4/13/2006

सप्ताह के गीतकार- संतोष रंजन

तीन गीत


चाँदनी में डूब जाऊँ

चाँदनी में डूब जाऊँ
चाँद से आँखें लड़ाऊँ
सोचता हूँ आज किसको
याद करके भूल जाऊँ।


दर्द मेरा, मौन मेरा
पत्थरों के सम नहीं है।
चाह मेरी, आह मेरी
घाटियों में गुम कहीं है ।
लौटते उच्छ्वास उतरे ज्वार जैसे
डूबते निश्वास गहरे और गहरे
इन सितारों को सुनाऊँ
इन बहारों को रिझाऊँ।


सोचता हूँ आज किसको
रुठकर फिर मैं मनाऊँ
घाव वृक्षों पर लगे जो
चाव ऋक्षों पर सजे जो ।
भोर होते डूब जाते
स्वप्न रातों में खिले जो ।
पोंछती है अश्रु सबके चाँदनी भी
घाव सबके भर रही है चाँदनी भी
किन हवाओं को बुलाऊँ
किन दिशाओं को सुनाऊँ ।
सोचता मैं आज किसको
दर्द का मोती दिखाऊँ।


कांपती दीपक-शिखा
पर चाँदनी ठहरी हुई है ।
बहकती सारी दिशा
पर रात कुछ गहरी हुई है ।
दर्द पिघलेगा नहीं मैं जानता हूँ
चाँदनी की नजर भी पहचानता हूँ
गीत कैसा गुनगुनाऊँ
किन स्वरों को फिर जगाऊँ।
सोचता मैं आज कैसे
घाव पर मरहम लगाऊँ ।


उठ गया विश्वास मेरा
स्वप्न सौगंधों सभी पर
टूट कर सबसे अलग मैं
हूँ अकेला आज जी भर
हाथ पीड़ा का बड़ा सुकुमार है
साथ उसका, प्रेम का व्यापार है
सोचता अब, सोचता मैं
क्यों किसे अपना बनाऊँ
क्यों किसे अपना बनाऊँ




चंपा के झुरमुट से

चंपा के झुरमुट से छन-छन कर चाँदनी
चंपा के नीचे खड़ी हुई चाँदनी!

मन में है एक लहर
एक लहर मौसम में।
साँसें कुछ जमी हुई
पिघली हैं उपवन में।
देखो तरु शीर्षों पर अटक गई चाँदनी !

कभी पूष्प-गुच्छों पर
कभी नग्न शाखों पर।
कभी नर्म जूही पर
कभी इन गुलाबों पर।
सुधा-दान करने पर तुली हुई चाँदनी !

निर्धन के आंगन में
धनियों के नंदन में।
सरिता की धारा में
खुशियों की कारा में ।
सावन में दूर्वा-सी बिछी हुई चाँदनी !



भूमिका जैसी मिली

भूमिका जैसी मिली करते रहे
कभी हँसकर, कभी रोकर, कभी खामोश रहकर ।
ज़िन्दगी जैसी मिली, जीते रहे
कभी स्वप्निल, कभी बोझिल, कभी मदहोश होकर ।


बीहड़ों में रास्ते चुनते रहें
नाम उस करतार का लेते हुए
कहीं रूककर, कहीं झुककर, कहीं दौड़े ढलानों पर


मंज़िलों पर रास्ते मिलते गये,
फिर अजानी राह पर चलते गये ।
कभी इस भीड़ के, उस मोड के हमराह होकर ।


ख्वाब बिन ताबीर के टूटा किये
हमसफर मिलते रहे छूटा किये
कभी इस मोड़ पर, उस मोड़ पर रूमाल देकर ।


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(श्री संतोष रंजन केन्द्रीय सेवा (गृह मंत्रालय में )के वरिष्ठ अधिकारी हैं । हिन्दी के गीतकार के रूप में पहचाने जाते हैं । इधर ब्रिटिश उपन्यासकार मेरी कोरिली की कृति 'द सोल आफ लिलिथ' का हिन्दी रूपांतरण के कार्य में संलग्न हैं । अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित एवं चर्चित हो चुके हैं 1. जुड़ने और टूटने के बीच 2. वक्त भूगोल फिर हो गया । संपादक )

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