2/20/2010

लोकार्पण संपन्न जुन्याली आस सशक्त उत्तराखंडी रचना ``गढ़माऊं'' के उत्तराखंड की भाषा बनाये जाने पर गंभीर चर्चा

मुंबई : उत्तराखंडी लोक साहित्य एवं संस्कृति को समर्पित हिमाद्रि, हिमालयन कल्चरल सोसायटी एवं उत्तरांचल विचार मंच के संयुक्त तत्वावधान में विगत २४ जनवरी अपराह्न में काशीनाथ धुरू सभागार दादर में पूर्ण मनराल की उत्तराखंडी काव्यकृति ``जुन्याली आस'' का लोकार्पण समारोह अध्यक्ष नंदकिशोर नौटियाल (प्रखर पत्रकार संपादक `नूतन सवेरा') के करकमलों से संपन्न हुआ। अपने वक्तव्य में श्री नौटियाल ने कहा कि पूर्ण मनराल साहित्य को समर्पित एक जुनूनी व्यक्तत्व है, उनके सशक्त लेखन की छाप ``जुन्याली आस'' है।

इससे अन्य रचनाकारों को भी उत्तराखंडी बोली भाषा में लिखने का हौसला मिलेगा। उत्तराखंडी प्रवासी समाज की भारी उपस्थिति में पूर्ण मनराल के रचना संसार पर सर्वश्री राजेंद्र रावत, श्रीमती हंसा कोश्यारी, दयाकृष्ण जोशी, केसर सिंह बिष्ट, डॉ राजेश्वर उनियाल, प्रो. राधा बल्लभ डोमाल, दिनेश ढौडियाल, हरवंश बिष्ट तथा श्रीमती राजेश्वरी नेगी, राके खटरियाल, गोविंद सिंह रावत ने अपने वक्तव्यों में उन्हें एक सशक्त कवि-कथाकार बताते हुए कहा कि ``जुन्याली आस'' ने उत्तराखंडी बोली भाषा के सहज रूप में एक उत्कृष्ट रचना समाज को दी है, जिसमें उत्तराखंड के जनजीवन की काव्यात्मक झलक मिलती है। श्री भीष्म कुकरेती ने उत्तराखंड की बोली भाषा पर विस्तार से बोलते हुए कहा कि पूर्ण मनराल बधाई के पात्र हैं जिन्होंने मुंबई में ४६ वर्ष बाद उत्तराखंड की बोली-भाषा में अपनी नाट्य कृति समाज को दी है।
लोकार्पण पर उत्तराखंडी बोली भाषा पर परिसंवाद एवं उत्तराखंडी सुरमई काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें सर्वश्री भुवनेंद्रसिंह बिष्ट गुरुजी, केसर सिंह बिष्ट, बलदेव राणा, डॉ. दीवा भट्ट, डॉ. राजेश्वर उनियाल, हरि मृदुल, पूर्ण मनराल, डांमूखूड़ी, भीमसिंह राठौड़, रामचमोली, राजेश बहुगुणा, भगतसिंह शाह, संजय बलोदी आदि ने अपनी रचनाआें से वातावरण को जीवंत कर दिया। सभी वक्ताओं ने उत्तराखंड की एक भाषा, के रूप में गढ़वाल और कुमाऊं के संधि स्थल की भाषा को ``गढ़माऊं'' के रूप में विकसित करने की जरूरत बताते हुए राज्यस्थापना के बाद उत्तराखंडी बोली भाषा की समृद्धि के लिए मिलजुलकर कार्य करने का आह्वान किया। इससे पूर्व प्रवासी समाज द्वारा समारोह में सर्वश्री गौरीदत्त बिनवाल, द्वारका प्रसाद भट्ट, दर्शनसिंह रावत, श्रीमतीआरएस रावत, हरवंश सिंह बिष्ट, विमल मनराल, मीनाक्षीचंद, अनीता ढौडियाल, शेरसिंह पुजारा, एनबी चंद, प्रकाश नेगी, मोहन सिंह बिष्ट, चंदन मनराल, श्रीमती जया बिष्ट, सुधाकर थपलियाल, बुद्धि प्रसाद देवली, सूर्यमणि पंत, धर्मानंद खतूड़ी महाराज, प्रताप जखमोला, महीपाल सिंह नेगी, सीआर नौटियाल, गोपाल मेहरा, महेंद्र सिंह सौनी, दिनेश बिष्ट, गोविंदसिंह रावत, रमेश गोदियाल, ज्योति राठौर आदि गणमान्य भारी संख्या में उपस्थित थे।
श्री नंदकिशोर नौटियाल मुख्य अतिथि डॉ. दीपा भट्ट और श्री पूर्ण मनराल का शॉलएवं पुष्प गुच्छ देकर सत्कार किया गया।

जगदीश किंजल्क को `अभिनव शब्द शिल्पी' अलंकरण

भोपाल : राष्ट्रीय ख्याति के अंबिका प्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरस्कारों के संयोजक, लोकप्रिय पत्रिका `दिव्यालोक'' के संपादक, साहित्यकार जगदीश किंजल्क को विगत २४ जनवरी को स्थानीय रवींद्र भवन में अभिनव कला परिषद, भोपाल की सैंतालीसवीं साल गिरह के अवसर पर आयोजित एक भव्य समारोह में मध्य प्रदेश शासन के स्थानीय शासन मंत्री श्री बाबूलाल गौर के हाथों `अभिनव शब्द शिल्पी' की मानद उपाधि प्रदान की गयी। समारोह की अध्यक्षता प्रसिद्ध साहित्यकार कैलाश चंद्र पंत ने की।

भोलानाथ कुशवाहा का जयपुर में सम्मान

जयपुर : भोलानाथ कुशवाहा को जयपुर के पिंकसिटी प्रेस क्लब में २४ अक्टूबर को चतुर्थ राजेंद्र बोहरा स्मृति काव्य पुरस्कार प्रदान किया गया। भोलानाथ इलाहाबाद में `आज' अखबार में समाचार संपादक पद पर कार्यरत हैं। उन्हें यह पुरस्कार वरिष्ठ साहित्यकार नंदकिशोर आचार्य ने प्रदान किया। उन्हें शॉल और स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। स्व. बोहरा की पत्नी इंदिरा शर्मा ने उन्हें पांच हज़ार रुपये का चेक भेंट किया।

सूत्र सम्मान कल

ठा।पुरन सिंह स्मृति सूत्र सम्मान समारोह २१ फरवरी को जगदलपुर के गोयल धर्मशाला में संपन्न होगा। सूत्र जगदलपुर द्वारा आयोजित इस साहित्यिक समारोह में देशभर के रचनाकारों की उपस्थिति में युवा कवि केशव तिवारी को सूत्र सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। गोयल धर्मशाला में आयोजित होने वाले इस विशिष्ट साहित्यिक समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में रचनाकार श्री वाचस्पति, वाराणासी उपस्थित रहेंगे एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता चर्चित आलोचक जीवनसिंह, जोधपुर करेंगे। साथ ही विशिष्ट अतिथि के रूप में युवा कवि त्रिलोक महावर, जांजगीर एवं ठा रामसिंह नारायणपुर उपस्थित रहेंगे।प्रातः ११.३० बजे से आयोजित होने वाले इस साहित्यिक आयोजन के प्रथम सत्र में सूत्र सम्मान कार्यक्रम में युवा कवि केशव तिवारी की कविताओं पर बसंत त्रिपाठी, शाकीर अली एवं रजत कृष्ण अपना आलेख प्रस्तुत करेंगे, तत्पश्चात दूसरे सत्र में दोपहर के २.३० बजे कविता पाठ का कार्यक्रम संपन्न होगा जिसमें नगर एवं बाहर से आए कवियों का कविता पाठ होगा। इस सत्र में युवा कवि केशव तिवारी, महेश चंद्र पुनेठा एवं संतोष अलेक्स के कविता संग्रह आसान नहीं विदा कहना, भय अतल में एवं कविता के पक्ष में नहीं, अंग्रेजी कवि जयंत महापात्र का हिन्दी अनुवाद व साहित्यिक पत्रिका सर्वनाम का लोकार्पण कार्यक्रम भी संपन्न होगा। इन दोनों सत्रों का संचालन जीएस मनमोहन एवं भास्कर चौधरी करेंगे। सूत्र सम्मान के महत्वपूर्ण आयोजन में रचनाकार शिरकत कर रहे हैं। जिसमें महत्वपूर्ण है बसंत त्रिपाठी नागपुर, संतोष एलेक्स विशाखापटनम, नासिर अहमद सिकन्दर, कमलेश्वर साहू भिलाई, शाकिर अली रायगढ़, संजय शाम, नंद कसारी रायपुर, रजत कृष्ण, शैलेष साहू बागबहारा, विजय राठौर, नरेन्द्र श्रीवास्तव,सतीश सिंह, नागवंशी जाजंगिरी, त्रिजुगी कौशिक, देवांशु पाल बिलासपुर, पाथिक तारक नांदगांव, मांझी अनंत, युगल गजेन्द्र, कमेश्वर कुमार, सुबोध देवांगन धमतरी, निर्मल आनंद कोमा, भास्कर चौधरी, सूरज प्रकाश राठौर कोरबा सहित नगर के समस्त रचनाकार उपस्थित रहेंगे।
बंटवारा का मंचन
अंचल की नाट्य, लोकनृत्य, रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा बाल नाट्य शिविर आयोजित करने वाली संस्था प्रतिबिम्ब कला परिषद २० फरवरी को राष्ट्रीय विद्यालय मंच में संध्या ७.३० बजे से लेखक वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज की कृति नाटक बंटवारा का मंचन करेगी।

2/19/2010

हाशिए पर ईमानदारी !

आर के विज

माँ-बाप बच्चों को रोज ईमानदारी का एक पाठ पढ़ाया करते थे। आजादी की लड़ाई के किस्सों में, ईमानदारी और समर्पण की भावना ओत-प्रोत रहती थी। दादी माँ की कहानियाँ आदर्श नागरिक बनने की नसीहत के साथ खत्म होती थी। परंतु, आजकल ईमानदारी, बुजुर्गों के घर के कोने में रखी पुरानी लाठी की तरह हो गई है। जिसकी कभी-कभार याद आने पर ही सुध ली जाती है। ईमानदारी की कीमत तो कई बार प्रताड़ित या अपमानित भी होकर चुकानी पड़ती है। चारों ओर भ्रष्टाचार का बोलबाला है। अखबारों में बेईमानों के यशगान और अकूत संपत्ति का लेखा-जोखा प्रतिदिन मुख्य पृष्ठ पर पढ़ने को मिलता है। मानो उनके शरीर में रक्त के स्थान पर बेईमानी प्रवाहित हो रही हो। ईमानदारी का किस्सा, यदि अखबार में जगह पा भी जाए तो अक्सर ऐसे पन्ने पर छपता है, जहाँ शायद ही किसी की नजर जाए। समूचे संसार में ०९ दिसंबर को भ्रष्टाचार विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाता है। परंतु, यह तारीख शायद ही किसी को याद हो। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार को मापने का सूचकांक भी है। ट्रांसपेरेन्सी इंटरनैशनल एक गैर शासकीय संस्था द्वारा वर्ष १९९५ से लगभग सभी देशों का सर्वेक्षण करके एक भ्रष्टाचार सूचक दृष्टिकोण सूचकांक प्रकाशित किया जा रहा है। कुल १८० देशों के सर्वेक्षण में भारत ने वर्ष २००९ में ८४ वाँ स्थान प्राप्त कर अपने भ्रष्ट होने का ओहदा पिछले वर्ष के लगभग बराबर बनाए रखा है। वर्ष २००७ में हम ७४ वें स्थान पर थे। यह सूचकांक सरकारी संस्थाओं, नौकरशाहों एवं राजनेताओं द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार का सूचक है। लोगों की सोच एवं दृष्टिकोण का सूचक जो रिश्वत लेने एवं खरीद-फरोख्त में की जाने वाली अनियमितताओं का द्योतक है। भ्रष्टाचार की होड़ ने देश में बाघों की तरह तेजी से लुप्त हो रही ईमानदारी को मापने का सूचक बनाने की मशक्कत भला कौन करे? वर्ष १९०१ की बात है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत लौटने की तैयारी में थे। परंतु, एक वर्ष के भीतर यदि आवश्यकता पड़ी तो उन्हें वापस दक्षिण अफ्रीका लौटना पड़ेगा। दक्षिण अफ्रीका से आत्मिक लगाव के कारण गाँधी जी यह शर्त मान गए। उन्हें विदाई देने वालों का तांता लग गया। लोगों ने गाँधी जी को सम्मान में महँगे-महँगे तोहफे भी दिए। सोने की घड़ी, हीरे की अँगूठी और कस्तूरबा को सोने की चैन। तोहफा देने वाले लगभग सभी गाँधी जी के मुवक्किल थे। परंतु, इन कीमती तोहफों ने गाँधी जी की नींद हराम कर दी। वह रात भर सो नहीं सके और कमरे में चहल-कदमी करते रहे। सोचने लगे, क्या एक लोकसेवक को ऐसे तोहफे स्वीकार करना चाहिए? काफी मानसिक द्वंद्व के बाद गाँधी जी ने एक दस्तावेज तैयार किया और समाज के हितार्थ एक ट्रस्ट बनाने का लेख एक पारसी (रूस्तम जी) के नेतृत्व में न्यासियों के नाम लिख डाले। वर्ष १८९६ से १९०१ तक मिले सभी तोहफे उन्होंने वापस कर दिए और भारत लौट आए। तोहफे, सम्मान का प्रतीक न होकर अधिकार का पर्याय बन गए हैं। जिसे देखो, हर मौके पर तोहफे मिलने की आस लगाए रहता है, न मिलने पर कभी-कभी गुर्राने भी लगता है। कुछ भेंटकर दो तो फाइल को पंख लग जाते हैं और फटाफट टेबल बदलने लगती है। सरकार ने लोकसेवकों के लिए आचरण नियम भी बनाए, परंतु पालन कराने वालों को ताकत नहीं दी। भ्रष्टाचार कम करने के लिए कई कमेटियाँ बनीं, वर्षों अध्ययन पश्चात कमेटियों ने अपनी अनुशंसाएँ भी दीं। इंजीनियर लोगों पर प्रायः हर कार्य में परसेंटेज लेने के आरोप लगते हैं तो पुलिस पर रिपोर्ट न लिखने के। अब तो आफिस के बाबू भी रंग जमाने में लगे रहते हैं। विलियम शेक्सपियर ने कहा था : "ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी। इफ आई लूज माइन ऑनर, आई लूज माइ सेल्फ।" परंतु, जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा : "वी मस्ट मेक द वर्ड ऑनेस्ट बिफोर वि केन ऑनेस्टली से टू ऑर चिल्ड्रन दैट ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी।" अर्थात बच्चों को ईमानदारी का पाठ पढ़ाने से पहले हमें स्वयं यह पाठ पढ़ना होगा और अपने आचरण में सुधार लाना होगा। ईमानदारी के पक्ष में इसका गुणगान करना होगा, साथ ही साथ ईमानदारी को हाशिए से ऊपर उठाकर मुख्यधारा में लाना होगा। अतिशयोक्ति नहीं होगी, अगर इसके लिए एक अलग मंत्रालय ही खोल दिया जाए-डिपार्टमेंट फॉर ऑनेस्टी ।(लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं।)

2/06/2010

छत्तीसगढ़ी साहित्य में समकालीन चेतना -

अशोक सिंघई
विकास के नैरंतर्य में मनुष्य ने समूहों, समाजों और संगठनों में रहने की कला का निरन्तर विकास किया। सफलता, उपलब्धि और अस्तित्व की सुरक्षा की जिजीविषा से आतप्त मनुष्य ने सहेजने, सँवारने और बाँटने की क्रियाओं की अनिवार्यता को अपनी प्राकृतिक शक्तियों में समाहित किया। दुनिया को और उसके अनंत सांसारिक व्यापार और व्यवहार से अपना रिश्ता ढूँढती, समाज व समूहों से तादात्म्य स्थापित रखती मनुष्य की अपनी एकाकी काया अपनी अस्मिता की भी तलाश करती है। आकाश के अबूझ सितारों से लेकर भूगोल की घाटियों में भटकती, इतिहास की परतों और भविष्य की धुँध को टटोलती उसकी जिज्ञासा की अँगुलियाँ, सह-अनुभूतियों एवं सह-अनुभवों के शीतोष्म को जब महसूसती हैं तो वह उसे संचित ज्ञान के कोष अर्थात् साहित्य-रूप में अपनी नस्ल को विरासत के तौर पर सौंपने के सत्कर्म को स्वीकारती है।इस आदिम सोच ने साझे के सिद्धांत को अपनाते हुए मनुष्य को अपनी अदृश्य और अनूठी शक्तियों- शक्ति, स्मृति और फिर कल्पना का आभास हुआ होगा। हर मनुष्य के लिए मानवता की यह सतत-यात्रा प्रारंभ और अंत के वलय से गुज़रती है। यह उसके लिए अंतिम, पर मानव की नस्ल के लिए अनन्तिम और अनन्त होती है। हर मनुष्य अपने जीवन में पूर्वातीत की सारी यात्राओं को एक बार फिर जीता है। हर मनुष्य मानवता की चिर और निरन्तर यात्रा का अपने तईं संवाहक होता है।मनुष्य ने स्वप्न बुने। प्रस्तर-युग से चिप-युग तक की यात्रा में मनन-चिन्तन, विचार, व्यवस्था, सत्ता, संगठन जैसे दुधारी हथियार उसके हाथ लगे। हमारी सोच, हमारे विचार, संजोया ज्ञान और अनुभव, समय की समझ और समय की माँग, हमारे स्वप्न, हमारे आदर्श, हमारे लक्ष्य साझे होने चाहिए, सबके होने चाहिए, सबके लिए होने चाहिए। जैसे-जैसे ज्ञान बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे यह बोध भी बढ़ता है कि अभी भी कितना कुछ अज्ञात है। हमारी सारी संगठनात्मकता, हमारा सारा ज्ञान ऐसा हो जो मनुष्य और अंततः मानवता के पक्ष में खड़ा नज़र आये। इन्द्रियों की शक्ति, ज्ञान और चेतना के नैरंतर्य ने हमारी निर्भीकता बढ़ाई, हममें सौन्दर्यबोध विकसित किया, हमारे सपनों को रंग दिये। मुद्रा के आविर्भाव के पूर्व लेन-देन की आविष्कृत संक्रिया से व्यवसाय की समझ विकसित हुई। यात्राओं ने दूरियाँ घटाईं। उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम, यात्राओं के आध्यात्मिक और व्यावसायिक दौर का सदियों का इतिहास है। पूरा विश्व पहुँच के भीतर समाने लगा। अर्थ की अद्भुत विनिमयता से बाज़ार बना और यह वामनावतार सिद्ध हुआ। सौन्दर्य-बोध ने सर्वश्रेष्ठता की परिकल्पना को साकार किया और फिर शुरू हुई प्रतिस्पर्धा। क्षमतायें समृद्ध होतीं हैं, प्रतिस्पर्धा सेे। प्रतिस्पर्धा के लिये किसी भी समूह अथवा संगठन का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण हथियार होता है मनुष्य। आज का युग तकनीक का युग है। तकनीक से मनुष्य जुड़ा है और मनुष्य से मनुष्य। मनुष्य की दक्षता और क्षमता की कोई अंतिम सीमारेखा नहीं है। इकाई में व्यक्ति अपनी एक विशिष्ट और वैयक्तिक सत्ता रखता है। व्यक्ति और व्यक्ति मिलकर समूह बनाते हैं। समूहों और समाजों के समुच्चय से राष्ट्र बनता है। प्रकृति प्रदत्त सारे संसाधनों के मूल्य सम्वर्धन (वेल्यु एडीशन) में मानव संसाधन ही एकमात्र ऐसा संसाधन है जिसका कि प्रबंधन देश को सर्वोच्च बनाता हुआ प्रगति के शिख तक ले जाता है। ज्ञान मनुष्य की मूल शक्ति है, सम्वेदना नहीं। ज्ञान से शक्ति का और सम्वेदना से प्रेम और करुणा का सीधा संबंध होता है। ज्ञान से सम्वेदना की उत्पत्ति होती है अथवा सम्वेदना से ज्ञान की। मुक्तिबोध जैसे मूल वैज्ञानिक चिंतक और प्रखर समाजशास्त्री साहित्यकार इस गुत्थी को सुलझाने में ताउम्र लगे रहे। उन्होंने यूँ ही ज्ञानात्मक सम्वेदना और सम्वेदनात्मक ज्ञान की बात नहीं की थी। जरा विचार करें, सम्वेदना शून्य ज्ञान विष और ज्ञान शून्य सम्वेदना बाँझ होती है। वस्तुतः ज्ञान और सम्वेदना की सहक्रिया से ही विकास का भु्रूण पनपता है। किसी भी प्रदेश और देश को मानव के संबंध में उसकी सम्वेदना एवं प्रवृत्ति को हमेशा ध्यान में रखना होता है। हमारी इक्कीसवीं सदी में यह अनहोनी हो रही है कि बाज़ारवाद की अन्तर्वृत्ति से विकसित हो रही औद्योगिक संस्कृति में ज्ञान को सूचना से और सम्वेदना की नैसर्गिक प्रवृत्तियों को लाभ-हानि की त्वरित गणना से विस्थापित किया जा रहा है। पत्थरों के ईश्वरों को पूजते-पूजते हम ईश्वर बनने की राह में पत्थर होते जा रहें हैं। मिथेले फूको ने कहा है कि - विचारों के इतिहास को टटोलते हुए परंपराओं की निरंतरतायें नहीं, विच्छिनतायें और क्रम-भंगतायें अधिक महत्वपूर्ण हैं। ये अवरोध ज्ञान के संग्रहण में दख़ल देते हैं तथा ज्ञान की तानाशाही को रोकते हुए, ज्ञान के आधिपत्य को भंग कर एक नए समय को दर्ज़ कराने का दबाव बनाते हैं।विज्ञान और संस्कृति की उपलब्धियाँ अब कमोबेश सार्वभौम हैं। अगर पश्चिम का अंधानुकरण या तीब्र आधुनिकीकरण सामाजिक परिवर्तन का विवेकपूर्ण रास्ता नहीं है, तो भारतीय रूढ़िवाद इसका विकल्प भी तो नहीं है। हमारा अतीत हमारी रक्षा करने में समर्थ नहीं है। हमारा वर्तमान भविष्य के आकर्षण में तेजी से अतीत से पल्ला छुड़ाता नज़र आता है। अतीत में झाँकने पर भविष्य नज़र आता है वैसे ही जैसे झील में चाँद का अक्स। यह तो सिद्ध हो गया है कि भाषा, शिक्षा, आवागमन और संचार परिवर्तन के प्रमुख कारक है। मानव समूह की भाषा और शिक्षा इस अमूल्य और असीम संसाधन की उत्पादकता सुनिश्चित करते हैं। दिक़्कत यह है कि हम स्कूलों में तो अँग्रेज़ियत चाहते हैं और घरों में पौराणिक कथाओं के सीरियल्स् अथवा आस्था व संस्कार के चेैनल्स्। आधुनिकता और परंपरा के संबंध द्वन्द्वात्मक रहे हैं। उसी तरह अतीत और भविष्य के संबंध द्वन्द्वात्मक हैं।व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के दर्शन पर टिका है हमारा वर्तमान। प्रतिस्पर्धा का अस्तित्व ही ’श्रेष्ठता-भाव’ के बचे रहने का बोध है। प्रतिस्पर्धा का अस्तित्व तभी तक है, जब तक सर्वोत्कृष्ट होने की शेष अभिलाषा है। प्रतिस्पर्धा का कोई एक रूप नहीं होता। यह बहुरूपिया है। सफल होने और शीर्ष पर बने रहने के लिए इसे पहचानना हर युग की अनिवार्यता है। सर्वोत्कृष्ट होने की दुर्धर्ष जिजीविषा से प्रतिस्पर्धा प्रारंभ होती है और इस जिजीविषा के क्षरण से संगठन विनष्ट हो जाते हैं। बाज़ार में टिके रहने के लिए, बने रहने के लिए दिलो-दिमाग, दोनों की ज़रूरत है। प्रश्न यह है कि अपनी स्थायी इकाई मानव यात्रा में हम क्या कर रहे हैं? छत्तीसगढ़ प्रदेश के हर एक नागरिक को अपनी भूमिका के प्रति संवेदनशील, सक्रिय और जागरूक होना होगा। हम सामुहिक रूप से अधिक परिणाम दे सकते हैं। क्या खूब कहा गया है, ‘‘है ज़रूरी दूरियों पर सोचना, अपनी भी रफ्तार देखा कीजिये; हाँथ दिखते हैं सभी के एक से, हाँथ के हथियार देखा कीजिये।’’इक्क्ीसवी सदी का पहला दशक अपने अंतिम चरण में एक विश्वव्यापी मंदी का एक वैसा ही दौर लेकर आ रहा है जैसा कि विश्वयुद्धों के उपरान्त अनुभव में आया था। आधुनिकता, उच्च जीवन-स्तर और विज्ञान तथा तकनीकी के सारे लाभों का आस्वाद खारा होने लगा है। जब भी समुद्र-मंथन करना होता है, तब मानव और दानव, दोनों ही शक्तियों को एक धरातल पर खड़ा होना पड़ता है। विश्व-बाज़ार समुद्र है, आपूर्ति और माँग वासुकि के दो छोर हैं। उत्पादक शक्तियों से बनता है पर्वत मेरू। प्रश्न यह है कि हमारेे पास क्या शिव हैं? हलाहल का क्या होगा? मंथन के बाद वैसे भी अमृत उन्हीं में बँट जाता है जिन्हें कभी विष नहीं पीना होता। किसी भी संगठन में, किसी भी मनुष्य में देव और दानव, दोनों ही प्रवृत्तियाँ कमोबेश उपस्थित रहती हैं। अगर निरापद अमृत लक्ष्य है तो दानवत्व को देवत्व में बदलते रहने के उपक्रम गंभीरता से जारी रखने होंगे और इन सबमें साहित्य की भूमिका के महत्व से भला कौन इंकार कर सकता है। मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है उसके मानवीय सदगुणों, क्षमा, परोपकार, परदुखकातरता, कार्य के लिए समर्पण, परिश्रम एवं लगन से कार्य करने पर वह आदर्श मनुष्य कहलाता है। सम्प्रेषण अनिवार्य है। सटीक सम्प्रेषण के लिये भाषा भी सटीक होनी चाहिये। उल्लेखनीय है कि काम को सहजता से करने की दृष्टि एवं समस्त मानवीय संसाधन को एकजुट करने में जमीनी भाषा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निश्चित है। हमारे प्रदेश में जनता की भाषा छत्तीसगढ़ी है। विकास के लिये हिमालयीन प्रयासों में जनता को दिल से जोड़ना होगा और इस भगीरथ प्रयास में जनता की भाषा अनिवार्य होगी। जहाँ चाह है, वहाँ राह है। एक अच्छा और जिम्मेदार साहित्यकर्मी भाषा के भावुक प्रवाह में नहीं बह सकता। भाषायी सौहार्द्र के मूलमंत्र को छोड़कर यदि कुछ सुगबुगाहटें होती भी हैं तो बे निर्वंश ही रह जायेंगी। भाषा को लागू करने के संदर्भ में व्यवस्थित कार्यशैली को आत्मसात् कर इसे अपने यहाँ भी वैसे ही अमल में लाने की जरूरत है जैसे कि देश में हिंदी को लाने के लिये अपनाई गई है। भाषा का काम जोड़ना है, तोड़ना नहीं। देश के दूरदर्शी नेतृत्व ने जो दीर्घकालीन योजनायें बनाईं थीं, उनके मूल में इसी सोच की ही ताकत है। कहा जाता है कि दीर्घावधि तक चले देवासुर संग्राम में अन्ततः विजयी होने के लिये देवों ने अनेक प्रयास, अनुष्ठान आदि किये। सुफल के रूप में आनंद का घट देवताओं के हाथ लग गया। आनंद शक्ति और पराक्रम का अविरल स्रोत होता है। आनंद का यह घट असुरों के हाथ न लग जाये, यह चिन्ता उन्हें सताने लगी। वे सब भारी सोच में पड़ गये कि असुरों से इसे बचाकर रखना है तो आखिर कहाँ रखें? बहुत सोचने-विचारने के बाद आखिरकार देवताओं ने एक अति-सुरक्षित स्थान खोज ही लिया और वह था हृदय। सर्वद्रष्टा सहित सभी, सब कुछ देखते हैं, पर हृदय में कोई नहीं झाँकता या यूँ कहें कि झाँक नहीं पाता। इसके लिये विशेष सामथ्र्य चाहिये। इस सबसे निरापद जगह पर देवताओं ने आनंद का घट छिपाकर रख दिया है। हम सब कुछ ढूँढते हैं, सब जगह खोजते हैं, परन्तु हृदय नहीं टटोलते। आनंद का घट वहीं सुरक्षित पड़ा रहता है। सच्चा साहित्यकार अपने मानव समाज के हृदयों को टटोलना जानता है। भाषा को कारग़र हथियार में बदलने की पहली ्यर्त है आपसी विश्वास। यह संस्कृति, भाईचारे और सम्वेदना के वेग से परिचालित अन्तःसलिला है। यह खूबी छत्तीसगढ़ी साहित्यकार अपनी रचनाओं में कैसे लायेगा है, यह उसकी अपनी रचनात्मकता होगी।

1/31/2010

शब्दों की सत्ता का क्षरण रोकें - पंत



माखनलाल जी पुण्यतिथि पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय में व्याख्यान


भोपाल, 30 जनवरी। शब्द की सत्ता से उठता भरोसा सबसे बड़ा खतरा है। इसे बचाने की जरूरत है। ये विचार माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में पं. माखनलाल चतुर्वेदी की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित स्मृति व्याख्यान में अध्यक्षीय भाषण देते हुए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के मंत्री-संचालक कैलाशचंद्र पंत ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि माखनलाल जी एक साथ प्रखर वक्ता, कवि, पत्रकार और सेनानी रूपों में नजर आते हैं। उनका हर रूप आज भी प्रेरित करता है। वे सही मायनों में भारतीयता का जीवंत प्रतीक हैं और मानवीय दृष्टि से पूरी मानवता को संदेश देते हैं।
कार्यक्रम के मुख्यवक्ता कवि-कथाकार ध्रुव शुक्ल ने कहा कि हमारा समय अभिव्यक्ति की मुश्किलों का समय है। आज के समय में किस बात से कौन मर्माहत हो जाए कहा नहीं जा सकता। देश में अजीब से हालात हैं। उन्होंने कहा कि वे बौद्धिक नहीं अंर्तमन की भाषा लिखते थे। वे सही मायनों में एक भारतीय आत्मा थे। उनकी हिंदी चेतना और भारतीय मन आज के समय की चुनौतियों का सामना करने में समर्थ है।


मुख्यअतिथि वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि माखनलाल जी मूल्यों की परंपरा स्थापित की और उसपर चलकर दिखाया। हिंदी के लिए उनका संघर्ष हमें प्रेरित करता है। वे समय के पार देखने वाले चिंतक और विचारक थे। भारतीय पत्रकारिता के सामने जो चुनौतियों हैं उसका भान उन्हें बहुत पहले हो गया था। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो। बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि आज का दिन संत रविदास, महात्मा गांधी और माखनलाल जी से जुड़ा है तीनों बहुत बड़े संचारक के रूप में सामने आते हैं। अपनी संचार प्रक्रिया से इन तीनों महापुरूषों ने समाज में चेतना पैदा की। मानवता की सेवा के लिए तीनों ने अपनी जिंदगी लगाई। उन्होंने कहा कि मीडिया को जनधर्मी बने बिना सार्थकता नहीं मिल सकती। पश्चिम का मीडिया आतंकी हमलों के बाद अपने को सुधारता दिखा है हमें भी उसे उदाहरण की तरह लेते हुए बदलाव लाने की जरूरत है।

कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी और आभार प्रर्दशन कुलसचिव प्रकाश साकल्ले ने किया। इस अवसर पर सर्वश्री विजयदत्त श्रीधर, रेक्टर जेआर झणाणे, डा।श्रीकांत सिंह, चैतन्य पुरूषोत्तम अग्रवाल, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव, पत्रकार मधुकर द्विवेदी, रामभुवन सिंह कुशवाह, सरमन नगेले, युगेश शर्मा, सुरेश शर्मा, अनिल सौमित्र सहित अनेक साहित्यकार, पत्रकार एवं विद्यार्थी मौजूद थे।


( संजय द्विवेदी)

1/29/2010

पांडुलिपि हेतु गंभीर रचनाकारों से रचना आमंत्रण


पद्मश्री देकर महाकवि को अपमानित करने की भर्त्सना




देश के प्रख्यात कवि एवं मूर्धन्य साहित्यकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री को ‘पद्मश्री’ अंलकरण देने के लिए भारत सरकार की तीव्र भर्त्सना की है और कहा है कि जिस सरकार को साहित्य के क्षेत्र में एक महाकवि और एक चुटकुलेबाज़ के बीच कोई अंतर नहीं दिखाई देता हो, उस सरकार के हाथों यह अंलकरण लेना किसी भी साहित्यकार के लिए अशोभनीय और निंदनीय है । (ज्ञातव्य हो कि छत्तीसगढ़ के एक मंचीय कवि डॉ. सुरेन्द्र दुबे को पद्मश्री अंलकरण मिला है । )


डॉ। मिश्र ने देश के सभी वरेण्य साहित्यकारों से अपील की है कि वे अपने नाम के आगे ‘पद्मश्री रहित’ लिखें, जो उनके चरित्र की शुचिता का प्रमाण होगा । उन्होंने कहा कि पद्म अलंकरण ऐसे अयोग्य व्यक्तियों को दिये जाते हैं जो इनका दुरुपयोग उपाधि के रूप में करते हैं । वे दिन लद गए जब शासन की बागडोर नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे संस्कारवान राजनेताओं के हाथ में था, और दिनकर और बच्चन जैसे अग्रणी साहित्यकारों को अंलकरण दिये जाते थे । अब पद्मश्री अंलकरण पाना किसी साहित्यकार के चापलूस, जुगाड़ी और घटिया होने का सबूत है । इसलिए जो भी साहित्यकार समाज के समक्ष अपने आदर्श चरित्र का उदाहरण रखना चाहते हैं, वे इसे स्वीकार न करें ।


आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के वरिष्ठ सदस्य डॉ। मिश्र ने दावा किया है कि उनके आव्हान पर बनारस, प्रयाग, रावर्टगंज, लखनऊ, पटना, रायपुर, कोलकाता, मुजफ्फरपुर, दिल्ली, भोपाल, मुरादाबाद, मुंबई, देहरादून, काशीपुर चैन्ने आदि शहरों के साहित्यिकारों ने अपने नाम के सात ‘पद्म्श्री रहित’ लिखने का संकल्प किया है । डॉ. मिश्र ने कहा कि देश के साहित्यकारों का यह अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक भारत सरकार की ओर से अधम साहित्यकारों को पद्म अलंकरण देने पर खेद न व्यक्त किया जाये ।



बुद्धिनाथ मिश्र
देवधा हाऊस, गली – 5, बसंत विहार एन्क्लेव
देहरादून, उत्तराखंड – 248006
मोबाईल – 09412992244
ई-मेल - buddhinathji@yahoo.co.in

1/22/2010

डॉ.अभिज्ञात को अम्बडेकर उत्कृष्ट पत्रकारिता सम्मान

कोलकाताः रविवार की देर रात तक आयोजित एक भव्य समारोह में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए अम्बेडकर सम्मान प्रदान किये गये। डॉ.अभिज्ञात को उत्कृष्ट पत्रकारिता सम्मान आरके एचआईवी एड्स रिसर्च एंड केयर सेंटर के चेयरमैन डॉ.धर्मेन्द्र कुमार ने प्रदान किया। दो दशकों से पत्रकारिता कर रहे डॉ.अभिज्ञात सम्प्रति सन्मार्ग में वरिष्ठ उप-सम्पादक हैं। वे साहित्य में भी सक्रिय हैं और छह कविता संग्रह तथा दो उपन्यास प्रकाशित हुए हैं। साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें पांच पुरस्कार-सम्मान मिले हैं। यह समारोह उपनगर टीटागढ़ में आयोजित था।

महिलाओं के विकास में योगदान के लिए डॉ.सुरंजना चौधरी, ग्लोबल पर्सनालिटी आफ द ईयर रमेश प्रसाद हेला, औद्योगिक उपलब्धि सम्मान लोकनाथ गुप्ता, अम्बेडकर गुरुद्रोण सम्मान नृत्यानंद जी महाराज, सामाजिक जागरुकता सम्मान डॉ.संतोष गिरि, मैन आफ द ईयर सम्मान आत्माराम अग्रवाल, उभरता मीडिया उद्योग सम्मान विजन खबरा खबर (चैनल विजन) और यूथ आइको आफ द ईयर अवार्ड शिव प्रसाद गोसार्इं को प्रदान किया गया।

कार्यक्रम डॉ.भीमराव अम्बेडकर शिक्षा निकेतन और आरके एचआईवी एड्स रिसर्च एंड केयर सेंटर की ओर से आयोजित था। इस अवसर पर टीटागढ़ डॉ.भीमराव अम्बेडकर शिक्षा निकेतन संस्था का उद्घाटन, डॉ.अम्बेडकर और संस्था के संस्थापक स्व.मक्खनलाल की मूर्ति का अनावरण उद्योगपति आत्माराम अग्रवाल ने किया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुत्फ उपस्थित श्रोताओं ने उठाया। आराधना सिंह ने भोजपुरी गीत पेश किये।

डॉ. गोकुल मुखर्जी इस्पात राजभाषा सम्मान से सम्मानित


भिलाई इस्पात संयंत्र की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 4 जनवरी 2010 को सम्पन्न 95वीं बैठक में प्रबंध निदेशक श्री रा. रामराजु ने हिंदी तकनीकी पुस्तक समग्र इस्पात परिचय के यशस्वी लेखक व सेल के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. गोकुलानन्द मुखर्जी को इस्पात राजभाषा सम्मान से अलंकृत किया। उल्लेखनीय है कि डॉ. मुखर्जी ने उक्त पुस्तक बाँग्ला में लिखी है जिसका कि हिंदी अनुवाद मानव संसाधन विकास विभाग के सौजन्य से बीएसपी मुद्रण सेवायें विभाग द्वारा मुद्रित किया गया।

अपने सारगर्भित उद्बोधन में श्री रा. रामराजु ने कहा कि भारतीय भाषाओं में तकनीकी लेखन और उनका आपस में अनुवाद लेखन एक अग्रगामी कदम और सोच है। आने वाले समय में इसका महत्व समझा जायेगा। इसके लिये वयोवृद्ध इस्पात विशेषज्ञ डॉ. मुखर्जी की जितनी प्रशंसा की जाये कम है।

इस अवसर पर सम्मान के लिये हार्दिक आभार व्यक्त करते हुये डॉ. मुखर्जी ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद समाज की सेवा करनी चाहिये। इस्पात का समाज ही मेरा समाज है और मैंने यह महसूस किया कि इस्पातकर्मियों को उनकी अपनी मातृभाषा में इस्पात-तकनीक की जानकारी देने से उत्पादन और उत्पादकता में गुणात्मक वृद्धि हो सकती है। इसीलिये मैंने बाँग्ला में यह किताब लिखी और जहाँ-जहाँ इस्पात संयंत्र स्थित हैं वहाँ की भाषाओं में इन्हें अनुदित और प्रकाशित करने के प्रयास किये।

प्रारम्भिक वक्तव्य में श्री अशोक सिंघई ने कहा कि हिंदी को आर्थिक आधार देते हुये प्रयोजनमूलक बनाने में ज्ञान के सभी स्वरूपों को इसमें अवतरित करना होगा। इससे ही देश की विराट सामूहिक प्रतिभा बेहतर ढंग से उन्नत राष्ट्र का निर्माण कर सकेगी।
(अशोक सिंघई की रपट)

अशोक सिंघई महाप्राण निराला सम्मान से विभूषित


लिट्ररी क्लब भिलाई इस्पात संयंत्र के अध्यक्ष व राजभाषा प्रमुख श्री अशोक सिंघई को भुवनेश्वर (उड़ीसा) में सम्पन्न अखिल भारतीय राजभाषा संगोष्ठी में मुख्य अतिथि डॉ. प्रसन्न पाटसाणि सांसद् भुवनेश्वर एवं माननीय सदस्य संसदीय राजभाषा समिति ने भारतीय भाषाओं में लिखी गई हिंदी की आधुनिक कविता में सर्वाधिक प्रदीर्घ कविता अलविदा बीसवीं सदी के लिये महाप्राण निराला साहित्य शिरोमणि सम्मान से विभूषित किया।


मुम्बई स्थित संस्थान राजभाषा किरण के तत्वावधान में भुवनेश्वर में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में 8 जनवरी 2010 को राष्ट्रीय हिंदी अकादमी के निदेशक डॉ. शंकर लाल पुरोहित की अध्यक्षता में श्री अशोक सिंघई को शाॅल प्रशस्तिपत्र व स्मृतिचिन्ह से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उत्कल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 बिनायक रथ तथा भुवनेश्वर दूरदर्शन केन्द्र के निदेशक श्री विमल चन्द्र गुप्ता के विशिष्ट आतिथि के रूप में मंचस्थ थे। उल्लेखनीय है कि श्री अशोक सिंघई इसके पूर्व कोडंग्गल्लूर (केरल) जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) रायपुर (छत्तीसगढ़) एवं जोधपुर (राजस्थान) में राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं।


अशोक सिंघई ने अपनी प्रदीर्घ कविता अलविदा बीसवीं सदी से कविता के संसार में दस्तक दी थी। 12 फरवरी 2000 को नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला में कवि केदार नाथ सिंह ने श्री पुरुषोत्तम अग्रवाल की अध्यक्षता में इस पुस्तक का विमोचन किया था। महत्वपूर्ण यह है कि उस वक्त स्व. कमलेश्वर डॉ. नामवर सिंह अशोक वाजपेयी कामता नाथ कात्यायनी आदि जैसे वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित थे और श्री लीलाधर मंडलोई ने कार्यक्रम का संचालन किया था। 2009 में मेधा बुक्स नई दिल्ली ने इसका दूसरा संस्करण जारी किया है। श्री सिंघई के दूसरे काव्य संग्रह धीरे धीरे बहती है नदी के भी दो संस्करण आ चुके हैं। सम्भाल कर रखना अपनी आकाशगंगा दीर्घ और वैचारिक कविताओं का संग्रह है। श्री सिंघई के चौथे काव्य संग्रह सुन रही हो ना! में 81 प्रेम-कवितायें संग्रहित हैं। उनका पाँचवा संग्रह समुद्र चाँद और मैं दिल्ली से 30 जनवरी 2010 में विश्व पुस्तक मेला में इस वर्ष लोकार्पित होगा। हर अगली पुस्तक में वे अपनी ही कविताओं से बहुत अलग खड़े दिखते हैं।

भिलाई इस्पात संयंत्र कम्प्यूटर पर हिंदी प्रयोग में अग्रणी


मुम्बई स्थित संस्थान राजभाषा किरण के तत्वावधान में भुवनेश्वर में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में 8 जनवरी 2010 को मुख्य अतिथि डॉ. प्रसन्न पाटसाणि सांसद् भुवनेश्वर एवं माननीय सदस्य संसदीय राजभाषा समिति ने अखिल भारतीय स्तर कम्प्यूटर व आॅन-लाइन पर सर्वाधिक हिंदी प्रयोग के लिये भिलाई इस्पात संयंत्र को सर्वोत्कृष्ट निरूपित करते हुये सम्मानित किया। भिलाई इस्पात बिरादरी की ओर से संयंत्र के राजभाषा प्रमुख श्री अशोक सिंघई ने यह सम्मान ग्रहण किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय हिंदी अकादमी के निदेशक डॉ. शंकर लाल पुरोहित उत्कल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 बिनायक रथ तथा भुवनेश्वर दूरदर्शन केन्द्र के निदेशक श्री विमल चन्द्र गुप्ता मंचस्थ थे।


भिलाई को देश का नवरत्न निरूपित करते हुये सांसद् डॉ. पाटसाणि ने कहा कि भिलाई देश का ऐसा आधुनिक तीर्थ है जहाँ समस्त भारतीय भाषाओं का संगम विद्यमान है। ऐसे जटिल तकनीकी से युक्त संयंत्र में आधुनिक कार्यप्रणालियों में हिंदी के प्रयोग की सोच एक अग्रगामी और अनुकरणीय पहल है। हिंदी कार्य में लगातार विकास भिलाई जनशक्ति के राष्ट्रप्रेम तथा कर्तव्य परायणता का द्योतक है और यह संयंत्र के नेतृत्वकर्ता के सकारात्मक सोच का सुफल है।


संयंत्र को कम्प्यूटर व हिंदी के सम्मिलन के सराहनीय कार्य के लिए प्राप्त शील्ड को श्री पवन कुमार अग्रवाल कार्यपालक निदेशक (कार्मिक व प्रशासन) ने राजभाषा विभाग के कर्मियों की उपस्थिति में श्री रा. रामराजु प्रबंध निदेशक महोदय को सौंपा। श्री रामराजु ने राजभाषा के क्षेत्र में किये जा रहे कार्य की सराहना करते हुए विभागीय टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि भिलाई इस्पात बिरादरी आने वाले कल में विज्ञान और तकनीकी में भी हिंदी की उपयोगिता सिद्ध करने में अपनी पहल की संस्कृति क़ायम रखेगी।
(अशोक सिंघई की रपट)

अशोक सिंघई भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सम्मान से विभूषित



लिट्ररी क्लब भिलाई इस्पात संयंत्र के अध्यक्ष व राजभाषा प्रमुख श्री अशोक सिंघई को जोधपुर में सम्पन्न अखिल भारतीय राजभाषा संगोष्ठी में मुख्य अतिथि राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बनवारी लाल गौड़ ने भारतीय भाषाओं में लिखी गई हिंदी की आधुनिक कविता में सर्वाधिक प्रदीर्घ कविता अलविदा बीसवीं सदी के लिये भारतेन्दु हरिश्चन्द्र साहित्य शिरोमणि सम्मान से विभूषित किया। प्रो0 गौड़ ने कहा कि अपनी कविताई में अशोक सिंघई स्वच्छंद हैं। नई कविता के फ्रेम में वे नहीं बँधते और न ही गीत-अगीत के चक्करों से उनका कोई नाता है। उनका हर संग्रह सर्वथा भिन्न है।


भारतीय राजभाषा विकास संस्थान देहरादून के तत्वावधन में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में 9 अक्टूबर 2009 प्रख्यात शिक्षाशास्त्री प्रो0 लक्ष्मण सिंह राठौर पूर्व कुलपति जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर की अध्यक्षता में श्री सिंघई को शॉल प्रशस्तिपत्र व स्मृतिचिन्ह से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर प्रो. प्रवीण कुमार मीणा हिंदी विभागाध्यक्ष जोधपुर विश्वविद्यालय भारतीय रेलवे के निदेशक श्री अनुराग कपिल एवं एस.ई.सी.एल. के निदेशक (कार्मिक) श्री आर.एस. सिंह मंचस्थ थे।

हिंदी आशुलिपि एक धरोहर है - राजकुमार नरूला


राजभाषा विभाग भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संयंत्र कार्मिकों के लिए प्रथम बार हिंदी आशुलिपि प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ दिनांक 4-11-2009 को मानव संसाधन विकास केन्द्र के कक्ष 125 में श्री राजकुमार नरूला महाप्रबंधक (कार्मिक) के मुख्य आतिथ्य एवं श्री दिलीप नंनौरे उप महाप्रबंधक (संपर्क व प्रशासन) की अध्यक्षता तथा श्री अशोक सिंघई सहायक महाप्रबंधक (राजभाषा) की विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण पश्चात् मंगलदीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। उल्लेखनीय है कि इस सत्र में संयंत्र के 17 कार्मिक हिंदी आशुलिपि प्रशिक्षण हेतु पंजीकृत हैं।
मुख्य अतिथि श्री आर.के. नरूला ने अपने सारगर्भित सम्बोधन में कहा कि हिंदी आशुलिपि एक महान कला है जिसको सीखने के लिए आप लोगों को चयनित किया गया है यह गर्व की बात है। राजभाषा आज देश की भाषा बन चुकी है जिसके माध्यम से कार्यालयीन कार्य सम्पादित किये जाते हैं। सर्वप्रथम अपने स्वागत सम्बोधन में श्री अशोक सिंघई सहायक महाप्रबंधक (राजभाषा) ने कहा कि प्रबंध निदेशक महोदय की अध्यक्षता में कार्यरत राजभाषा कार्यान्वयन समिति में लिए गए निर्णयों के तहत हिंदी आशुलिपि का प्रथम बार भारत सरकार गृह मंत्रालय राजभाषा विभाग हिंदी शिक्षण योजना द्वारा संचालित प्रशिक्षण के तहत हिंदी टंकण में उत्तीर्ण मिनिस्टिरियल स्टाॅफ के लिए शुरूआत की गई है। भिलाई बिरादरी जो सोचती है वह करके रहती है हम सभी क्षेत्र में अग्रणीय की भूमिका निभाते हैं। उन्होंने आव्हान किया कि हिंदी आशुलिपि एक कला है संकोच को दूर करते हुए उत्साह व गर्व से इस विधा को सीखें निरंतर अभ्यास करें और कार्यालयीन कामकाज में अवश्य ही इसका प्रयोग करें।

डॉ. मैनेजर पाण्डेय इस्पात राजभाषा सम्मान से विभूषित



राजभाषा विभाग भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा 13 नवम्बर 2009 को इस्पात भवन में आयोजित राजभाषा संगोष्ठी में मुख्य अतिथि की आसंदी से सुविख्यात समालोचक व साहित्यकार डॉ. मैनेजर पाण्डेय के विचारोत्तेजक व्याख्यान से समस्त प्रतिभागी मंत्रमुग्ध रह गये। भिलाई इस्पात संयंत्र के कार्यपालक निदेशक (खदान-रावघाट) श्री मानवेन्द्र नाथ राय की अध्यक्षता में सम्पन्न इस संगोष्ठी में श्री सुनील कुमार जैन उप महाप्रबंधक प्रभारी (निगमित सामाजिक उत्तरायित्व) तथा श्री दिलीप नन्नौरे सचिव राजभाषा कार्यान्वयन समिति व उप महाप्रबंधक (सम्पर्क व प्रशासन) विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। संयंत्र के हिंदी समन्वय अधिकारियों के लिये आयोजित इस राजभाषा संगोष्ठी में कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री मानवेन्द्र नाथ राय ने विद्वान वक्ता डॉ. मैनेजर पाण्डेय को इस्पात राजभाषा सम्मान से विभूषित किया।
मुख्य अतिथि डॉ. मैनेजर पाण्डेय ने संयंत्र भ्रमण पर टिप्पणी करते हुये कहा कि यह न भूलने वाला अनुभव है। भारत में कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। तत्कालीन सोवियत संघ से केवल तकनालाॅजी ही भिलाई नहीं आई बिरादाराना भाव के विचार भी आये और भिलाई की एक शानदार अनुकरणीय औद्योगिक संस्कृति अस्तित्व में आई। उन्होंने कहा कि सभ्यता संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र का अनुभव बताता है कि सत्ता के हस्तक्षेप से भाषा का प्रश्न और अधिक उलझ जाता है। सन् 1909 में ही महात्मा गाँधी ने कह दिया था कि हिंदी भारत की भाषा होगी। इसे दूरदर्शिता कहते हैं। आज की राजनीति तो आत्मदर्शी भी नहीं रह गई है। भाषा के विवाद को महाराष्ट्र में हवा दी जा रही है। महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर नामदेव तुकाराम की सदियों की परम्परा में बीसवीं सदी के भक्त कवि माणिक तक ने मराठी के साथ हिंदी में रचनायें की हैं। हिंदी के आपके प्रदेश के ही दो नक्षत्र माधव राव सप्रे और मुक्तिबोध मूलतः मराठी ही थे। मुझे यह देख-सुनकर विशेष प्रसन्नता हुई कि इस इस्पात संयंत्र में विज्ञान और तकनीक की हिंदी भाषा गढ़ी जा रही है। हिंदी प्रेम की भाषा है पर प्रेम की भाषा से ही हमारे समय का कारोबार नहीं सधेगा। हिंदी को अर्थ समाजशस्त्र व्यापार राजनीति ज्ञान और विज्ञान की कायाओं के रूप में नये अवतार लेने होंगे।


प्रारम्भ में अपने स्वागत वक्तव्य में संयंत्र के राजभाषा प्रमुख श्री अशोक सिंघई ने कहा कि समकालीन आलोचना के शिखर पुरुषों में डॉ. मैनेजर पाण्डेय का नाम बहुत ही आदर व सम्मान से लिया जाता है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के भारतीय भाषा केन्द्र के निदेशक पद से सेवानिवृत्त डॉ. मैनेजर पाण्डेय ने साहित्य और इतिहास साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका भक्ति आन्दोलन और सूरदास का काव्य शब्द और कर्म आदि अमूल्य ग्रन्थ हिंदी आलोचना को दिये हैं। सूरदास के काव्य जगत की इन्होंने वैसी ही विलक्षण विवेचना की है जैसी कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर की और गोस्वामी तुलसीदास की आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने की है।
(भिलाई से अशोक सिंघई की रपट)

1/17/2010

भारत को पहचानने की जरूरत- श्रीभगवान सिंह


आधुनिक व दार्शनिक दृष्टि से हिन्द स्वराज अधिक प्रासंगिक- आचार्य नंदकिशोर
हिन्द स्वराज की प्रासंगिकता पर व्याख्यान सम्पन्न


रायपुर, 16जनवरी । ख्यातिनाम गांधीवादी, चिंतक और लेखक जयपुर के नंदकिशोर आचार्य ने कहा है गांधी जी की किताब हिन्द स्वराज्य आधुनिक एवं दार्शनिक दृष्टि से आज अधिक प्रासंगिक है। उन्होंने हिन्द स्वराज्य का विश्लेषण करते हुए कहा कि स्वदेशी, स्थानीय जरूरतों के, लिए स्थानीय संस्थानों से स्थानीय लोगों के लिए विकसित टेक्नालाजी है। यह विचार आचार्य ने महात्मा गांधी द्वारा रचित विश्व प्रसिद्ध कृति हिन्द स्वराज की 100 वीं वर्षगांठ के अवसर पर रायपुर प्रेस क्लब के सभागार में हिन्द स्वराज्य की प्रासंगिकता विषय पर आयोजित व्याख्यान के दौरान व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा किया गया। उक्त अवसर पर प्रख्यात आलोचक श्रीभगवान सिंह की नाट्यकृति बिन पानी बिन सुन का विमोचन भी श्री नंदकिशोर आचार्य के हाथों संपन्न हुआ ।


नंदकिशोर आचार्य ने हिन्द स्वराज्य की प्रासंगिकता पर कहा कि इस पर देश में गंभीर, चिन्तन नहीं हुआ। यह अपने आप में एक सनातन प्रासंगिकता है। प्राणियों में मनुष्य में चेतना का विकास हुआ और बाद में उसमें हस्तक्षेप करने की क्षमता विकसित हुई। वर्तमान मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह उसका उपयोग विकास के लिए करें या विनाश के लिए। उन्होंने तीन महान विचारकों की पुस्तकों का जिक्र करते हुए कहा कि एडम स्मिथ ने उत्पादन पर जोर दिया उससे बाजार की समस्या उत्पन्न हो गई परिणाम स्वरूप यह सिद्धांत समस्या सुलझाने में असमर्थ हो गया। इसी तरह कार्ल माक्र्स ने उत्पादन पर समाज के अधिकार का सिद्धांत दिया जिससे कार्पोरेट सेक्टर के पास स्वामित्व चला गया और नतीजा यह हुआ कि रूस में एकाएक आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। जबकि गांधी जी के हिन्द स्वराज में ऐसी टेक्नालाजी पर बल दिया गया है जो समतामूलक एवं अहिंसात्मक हो। उन्होंने कहा कि प्रकृति और मनुष्य के बीच का संबंध ही आपसी रिश्तों को बढ़ाएगा। उन्होंने कहा कि हिन्द स्वराज्य सनातन सिद्धांतों पर आधारित है और आज के इस वैज्ञानिक युग में यह हम सब पर निर्भर करता है कि विकास अथवा विनाश में से कौन सी स्वतंत्रता चाहते हैं।


इसके पूर्व व्याख्यान कार्यक्रम के आरंभ में भागलपुर से आए चर्चित आलोचक श्रीभगवान ने कहा कि गांधी जी उपनिवेशवाद के विरोधी थे और सर्व समाज एवं सभी देशों के आगे बढऩे की बात करते थे। उन्होंने कहा कि विज्ञान का मतलब ज्ञान का सोच समझकर उपयोग करना है। गांधी जी भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल आचरण, नीतियों और श्रुतियों के अनुसार विकास की बात करते थे। गांधी जी स्वावलंबन और स्वायतता की बात करते थे क्योंकि उससे ही देश में सबको रोजगार मिलने के साथ ही आत्मनिर्भर बढ़ सकती थी। कालान्तर से देश में ही उनके हिन्द स्वराज की कल्पना की उपेक्षा कर दी गई मगर आज उसकी प्रासंगिकता और बढ़ गई है। श्री भगवान ने कहा कि गांधी जी के सिद्धांतों में ग्रामीण स्वावलंबन की भावना छुपी हुई है। पश्चिमी दौड़ के कारण अपव्यय तथा धन का दुरूपयोग बढ़ा है जिस पर किसी का ध्यान नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि गांधी जी के सिद्धांतों को याद नहीं किया गया तो हम सब पर भारी संकट आने वाला है।


व्याख्यान के अध्यक्षीय उद्बोधन में कवि विश्वरंजन ने कहा कि एडम स्मिथ कार्ल मार्क्स एवं समतावादी समाज की संरचना से ज्यादा वैज्ञानिक व्यवहारिक, सोच गांधी जी की थी। गांधी जी नए युग के मनुष्य के लिए सबसे बड़े प्रकाशपुंज की तरह हैं। आज हम उनकी बुनियाद को अपने अंदर कितना गहरे में उतार पाते हैं यह आज की सबसे बड़ी प्रासंगिकता है। उन्होंने कहा कि बस्तर में पहले सामंतवादी माहौल था उसके बाद वन संरक्षण अधिनियम, पर्यावरण अधिनियम के कारण आदिवासियों को काफी दिक्कतें आई। इन्हीं सबके चलते नक्सलवादी जैसी ताकतों को पैर पसारने के लिए अवसर मिल गया। उन्होंने कहा कि नक्सली सिद्धांत हिंसा पर केन्द्रित है और आखिर में वह टूटेगी पर बहुत नुकसान के बाद। उन्होंने कहा कि बस्तर की परिस्थिति अलग है कितने भी तथाकथित गांधीवादी हों वे नक्सली सुरंग के बीच जाकर बताएं। विश्वरंजन ने कहा कि सोच वाला व्यक्ति निडर होता है। गांधी जी बड़े सत्यान्वेषी थे। उनकी सोच समतावादी थी। जो लोक के लिए सुविधाजनक है वह प्रासंगिक है।


कार्यक्रम के अंत में प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान की ओर से संस्थान के अध्यक्ष विश्वरंजन ने नंदकिशोर आचार्य और श्रीभगवान को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। आरंभ में अतिथियों का पुष्पहार से स्वागत किया गया। इस अवसर पर श्रीमती इंदिरा मिश्र, विनोद कुमार शुक्ल, नंदकिशोर तिवारी, राजेन्द्र मिश्र, बसंत तिवारी, संस्कृति आयुक्त राजीव श्रीवास्तव, प्रभाकर चौबे, रवि भोई, अशोक सिंघई, केयूर भूषण, गुलाब सिंह, प्रभाकर चौबे, विनोद शंकर शुक्ल, सुभाष मिश्र, जयप्रकाश मानस डी.एस.अहलुवालिया, डॉ. प्रेम दुबे, डॉ. वंदना केंगरानी, एच.एस.ठाकुर, एस. अहमद, संजीव ठाकुर, डॉ,सुधीर शर्मा, राम पटवा, हसन खान, अलीम रजा, नईम रजा, विनोद मिश्र, रवि श्रीवास्तव, विनोद साव, कमलेश्वर, बी. एल. पॉल, चित्रकार सुश्री सुधा वर्मा, एवं बड़ी संख्या में दुर्ग, भिलाई, बिलासपुर और रायपुर के लेखक, पत्रकार, एवं प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे।

(राम पटवा की रपट)

12/31/2009

पांडुलिपि हेतु लेखकों से आमंत्रण

प्रमोद वर्मा जैसे हिन्दी के प्रखर आलोचक की दृष्टि पर विश्वास रखनेवाले, मानवीय और बौद्धिक संवेदना के साथ मनुष्यता के उत्थान के लिए क्रियाशील छत्तीसगढ़ राज्य के साहित्य और संस्कृतिकर्मियों की ग़ैरराजनीतिक संस्था ‘प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान’ द्वारा जनवरी, 2010 से प्रकाश्य त्रैमासिक पत्रिका ‘पांडुलिपि’ हेतु आप जैसे विद्वान, चर्चित रचनाकार से रचनात्मक सहयोग का निवेदन करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता हो रही है । हमें यह भी प्रसन्नता है कि ‘पांडुलिपि’ का संपादन ‘साक्षात्कार’ जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका के पूर्व संपादक, हिंदी के सुपरिचित कवि, कथाकार एवं आलोचक श्री प्रभात त्रिपाठी करेंगे ।

हम ‘पांडुलिपि’ को विशुद्धतः साहित्य, कला, संस्कृति, भाषा एवं विचार की पत्रिका के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं । आपसे बस यही निवेदन है कि ‘पांडुलिपि’ को प्रेषित रचनाओं के किसी विचारधारा या वाद की अनुगामिता पर कोई परहेज़ नहीं किन्तु उसकी अंतिम कसौटी साहित्यिकता ही होगी । ‘पांडुलिपि’ में साहित्य की सभी विधाओं के साथ साहित्येतर विमर्शों (समाज /दर्शन/चिंतन/इतिहास/प्रौद्योगिकी/ सिनेमा/चित्रकला/अर्थतंत्र आदि) को भी पर्याप्त स्थान मिलेगा है, जो मनुष्य, समाज, देश सहित समूची दुनिया की संवेदनात्मक समृद्धि के लिए आवश्यक है । भारतीय और भारतीयेतर भाषाओं में रचित साहित्य के अनुवाद का यहाँ स्वागत होगा । नये रचनाकारों की दृष्टि और सृष्टि के लिए ‘पांडुलिपि’ सदैव अग्रसर बनी रहेगी।

किसी संस्थान की पत्रिका होने के बावजूद भी ‘पांडुलिपि’ एक अव्यवसायिक लघुपत्रिका है, फिर भी हमारा प्रयास होगा कि प्रत्येक अंक बृहताकार पाठकों पहुँचे और इसके लिए आपका निरंतर रचनात्मक सहयोग एवं परामर्श वांछित है ।

प्रवेशांक ( जनवरी-मार्च, 2010 ) हेतु आप अपनी महत्वपूर्ण व अप्रकाशित कथा, कविता ( सभी छांदस विधाओं सहित ), कहानी, उपन्यास अंश, आलोचनात्मक आलेख, संस्मरण, लघुकथा, निबंध, ललित निबंध, रिपोतार्ज, रेखाचित्र, साक्षात्कार, समीक्षा, अन्य विमर्शात्मक सामग्री आदि हमें 20 जनवरी, 2010 के पूर्व भेज सकते हैं । कृति-समीक्षा हेतु कृति की 2 प्रतियाँ अवश्य भेजें ।

यदि आप किसी विषय-विशेष पर लिखना चाहते हैं तो आप श्री प्रभात त्रिपाठी से ( मोबाइल – 094241-83427 ) चर्चा कर सकते हैं । आप फिलहाल समय की कमी से जूझ रहे हैं तो बाद में भी आगामी किसी अंक के लिए अपनी रचना भेज सकते हैं ।

हमें विश्वास है – रचनात्मक कार्य को आपका सहयोग मिलेगा ।

रचना भेजने का पता –
01. प्रभात त्रिपाठी, प्रधान संपादक, रामगुड़ी पारा, रायगढ़, छत्तीसगढ़ – 496001
02. जयप्रकाश मानस, कार्यकारी संपादक, एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, छत्तीसगढ़ – 492001

12/24/2009

विश्वरंजन को राष्ट्र गौरव सम्मान


छत्तीसगढ़ अंधश्रद्धा-मुक्ति के लिए सरकारी प्रयास करनेवाला देश का पहला राज्य

रायपुर । अंधश्रद्धा और अंधविश्वास से उपजे सामाजिक, मानसिक और आर्थिक अपराधों को नियंत्रण करने के लिए सरकारी स्तर पर सामाजिक अभियान चलाने वाले देश के पहले राज्य छत्तीसगढ़ और उसके अगुआ पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन को ‘राष्ट्र-गौरव’ सम्मान से अलंकृत किया गया है । यह सम्मान श्री विश्वरंजन को उनके उल्लेखनीय पहल के लिए 20 दिसम्बर को नागपुर में आयोजित एक प्रतिष्ठापूर्ण अलंकरण समारोह में पिछले 27 वर्षों से सामाजिक कार्यों के लिए चर्चित संस्था अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के राष्ट्रीय प्रतिष्ठान ने प्रदान किया गया । इसके अलावा नागपुर के विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों ने भी श्री विश्वरंजन को उनके इस उल्लेखनीय योगदान के लिए नागरिक अभिनंदन किया ।
इस अवसर पर अपने उद्बोधन में श्री विश्वरंजन ने कहा कि जो समाज प्रश्न नहीं कर सकता वह समाज पिछड़ जाता है, भय ग्रस्त हो जाता है और भयग्रस्त समाज अनैतिक तथा अवैज्ञानिक सोच का शिकार हो जाता है । इसलिए अपने अंधश्रद्धाओं के खिलाफ़ मुहिम तर्कहीन और रूढिवादी मानसिकता से निजात पाने का भी मुहिम है जो भारत जैसे पारंपरिक देश के विकास के लिए आवश्यक है । उन्होंने यह भी कहा कि भारत के इतिहास का आरंभ आर्य भट्ट जैसे विद्वानों से होता है । शून्य एवं दशमलव के माध्यम से नक्षत्रों की दूरी का पता लगाने का श्रेय भारत को जाता है । अंलकरण समारोह के पूर्व “अंधश्रद्धा और प्रचार-माध्यमों की भूमिका” विषय पर अपने व्याख्यान में वरिष्ठ पत्रकार एवं दैनिक 1857 के संपादक एस. एन. विनोद ने कहा कि वर्तमान पत्रकारिता कार्पोरेट घरानों के हाथों की कठपुतली है जिसका मूख्य ध्येय विज्ञापन है । मीडिया से अंधश्रद्धा के निवारण की दिशा में उल्लेखनीय अपेक्षा करने से कहीं अच्छा होगा कि अंधश्रद्धा को विकसित करने वाले चैनलों और समाचार पत्रों का ही बायकाट किया जाये । अतिथि वक्ता एवं युवा साहित्यकार जयप्रकाश मानस का अभिमत था कि आंचलिक संवाददाता यानी गाँव-खेड़ा के पार्टटाइम पत्रकार ऐसे समाज के प्रतिनिधि होते हैं जो बुनियादी तौर पर लोकआस्था वाली मानसिकता के कारण प्रगतिशील भूमिका में नहीं खड़ा हो सकते । और हम यह सभी जानते हैं कि अंधश्रद्धा के अधिकांश समाचार यथा टोनही, टोटके, दैवीय चमत्कार आदि इन्हीं अंचलों यानी गाँव-कस्बों से आते हैं ।
अलंकरण समारोह के पूर्व प्रखर प्रकाशन, नागपुर की ओर से प्रसिद्ध समाजसेवी और अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष उमेश चौबे द्वारा लिखित ‘पोल-खोल’ पुस्तक का विमोचन विश्वरंजन के हाथों किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता नागपुर के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. गोविन्द शर्मा ने की । पुस्तक के लेखक उमेश चौबे ने कहा कि अब तक किये गये कार्यों को लेखा-जोखा उन्होंने इस पुस्तक में दिया है । भाषा के नाम पर बँटवारे की नीति करनेवालों को उन्होंने चेताते हुए कहा कि वे इससे दूर रहें । उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ एक मात्र राज्य है जहाँ अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून बनाया गया है । एक कदम बढ़कर पुलिस महानिदेशक श्री रजंन ने इसे जनअभियान का स्वरूप प्रदान कर दिया है । समिति के राष्ट्रीय महासचिव हरीश देशमुख ने स्वागत भाषण और कार्यक्रम का संचालन हरिभाऊ पाथोड़े ने किया । अभिनंदन पत्र का वाचन डॉ. राजेन्द्र पटौरिया, संपादक खनन भारती के किया । इस अवसर पर नागपुर के गणमान्य नागरिक, प्रबुद्ध समाजसेवी, शासकीय अधिकारी, साहित्यकार पत्रकार बड़ी संख्या में उपस्थित थे ।

12/08/2009

मीडिया विमर्श का वार्षिकांक समर्पित है मीडिया और महिलाएं विषय पर


भोपाल। महिलाएं आज मीडिया के केंद्र में हैं। मीडिया उन्हें एक औजार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। मीडिया ने स्त्री को बिकने वाली वस्तु बना दिया है। मीडिया और स्त्री के बीच बनते नए संबंधों को उजागर करती है मीडिया विमर्श का नया अंक। जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित देश की अग्रणी त्रैमासिक पत्रिका ने अपने वार्षिकांक को मीडिया और महिलाएं विषय पर समर्पित किया है।

यह पत्रिका अनेक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इस विशेष अंक में आज के समय में मीडिया और स्त्री के विभिन्न आयामों को उजागर किया गया है। 88 पृष्ठों की इस पत्रिका में विषय पर केंद्रित 33 लेखों का संकलन है। इन विषय पर कलम चलाई है देश के ख्यातिलब्ध पत्रकारों, साहित्यकारों और विश्लेषकों ने। इस अंक में कमल कुमार, उर्मिला शिरीष, डा. विजय बहादुर सिंह, अल्पना मिश्र, जया दाजवानी, सच्चिदानंद जोशी, इरा झा, रूपचंद गौतम, मंगला अनुजा, गोपा बागची, डा. सुभद्रा राठौर, संजय कुमार, हिमाशु शेखर, रूमी नारायण, जाहिद खान, अमित त्यागी, स्मृति जोशी, कीर्ति सिंह, मधु चौरसिया, लीना, संदीप भट्ट, सोमप्रभ सिंह, निशांत कौशिक, पंकज झा, सुशांत झा, माधवीश्री, अनिका ओरोड़ा, इफत अली, फरीन इरशाद हसन, मधुमिता पाल, उमाशंकर मिश्र, डा. महावीर सिंह और रानू तोमर के आलखों का संग्रह है।

पत्रिका के संपादकीय में प्रख्यात कवि अष्टभुजा शुक्ल ने स्त्री और मीडिया पर लिखा है, ...मीडिया हमारे समय का बहुत प्रबल कारक है और स्त्री हमारे समय में अपनी पहचान और छाप पूरी शिद्दत के साथ अपने बूते पर दर्ज कराने के लिए जद्दोजहद कर रही है। स्त्री मीडिया की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है, जबकि मीडिया स्त्री को लोलुप दृष्टि से...। मीडिया अपनी चमक को और चमकीला बनाने के लिए स्त्री का उपयोग करने के लिए आतुर है। यह अंक पत्रकारों, मीडिया विश्लेषकों, शोधछात्रों, मीडिया विद्यार्थियों तथा महिला विशेषज्ञों के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पत्रिका ने कालजयी पत्रकार प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है..मुश्किल है उन्हें अलविदा कहना..। प्रो. कमल दीक्षित ने प्रभाष जोशी के विचारों को नए समाज के साथ जोड़ते हुए समाज को दिए गए उनके योगदान का स्मरण किया है।