8/07/2007

आतंकवाद का अन्त नहीं है ऑप्रेशन सनराईज

पाकिस्तान की लाल मस्जिद में आतंकवादियों को बाहर निकालने हेतु पिछले दिनों हुई सैन्य कार्रवाई जिसे कि मीडिया द्वारा ऑप्रेशन साइलेन्स के नाम से प्रचारित किया गया था, पाक सैन्य सूत्रों के अनुसार दरअसल यह मीडिया द्वारा दिया गया नाम ही था। जबकि पाक सेना ने इसे ऑप्रेशन सनराईंज का नाम दिया था। पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद 'ऑप्रेशन सनराईंज' पाकिस्तान की पहली ऐसी आतंक विरोधी बड़ी कार्रवाई थी जोकि आतंकवाद के विरुद्ध छेड़ी गई थी। इस सैन्य कार्रवाई को लेकर नाना प्रकार की टिप्पणियाँ की जा रही हैं। कोई इसे मुशर्रफ़ द्वारा उठाया गया गलत कदम बता रहा है तो कोई यह कहता भी सुनाई दे रहा है कि मुशर्रफ़ ने ऑप्रेशन सनराईंज शुरु करने में काफी देर कर दी। अमेरिका मुशर्रफ़ की पीठ थपथपा रहा है तो अफगानिस्तान भी आतंकवाद विरोधी इस ऑप्रेशन से बेहद खुश है। कुल मिलाकर दुनिया का प्रत्येक वह वर्ग जोकि आतंकवाद को मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन मानता है, उसने मुशर्रफ़ की इस कार्रवाई का पूरा समर्थन किया है। जबकि इस्लाम को हर समय जेहादी रंग में डूबा हुआ देखने वाला कट्टरपंथी मुस्लिम वर्ग लाल मस्जिद में हुई सैन्य कार्रवाई का खुलकर विरोध कर रहा है।

ऑप्रेशन सनराईंज के विरुद्ध सबसे पहले अपनी आवाज़ बुलन्द करने वाला आतंकवादी नेता एमन अल जवाहिरी था जिसने जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ व उनकी सेना के विरुद्ध जमकर जहर उगला तथा दुनिया के मुसलमानों से पाकिस्तान पर चौतरफा हमला करने का आह्वान किया। उधर लाल मस्जिद की घटना के बाद पाकिस्तान में सैनिकों पर हमले भी तेज हो गए हैं। आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी मुहिम छेड़ने का दावा करने वाला अमेरिका भी लाल मस्जिद घटना को बड़ी ही सूक्ष्मता से देख रहा है। यही वजह है कि अलकायदा में दूसरे नम्बर की हैसियत रखने वाले एमन अल जवाहिरी की पाक के विरुद्ध की गई यलंगार के तुरन्त बाद ही अमेरिका ने अलंकायदा प्रमुख ओसामा बिन लाडेन को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ने हेतु पुरस्कार स्वरूप निर्धारित राशि को दोगुना अर्थात् 5 करोड़ डॉलर किए जाने की तत्काल घोषणा कर डाली है। अमेरिका भी इस बात से बखूबी वाकिफ है कि जेहादी विचारधारा रखने वाले कट्टरपंथी मुसलमान ऑप्रेशन सनराईंज के बाद ख़ामोश नहीं बैठेंगे। अमेरिका को पाकिस्तान में अशान्ति फैलने के साथ-साथ इस बात की भी जबरदस्त चिंता है कि कहीं पाकिस्तान स्थित परमाणु संयंत्रों पर इन्हीं आतंकवादियों का कब्ज़ा न हो जाए। इसी स्थिति से निपटने के लिए अमेरिका इस कोशिश में है कि यथाशीघ्र संभव अलकायदा के नेटवर्क को कमजोर कर दिया जाए। जाहिर है ओसामा बिन लाडेन व जवाहिरी जैसे अलकायदा के शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी अथवा उन्हें मारा जाना अमेरिका के लिए अत्यन्त सुखद होगा।

इसमें कोई शक नहीं कि चाहे वह अमेरिका हो या पाकिस्तान आज यह दोनों ही देश अपने ही बोए हुए बीजों की बेल काट रहे हैं। आज आतंकवाद की इस बेल ने इस हद तक अपना विस्तार कर लिया है कि 911, लंदन ब्लास्ट तथा ऑप्रेशन सनराईंज जैसी घटनाएँ सुनाई दे रही हैं। इसी आतंकवादी विचारधारा ने अफगानिस्तान जैसे प्राचीन एवं ऐतिहासिक देश को खंडहरों के देश के रूप में परिवर्तित कर दिया है। यही आतंकवाद समय-समय पर भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश की साम्प्रदायिक एकता को चुनौती देता रहता है। इसी आतंकवाद ने भारत का स्वर्ग समझे जाने वाले कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी के रूप में रहने के लिए मजबूर कर दिया है। यही वह आतंकवाद है जो पाकिस्तान में मस्जिदों में नमाज पढ़ने वाले अपने ही मुसलमान भाइयों पर गोलियां चलाकर उनकी सामूहिक हत्याएँ करने से नहीं हिचकिचाता। इसी आतंकवाद ने अब तक लाखों बेगुनाह लोगों की जानें ले लीं। इन सभी के पीछे कट्टरपंथी एवं जेहादी इस्लामी विचारधारा का जबरदस्त योगदान है। और अब यही आतंकवादी चेहरा संफेदपोश मौलवी, मुल्लाओं के रूप में इस्लामी शरिआ लागू करने की बातें करने लगा है। धर्म व राजनीति के घालमेल की बात की जा रही है। यदि इस्लाम के 73 वर्गों में से एक ही वर्ग इस्लामी शरिआ की बात करे तो शेष 72 इस्लामी वर्गों के लिए यह चिन्ता का विषय ज़रूर है कि आखिर किस शरिआ को इस्लामी शरिआ बताने का प्रयास किया जा रहा है। क्या लाल मस्जिद द्वारा संचालि गतिविधियाँ ही इस्लामिक शरिआ की छवि प्रस्तुत करती हैं? हुकूमत से टकराव का रास्ता अख्तियार करना, आराधना स्थल में नाजायज़ अस्त्रों-शस्त्रों को संग्रह करना, अपनी जान की रक्षा हेतु औरतों व बच्चों को मानव ढाल के रूप में प्रयोग करना आदि गैर मानवीय कृत्य, क्या यही हैं इस्लामी शरिआ के संदेश?

यहाँ लाल मस्जिद में हुई सैन्य कार्यवाही से संबंधित एक बात काबिले गौर है- जुलाई को जिस दिन पाक सेना ने लाल मस्जिद में घुसकर आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाई शुरु की, उस दिन सबसे पहली प्रतिक्रिया तालिबानी संगठनों की ओर से प्राप्त हुई थी। हजारों की तादाद में तालिबानी समर्थक पाकिस्तान-चीन के मध्य कराकोरम राजमार्ग पर उतर आए थे तथा उन्होंने इस राजमार्ग पर जाम लगा दिया था। इस विरोध प्रदर्शन का सीधा अर्थ यही है कि लाल मस्जिद में तालिबानी विचाराधारा का ही पोषण हो रहा था। तालिबानों का इस्लाम क्या है, वे इस्लाम के कौन से रूप को दुनिया में फैलाना चाहते हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। अफगानिस्तान में व पाकिस्तान के सीमावर्ती अफगानी क्षेत्रों में अफीम जैसे नशीले पदार्थों की खेती करना इनकी तस्करी कराना तथा इन पैसों से हथियार व गोला बारूद खरीदना यही तालिबानियों का मुख्य पेशा रहा है। शान्तिदूत गौतम बुद्ध जैसे महान संत जिसने कि पूरे विश्व को शान्ति प्रेम व सद्भाव का पाठ पढ़ाया हो, उस महान सन्त की अफगानिस्तान के बामियान प्रान्त में स्थित प्राचीन एवं विशालकाय मूर्तियों को तोपों से उड़ाए जाने जैसा घिनौना व दुनिया में वैमनस्य फैलाने वाला कृत्य तालिबानियों द्वारा ही किया गया था। अफगानिस्तान में हजारों बेगुनाह लोगों को सरेआम दिन दहाड़े गोली मार देना, उन्हें बिजली के खम्बों या पेड़ों पर फाँसी के फंदे पर लटका देना, यह सब तालिबानी 'इस्लाम' के कारनामे रहे हैं। आखिर इन्हें इस्लाम के वास्तविक स्वरूप से कैसे जोड़ा जा सकता है?

आज ज़रूरत इस बात की है कि दुनिया का हर वह वर्ग जिसमें कि उदारवादी मुसलमानों का भी एक बड़ा वर्ग शामिल है, इस्लाम पर आतंकवादी व तालिबानी विचारधारा के हावी होने की कोशिशों का प्रबल विरोध करे। अब इस बात का समय शेष नहीं रह गया है कि आतंकवाद विरोधी मुहिम की समीक्षा नकारात्मक दृष्टिकोणों से की जाए बल्कि ज़रूरत इस बात की है कि आतंकवाद विरोधी मुहिम कहीं भी और किसी के द्वारा भी क्यों न चलाई जा रही हो, उसे विश्व के समस्त शान्तिप्रिय लोगों का समर्थन मिलना ही चाहिए। आतंकवादी विस्तार का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि इसने न सिर्फ दक्षिण एशियाई देशों की बल्कि मध्य एशियाई देशों व अमेरिका व ब्रिटेन की सरकारों व आम लोगों की नींदें हराम कर रखी हैं।

'देर आयद दुरुस्त आयद' की कहावत को चरितार्थ करते हुए जनरल मुशर्रफ़ ने लाल मस्जिद पर धावा बोलकर जिस आतंकवाद विरोधी मुहिम की शुरुआत की है, वह वास्तव में एक शुरुआत मात्र ही है। जनरल मुशर्रफ़ की इस कार्रवाई की आलोचना करने के बजाए उनकी इस कोशिशों का समर्थन किया जाना चाहिए। लाल मस्जिद की कार्रवाई को कट्टरपंथियों द्वारा इस्लाम विरोधी कार्रवाई प्रचारित करने की कोशिश की जा रही है। पाकिस्तान में सत्ता के खेल में लगे मुशर्रफ़ विरोधी इस घटना को भुनाने का पूरा प्रयास करने लगे हैं। ऐसा करना मुशर्रफ़ के विरुद्ध उन्हें राजनैतिक सफलता तो दिला सकता है परन्तु मुशर्रफ़ के राजनैतिक पतन से कट्टरपंथी तालिबानियों के हौसले भी ज़रूर बुलन्द होंगे। मुशर्रफ़ की ताजातरीन प्रत्येक पराजय को तालिबानी अपनी विजय के रूप में दर्ज करेंगे। लिहाँजा लाल मस्जिद के ऑप्रेशन सनराईज को राजनैतिक लिबास ओढ़ाने के बजाए इसे इस नज़रिए से देखा जाना चाहिए कि ऑप्रेशन सनराईज वास्तव में इस्लाम के 'सनराईज' के रूप में सामने आए। इसे आतंकवाद के विरुद्ध जनरल मुशर्रफ़ की एक अच्छी व हौसलाकुन शुरुआत मानी जानी चाहिए। जनरल मुशर्रफ़ को चाहिए कि जब उन्होंने इतना बड़ा साहस किया ही है तो उन्हें इसे अन्जाम तक भी पहुंचाना चाहिए। पाकिस्तान व विशेषकर पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे सभी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को नेस्तोनाबूद कर दिया जाना चाहिए। यदि समय रहते ऐसा हो गया, फिर शायद इस्लाम में निरंतर लगने वाले बदनुमा धब्बों को समय रहते धोया जा सके।

तनवीर जाफरी

1 टिप्पणी:

हरिमोहन सिंह ने कहा…

सही बात है । लेकिन ये आतँकवाद के खात्‍मे की शुरूआत हो सकती है यदि पाक व अमेरिका इजराइल व अरब की सरकारे ऑंतक को समर्थन देने की भूल भविष्‍य में न करें और हर मानव को मानव ही समझे चाहे वो किसी भी धर्म का हो ।