8/07/2007

संजय दत्त यदि अभिनेता के बजाए नेता होते!


मुंबई स्थित टाडा की विशेष अदालत ने 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के दोषियों को सजा सुना दी है। 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस का बदला लेने के उद्देश्य से मुम्बई में इन धमाकों का षडयन्त्र मुंबई के कुछ माफ़िया सरगनाओं के इशारों पर रचा गया था। इसमें 257 बेगुनाह व्यक्ति मारे गए थे तथा भारी सरकारी व निजी सम्पत्ति की क्षति हुई थी। इस मुंबई बम कांड पर अपना फैसला सुनाने वाली विशेष टाडा अदालत ने इस भयंकर अपराध के लिए 100 व्यक्तियों को सजा सुनाई जिनमें सजाए मौत से लेकर 3 वर्ष के कारावास तक की सजा शामिल है। जबकि कुछ आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव के कारण बरी भी किया गया है। इन्हीं आरोपियों में एक नाम फिल्म अभिनेता संजय दत्त का भी था। संजय दत्त को शस्त्र अधिनियम के तहत नाजायंज तरीके से हथियार रखने के जुर्म में 6 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई है। ज्ञातव्य है कि संजय दत्त के घर से प्रतिबंधित ए के 56 राईंफल बरामद हुई थी जिसे नष्ट करने का भी संजय दत्त ने प्रयास किया था। विशेष टाडा अदालत के न्यायाधीश जस्टिस पी जी कोड ने इसी जुर्म में संजय दत्त को 6 वर्ष के लिए जेले भेजने का आदेश जारी किया।

सजा सुनाए जाने के बाद संजय दत्त को बिना किसी मोहलत के तत्काल मुंबई की आर्थर रोड जेल भेज दिया गया। इसके अगले ही दिन आर्थर रोड जेल प्रशासन ने यह महसूस किया कि इस जेल में संजय दत्त की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो सकता है लिहाजा जेल प्रशासन ने उन्हें आर्थर रोड जेल मुंबई से रातों रात स्थानान्तरित कर पुणे की उच्च सुरक्षा वाली यरवदा जेल भेज दिया। मुंबई से लेकर पुणे तक संजय दत्त के लाखों समर्थकों ने जगह-जगह उनका स्वागत किया, उन्हें देखकर मुन्नाभाई जिन्दाबाद के नारे लगाए तथा उनकी एक झलक पाने के लिए बेचैन दिखाई पड़े।

संजय दत्त को सजा सुनाए जाने से पहले ही आम लोगों की नंजर केवल संजय दत्त जैसे लोकप्रिय अभिनेता को लेकर ही इस फैसले पर टिकी हुई थी। शायद इसी रहस्य को बनाए रखने के लिए माननीय अदालत ने संजय दत्त को सजा सुनाए जाने की तिथि को तीन बार आगे बढ़ाया तथा इस मुंकद्दमे के फैसले के ठीक अन्तिम दिन संजय दत्त को सजा सुनाए जाने की घोषणा की। संजय की सजा को लेकर आम लोगों में इस हद तक उत्सुकता बनी हुई थी कि सट्टा बांजार के लोग इसमें भी कूद पड़े तथा करोड़ों रुपए का सट्टा लगा डाला। इन सब बातों से यह जाहिर होता है कि संजय दत्त भले ही एक अपराधी क्यों न रहे हों परन्तु एक सफल नायक होने की वजह से वे आम लोगों के दिलों पर भी राज करते रहे हैं।
संजय दत्त को सजा सुनाए जाने के बाद साधारण अनपढ़ व्यक्ति से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग तक में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई थी कि संजय वास्तव में सजा के हकदार थे या माफी के? न्यायालय ने उन्हें 6 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा देकर ठीक किया अथवा इसी सिलसिले में 15 महीने पहले का उनके द्वारा काटा गया कारावास ही संजय की सजा के रूप में कांफी था? मुंबई ब्लास्ट तथा संजय दत्त के पास से हुई शस्त्र बरामदगी का आपस में कोई रिश्ता था भी या नहीं? जब अदालत ने स्वयं संजय दत्त के आतंकवादी न होने की बात स्वीकार कर ली तथा उनपर लगा टाडा भी इसी कारण हटा लिया गया फिर आंखिर आर्म्स एक्ट के तहत 15 महीने की सजा को ही कांफी क्यों नहीं समझा गया? वगैरह-वगैरह! इसमें कोई शक नहीं कि यदि संजय दत्त को अदालत बरी कर देती तथा इसी आरोप के तहत पूर्व में उनके द्वारा 15 माह के बिताए गए कारावास को ही सजा की अवधि के रूप में स्वीकार कर लिया जाता तो देश की आम जनता में निश्चित रूप से यही संदेश जाता कि अदालत ने संजय दत्त की उच्चकोटि की पारिवारिक पृष्ठभूमि, ऊँची राजनैतिक पहुँच, उनकी लोकप्रियता आदि के आधार पर उन्हें मुक्त कर दिया। परन्तु 6 वर्षों के सश्रम कारावास की सजा देकर अदालत ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि कानून की नंजर में कोई छोटा या बड़ा नहीं है। निष्पक्ष सोच रखने वालों ने जहां इस फैसले पर सन्तोष व्यक्त किया है वहीं इस फैसले से तमाम ऐसे हाई प्रोंफाईल लोगों के कान भी खड़े हो गए हैं जिनपर या जिनके सगे संबंधियों पर संगीन अपराधों के तहत अदालत में मुंकद्दमे विचाराधीन हैं।

इन सब बातों से अलग हटकर इसी सजा को लेकर एक बात और भी अत्याधिक विचारणीय है कि यदि संजय दत्त अभिनेता के बजाए नेता होते और तब उन्हें यही सजा सुनाई गई होती तो कैसे दृश्य की सम्भावना हो सकती थी? अभी कुछ वर्ष पूर्व की ही बात है जबकि तमिलनाडू की ए आई डी एम के नेता सुश्री जयललिता को घोटालों के आरोप में जेल जाना पड़ा था। जयललिता बेशक पहले कभी तमिल ंफिल्मों की लोकप्रिय अभिनेत्री थीं तथा आम जनता इनकी प्रशंसक भी थी। परन्तु राजनीति में पदार्पण के बाद तथा विशेषकर एम जी रामाचन्द्रन की राजनैतिक विरासत पर कब्जा जमाने के बाद उनके जनाधार व लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ है। यहां तक कि तमिल राजनीति में अपना पूरा दबदबा रखने वाले एम करुणानिधि से भी वे किसी भी समय दो-दो हाथ कर पाने में हर समय सक्षम हैं। अर्थात् जयललिता के इस भारी जनाधार का कारण उनकी राजनीति में सक्रियता मात्र ही है। यही वजह थी कि जयललिता को जेल भेजे जाने के समय उनके समर्थकों ने सड़कों पर ऐसा नंगा नाच दिखाया जिससे न्यायपालिका भी दहल उठी। जयललिता के समर्थकों ने उनकी गिरफ्तारी व जेल भेजे जाने के विरोध में हजारों की तादाद में सड़कों पर उतर कर भारी तोड़-फोड़ की, आगंजनी की घटनाएं घटीं, सरकारी सम्पत्ति का काफी नुकसान हुआ। यहाँ तक कि तीन छात्राएं बस में जिंदा जलाकर मार डाली गईं। यह ताण्डव जयललिता के समर्थकों द्वारा केवल इसलिए किया गया था क्योंकि वे अपने नेता को जेल भेजे जाने के अदालती आदेश से सहमत नहीं थे।

यदि जनाधार की ही बात की जाए अथवा प्रशंसकों की संख्या पर चर्चा की जाए तो जयललिता भले ही एक क्षेत्रीय राजनीति में महारत रखने वाली तमिलनाडू की अति लोकप्रिय नेता क्यों न हों परन्तु उनकी तुलना में संजय दत्त अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एक ऐसा लोकप्रिय अभिनेता है जिनके लाखों प्रशंसक हैं जो प्रत्येक गाँवों व कस्बों से लेकर दूर-दरांज के देशों तक पाए जा सकते हैं। बेशक संजय दत्त की सजा को लेकर उन सभी प्रशंसकों में बेचैनी जरूर पैदा हुई। परन्तु इसके बावजूद भारी मन से ही क्यों न सही, उन सभी प्रशंसकों ने अन्त्तोगत्वा अदालती फैसले को स्वीकार कर ही लिया। जयललिता समर्थकों की तरह किसी ने इस फैसले के विरुद्ध हिंसक प्रदर्शन करने की कोशिश नहीं की।

संजय दत्त ने अपने 15 महीनों के जेल प्रवास के दौरान तथा पिछले दिनों सजा सुनाए जाने के अन्तिम क्षण तक जिस विनम्रता तथा सहनशीलता का परिचय दिया है वह निश्चित रूप से सराहनीय है। यदि संजय दत्त भी चाहते तो अपने समर्थकों व प्रशंसकों के माध्यम से वे भी सड़कों पर वैसा ही नंगा नाच करवा सकते थे जैसा कि जयललिता के समर्थकों ने किया था। परन्तु अदालत की गरिमा, उसकी मर्यादा व ंकानून व्यवस्था की बेहतरी के दृष्टिगत् यही सुखद था कि संजय दत्त एक मर्यादित लोकप्रिय अभिनेता थे, एक पेशेवर तथाकथित 'नेता' नहीं।


निर्मल रानी
163011, महावीर नगर,
अम्बाला शहर,हरियाणा

1 टिप्पणी:

mamta ने कहा…

ठीक कहा है ।