1/11/2006

गिरीश पंकज की नई गजल


सुन्दर कोमल कली लडकियाँ
होती अक्सर भली लडकियाँ

कितना मीठा मन रखती हैं
ज्यों मिसरी की डली लडकियाँ

मत बाँधों पैरों में बन्धन
अंतरिक्ष को चली लडकियाँ

पीडाओं को सह लेती हैं
संघर्षों में पली लडकियाँ

जब लडके नाकारा निकले
माँ-बाप को फली लडकियाँ

गिरी हुई दुनिया दिखलाती
ससुरालों में जली लडकियाँ

00 रचनाकार हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ संपादक, व्यंग्यकार, उपन्यासकार हैं । रायपुर, छत्तीसगढ में डेरा है । अब तक 20 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं । सम्मानों का अंबार है उनके पास ।-संपादक

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