11/29/2008

इधर देश है

इधर
दहशतगर्दी थे ही नहीं
फिर भी उभर रहे थे जगह-जगह खूनी पंजे
इधर
न गोली चल रही थी न ग्रेनेड
फिर भी हताहत हो रहे थे लोग
इधर
ख़ौफ़ का कोई भी संकेत नहीं था
फिर भी सारे लोग सकते में थे

इधर
सबकुछ था शांत निःस्तब्ध
फिर भी सभी तैयार हो रहे थे युद्ध के लिए

उधर मुंबई है
इधर देश है

2 टिप्‍पणियां:

Himanshu Pandey ने कहा…

उधर चली थी गोली पर सीने के आरपार हो गयी थी देश की शान्ति के . उधर फटा था ग्रेनेड पर फट गयी थी छाती मानवता की .

Anil Pusadkar ने कहा…

सही लिखा आपने।