11/03/2007

गोपाल सिंह नेपाली स्मृति निबंध प्रतियोगिता - परिणाम

भाषा, साहित्य और संस्कृति की वेब-पत्रिका सृजनगाथा डॉट कॉम, काव्यांजलि (बहुभाषीय एवं भारतीय संस्कृति के संवर्धन हेतु प्रतिबद्ध रेडियो सलाम नमस्ते, डलास, अमेरिका) के संयुक्त तत्वाधान में हिंदी के प्रभापुरुष एवं गीतकार स्व. गोपाल सिंह नेपाली की स्मृति में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था ।
(विस्तृत विवरण यहाँ पढें)



हमें खुशी है कि हमें ढ़ेरी प्रविष्टियाँ मिली

अरुण यह मधुमय देश हमारा -2

गोपाल सिंह नेपाली स्मृति निबंध प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त रचना


इतिहास के अनुसार हमारा देश दस हजार (वर्ष) पुराना है। हमारे देश ने कई प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक समस्याओं का सामाना करते हुए आज भी विश्व में अपना एक अलग स्थान बनाया हुआ है। जहां अनेक प्रकार की विभिन्नता के बावजूद भी एक अनोखी एकता दिखाई देती है। हमारा देश भारत लगभग तीन शताब्दियों तक पराधीनता की बेडियों में जकड़ा था। इसी बीच अग्रेजों ने उसे बिलकुल कगांल कर दिया इसके अलावा बगंलादेश, बर्मा, श्रीलंका और पाक्स्तान को भारत से अलग कर दिया जो भारत के अंग थे। 15 अगस्त सन् 1947 को जब भारत आजाद हुआ तो उनके सामने अनेक समस्यायें विकराल रूप लेकर खड़ी थीं सिसमें से 50 वर्षों में अधिकांश समस्याओं का समाधान हो गया है और भारत सभी क्षेत्रों में निरन्तर आगे बढ़ते हुए विकसित देशों की श्रृखला में आने की कोशिश कर रहा है।

शिक्षा का विकासः-
मनुष्य के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। हमारा देश शिक्षा के प्रति अनेक महत्वपूर्ण भावनाओं से जैसे राजीव गांधी शिक्षा मिशन के अंतर्गत सर्व शिक्षा अभियान के तहत ग्रामीण बच्चों की सुविधा के लिए स्कूल एक किलोमीटर के दायरे में खोले गये हैं । 98 प्रतिशत जिलों में सरकारी साक्षरता अभियान चलाया जा रहा है। प्राथमिक शालाओं में बच्चो को मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था कराई जा रही है। 1से 8वीं तक के बच्चों के लिये निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था कराई जा रही है। इस प्रकार हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में बहुत से अभियान चला रही है जिससे देश के नागरिक शिक्षित होकर देश की प्रगति में योगदान कर सके।

आधुनिक जन परिवहन प्रणाली-
जानलेवा दुर्घटनाओं और यातायात जाम की स्थिति से बचने के लिए सरकार ने इस प्रणाली को अपनाया है। इसके अंतर्गत दिल्ली में मेट्रो रेल चलाने की कवायद शुरू की है । इससे ईधन की बचत होगी । क्योंकि हमारे राजधानी के सड़कों पर दौड़ने वाली वाहनों की संख्या करीब पैंतीस लाख है । मेट्रो रेल के संचालित होने से रफ्तार को बढ़ाने और यातायात की जाम की स्थिति से निपटने तथा सड़क हादसों में कमी लाने में काफी सहायक सिद्ध हो सकती है।

पंचायती राज-
हमारा भारत वर्ष गाँवो का देश है। गांवों की उन्नति के बिना हारे देश की उन्नति संभव नहीं है। सच्चे प्रजातंत्र के लिए सारे समान में सुख समृद्धि तथा समानता होना आवश्यक है। प्राचीन भारत में हमारे देश में पंचायतें उन्नत अवस्था में थी उनका रूप प्रजातांत्रिक था लेकिन जब भारत अंग्रेजों का गुलाम हो गया था, पंचायतों का अस्तित्व समाप्त हो गया । आजादी के बाद गाँधी जी की इच्छा थी कि भारत में एक बार फिर रामराज्य स्थापना हो । इस स्वप्न को पूरा कराने के लिए सन 1947 में एक पंचायती राज्य कानून बनाया गया । इसके बाद गाँवों की स्थिति में सुधार शुरू हुआ। आम सभा के अंदर सड़कें बनवाना, मरम्मत करवाना, सफाई, रोशनी का प्रबंध, चिकित्सा, जच्चा बच्चा की देखभाल तथा संपति की रक्षा जन्म मरण का हिसाब रखना मुख्य कार्य है।

विश्व शांति और भारत
आज विश्व बारूद की ढेर पर खड़ा है। आये दिन बम धमाके हो रहे हैं। जिससे हजारों बेगुनाहों की मौत हो रही है। भारत की नीति हमेशा से तटस्थता की नीति रही है। भारत की सेनाएं जब कभी भी अपनी सीमाओं से बाहर गई है तब या तो आक्रमणकारियों को सबक सिखाने के लिए की गई या फिर युद्धग्रस्त क्षेत्रों में शांति स्थापनार्थ ही की गई है। भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ शांति पूर्ण सबंध स्थापित किए है। पाकिस्तान के साथ अपने सबंध सुधारने के लिए भारत ने कई बार शांति पूर्ण वार्ता की है। इन्हीं भावनाओं के तहत 6 अप्रैल 2006 को श्रीनगर- मुजफ्फराबाद बस सेवा फिर से शुरू की गई, जिससे दोनों देशों के नागरिकों में खुशी की लहर दौड़ गई और । इसे “शांति का कारवां कहा” गया।

अंतरिक्ष में भारत
विश्व में आज अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में जो होड़ लगी हुई है उसमें हमारा देश भारत भी पीछे नहीं है। भारत के द्वारा छोड़ा गया प्रथम उपग्रह “एप्पल” उसके बाद “भास्कर द्वितीय”, रोहिणी उपग्रह “बी-2” “इन्सेट ‘A’, ‘आर्यभट्ट’, ‘इन्सेट’ ‘इन्सेट 3A’ जैसे उपग्रह भारत के द्वारा अंतरिक्ष पर भेजे गए हैं । अनेक भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष की यात्रा में सफलता प्राप्त की है । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान विज्ञान की प्रगति से भारतीय वैज्ञानिको की अद्भुत प्रतिभा, साहस, धैर्य, क्षमता और जिज्ञासा की भावना प्रगट होती है ।

देश में दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में गति लाने के लिए स्वदेश निर्मित शैक्षणिक उपग्रह “एडूसैट” का प्रक्षेपण 2004 को किया गया है । एडूसैट के कार्यशील होने से दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है । (इससे) टेवीविजन स्टूडियो में बैठे शिक्षक विद्यालयों महाविद्यालयों में सैकड़ों हजारों महाविद्यालयों को एक साथ संबोधित कर सकेंगे । इस व्यवस्था से दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी से निपटा जा सकेगा । इस प्रकार भारत अंतरिक्ष अनुसंथान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत की है । और करता रहेगा ।

भारत में हरित क्रांति-
हमारे भारत को हरियाली या हरेपन का खिलाव, विकास एवं सब तरह से सुख समृद्धि का प्रतीक माना गया है । हरित क्रांति का अर्थ भी देश का अनाजों या खाद्य पदार्थों की दृष्टि से सम्पन्न या आत्मनिर्भर होने का है । वह सर्वथा उचित ही है । विश्व में भारत ही एक मात्र ऐसा दैश है जिसे आज भी कृषि प्रधान या खेती बाड़ी प्रधान देश कहा और माना जाता है । हरित क्रांति ने भारत की खाद्य समस्या का समाधान तो किया ही उसे उगाने वाले के जीवन को भी पूरी तरह से बदल कर रखा दिया अर्थात् उनकी गरीबी दूर कर दी । छोटे और बड़े सभी किसानों को समृद्धि और सुख का द्वार देख पाने में सफलता पा सकने वाला बनाया गया । (इसमें) नए-नए अनुसंधान और प्रयोग में लगी सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं का भी निश्चय ही बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने उन्नत किस्म के बीजों का विकास तो किया ही है, साथ ही मिट्टी का निरीक्षण (परीक्षण) कर यह भी बताया है कि किस मिट्टी में कौन-सा बीज बोने से ज्यादा लाभ मिल सकता है । इस प्रकार हरित क्रांति ने भारत की खाद्यान्न की समस्या पर विजय प्राप्त की है ।

भारत की धर्म निरपेक्षता की नीति-
धर्मनिरपेक्षता हमारी सांवैधानिक व्यवस्था की सामाजिक चेतना और मानवता का सार तत्व है । धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है – राज्य का, सरकार का कोई धर्म नहीं, राज्य के सभी नागरिक अपना धर्म मानने के लिए स्वतंत्र है । इससे सभी देशों में भारत का सम्मान बढ़ा है । आज का भारत अनेकता में एकता का श्रेष्ठ उदाहरण है । इस देश में सभी धर्मों तथा उनके मानने वालों का एक समान सम्मान है । यह हमारे प्रजातंत्र की सफलता है ।

भारतीय धर्म और संस्कृति-
हमारे भारत में 325 में अधिक भाषायें व 1200 से भी अधिक बोलियां हैं । भारतभूमि अपने आँचल में विभिन्न धर्म और तद्-नुसार संस्कृतियां समेटे हुए हैं । भारत की मुख्यतः छः प्रमुख धर्म- हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई बौद्ध और जैन धर्म हैं । इनके अवाला अन्य धर्मों की भी गरिमामयी उपस्थिति है । विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के जीवन के रंग-ढंग और तरीकों ने भारतीय संस्कृति को निरंतर समृद्ध किया है । जनजीवन के उल्लास को अभिव्यक्ति करने वाले नृत्य. संगीत, गायन और चित्रकला जैसी विधाओं में इनकी छटा नजर आती है । इस प्रकार भारत में विभिन्न धर्म और संस्कृति के बीच एक अनोखी एकता है ।

भारत में अनेकता में एकता-
हमारी भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में से एक है । हमारे देश में विभिन्न भाषाओं, धर्मों, जातियों, सम्प्रदायों के लोग निवास करते हैं । लेकिन उनका लक्ष्य सब को सुखी और प्रसन्न रखना है । यहाँ वसुधा को ही कुटुम्ब माना जाता है । हमारे देश में शक, कुषाण, हुण, ग्रीक पारसी, यहुदी, मुसलमान आदि अनेक जाति के लोगों ने शासन किया लेकिन सभी भारतीय संस्कृति में रंगते चले गये जो हमारे देश में अनेकता में एकता की एक मिसाल है ।

भारत में सहकारिता आंदोलन-
सहकारिता का अर्थ है - कुछ या कई लोगों को सहयोग या मेल मिलाप से संगठित किया गया कार्य । सहकारिता के आधार पर कोई भी कार्य करना आसान हो जाता है । भारत में अनेक प्रकार की सहकारी संस्थाएं कार्य कर रही हैं । दैनिक उपभोक्ता वस्तुओं के सरकारी स्टोर कैण्टिन्स, भवन-निर्माण, संस्थाएं आदि सहकारी क्षेत्रों में कार्य कर रही है। भारत में सरकारी संस्थाओं का अनुभव और आंदोलन प्रायः लाभदायक एवं जनहितकारी साबित हुआ है। कई बार ऐसा भी हुआ करता था कि अथक परिश्रम करते रहने पर भी अकेले व्यक्ति को आवश्यकतानुसार उचित परिश्रमिक नहीं प्राप्त होता था। सहकारिता आंदोलन से भारत ने इस समस्या पर विजय हासिल कर ली है। और अब निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है।

कम्प्यूटर का उपयोग-
वर्तमान समय में भारत में अधिकाधिक कम्प्यूटर का उपयोग होता जा रहा है। स्कूलों, कालेजों, सरकारी दफ्तरों, दुकानों, अस्पतालों आदि सभी जगहों पर कम्प्यूटर के द्वारा कार्य संचालित किए जा रहे हैं। जिससे कार्य करने में तेजी आ गई है। हमारे देश में कम्प्यूटर नेटवर्क के माध्यम से देश के प्रमुख नगरों को एक दूसरे साथ जोड़े जाने की प्रक्रिया जारी है। भवनों, मोटरगाडियों, हवाई जहाजों आदि के डिजाइन आजकल कंप्यूटर के द्वारा ही किया जा रहा है । कम्प्यूटर से करोड़ मील दूर अंतरिक्ष के चित्र लिए जा रहे हैं। भारत में भी अन इंटरनेट का प्रयोग किया जाने लगा है। इसके द्वारा हम एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर पर उपस्थित व्यक्ति को संदेश भेज सकते हैं। इस प्रकार हमारा देश भी अब कम्प्यूटर का अधिकाधिक प्रयोग कर उससे लाभान्वित हो रहा है।

भारत में प्रक्षेपास्त्र विकास का कार्यक्रम-
आज जिसे मिसाइल या प्रक्षेपास्त्र कहा जाता है वे सैकड़ों हजारों मिलों तक जाकर तबाही कर सकने में समर्थ परमाणु शक्ति से संचालित अस्त्र-शस्त्र है। इनके द्वारा परमाणु या अन्य बम भी घर पर बैठे बिठाए अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार गिराये जा सकते हैं । प्रक्षेपास्त्र के निर्माण में भारत भी पीछे नहीं है । राष्ट्रीय हितों को सामने रख कर भारत आज कई प्रकार के गाइडेड मिसाइलों का निर्माण और परीक्षण कर रहा है । इस श्रृखला में “पृथ्वी” नामक मिसाईल का निर्माण और परीक्षण किया गया । उसके बाद त्रिशूल नाम के प्रक्षेपास्त्र, अग्नि का निर्माण और परीक्षण किया । इसके निर्माण और सफल परीक्षण ने भारत को मिसाईल कार्यक्रमों के क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बना दिया है । अब इस कला में दक्ष भारत विश्व का छठा देश बन गया है । इसके अतिरिक्त भारत नाम और आकाश नामक दो अन्य प्रक्षेपास्त्रों का निर्माण भी कर चुका है । वह दिन दूर नहीं जब भारत प्रक्षेपास्त्रों की अपनी विकास यात्रा में अन्य विकसित देशों की सक्षमता को प्राप्त कर लेगा ।

इस समय हमारे देश में जनसंख्या एक अरब से अधिक हो चुकी है । इसका क्षेत्रफल 32 लाख 68 हजार 10 वर्ग किलो मीटर है । इस आकार के रुप में भारत वर्ष का विश्व में सातवां स्थान है । 26 जनवरी 1950 को हमारा देश सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बना। तब से लेकर आज तक हमारा देश निरंतर विकास एवं समृद्धि की ओर अग्रसर है। “हिन्दी” भारत संघ की राष्ट्रभाषा है। राष्ट्रचिन्ह अशोक स्तंभ के “सिंह” है। “चक्रांकित” “तिरंगा” यहां का राष्ट्रीय ध्वज है। “जन गण मन” हमारा राष्ट्रगान है। तथा “वंदेमातरम” राष्ट्रगीत है। और मोर राष्ट्रीय पक्षी तथा “बाज” राष्ट्रीय पशु है। तुला राष्ट्रपति का चिन्ह है।

जलवायु की दृष्टि से भी भारत विश्व में श्रेष्ठ है। यहाँ प्रकृति ने छः ऋतुए है। बसंत से प्ररंभ होने वाला ऋतु का यह चक्र ग्रीष्म, वर्षा शरद तथा हेमंत से होता हुआ शिशिर पर समाप्त होता है। इसलिए राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा कि

“षट ऋतुओम का विविध दृष्ययुक्त अद्भुत क्रम है,
हरियाली का फर्श नहीं, मखमल से कम है।
शुचि सुधा सींचता रात में, तम पर चंड प्रकाश है,
हे मातृभूमि, दिन में तर्पण करता नभ का नाश है।”

भारत की प्राचीन वास्तुकला अपने आप में एक बेजोड़ है । भारत का अतीत कितना उन्नत था इस बात का अंदाजा आयुर्वेद, धनुर्वेद, ज्योतिष, गणित, राजनीति चित्रकला वस्त्र निर्माण से लगाया जा सकता है। आज भी विश्व के लोग भारत के अध्यात्म और जीवन मूल्यों के प्रति आकर्षित है। यही कारण है कि भौतिक सुखों का त्याग और आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए आज भी विदेशियों का भारत आना जारी है। संस्कृति, सभ्यता, जीवन मूल्य, जीवन शैली तथा आत्माज्ञान भारत की भूमि के कण-कण में व्याप्त है ।

हमारे देश की “सर्वजन सुखाय व सर्व जन हिताय” की भावना में दृढ़ विश्वास है। और मानव-मानव में सद्बाव व प्रेम संचार करने में प्राचीन काल से ही कार्यरत है। परोपकार, त्याग के जितने सुंदर उदाहरण हमारे महापुरुषों के मिलते हैं, शायद ही किसी अन्य राष्ट्र के मिलें । भगवान श्री राम, भगवान श्रीकृष्ण, भगवान महावीर, महर्षि दधीचि आज संपूर्ण मानव जाति के लिए आदरणीय व पूजनीय हैं। इसके अतिरिक्त प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, अकवर तथा शिवाजी जैसे सम्राट तथा रानी लक्ष्मीबाई, तात्याटोपे, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चन्द्रशेखर आजाद जैसे महान स्वाधीनता स्वतंत्रता सेनानी भी हमारे देश में पैदा हुए हैं। जिनके बलिदान से ही आज हमारा अस्तित्व है ।

इस प्रकार हमारा भारत देश अपने प्राचीन और नवीन परिवर्तनों के साथ समायोजन करते हुए, अनेक समस्याओं का सामना करते हुए, राष्ट्र प्रगति के लिए नवीन योगनाओं का निर्माण करते हुए तथा अपनी धर्म निरपेक्षता, शांतिवाद की भावना को कायम रखते आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है। नवीन तकनीकियों और प्रणालियों के द्वारा देश की आर्थिक दशा को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है। जिससे देश आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सके और निरंतर प्रगति की ओर बढ़ सके।

इस प्रकार हमारा भारत वर्ष प्रगति की ओर बढ़ता हुआ - अरुण होता हुआ मधुमय भरा देश है।




नाम - जया मेहर
कक्षा - आठवी ‘ब’
उम्र – 12 वर्ष
पता – सेठ किरोड़ीमल बाल मंदिर, रायगढ़, छत्तीसगढ़

अरूण यह मधुमय देश हमारा-3

गोपाल सिंह नेपाली स्मृति निबंध प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त रचना

सर्वप्रथम मुझे यह निबंध जिस शीर्षक पर लिखने का सुअवसर मिला है-“ अरूण यह मधुमय देश हमारा” अर्थात् कभी न समाप्त होने वाला (मधु) शहद जैसा मिठास देश हमारा” जिसमें विभिन्न प्रकार की हमारे पूर्वजों से मिली विरासतें व प्राचीनकाल की संस्कृति, जो आज भी विद्यमान है। भारत वर्ष में भिन्न-भिन्न प्रान्तों से भिन्न-भिन्न लोग रहते हैं। जिसकी अपने-अपने प्रान्त की भाषायें हैं । अपने-अपने राज्य की अपनी-अपनी कला संस्कृति है । हमारे भारत वर्ष में विभिन्न प्रान्तों की विभिन्न बोलियां बोली जाती है । इस विशाल देश में इतनी बोलियों के बावजूद इतनी जातियां जो अपनी-अपनी रीतिरिवाजों के मानने वाले हर मजहब के लोग होने के बावजूद भी जो दुनिया के किसी भी क्षेत्र में ऐसी मिशाल नहीं होगी, जो इतने विशाल देश में इतनी जातियों के लोग रहते हुए भी एकता व भाईचारे की जीती जागती एक तस्वीर है। जहां हर त्यौहार हर जाति के लोग अपने-अपने ढंग से मनाते हैं। वह इतनी जाति के लोग एक दूसरे के त्यौहारों में शामिल होकर एकता व भाईचारे का उदाहरण प्रस्तुत किया है। जब-जब इस देश में कोई संकट आया है सबने मिलकर उसका मुकाबला किया है और एकता की मिसाल कायम की है। हमारा भारत वर्ष कभी सोने की चिड़िया कहलाता था जिसे अंग्रेजों ने धीरे-धीरे लूटकर खाली कर दिया था।

हमारे भारत वर्ष में कई प्राचीन विरासतें हैं। जैसे-अजंता एलोरा की गुफाएं, हैदराबाद की चारमीनार, दिल्ली की कुतुबमीनार, हुमायूं का मकबरा, लाल किला, इंडिया गेट, ग्वालियर का किला, सुन्दर बन, राष्ट्रीय उद्यान गुजरात, नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान, चमोली उत्तरांचल, छत्रपति टर्मिनल, महाराष्ट्र नीलगिरी माउंटन रेल्वे, तामिलनाडु फूलों की घाटी, राष्ट्रीय उद्यान, सांची बौद्ध स्मारक मध्यप्रदेश एवं हमारे देश में जो पूरे विश्व विख्यात हैं । आगरा का ताजमहल तो वास्तुशिल्प का एक अनुपम उदाहरण है। जिसे मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की कब्र (याद में )पर बनाया गया। इसकी निर्माण 1631 ईसवी में आरंभ हुआ और 1653 ई. में पूर्ण हुआ। इसे बनने में पूरे 22 वर्ष लग गये ।

ताजमहल की कला नक्काशी इतनी सुन्दर है कि देखते ही बनती है। जिसकी दीवार पर इतनी सुन्दर नक्काशी उकेरी गई है जो कि पूरे विश्व में कहीं नहीं । इसी तरह अजमेर, राजस्थान मैं “ढ़ाई दिन का झोपड़ा” नाम से बना एक स्मारक जैसा महल जिसके दरवाजों पर ऐसी नक्काशी बनी है जो देखते ही बनती है। जिसका दरवाजा एक ही चट्टान (पत्थर) का बना है और उस पर उर्दू, अरबी भाषा मे कुरान लिखी (उकेरी) गई है। जो मात्र ढाई दिन में पूरा महल बनाया गया जिस पर उनका नाम “ढाई दिन का झोपड़ा” पड़ा है।

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिसे में स्थित खजुराहो का मन्दिर जो पूरे विश्व में विख्यात है, जिसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं। जो देखता है वह देखता ही रह जाता है । बस मानो ये पत्थर की मूर्तियां कब अपने से बातें करने लग जाये । इतनी बारीकी और सुन्दरता से उन मूर्तियों को उकेरा गया है कि पूछिए मत। इसी तरह कलकत्ता का हावड़ा ब्रिज एवं पूरी में कोणार्क का सूर्य मन्दिर एवं कश्मीर की झील पहाड़ी जिसे देखने-घूमने पूरी दुनिया से लोग आते हैं, जिसे धरती का स्वर्ग (जन्नत) का नाम दिया गया है।

हमारे भारतवर्ष में छत्तीसगढ़ में गुरू घासीदास बाबा की जन्मस्थली गिरौधपूरी धाम है। जो छत्तीसगढ़ के रायपुर जिला के राजिम अंतर्गत है।(वस्तुतः यह राजिम में नहीं अपितु बलौदाबाजार तहसील में है ) इस क्षेत्र की जनता की आस्था में माननीय मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने देश की राजधानी दिल्ली में बने सबसे ऊंची 77 मी. ऊंची कुतूरमीनार से पांच मीटर ऊंचे जैतखाम्भ का आधार व्यास 60 मीटर होगा। आधार तल पर बनने वाला सभागृह में करीब 2000 लोग एक साथ बैठ सकेंगे। जैतखाम्भ को सुन्दर आकार देने के लिए इसमें 07 तल बनेंगे तथा प्रत्येक तल पर एक-एक बाल्कनी होगी जिसमें खड़े होकर आस-पास की हरियाली व ऊँची-ऊँची पहाडियों की सुन्दरता का अवलोकन कर सकेंगे।

हमारा भारत वर्ष आजादी के पूर्व अंग्रेजों का गुलाम था । अंग्रेंजो ने अपनी राजनीति - फूट डालो और राज करो वाली नीति अपनायी थी । उन्हीं दिनों हमारे बापू गांधी जी, चाचा जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादर शास्त्री, सुभाष चन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, लौहपुरुष वल्लभ भाई पटेल आदि जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपना मोर्चा खोला तथा एक नारा दिया जिसे भारत छोड़ो आन्दोलन नाम दिया गया। जिसकी चिन्गारी पूरे भारतवर्ष में आग की तरह फैली थी और एक एक भारत वासी उस आन्दोलन मे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिये। यह चिन्गारी इतनी तेजी से फैली कि अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये और अंग्रेजों को हारकर इस देश को छोड़कर जाना पड़ा।

देश आजाद होने पर हमारे देश के नौजवानों ने धीरे-धीरे मेहनत और लगन से देश को आत्मनिर्भर बना दिया। आज हमारे देश में अनेकानेक फैक्ट्रियां और कलकारखाने हैं जो अपने देश में ही उत्पादन करके विदेशों में निर्यात कर रहे हैं और विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहे हैं तथा खेती-किसानी में आत्मनिर्भरता है। हर क्षेत्र में इतना अधिक उत्पादन कर रहे हैं कि सूई से लेकर हवाई जहाज का निर्माण हमारे देश में हो रहा है। कई कारखाने, कई उद्योग हमारे देश में स्थापित है। वैज्ञानिक हमारे देश में वैज्ञानिक चमत्कार से पूरे देश मे शोहरत हासिल कर रहे हैं। फिर चाहे वह एक छोटे से रेडियों से लेकर, टीवी हो या कम्प्यूटर, हर क्षेत्र में अग्रणी है।

कला एवं सस्कृति
भारत का फिल्म उद्योग विश्व के प्राचीनतम बड़े तथा आधुनिकतम फिल्म उद्योंगों में से एक है। भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 14 भारतीय तथा क्षेत्रीय भाषाओं में लगभग 500 कला एवं संस्कृति पर आधारित फिल्में बनती हैं और अब तो दूरदर्शन धारावाहिकों विशेषकर धार्मिक, कथा, मनोरंजन प्रधान धारावाहिकों ने फिल्म निर्माण की संख्या को चुनौती देना प्रारंभ कर दिया है। भारतीय फिल्मों तथा दूरदर्शन धारावाहिकों का सम्पूर्ण देश मे होने के साथ ही उनका लगभग 85 अन्य देशों में निर्यात भी किया जाता है। इनमें अधिकतर संख्या हिन्दी तथा तमिल भाषा की फिल्मों की होती है। अनेकोनेक प्रस्तुतियां अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में डब करके विदेशों में प्रदर्शित की जाती है। भारत सरकार ने उनके समूचित निर्यात हेतु वर्ष 1963 में भारतीय चलचित्र निर्यात निगम की व्यवस्था की है जो देश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने के साथ ही भारतीय फिल्म उद्योग की प्रतिभाओं को विदेशी फिल्म बाजार में प्रस्तुत कर रहा है। भारत में सिनेमा आये 105 वर्ष हो गये हैं । 1913 के पूर्व निर्मिल मूक व लघु फिल्मों की संख्या सैकड़ों में थी लेकिन दादा साहब फालके ने 1913 से फीचर फिल्म बनाने का सिलसिला शुरू किया।

भारतीय संगीत कला
हिन्दुस्तानी संगीत इस शैली में गायक-गायिका को प्रमुखता दी जाती है हीराबाई बरोड़कर इस शैली की प्रमुख गायिका है। कर्नाटक शैली इस शैली की गायिका से कहीं अधिक वाद्य यंत्रों के वादन को प्रमुखता प्रदान की जाती है। इस शैली के प्रमुख कलाकार श्री सेमनगुड़ी, मल्लिकार्जून, मंसूर, पालघाट, अय्यर, रामभागवत आदि अनेक हैं।

पंडवानी शैली :- पद्मभूषण तीजन बाई, व ऋतु वर्मा।
गजल गायिकी – पद्मभूषण जगजीत सिंह, पंकज उधास, पिनाज मसानी, चित्रासिंह, भूपेन्द्र मिताली, अनूप जलोटा,

विशिष्ट वाद्ययन्त्र एवं उनके वादकः-
सितार-भारत रत्न पंडित रविशंकर उस्ताद, विलायत खां, शाहिद परवेज, सुजात हुसैन, मणिलाल नाग, जया विश्वास, निखिल बैनर्जी, देवव्रत चौधरी, शशि मोहन भट्ट

सरोद-अली अकबर खां, अमजद अली खां, बुद्धदेवदास गुप्ता, नरेन्द्रनाथ धर, गुरूदेव सिंह, विश्वजीत राव चौधरी, अभिषेक सरकार, मुकेश शर्मा, उस्ताद अलाउद्दीन खान, वेदनारायण, चन्दनराय। अमान एवं अयान।

शहनाईः- उस्ताद बिसमिल्ला खान, अली अहमद हुसैन

तबलाः- उस्ताद अल्ला रका, उस्ताद जाकिर हुसैन,
बासुरीः- पं. हरिप्रसाद चौरसिया, राजेन्द्र प्रसन्ना,
संतूरः- शिव कुमार शर्मा, तरूण भट्टाचार्य
वीणाः- एस. बालचन्द्रन, रमेश प्रेम, गोपाल
सारंगीः- पंडित रामनारायण,
वायलिनः- गोविंद स्वामी पिल्लै,


नाम - नगमा अंजुम
कक्षा - 11वीं
पता - माता सुन्दरी हायर सेकेंडरी स्कूल न्यू बस स्टैण्ड रायपुर।
मो. न. – 99265- 41543

अरुण यह मधुमय देश हमारा -1




अरुण यह मधुमय देश
‘अरुण यह मधुमय देश हमारा
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा ।’
जयशंकर प्रसाद
हम सचमुच भाग्यवान हैं कि हमारा जन्म स्वर्ग से भी सुन्दर भारत वर्ष में हुआ । स्वर्ग के अपरिमित भोग भोगने वाले, उन्मुक्त विलासी देवगण भी जिस भारत की मिट्टी में लोटने के लिए तरसते हैं, जिसकी प्रशंसा के गीत अनवरत गाते हैं, वही प्रकृति का पावन पालना हमारा भारत वर्ष है । ‘विष्णु पुराण’ कहता है-

गायन्ति देवाः किल गीतिकानि ।
धन्यास्तु ते भारतभूमि भागे ।
स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ।।

हमारे देश का भौगोलिक विस्तार मानो विधाता की कलाकारिता का अद्भूत नमूना है । इसका मुकुट हिमालय है, तो हीरकहार गंगा-ब्रह्मपुत्र । इसके कटिप्रदेश में कृष्णा, कावेरी, नर्मदा और ताप्ती की मणिमालाएँ शोभती रहती हैं । इसके चरणों को हिन्दमहासागर अपने लंबे लहरों के अनगिन हाथों से पखारता रहता है । पूर्वी और पश्चिमी घाट के पर्वतसमुदाय अपने वृक्षरुपी संतरियों से इसकी सेवा के लिए सदा तत्पर रहते हैं । यहां कभी एक ऋतु की कठोरता का कोप भाजन नहीं होना पड़ता । बारी-बारी से आधी दर्जन ऋतुएँ आती हैं और अपनी सुषमा लुटा कर चली जाती हैं, एकरसता दूर करती रहती हैं ।

हमारा देश देवों का दुलारा, प्रकृति का प्यारा ही नहीं, लक्ष्मी का लाड़ला भी रहा है । इस देश की धरती सोने की बनी रही, नीलम का आसमाँ रहा । इस देश की नदियाँ रजतवर्षिणी रहीं । इस देश पर अभाव की काली छाया कभी भी मँडराती नहीं थी । दरिद्रता की छाया भी कभी नहीं पड़ती थी । यहाँ के निवासी की आँखों में हर क्षण प्रसन्नता झलकती थी । जीवन के हर क्षण में बसंत खुशियाँ बिखेरता थी । यहाँ अन्न, जल, फूल, मेवा, मिष्ठान का कुबेर कोष था ।

भारत इसलिए भा-रत है यानी कि यह वेदों उपनिषदों, महाभारत और रामायण की भूमि है । इसने साहित्य, कला, दर्शन और विज्ञान के ऐसे खजानों का भंडार दिये हैं कि उनका मुकाबला संसार में नहीं है । भारत में महान कवियों की भरमार हैं जैसे-कबीर, जयशंकर प्रसाद, बिहारी, तुलसीदास, मैथलीशरण गुप्त, इन्होंने अपने कविताओं के माध्यम से भारत का नाम रोशन किया है । भारत में एक से बढ़कर एक साहित्यकारों की श्रृंखलाएँ भी है । यहाँ वैज्ञानिकों की भी कमी नहीं है । आज भारत हर क्षेत्र में उन्नति कर रहा है । मैक्समूलर ने लिखा है - “यदि हम संपूर्ण विश्व की खोज करें, ऐसे देश का पता लगाने के लिए, जिसे प्रकृति ने सर्वसंपन्न, शक्तिशाली और सुन्दर बनाया है, तो मैं भारत वर्ष की ओर संकेत करुँगा । यहाँ के मानव ने अपने मस्तिष्क का उपयोग कर एक से एक प्रयोग करके कई चीजों का आविष्कार भी किया है । भारत केवल हिन्दूधर्म का घर नहीं है वरन् यहाँ अनेक धर्मों का व सभ्यता की आदिभूमि है ।”
केवल धर्म, संस्कति, अध्यात्म और साहित्य ही नहीं, वरन् विज्ञान के क्षेत्र में भी भारत ने हमेशा अपना योगदान दिया है, मार्गदर्शन किया है । अभी पिछले साल सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष में जाकर और वहाँ से लौटकर पूरे भारत वर्ष का नाम रोशन किया है । पुरुष के साथ-साथ महिलाएँ भी अपने को आगे बढ़ाने में लगी हैं । देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल बनी है जो अपने आप में सराहनीय है । पूर्वी व पश्चिमी देशों में तरह-तरह के फल-फूल पैदा होते हैं, भारत से ही लाकर लगाये गये हैं । मलमल, घोडे़, टिन, रेशम, लोहे, शीशे का प्रचार भी यूरोप में भारत से ही हुआ है । केवल इतना ही नहीं ज्योतिष, वैद्यक, अंकगणित, चित्रकारी और कानून भी भारत वासियों ने ही यूरोप वालों को सिखाया ।

भारत शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा है । लालंदा, तक्षशिला, उज्जयिनी, विक्रमशिला विश्वविद्यालय विख्यात रहे हैं जहाँ विदेशों से छात्र पढ़ने आते थे । इन विद्यालयों में धार्मिक, आध्यत्मिक, दार्शनिक शिक्षा के साथ-साथ जीवन मूल्य आधारित शिक्षा पर विशेष जोर दिया जाता था । सत्य, अहिंसा एवं सदाचार का पाठ यहीं पढ़ाया गया । बौद्धधर्म एवं जैनधर्म का प्रादुर्भाव यहीं हुआ जो आज चीन, श्रीलंका, थाइलैंड़ आदि देशों का प्रमुख धर्म हैं । चिकित्सा के क्षेत्र में चरक, एवं सुश्रुत के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । आर्यभट्ट, वराहमिहिर ख्यातिलब्ध खगोल शास्त्रीय थे । शून्य का आविष्कार भारत में ही हुआ था ।

भारत खेल के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा है । जैसे.पीटी. उषा, सानिया मिर्ज़ा, मल्लेश्वरी, ध्यानचंद, सुनील गावस्कर, दिलीप वेंगसकर, सचिन तेंदुलकर, महेश भूपति, विजय अमृतराय आदि खिलाड़ियों ने भारत का नाम रोशन किया ।

भारत में इतने बड़े-बड़े ख्यति प्राप्त महापुरुषों ने जन्म लिया और अच्छे कार्य करते हुए शहीद हो गये जिनमें महात्मा गांधी, सुभाष चंद्रबोस, चंद्रशेखर आजा़द, भगत सिंह आदि नेता लोग थे । संगीत के क्षेत्र में भी भारत हमेशा से आगे रहा है और आगे ही रहेगा । बड़े-बड़े संगीतकारों का जन्म भी इसी भारत में हुआ है जैसे के. एल सहगल, सुरैया, मुकेश, मो.रफी, तलत महमूद गुलजार, बैजूबावरा, लता मंगेशकर, आशा भोंसले आदि ।

आज विज्ञान ने इतनी ज्यादा उन्नति कर ली जिसमें हमारा भारत देश भी है यहाँ तरह-तरह के वैज्ञानिकों ने कई छोटे बड़े आविष्कार किये हैं । विदेशों के साथ-साथ भारत में कम्प्यूटर ने भी अपनी जगह बना ली है । हर प्रदेशों के गाँवों में शहरों में आज हर बच्चा कम्प्यूटर की ज्ञान रखने में व सीखने में रुचि लेता है ।
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भारत में कई आश्चर्य जनक इमारते हैं । ताजमहल, लालकिला, फतेहपुर सीकरी का बुलन्द दरवाजा, हुँमायू का मकबरा, गेटवे ऑफ इंडिया, हवा-महल, विक्टोरिया मेमोरियल, जंतर मंतर आदि है ।

इन सभी विशेषताओं को देखते हुए हमारे कवियों ने भी भारतभूमि के बारे में कविता लिख डाली है । सियारामशरण गुप्त के अनुसार, संसार के सभी देशों ने हमारे देश से ही सदुपदेश पीयूष का पान किया –

है क्या कोई देश यहाँ से जो न जिया है ?
सदुपदेश- पीयूष सभी ने यहाँ पिया है ।
नर क्या, इसको अवलोक कर कहते हैं, सुर भी वही
जय-जय भारत वासी कृती, जय जय जय भारत-मही ।

कवि मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार सारे संसार में हमारी समता का और कोई देश नहीं था-
“देखो हमारा देश में, कोई नहीं अपमान था ।
नरदेव थे हम और भारत देवलोक-समान था ।

भारत का अतीत जितना भव्य था, उतना ही इसका वर्तमान और भविष्य भी भव्य रहेगा, ऐसी आशा की जाती है ।



जागृति यादव
कक्षा – आठवीं
उम्र – 14 वर्ष
पता – ओ.पी. जिंदल स्कूल, रायगढ़, छत्तीसगढ़
मोबाईल – 98261-63945

गोपाल सिंह नेपाली स्मृति निबंध प्रतियोगिता - परिणाम

भाषा, साहित्य और संस्कृति की वेब-पत्रिका सृजनगाथा डॉट कॉम, काव्यांजलि (बहुभाषीय एवं भारतीय संस्कृति के संवर्धन हेतु प्रतिबद्ध रेडियो सलाम नमस्ते, डलास, अमेरिका) के संयुक्त तत्वाधान में हिंदी के प्रभापुरुष एवं गीतकार स्व. गोपाल सिंह नेपाली की स्मृति में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था ।
(विस्तृत विवरण यहाँ पढें)

हमें खुशी है कि ढ़ेरों प्रविष्टियाँ मिंली । विश्वास भी हुआ कि नई पीढ़ी भारतीयता और राष्ट्रीयता के प्रति जागरुक है । दृष्टिकोण में सकारात्मकता की बांते भी सामने आयीं । निर्णायकों की आम राय से प्रतियोगिता के परिणाम इस प्रकार रहे हैं -

प्रथम पुरस्कार -
जागृति यादव
कक्षा – आठवीं, उम्र – 14 वर्ष, पता – ओ।पी. जिंदल स्कूल, रायगढ़, छत्तीसगढ़,
मोबाईल – 98261-६३९४५


द्वितीय पुरस्कार -
नाम - जया ,कक्षा - आठवी ‘ब’, उम्र – 12 वर्ष, पता – सेठ किरोड़ीमल बाल मंदिर, रायगढ़, छत्तीसगढ़

तृतीय पुरस्कार -
नाम - नगमा , 11वीं, पता - माता सुन्दरी हायर सेकेंडरी स्कूल न्यू बस स्टैण्ड रायपुर,
मो. न. – 99265- 41543

अन्य निबंधकार, जिन्हें उपर्युक्त प्रविष्टियों से कतई कम नहीं आंका जा सकता है -
नाम- अक्षिता कश्यप
कक्षा- आठवीं
उम्र- 14 साल
स्कूल- ओ.पी. जिंदल स्कूल, रायगढ़

नाम- कु. आस्था सिंह ठाकुर
कक्षा- आठवीं ‘ब’
उम्र- 12 वर्ष
स्कूल- आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- कु. इन्दु निर्मलकर
कक्षा- दसवीं
उम्र-15 साल
स्कूल- सेठ किरोडी आदर्श कन्या उच्च माध्य. शाला बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- देवेश पटेल
कक्षा- नवमीं ‘ब’
स्कूल- केन्द्रीय विद्यालय, रायगढ़

नाम- वीणा पटेल
कक्षा- 11 वीं
स्कूल- सरस्वती शिशु मंदिर बरमकेला, जिला रायगढ़

नाम- कु. नीलम केड़ियाँ
कक्षा- दसवीं (अ)
उम्र- 14 वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श कन्या उ. मा. शाला. रायगढ़

नाम- राजन कुमार
कक्षा- 12 वीं
उम्र- 17 वर्ष
स्कूल- आदर्श विद्यालय, रायगढ़

नाम- निकिता मोहिले
कक्षा- नवमीं
उम्र- 14 वर्ष
स्कूल- ओ.पी. जिंदल, खरसीया रोड, रायगढ़


नाम- ऋषिकेश शास्त्री
कक्षा- बारहवीं
उम्र- सत्रह वर्ष
स्कूल- ओ.पी. जिंदल स्कूल, खरसिया रोड, रायगढ़

नाम- कुमारी आरती नायक
कक्षा- 11 वीं (अ)
स्कूल- शा.उ.मा.वि. कोडातराई, जिला रायगढ़

नाम- कु. गायत्री देवाँगन
कक्षा- नवमीं
उम्र- 14 वर्ष
स्कूल- पंडित सुन्दर लाल शर्मा हायर सेकेन्डरी स्कूल ,सुन्दर नगर, रायपुर

नाम- ऋतु सिंह ठाकुर
कक्षा- 8वीं
उम्र- 13वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- प्रिया मेहर
कक्षा- दसवीं (अ)
उम्र- 14 वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्ष उ. मा. कन्या शाला रायगढ़

नाम- कु. इंदु सिंह ठाकुर
कक्षा- आठवीं (ब)
उम्र- 12 वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- शीतल शर्मा
कक्षा- दसवीं
उम्र- 15 वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- सोनम सोनी
कक्षा- आठवीं (अ)
उम्र- 13 वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- माला शर्मा
कक्षा- दसवीं (अ)
उम्र- 15 वर्ष
स्कूल- आदर्श बाल मंदिर क.उ.मा. शाला

नाम- शिखा अग्रवाल
कक्षा- आठवीं (अ)
उम्र-12 वर्ष
स्कूल- आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- कु. अनमोल सिंह ठाकुर
कक्षा- आठवीं
उम्र- 14 वर्ष
स्कूल- ओ.पी. जिंदल स्कूल, खरसिया रोड़, रायगढ़

नाम- ज्योति कौर
कक्षा- आठवीं (ब)
उम्र- तेरह
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- कु चम्पा पाव
कक्षा- बारहवीं (अ)
स्कूल- शा. उच्च. माध्य. विद्यालय कोड़ातराई, जिला रायगढ़

नाम- कु ममता पटेल
कक्षा- ग्यारवीं (अ)
स्कूल- शाला उ.मा.वि. कोडा़तराई, जिला-रायगढ़

नाम- दीपिका चौहान
कक्षा- ग्यारवीं
स्कूल-कोड़ातराई, जिला रायगढ़


इन्हें इसी माह १५ से २० तारीख के मध्य एक आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित किया जायेगा । प्रत्येक विजेताओं को पूर्व घोषित पुरस्कारों के अलावा १००० रुपयों की कृतियाँ भी भेंट की जायेंगी ।

सभी नन्हें विचारकों को रेडियो सलाम नमस्ते, डैलास अमेरिका, सृजनगाथा परिवार की ओर से ढेरों बधाईयाँ ।

11/02/2007

छत्तीसगढ़ राज्य गठन दिवस पर विशेष


लगाएं महतारी के माथे पर सौभाग्य का टीका

सपनों को सच करने की जिम्मेदारी उठाएं राजनीतिक दल
-संजय द्विवेदी
एक नवंबर 2000 को जब छत्तीसगढ़वासी अपना भूगोल और इतिहास दोनों रच रहे थे, तो वह दिन सपनों के सच में बदल जाने का दिन था। यह दिन ढेर सारी खुशियां और नियामतें लेकर आया था, जिसके पीछे यह भावना भी थी कि अब सालों साल से दमित भावनाएं, आकांक्षाएं विकास के सपने, सब कुछ पूरे हो जाएंगे। राज्य गठन के सात साल पूरे होने के बाद अब समय है कि हम इस यात्रा की पड़ताल करें और यह विचार करें कि ऐसे कौन से कारक और कारण हैं जिसके चलते राज्य का गठन अब वह उम्मीदें जगाता नहीं दिखता, जो हमने सोच रखा था।

कोई भी सपना एक दिन में पूरा नहीं होता। जादू की झप्पी से सदियों के दर्द फना नहीं होते। इसके लिए लंबी साधना, सही दिशा में लिए हुए संकल्प, आम नागरिक की भागीदारी जरूरी होती है। यह राज्य बना है, तो इसके पीछे एक लंबा संघर्ष, भले ही वह एक विचार के ही रूप में रहा हो, हमें देखने को मिलता है। जरूरी नहीं कि हर लड़ाइयां सड़कों पर ही लड़ी जाएं। छत्तीसगढ़ का विचार इसीलिए यहां के चिंतकों, विचारकों, बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों और कुछ राजनेताओं के मन में पलता और बढ़ता रहा। अपने शाश्वत भूगोल के साथ छत्तीसगढ सन 2000 में नहीं पैदा हुआ। एक सांस्कृतिक इकाई के रूप में पूरे देश में इसकी आवाज सुनी और मानी जाती रही। संयुक्त मध्यप्रदेश में भी छत्तीसगढ़ एक अलग आवाज के रूप में पहचाना जाता रहा। यहां के दिग्गज राजनेताओं पं. सुंदरलाल शर्मा, पं. रविशंकर शुक्ल, बिसाहूदास महंत, खूबचंद बघेल, चंदूलाल चंद्राकर, लरंग साय आदि की एक विशिष्ट पहचान तब भी थी और आज भी है। उनकी स्मृति, उनका संघर्ष और उनकी जिजीविषा हौसला देती थी। इस हौसले के सहारे ही छत्तीसगढ़ ने एक लंबा समय उन सपनों के साथ काट लिया, जो सपने 2000 में राज्य गठन के रूप में पूरे हुए। अब जबकि सात साल पूरे कर यह राज्य प्रगति के कई सोपान तय कर चुका है, तब हमें यह विमर्श करने की जरूरत है कि क्या हम उन सपनों की तरफ बढ़ पाए हैं, जिसके लिए इस राज्य का गठन हुआ था? मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह जब यह कहते हैं-'पलायन को रोकना उनकी सबसे बड़ी इच्छा है', तो वे इस क्षेत्र के सबसे बड़े दर्द का भी बयान करते हैं। इसी के साथ उनकी दूसरी प्राथमिकता नक्सलवाद का उन्मूलन है। शायद पलायन और नक्सलवाद दो ऐसी विकराल समस्याएं हैं, जिन्हें समाप्त किए बिना इस राज्य की राजनीति और समाज को कुछ भी हासिल नहीं होगा।

विकास के मोर्चे पर अनेक दिशाओं में सार्थक प्रयास प्रारंभ हुए हैं। बावजूद इसके कहीं न कहीं कोई कमी है, जो फांस जैसी चुभती है। जिसका उल्लेख चतुर सुजान लोग प्राय: इसलिए नहीं करते, क्योंकि वे राजसत्ता के कोपभाजन नहीं होना चाहते। प्रशासन की संवेदनशीलता, राजनीतिज्ञों की नैतिकता, राज्य के आम लोगों की विकास में हिस्सेदारी, उनके जीवन से जुड़े प्रश्नों के त्वरित हल कुछ ऐसे विषय हैं, जिन पर आज भी सवालिया निशान हैं। अच्छी नीयत और उत्साह से काम करके कोई भी समाज और क्षेत्र दरिद्रता में रहकर भी बड़ी लड़ाइयां जीत सकता है। नीयत का यह सवाल हमें आज भी कई तरह से घेरता और परेशान करता है।

नया राज्य लगभग हर संदर्भ पर बातचीत करता नजर आता है। अचानक राजधानी में गतिविधियों की भरमार हो गई है। समाज जीवन के हर क्षेत्र पर विमर्श के मंच लगे हैं, जहां अखंड और निष्कर्षहीन चर्चाएं हो रही हैं। बावजूद इसके नए राज्य में आम जनता का एजेंडा क्या हो? उसके सपनों का क्या हो? इस पर बातचीत नहीं दिखती। चीजें या तो बिलकुल लोटपोट की शैली में हैं, या फिर सिर्फ आलोचना से बढ़कर षडयंत्र की शक्ल में। जाहिर है ऐसे विमर्श जोड़ते कम और तोड़ते ज्यादा हैं। बातचीत यह भी होनी चाहिए कि वे कौन से लोग हैं, जिन्होंने एक तेजी से प्रगति करते राज्य के रास्ते में रोड़े अटका रखे हैं। फाइलें क्यों इतना धीरे मूव करती हैं, फैसले क्यों घंटे और दिनों में नहीं, सालों में होते हैं? क्या हमारे अपने राज्य के विकास पर हमारी ही बुरी नजर है? या हम किसी भागीरथ के इंतजार में बैठे हुए हैं। नौकरशाही ने अपनी परंपरागत शैली में जिस तरह सत्ता की शक्तियों का नियमन और अनुकूलन किया है, वह बात भी आंखों में चुभती है। राजनीति में आने वालों के सामने कई तरह के प्रश्न होते हैं और उनकी अपनी प्राथमिकताएं भी होती हैं। उनकी पहली प्राथमिकता तो यही होती है कि वे येन-केन-प्रकारेण सत्ता में बने रहें और जो सत्ता से बाहर हैं, वे सत्ता की तरफ लालची निगाहों से देखते रहें। राजनेताओं की यही सीमाएं उन्हें 'वामन' से 'विराट' बनने से रोकती हैं। दूसरा संकट यह है कि राजनीतिक दलों में जिस तरह से प्रशिक्षण और वैचारिक चिंतन घटा है, उसमें अप्रशिक्षित राजनीतिक नेतृत्व सत्ता में अवसर तो पा जाता है पर चालाक नौकरशाही उसे अपने हिसाब से अनुकूलित कर लेती है। शायद इसीलिए आज भी हम अपने लोगों को यह भरोसा नहीं दिला पाए हैं कि नए राज्य का यह राजनैतिक, प्रशासनिक तंत्र आपके और हमारे लिए संवेदनशील है। हमारे पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कहा करते थे-'यहां अमीर धरती पर गरीब लोग रहते हैं', यह कड़वा सच राज्य बनने के बाद भी कहीं से टूटता नहीं दिखता। दुनिया जहान में आज भी हमारे राज्य को लेकर तमाम नकारात्मक टिप्पणियां की जाती हैं। अगर ऐसा हो रहा है तो उन परंपरागत छवियों को बदलने के लिए हमारी कोशिशें क्या हैं? शोषण और अपमान का शिकार होकर अपना पसीना बहाने वाले श्रमिकों का क्षेत्र हम कब तक बने रहेंगे। क्या यही चेहरा लेकर हम लोगों में भरोसा जगाएंगे? राज्य की बेहतरी की संकल्पना, विकास के संकल्प और प्राथमिकताएं सही नीयत और बुलंद इरादों से ही तय हो सकती हैं।

भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारा कोई आक्रामक संकल्प सरकार या समाज की तरफ से इन सात सालों में कभी नजर नहीं आया। आरोप, आरोपों की जांच और आरोपी पाए जाने पर किसी प्रकार की कार्रवाई न होना, ऐसे एक नहीं सैकड़ों उदाहरण हमारे-आपके बीच खड़े हैं। सरकारी स्तर पर नित-नई योजनाएं और आम आदमी के हित में बजट के आबंटन के बावजूद प्रशासनिक क्षेत्र में जो कसावट और संवेदना नजर आनी चाहिए, वह नहीं दिखती। सात सालों के सफर का पाठ यही है कि हम गलतियों से सीखें और फिर वह गलतियां न दुहराएं। कम समय में ज्यादा हासिल करने की आकांक्षा अगर व्यक्तिगत है तो वह अपराधिक है, किंतु यह भावना अगर सामूहिक और राज्य के हित में है, तो यह पूज्य है। हमें यह सोचकर खुश होने का अधिकार नहीं हैं कि हम झारखंड से आगे हैं। झारखंड को जिस तरह की राजनैतिक स्थितियां और जैसा नेतृत्व मिला है, उसमें ऐसे हालात बहुत स्वाभाविक हैं। छत्तीसगढ़ की कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों को पूर्ण बहुमत और योग्य मुख्यमंत्री मिले, जिसके नाते इसकी राजनीतिक स्थिरता कभी संदिग्ध नहीं रही। ऐसे में दोनों राजनैतिक दल अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते। राज्य में व्यापक प्रभाव रखने वाले दोनों राजनैतिक दलों और उनके नेताओं को जनता की अदालत में इस राज्य के विकास के मार्ग में आ रहे अवरोधों पर सफाई देनी ही होगी। नक्सलवाद जैसे प्रश्न पर भी जब दो प्रमुख राजनैतिक दल एक स्वर में बात नहीं करते, तो यह दर्द और भी बढ़ जाता है। छत्तीसगढ़ के लोगों के सपनों को अमली जामा पहनाना सही अर्थों में राजनैतिक नेतृत्व की ही जिम्मेदारी है। राज्य के दो करोड़ दस लाख लोग अपना सर्वांगीण विकास करते हुए देश के लिए एक श्रेष्ठ मानव संसाधन के रूप में सामने आएं तो यह बात हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण होगी। छत्तीसगढ़ के दूर-दराज गांवों, वनांचलों में स्वास्थ्य शिक्षा और पेयजल का आज भी गंभीर संकट मौजूद है। शहरों को चमकाते हुए हमें अपने इन इलाकों के भी विकास को दृष्टिगत रखना होगा। मध्यप्रदेश में रहते वक्त हमारे 'नायक' मध्यभारत के मंत्रियों और मध्यप्रदेश के सरकार को सारे अपयश देकर अपना पल्ला झाड़ लेते थे, लेकिन आज जब हम अपना छत्तीसगढ़ बना चुके हैं, तो हमें किसी से शिकायत करने की कोई आजादी नहीं है। आज की इस घड़ी में हमें अपने राज्य को ज्यादा संवेदनशील, ज्यादा बेहतर, ज्यादा मानवीय और ज्यादा सरोकारी बनाने के लिए संकल्प लेने होंगे और इन संकल्पों को मूर्त रूप देने के लिए कठिन श्रम भी करना होगा। क्या आप और हम इसके लिए दिल से तैयार हैं? यदि तैयार हैं तो यह बात छत्तीसगढ़ महतारी के माथे पर सौभाग्य का टीका साबित होगी।

(लेखक हरिभूमि रायपुर के स्थानीय संपादक हैं। )