5/16/2006

डॉ. लाहा की 2 लघुकथाएँ

बदलते रिश्ते

डाक्टर भंडारी आज मजबूरी में रोग साईड से जा रहे थे । एक रोगी की हालत बहुत ख़राब थी । रोगी सड़क के उस पार रहता था । सही रास्ते से जाने में आधा घंटा अधिक लग सकता था ।
यातायात पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया । पर फिर उतनी ही आसानी से उन्हें छोड़ भी दिया । उसने कहा, ‘डाक्टर’ तो भगवान का रूप होता है, ‘मेरे लड़के का इलाज आपकी देखरेख में हो रहा है । ज़रा ख़याल रखिएगा ।’
सात दन बाद फिर वैसा ही हुआ । डाक्टर भंडारी पुनः रांग साईड से जा रहे थे । यातायात पुलिस वाले ने उन्हें पुनः पकड़ा । पर अब की बार उसने नहीं छोड़ा नहीं । डाक्टर साहब का चालान काट दिया। वह बोला, ‘उस दिन की बात और थी । मेरा लड़का आपकी देखरेख में था, आज बात और है । लड़का अब दूसरे डाक्टर की देखरेख में है । अब आपकी क्यों सेवा करूंगा ?’
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फैशन

ईश्वर का न्याय भी कुछ अज़ीब ही है । उसने अपने भक्तों में से कुछ को बहुत कुछ दिया है, तो कुछ को कुछ भी नहीं । संसार में बराबर का पलड़ा शायद ही कहीं हो ।
शहर के नुक्कड़ पर शिवदयाल क दुकान है । शिवदयाल दर्जी है, खासा मशहूर है, जितना कमाता है उसमें बर घर चला पाता है ।
उस दिन, एक बड़ी-सी कार दुकान के सामने आकर रूकी । एक फैशनबुल लड़की कार से उतरी । शिवदयाल की दुकान में जाकर बोली, ‘आप मेरे लिए एक खास प्रकार की ड्रेस तैयार कर सकेंगे ?’
शिवदयाल ने ड्रैस का विवरण सुना तो दंग रह गया । ड्रेस में तन का ढकना अत्यधिक कम था । खैर, उसे क्या, उसने नाप ले लिया ।
उस रात शिवदयाल की नींद उचट गई । पास वाले कमरे में लाइट जल रही थी । आइने के सामने शिवदयाल की सोलह वर्षीया लड़की अपने आपको निहार रही थी ; हाथ में वही सुबह वाली लड़की का कपड़ा था ।
पिता को देखकर वह लजा गई ।
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डा. नरेन्द्रनाथ लाहा
(ग्वालियर के मेडिकल कालेज में अध्यापन किया । प्रोफेशन से संबंधित 3 पुस्तकें लिखीं । हिन्दी और अंगरेज़ी में लेखन । अब तक 9 किताबें प्रकाशित, राष्ट्रीय स्तर पर लघुकथा प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत
संपर्क सूत्रः- 27, ललितपुर कालोनी, डा.पी.एन.लाहा मार्ग, ग्वालियर, मध्यप्रदेश-474009, दूरभाषः 322777)

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