टीफ़ाइड लगें।पर, यहां पर मैं बताना चाहता हूँ कि एक चयनकर्ता को निर्धारित मापदण्डों और सीमाओं केभीतर रहकर ही अपना कार्य करना होता है।
मुझे अफसोस है कि बहुत से अच्छे चिट्ठे विचारार्थ शामिल ही नहीं किए जा सके। इन पुरस्कारोंको घोषित करते समय चिट्ठाकारों के लिए कुछ मापदण्ड निर्धारित कर दिए गए थे। परंतुआयोजकों व प्रायोजकों के उनके अपने विजन होते हैं, और उस पर उँगली उठाना हास्यास्पदहोगा। तो इन मापदण्डों के कारण बहुत सारे बेहतरीन चिट्ठों को मजबूरन हमें (विचारार्थ)छोड़ना पड़ा जो हर सूरत में योग्य थे (बिना किसी शर्तों या मापदण्ड के)।
मैं यहाँ पर यह भी बताना चाहता हूँ कि हर चिट्ठाकार और उसका हर चिट्ठा महत्वपूर्ण है।वो हर मामले में परिपूर्ण होता है। कोई भी पुरस्कार या प्रशस्ति उसकी परिपूर्णता में बालबराबर भी इजाफ़ा नहीं कर सकती। तो यदि कोई चिट्ठा इस सूची में नहीं है तो इसका अर्थकतई ये न लिया जाए कि वो महत्वपूर्ण नहीं है। चिट्ठों के असली पुरस्कार उसके पाठक होतेहैं। यदि आपने कुछ लिखा और उसे किसी एक पाठक ने भी पढ़ लिया तो यकीन मानिए वोपुरस्कृत हो गया।
शब्दों के सफर में अजित वडनेरकर शब्दों की व्याख्या न सिर्फ अत्यंत शोधपरक अंदाज में करते हैं,बल्कि उसे आकर्षक, मनोरंजक, ज्ञानवर्धक और अतिपठनीय भी बनाते हैं। ये एक ऐसा चिट्ठा हैजिसकी हर प्रविष्टि घरोहर के रूप में दर्ज तो हो ही रही है, इसका संग्रह भाषाविदों केलिए बड़े काम का भी होगा। अजित वडनेरकर ने जुलाई 2007 में इस चिट्ठे को प्रारंभ कियाऔर दिसम्बर 07 तक अपनी 165 प्रविष्टियों के जरिए हमारी भाषा को और भी परिष्कृत करदिया। और इनकी सारी पोस्टों में प्रोफ़ेशनलिज्म कूट कूट कर दिखाई देता है।
फ़ुरसतिया – अनूप शुक्ल तब से लिख रहे हैं जब से हिन्दी ब्लॉग जगत में कोई दो दर्जन ब्लॉगरही थे – और वे तब से लगातार लिख रहे हैं। लंबे-लंबे लिख रहे हैं। मौज के लिये लिख रहे हैं,मौज देने के लिए लिख रहे है। सामाजिक और वैयक्तिक विसंगताओं को वे सीधे सरल चुटीले अंदाज में व्यंग्यात्मक तरीके से लिखते आ रहे हैं. उनकी भाषा और लेखन शैली के बारे में कभी कहा भी गया था – इनमें कन्हैयालाल नंदन (जो इनके मामा हैं) का लेखकीय जेनेटिक तत्व मौजूद हैं।
शुरूआती दिनों में प्रत्येक चिट्ठा प्रविष्टि में सर्वाधिक औसत टिप्पणियों के लिए (बाद में भलेही उड़न तश्तरी ले उड़े हों) भी इस चिट्ठे को जाना जाता रहा है। अनूप शुक्ल कईचिट्टाकारों के बड़े भाई हैं – अनूप दा हैं जिन्होंने चिट्ठासंसार में व्यक्ति और पर्सोना केलड़ाई-झगड़ों को भी अच्छे से निपटाया है। लोगों ने इन पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप सेगैंग-बाजी, माफ़िया, चेंगड़े बनाने का आरोप लगाया है। परंतु चिट्ठाकार और उनकीचिट्ठाकारी का सहज सरल निस्पृह स्वभाव – जिन्होंने अपनी माता का वीडियोकास्ट भीतकनीकी-झंझटों को पार पाने के लिए बड़े प्रयत्नों के बाद लगाया – आम चिट्ठाकारों को उनकेलेखन की ओर आकर्षित करता है।
ममता टी।वी. की ममता ने फरवरी 2007 में अपना यह चिट्ठा प्रारंभ किया और इसमें वे अपनेदिल की बातें नियमित अंतराल पर लिखती रही हैं। वे किसी खास विषय से आबद्ध नहीं रहीं,और न ही कोई विशेष अत्यंत सामयिक-विचारोत्तेजक-विवादास्पद किस्म के लेख लिखे. मगर,इनकी चिट्ठा प्रविष्टियों में उनके दैनिंदनी अनुभवों का सरस-सरल और अकसर चित्रमय विवरणदर्ज होता है और यही पाठकों को आकर्षित करता है। वे अपने पाठकों को सामने रखकर उनसेबातें करने के अंदाज में लिखती हैं। चिट्ठों यानी ऑनलाइन डायरी का एक और असली रूप उनके इस चिट्ठे से झलकता है।
(हो सकता है, हमसे चूक हुई हो, हमसे ग़लतियाँ हुईं हों। उन्हें इंगित करती हुई आपकीटीका-टिप्पणियों का स्वागत है ताकि भविष्य में इस तरह की चूकों, ग़लतियों को सुधारा जा सके।धन्यवाद, शुभकामनाओं सहित)-रविशंकर श्रीवास्तव
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बालेन्दु दाधीच की टिप्पणी
लौकिक विश्व का अलौकिक ब्लॉगरः अनूप शुक्ला
अनूप शुक्ला की रचनाएं कुछ ऐसी 'अनूप' होती हैं कि ब्लॉग जैसा अनौपचारिक माध्यम उनके लिए नैसर्गिक माध्यम जान पड़ता है। कोई भी अन्य माध्यम संभवतः उनकी रचनाओं के साथ वह न्याय नहीं कर पाता जो ब्लॉगिंग ने किया है। अपने शहर की हवा-पानी-खुशबू, आत्मीयता और तेवर की झलक देती उनकी रचनाएं सिर्फ लीक से हटकर नहीं हैं। अपनी साहित्यिकता के नाते भी वे दूसरों से अलग हैं। लौकिक माहौल को अभिव्यक्ति देतीं अलौकिक रचनाएं हैं वे। हर रचना में थोड़ा साहित्यिक पुट, थोड़ा कनपुरिया रंग, थोड़ी कहानी, थोड़ी कविता, थोड़ा व्यंग्य, थोड़ा रचनात्मक बहाव और ऊपर से बेहद रुचिकर, बांध लेने वाली सरल-सहज अभिव्यक्ति।
अनूप की लेखनी लगभग सभी बुनियादी साहित्यिक विधाओं में चली है लेकिन दैनिक जीवन पर आधारित निबंधात्मक टिप्पणियां, संस्मरण और साक्षात्कार उन्हें स्वाभाविक रूप से प्रिय लगते हैं। वे बहुत सरलता से ब्लॉग जगत पर नए किस्से, नए मुहावरे और नई उपमाएं गढ़ जाते हैं और उन्हें अपनी रचनात्मकता के साथ इस तरह अवगुंठित करते हैं कि कहीं सब कुछ बहुत स्वाभाविक, प्राकृतिक और पूर्व-प्रचलित सा महसूस होता है। कहीं अंग्रेजी और हिंदी का मिश्रण, कहीं हिंदी और लोकभाषा का मिश्रण तो कहीं तकनीकी शब्दों के जंजाल पर कनपुरिया थेथरई मलाई की मीठी सी परत... अनूप ने हिंदी ब्लॉगिंग को शब्द-समृद्ध किया है। अपने साहित्यिक पुट से उसे सुखद, रुचिकर और टिकाऊ बनाने में भी योगदान दिया है। कई खोए हुए, भूले हुए शब्दों, किस्सों, कहावतों को पुनर्जीवित किया है। हिंदी ब्लॉगिंग की विधा अगर भविष्य में साहित्य के क्षेत्र में अलग जगह बनाएगी तो उसमें अनूप शुक्ला का नाम ज़रूर चमक रहा होगा।
भाषिक अनुशासन में बांधते अजित वडनेरकर
ऐसे समय पर जब विभिन्न कारणों से हिंदी में भाषायी अराजकता, अनुशासनहीनता और अज्ञानता स्वाभाविक लगने लगी है और भाषा की गहराई तथा समृद्धि को समझने, उसकी कद्र करने वाले लोग उंगलियों पर गिनने लायक रह गए हैं, अजीत वडनेरकर ने पाठकों को नए जमाने के नए माध्यम 'ब्लॉग'के जरिए हिंदी की महान भाषिक परंपरा, शब्द-समृद्धि और इस भाषा की अद्वितीय प्रकृति से परिचित कराने का बीड़ा उठाया है। वे एक-एक कर महत्वपूर्ण हिंदी शब्दों के स्पष्ट और अंतरनिहित अर्थों को बेहद दिलचस्प तरीके से समझाने में लगे हैं। इस प्रक्रिया में वे इन शब्दों के भूत-वर्तमान-भविष्य, उनकी प्रगति-कथा और वर्तमान जनजीवन में उनकी प्रासंगिकता सिद्ध करने की प्रक्रिया में जुटे हैं। एक-एक शब्द के प्रति उनका गहरा शोध तो स्पष्ट है ही, उनके प्रति आत्मीय लगाव और उन्हें सही ढंग से न समझे जाने के विरुद्ध छटपटाहट भी स्पष्ट होती है।
हिंदी शब्दों की व्युत्पत्ति, सामर्थ्य और कथा पर यूं तो अनेक विद्वानों ने निगाह डाली है लेकिन ब्लॉग जगत के अनौपचारिक, अपेक्षाकृत अगंभीर जगत में उन पर इतना महत्वपूर्ण कार्य संभवतः अन्य किसी ने नहीं किया। यह बेहद महत्वपूर्ण, सकारात्मक और स्थायी महत्व का कार्य है क्योंकि ब्लॉग जगत ने उन युवाओं को आकर्षित किया है जिन पर हिंदी के भविष्य का दारोमदार है और जिन तक सही, शुद्ध और पूर्ण हिंदी को पहुंचाए जाने की जरूरत है। आम तौर पर ऐसी बातें एकेडमिक या नीरस मानकर उपेक्षित कर दी जाती हैं लेकिन अजित वडनेरकर अपनी अनूठी भाषा-शैली और शोध के बल पर ब्लॉग विश्व के पाठकों तक अपना संदेश पहुंचाने में सफल हो रहे हैं।
ममता टी.वीः सहज, सरल, स्वाभाविक अभिव्यक्ति
ममता टी.वी. के लेखन में कहीं कोई शब्दाडंबर या जबरिया पैदा की हुई दिलचस्पी दिखाई नहीं देती। लेकिन उनका लेखन ब्लॉगिंग की विधा के बेहद अनुरूप है। डायरी की शैली में लिखी गई उनकी रचनाएं वेब-लॉग की परिभाषा पर बेहद सटीक बैठती हैं। आम जीवन से जुड़े आम विषयों पर आम आदमी की आम, सहज, ईमानदार अभिव्यक्ति। ममता ने एक गृहस्वामिनी होते हुए भी अपने विचारों को प्रकट करने के लिए ब्लॉगिंग का मार्ग अपनाया और साल भर से पूरे संकल्प के साथ लेखन में जुटी हैं। अपने लेखों से कोई बहुत बड़ी हलचल मचाना उनकी महत्वाकांक्षा नहीं लेकिन यही अ-महत्वाकांक्षी होना उन्हें सरल-सहज-सरस और स्वाभाविक बनाता है।
अंडमान पर उनके संस्मरणात्मक आलेख हिंदी ब्लॉग विश्व को एक महत्वपूर्ण योगदान हैं। वहां आए सुनामी को उन्होंने खुद देखा, जिया और सहा था और बिना किसी भाषायी कीमियागिरी या साहित्यिकता के उन क्षणों का ब्यौरा लिखा, जो न सिर्फ स्थायी महत्व की अनोखी रचना है बल्कि इतने विनाशकारी क्षणों का विलक्षण दस्तावेज भी है। ममता के संस्मरण और रिपोर्ताज पढ़ते हुए लगता है जैसे आपने स्वयं उन क्षणों को जिया है। एक सामान्य व्यक्ति की निगाह से अपने आसपास देखते हुए भी वे बड़ी सतर्कता के साथ घटनाक्रम को मॉनीटर करती हैं और बिना लाग-लपेट के उस पर रोचक टिप्पणी करती हैं। उनका सामान्य होना ही संभवतः उनकी सबसे बड़ी विशेषता है।
सभी सृजनशील चिट्ठाकारों को सृजन-सम्मान की ओर से बधाईयाँ
(पुरस्कार विवरण हेतु कृपया देखें)