भोपाल। महिलाएं आज मीडिया के केंद्र में हैं। मीडिया उन्हें एक औजार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। मीडिया ने स्त्री को बिकने वाली वस्तु बना दिया है। मीडिया और स्त्री के बीच बनते नए संबंधों को उजागर करती है मीडिया विमर्श का नया अंक। जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित देश की अग्रणी त्रैमासिक पत्रिका ने अपने वार्षिकांक को मीडिया और महिलाएं विषय पर समर्पित किया है।
यह पत्रिका अनेक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इस विशेष अंक में आज के समय में मीडिया और स्त्री के विभिन्न आयामों को उजागर किया गया है। 88 पृष्ठों की इस पत्रिका में विषय पर केंद्रित 33 लेखों का संकलन है। इन विषय पर कलम चलाई है देश के ख्यातिलब्ध पत्रकारों, साहित्यकारों और विश्लेषकों ने। इस अंक में कमल कुमार, उर्मिला शिरीष, डा. विजय बहादुर सिंह, अल्पना मिश्र, जया दाजवानी, सच्चिदानंद जोशी, इरा झा, रूपचंद गौतम, मंगला अनुजा, गोपा बागची, डा. सुभद्रा राठौर, संजय कुमार, हिमाशु शेखर, रूमी नारायण, जाहिद खान, अमित त्यागी, स्मृति जोशी, कीर्ति सिंह, मधु चौरसिया, लीना, संदीप भट्ट, सोमप्रभ सिंह, निशांत कौशिक, पंकज झा, सुशांत झा, माधवीश्री, अनिका ओरोड़ा, इफत अली, फरीन इरशाद हसन, मधुमिता पाल, उमाशंकर मिश्र, डा. महावीर सिंह और रानू तोमर के आलखों का संग्रह है।
पत्रिका के संपादकीय में प्रख्यात कवि अष्टभुजा शुक्ल ने स्त्री और मीडिया पर लिखा है, ...मीडिया हमारे समय का बहुत प्रबल कारक है और स्त्री हमारे समय में अपनी पहचान और छाप पूरी शिद्दत के साथ अपने बूते पर दर्ज कराने के लिए जद्दोजहद कर रही है। स्त्री मीडिया की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है, जबकि मीडिया स्त्री को लोलुप दृष्टि से...। मीडिया अपनी चमक को और चमकीला बनाने के लिए स्त्री का उपयोग करने के लिए आतुर है। यह अंक पत्रकारों, मीडिया विश्लेषकों, शोधछात्रों, मीडिया विद्यार्थियों तथा महिला विशेषज्ञों के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पत्रिका ने कालजयी पत्रकार प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है..मुश्किल है उन्हें अलविदा कहना..। प्रो. कमल दीक्षित ने प्रभाष जोशी के विचारों को नए समाज के साथ जोड़ते हुए समाज को दिए गए उनके योगदान का स्मरण किया है।
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