2/07/2009

सृजनगाथा का नया अंक

सृजनगाथा के नये अंक में पढ़िये

कविता
◙ स्मरणीय - मुकुटधर पांडेय, डॉ. केदारनाथ सिंह
◙ कवि - मुमताज, स्व. विनय दुबे, विश्वरंजन, लाल्टू, नरेश अग्रवाल, कृष्णकान्त निलोसे, प्रभा मुजुमदार
प्रवासी कवि - अंजना संधीर
माह का कवि - संजीव बख्शी

भाषांतर
जापानी हाइकू का भावानुवाद - नलिनीकांत
रेत - हरजीत अटवाल -पंजाबी उपन्यास (भाग 15)

छंद
◙ माह के छंदकार - रंजीत भट्टाचार्य
◙ गीत - सुरेश कुमार पंडा, मदन मोहन शर्मा, अशोक शर्मा,
कुँअर बेचैन, शारदा कृष्ण
◙ ग़ज़ल - सजीवन मयंक, राम मेश्राम, चन्द्रसेन विराट, विज्ञान व्रत
◙ दोहे - रामानुज त्रिपाठी
◙ अजयगाथा - दंतेवाड़ा

हस्ताक्षर
डॉ. उदय तिवारी : भाषा वैज्ञानिक - प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन
जब मैं इलाहाबाद में शोध कार्य कर रहा था, उसी अवधि में दिसम्बर 1961 में तिवारी जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जबलपुर वहाँ के विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष के पद पर हिन्दी विभाग स्थापित करने हेतु चले गए थे। आगरा में नियुक्त होने के बाद वहाँ के कार्यभार के कारण मैं इतना व्यस्त हो गया कि डॉ. तिवारी जी को पत्र न लिख सका। जब मुझे डॉ. तिवारी जी का पत्र मिला जिसमें उन्होंने लिखा कि ``आगरे से तुमने कोई पत्र नहीं भेजा और न ही अपना समाचार ही लिखा तो इसे पढ़कर अपनी गलती का अहसास हुआ।
फक्कड़ कवि थे निराला - कृष्ण कुमार यादव

व्याकरण
◙ एक शब्द - आग - गंगाप्रसाद बरसैंया

विचार-वीथी
लोकतंत्र में राजनेता होना चाहिये - प्रो. महावीर सरन जैन
जनतांत्रिक चेतना : परिवर्तन का द्योतक - नन्दलाल भारती

हिन्दी विश्व
हिंदी पर हमला - रघु ठाकुर

प्रसंग-वश
आतंकवाद और महिलाएँ - डॉ. सुनीता ठाकुर
दूसरों पर आसानी से यकीन न करना, अपनी इज़्ज़त के लिए मर मिटना, परपुरुष की सहायता तो क्या उससे बात तक न करना जैसी बहुत से हिदायतें हम औरतों ने अपने पुरखों से सीखी होती हैं। ये हिदायतें हमें सिर्फ़ अपने परिवार के सदस्यों तक ही सीमित रहकर जीना सिखाती है। इससे अलग तौर तरीक़े अपनाने वाली महिलाओं को क्या-क्या सुनना और झेलना पड़ता है यह हम सभी औरतें, औरत होने के नाते अच्छी तरह से जानती हैं। यही कारण था कि बहुत-सी औरतें अपनी सरज़मीं पर ही मौजूद सहायताओं को नकार कर एक अनजान शहर में भटकने को तैयार हो जाती हैं। एक ज़मीन से उखड़ती हैं और दूसरी पर उपज नहीं पातीं।

मूल्याँकन
नाटककार और रंगमंच - मोहन राकेश
रंगमंच की पूरी प्रयोग-प्रक्रिया में नाटककार केवल एक अभ्यागत, सम्मानित दर्शक या बाहर की इकाई बना रहे, यह स्थिति मुझे स्वीकार्य नहीं लगती। न ही यह कि नाटककार की प्रयोगशीलता उसकी अपनी अलग चारदीवारी तक सीमित रहे और क्रियात्सक रंगमंच की प्रयोगशीलता उससे दूर अपनी अलग चारदीवारी तक । इन दोनों को एक धरातल पर लाने के लिए अपेक्षित है कि नाटककार पूरी रंग-प्रक्रिया का एक अनिवार्य अंग बन सके।
हिंदी साहित्य-पत्र-पत्रिका की प्रांसगिकता - डॉ. वीरेन्द्र यादव

शेष-विशेष
राजनीति....
ओबामा : आशाएँ व चुनौतियाँ - तनवीर जाफ़री
ओबामा के शांति प्रयासों के बावजूद अफ़ग़ान-पाक सीमा पर निरंतर बगड़ते हालात तथा पूरे पाकिस्तान में चरमपंथियों के फैलते प्रभाव ने अमेरिका की चिंताएँ काफ़ी बढ़ा दी हैं। कई प्रमुख अमेरिकी कूटनीतिज्ञों को इस बात का संदेह है कि बावजूद इसके कि 9/11 के बाद अब तक अमेरिका पर कोई चरमपंथी हमला नहीं हुआ है। परन्तु इस बात की प्रबल संभावना है कि चरमपंथियों द्वारा अगले हमले की योजना पाकिस्तान में बनाई जा सकती है।
रिपोर्ताज....
यहाँ होती है सृष्टिकारों की सृष्टि - उमाशंकर मिश्र
शोध....
हिंदी लघुकथा का विकास - डॉ. अंजलि शर्मा
इन दिनों....
वैश्विक प्रयासों से संभव, आतंकवाद से छुटकारा - तनवीर जाफ़री

कहानी
मैंगोलाइट - तरुण भटनागर
ठीक है, ग्लोब में नहीं है । मास्टर कहता कि, एटलस में नहीं है, नहीं है, दुनिया जहान के नक्शों में । नहीं है देश-दुनिया में । चर्चा में भी नहीं है । पेपरों में, रोज़ के रेडियो के समाचार में भी नहीं है । संयुक्त राष्ट्र संघ की सूची में नहीं है, नहीं है, ओलंपिक के झण्डाबरदार खिलाडियों की परेड में । नहीं है, डाक टिकटों में । कि तिब्बत की कोई मुद्रा नहीं, नहीं उसका कोई झण्डा । कहीं नहीं, किसी देश में नहीं तिब्बत का कोई राजदूत, कोई एम्बेसेडर । संसार में कहीं नहीं तिब्बत का कोई दफ्तर.......... ।
हार ले आना ! - योगन्द्र सिंह राठौर
गुजराती कहानी - जूही - लता हिराणी

संस्मरण
परचून की दुकान से - सुरेश पंडा
एक बार ऐसा हुआ कि शुक्ल जी ने सूचना भिजवायी कि बाबा नागार्जुन आये हैं । जूटमिल धर्मशाला में ठहरे हैं। ज़ल्द पहुँचो । हम राधेश्याम गोयल़, श्रीधर आचार्य शील़, मुस्तफा आदि तीन चार लोग पहुँच गये । वहाँ पर शुक्ल जी शर्मा जी आदि बरिष्ठ लोग बाबा नागार्जुन के साथ बैठे चर्चा में मशगुल थे । देश के इतने बरिष्ठ साहित्यकार को सशरीर समक्ष देखकर हम सभी को संकोच हो रहा था । हम सब भी किनारे एक तरफ़ बैठ गये ।

लघुकथा
दूरअंदेश - मोहम्मद कय्युम
मजबूरी - राजमल डांगी
पागल प्रेमी - श्याम कुमार पोकरा


लोक-आलोक
मोहरी - छत्तीसगढ़ की अनमोल धरोहर - आसिफ़ इकबाल
आदि से आधुनिक होने के सफर में मनुष्य के संग-संग वाद्यों में भी अनगिनत परिवर्तन हुए हैं, किन्तु आज भी ऐसे अनेक श्रेष्ठ वाद्य बचे हैं, जिन्हें परिवर्तन का तीव्र प्रवाह भी परिवर्तित नहीं कर पाया है। ऐसे ही वाद्यों को लोकवाद्य की संज्ञा दी जाती है। इनमें छत्तीसगढ़ का दुर्लभ लोकवाद्य ‘मोहरी’ है, जो मांगलिक प्रसंगों पर बजाया जाने वाला पारम्परिक वाद्य है। इस लोकवाद्य को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाने में राजनांदगांव जिले के पंचराम देवदास का स्थान अग्रक्रम में बना हुआ है।

व्यंग्य
स्वागतम् ! सुस्वागतम् !! - अशोक गौतम

पुस्तकायन
जाग एक बार - श्री बबन प्रसाद मिश्र
घर-बेघर - कमल कुमार
स्त्री संशब्द : विवेक और विभ्रम-कमल कुमार व मुक्ता

ग्रंथालय में (ऑनलाइन किताबें)
लौटते हुए परिंदे(कहानी संग्रह) - सुरेश तिवारी
इंद्रधनुष (कविता संग्रह) - डॉ. महेन्द्र भटनागर
प्रिय कविताएँ (कविता संग्रह) - भगत सिंह सोनी

हलचल
(देश विदेश की सांस्कृतिक खबरें)
'लेखक और प्रतिबध्दता' और 'मॉस्को की डायरी' का विमोचन
पुस्तक संकट में नहीं है
साहित्यकार संदर्भ कोश का प्रकाशन
महेन्द्र कपूर को गान सम्राज्ञी लता मंगेशकर पुरस्कार
जनवादी नाटककार राजेश कुमार को मोहन राकेश सम्मान
प्रख्यात कवि डा. केदारनाथ सिंह को भारत-भारती
हिन्दी के प्रचार-प्रसार में मीडिया की भूमिका पर संगोष्ठी