12/31/2009

पांडुलिपि हेतु लेखकों से आमंत्रण

प्रमोद वर्मा जैसे हिन्दी के प्रखर आलोचक की दृष्टि पर विश्वास रखनेवाले, मानवीय और बौद्धिक संवेदना के साथ मनुष्यता के उत्थान के लिए क्रियाशील छत्तीसगढ़ राज्य के साहित्य और संस्कृतिकर्मियों की ग़ैरराजनीतिक संस्था ‘प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान’ द्वारा जनवरी, 2010 से प्रकाश्य त्रैमासिक पत्रिका ‘पांडुलिपि’ हेतु आप जैसे विद्वान, चर्चित रचनाकार से रचनात्मक सहयोग का निवेदन करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता हो रही है । हमें यह भी प्रसन्नता है कि ‘पांडुलिपि’ का संपादन ‘साक्षात्कार’ जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका के पूर्व संपादक, हिंदी के सुपरिचित कवि, कथाकार एवं आलोचक श्री प्रभात त्रिपाठी करेंगे ।

हम ‘पांडुलिपि’ को विशुद्धतः साहित्य, कला, संस्कृति, भाषा एवं विचार की पत्रिका के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं । आपसे बस यही निवेदन है कि ‘पांडुलिपि’ को प्रेषित रचनाओं के किसी विचारधारा या वाद की अनुगामिता पर कोई परहेज़ नहीं किन्तु उसकी अंतिम कसौटी साहित्यिकता ही होगी । ‘पांडुलिपि’ में साहित्य की सभी विधाओं के साथ साहित्येतर विमर्शों (समाज /दर्शन/चिंतन/इतिहास/प्रौद्योगिकी/ सिनेमा/चित्रकला/अर्थतंत्र आदि) को भी पर्याप्त स्थान मिलेगा है, जो मनुष्य, समाज, देश सहित समूची दुनिया की संवेदनात्मक समृद्धि के लिए आवश्यक है । भारतीय और भारतीयेतर भाषाओं में रचित साहित्य के अनुवाद का यहाँ स्वागत होगा । नये रचनाकारों की दृष्टि और सृष्टि के लिए ‘पांडुलिपि’ सदैव अग्रसर बनी रहेगी।

किसी संस्थान की पत्रिका होने के बावजूद भी ‘पांडुलिपि’ एक अव्यवसायिक लघुपत्रिका है, फिर भी हमारा प्रयास होगा कि प्रत्येक अंक बृहताकार पाठकों पहुँचे और इसके लिए आपका निरंतर रचनात्मक सहयोग एवं परामर्श वांछित है ।

प्रवेशांक ( जनवरी-मार्च, 2010 ) हेतु आप अपनी महत्वपूर्ण व अप्रकाशित कथा, कविता ( सभी छांदस विधाओं सहित ), कहानी, उपन्यास अंश, आलोचनात्मक आलेख, संस्मरण, लघुकथा, निबंध, ललित निबंध, रिपोतार्ज, रेखाचित्र, साक्षात्कार, समीक्षा, अन्य विमर्शात्मक सामग्री आदि हमें 20 जनवरी, 2010 के पूर्व भेज सकते हैं । कृति-समीक्षा हेतु कृति की 2 प्रतियाँ अवश्य भेजें ।

यदि आप किसी विषय-विशेष पर लिखना चाहते हैं तो आप श्री प्रभात त्रिपाठी से ( मोबाइल – 094241-83427 ) चर्चा कर सकते हैं । आप फिलहाल समय की कमी से जूझ रहे हैं तो बाद में भी आगामी किसी अंक के लिए अपनी रचना भेज सकते हैं ।

हमें विश्वास है – रचनात्मक कार्य को आपका सहयोग मिलेगा ।

रचना भेजने का पता –
01. प्रभात त्रिपाठी, प्रधान संपादक, रामगुड़ी पारा, रायगढ़, छत्तीसगढ़ – 496001
02. जयप्रकाश मानस, कार्यकारी संपादक, एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, छत्तीसगढ़ – 492001

12/24/2009

विश्वरंजन को राष्ट्र गौरव सम्मान


छत्तीसगढ़ अंधश्रद्धा-मुक्ति के लिए सरकारी प्रयास करनेवाला देश का पहला राज्य

रायपुर । अंधश्रद्धा और अंधविश्वास से उपजे सामाजिक, मानसिक और आर्थिक अपराधों को नियंत्रण करने के लिए सरकारी स्तर पर सामाजिक अभियान चलाने वाले देश के पहले राज्य छत्तीसगढ़ और उसके अगुआ पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन को ‘राष्ट्र-गौरव’ सम्मान से अलंकृत किया गया है । यह सम्मान श्री विश्वरंजन को उनके उल्लेखनीय पहल के लिए 20 दिसम्बर को नागपुर में आयोजित एक प्रतिष्ठापूर्ण अलंकरण समारोह में पिछले 27 वर्षों से सामाजिक कार्यों के लिए चर्चित संस्था अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के राष्ट्रीय प्रतिष्ठान ने प्रदान किया गया । इसके अलावा नागपुर के विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों ने भी श्री विश्वरंजन को उनके इस उल्लेखनीय योगदान के लिए नागरिक अभिनंदन किया ।
इस अवसर पर अपने उद्बोधन में श्री विश्वरंजन ने कहा कि जो समाज प्रश्न नहीं कर सकता वह समाज पिछड़ जाता है, भय ग्रस्त हो जाता है और भयग्रस्त समाज अनैतिक तथा अवैज्ञानिक सोच का शिकार हो जाता है । इसलिए अपने अंधश्रद्धाओं के खिलाफ़ मुहिम तर्कहीन और रूढिवादी मानसिकता से निजात पाने का भी मुहिम है जो भारत जैसे पारंपरिक देश के विकास के लिए आवश्यक है । उन्होंने यह भी कहा कि भारत के इतिहास का आरंभ आर्य भट्ट जैसे विद्वानों से होता है । शून्य एवं दशमलव के माध्यम से नक्षत्रों की दूरी का पता लगाने का श्रेय भारत को जाता है । अंलकरण समारोह के पूर्व “अंधश्रद्धा और प्रचार-माध्यमों की भूमिका” विषय पर अपने व्याख्यान में वरिष्ठ पत्रकार एवं दैनिक 1857 के संपादक एस. एन. विनोद ने कहा कि वर्तमान पत्रकारिता कार्पोरेट घरानों के हाथों की कठपुतली है जिसका मूख्य ध्येय विज्ञापन है । मीडिया से अंधश्रद्धा के निवारण की दिशा में उल्लेखनीय अपेक्षा करने से कहीं अच्छा होगा कि अंधश्रद्धा को विकसित करने वाले चैनलों और समाचार पत्रों का ही बायकाट किया जाये । अतिथि वक्ता एवं युवा साहित्यकार जयप्रकाश मानस का अभिमत था कि आंचलिक संवाददाता यानी गाँव-खेड़ा के पार्टटाइम पत्रकार ऐसे समाज के प्रतिनिधि होते हैं जो बुनियादी तौर पर लोकआस्था वाली मानसिकता के कारण प्रगतिशील भूमिका में नहीं खड़ा हो सकते । और हम यह सभी जानते हैं कि अंधश्रद्धा के अधिकांश समाचार यथा टोनही, टोटके, दैवीय चमत्कार आदि इन्हीं अंचलों यानी गाँव-कस्बों से आते हैं ।
अलंकरण समारोह के पूर्व प्रखर प्रकाशन, नागपुर की ओर से प्रसिद्ध समाजसेवी और अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष उमेश चौबे द्वारा लिखित ‘पोल-खोल’ पुस्तक का विमोचन विश्वरंजन के हाथों किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता नागपुर के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. गोविन्द शर्मा ने की । पुस्तक के लेखक उमेश चौबे ने कहा कि अब तक किये गये कार्यों को लेखा-जोखा उन्होंने इस पुस्तक में दिया है । भाषा के नाम पर बँटवारे की नीति करनेवालों को उन्होंने चेताते हुए कहा कि वे इससे दूर रहें । उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ एक मात्र राज्य है जहाँ अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून बनाया गया है । एक कदम बढ़कर पुलिस महानिदेशक श्री रजंन ने इसे जनअभियान का स्वरूप प्रदान कर दिया है । समिति के राष्ट्रीय महासचिव हरीश देशमुख ने स्वागत भाषण और कार्यक्रम का संचालन हरिभाऊ पाथोड़े ने किया । अभिनंदन पत्र का वाचन डॉ. राजेन्द्र पटौरिया, संपादक खनन भारती के किया । इस अवसर पर नागपुर के गणमान्य नागरिक, प्रबुद्ध समाजसेवी, शासकीय अधिकारी, साहित्यकार पत्रकार बड़ी संख्या में उपस्थित थे ।

12/08/2009

मीडिया विमर्श का वार्षिकांक समर्पित है मीडिया और महिलाएं विषय पर


भोपाल। महिलाएं आज मीडिया के केंद्र में हैं। मीडिया उन्हें एक औजार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। मीडिया ने स्त्री को बिकने वाली वस्तु बना दिया है। मीडिया और स्त्री के बीच बनते नए संबंधों को उजागर करती है मीडिया विमर्श का नया अंक। जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित देश की अग्रणी त्रैमासिक पत्रिका ने अपने वार्षिकांक को मीडिया और महिलाएं विषय पर समर्पित किया है।

यह पत्रिका अनेक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इस विशेष अंक में आज के समय में मीडिया और स्त्री के विभिन्न आयामों को उजागर किया गया है। 88 पृष्ठों की इस पत्रिका में विषय पर केंद्रित 33 लेखों का संकलन है। इन विषय पर कलम चलाई है देश के ख्यातिलब्ध पत्रकारों, साहित्यकारों और विश्लेषकों ने। इस अंक में कमल कुमार, उर्मिला शिरीष, डा. विजय बहादुर सिंह, अल्पना मिश्र, जया दाजवानी, सच्चिदानंद जोशी, इरा झा, रूपचंद गौतम, मंगला अनुजा, गोपा बागची, डा. सुभद्रा राठौर, संजय कुमार, हिमाशु शेखर, रूमी नारायण, जाहिद खान, अमित त्यागी, स्मृति जोशी, कीर्ति सिंह, मधु चौरसिया, लीना, संदीप भट्ट, सोमप्रभ सिंह, निशांत कौशिक, पंकज झा, सुशांत झा, माधवीश्री, अनिका ओरोड़ा, इफत अली, फरीन इरशाद हसन, मधुमिता पाल, उमाशंकर मिश्र, डा. महावीर सिंह और रानू तोमर के आलखों का संग्रह है।

पत्रिका के संपादकीय में प्रख्यात कवि अष्टभुजा शुक्ल ने स्त्री और मीडिया पर लिखा है, ...मीडिया हमारे समय का बहुत प्रबल कारक है और स्त्री हमारे समय में अपनी पहचान और छाप पूरी शिद्दत के साथ अपने बूते पर दर्ज कराने के लिए जद्दोजहद कर रही है। स्त्री मीडिया की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है, जबकि मीडिया स्त्री को लोलुप दृष्टि से...। मीडिया अपनी चमक को और चमकीला बनाने के लिए स्त्री का उपयोग करने के लिए आतुर है। यह अंक पत्रकारों, मीडिया विश्लेषकों, शोधछात्रों, मीडिया विद्यार्थियों तथा महिला विशेषज्ञों के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पत्रिका ने कालजयी पत्रकार प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है..मुश्किल है उन्हें अलविदा कहना..। प्रो. कमल दीक्षित ने प्रभाष जोशी के विचारों को नए समाज के साथ जोड़ते हुए समाज को दिए गए उनके योगदान का स्मरण किया है।