12/25/2007

हिंदी चिट्ठाकारों से एक विनम्र आग्रह

कुछ चिट्ठाकारों और सहज जिज्ञासुओं ने संस्था को फोन एवं मेल द्वारा संपर्क कर सम्मान हेतु हिंदी के ब्लॉगरों से प्रविष्टि आमंत्रित के बिषय में अपनी जिज्ञासा प्रकट की है । हम उन सभी का स्वागत करते हैं ।

वैसे तो अंतरजाल पर मौजूद सभी चिट्ठों को देखने-पढ़ने और परखने का कार्य निर्णायक मंडल के माननीय सदस्यगण कर रहे हैं । तथापि एग्रीगेटर में शामिल नहीं होने के कारण ऐसे कुछ चिट्ठों के बारे में जानने में सदस्यों को कठिनाई हो सकती है । सो हम उनसे आग्रह करते हैं कि ऐसे चिट्ठाकार अपने चिट्ठों की जानकारी या उनकी दृष्टि में विचारणीय किसी अन्य चिट्ठों के बारे में श्री रवि रतलामी या श्री बालेंदु जी को सम्मान हेतु हिंदी के ब्लॉगरों से प्रविष्टि आमंत्रित नामक पोस्ट में उल्लेखित बिंदुओं के आधार पर भेज सकते हैं । ताकि उन्हें आपका वांछित सहयोग मिल सके और सर्चिंग आदि में समय भी बच सके ।

सभी एग्रीगेटर के आत्मीय नियंत्रणकर्तां से भी आग्रह है कि वे इस दिशा में वांछित सहयोग प्रदान कर सकते हैं ।

राम पटवा
महासचिव
सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़
रायपुर

12/23/2007

सम्मान हेतु हिंदी के ब्लॉगरों से प्रविष्टि आमंत्रित

छत्तीसगढ़ की बहुआयामी सांस्कृतिक संस्था “सृजन-सम्मान” ने हिंदी ब्लॉगरों को, प्रिंट माध्यम के साथ-साथ वेब माध्यम में प्रसारित रचनात्मक हिंदी, साहित्य, विचार लेखन को सम्मानित करने का निर्णय लिया है ताकि मूल लेखन के समानांतर वेब पर सक्रिय हिंदी ब्लॉगरों के योगदान का मूल्याँकन प्रारंभ हो सके, प्रिंट व अन्य माध्यमों में सक्रिय रचनाकारों, पत्रकारों एवं संस्कृतिकर्मियों को वेब पर पलक झपकते ही विश्व के कोने-कोने तक पहुँचने वाली सशक्त माध्यम ब्लागिंग की सम्यक जानकारी भी मिल सके, रुझान पैदा हो सके । कदाचित् यह गंभीर हिंदी और खासकर साहित्यिक दुनिया में यह नया कदम साबित हो सके और हिंदी, साहित्य, संस्कृति के ब्लॉगरों का अकादमिक मूल्याँकन कार्य़ की शुरुआत भी हो सके ।

चयन का सामान्य आधार-
संस्था 3 ऐसे हिंदी चिट्ठाकारों को सम्मानित करना चाहती है, जिन्हें भाषा, शिल्प, विषय वस्तु, प्रभाव, सादगी, व्यूवरशीप एवं अन्य कारणों से आदर्श कहा जा सके । संस्था यह भी अपेक्षा रखती है कि ऐसे चिट्ठाकार जो बड़े महानगर के न हों और जो तकनीकी और संचार के आधुनिक सुविधाओं से भी विशेष रूप से न जुड़े हों । वे लगातार अपनी मौलिक रचनात्मकता को भी अंतरजाल पर सिद्ध करते रहे हों । किन्तु अंतिम चयन निर्णायक मंडल के विवेक पर ही किया जायेगा ।

निर्णायक मंडल-
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रविशंकर श्रीवास्तव (रवि रतलामी), हिंदी-ब्लागिंग विशेषज्ञ, रतलाम, मध्यप्रदेश
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बालेंदु दाधीच, संपादक, प्रभासाक्षी डॉट कॉम, नई दिल्ली
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जयप्रकाश मानस, संपादक, सृजनगाथा डॉट कॉम, रायपुर- समन्वयक

प्रविष्टि के नियम-
यूँ तो निर्णायक मंडल के विषय विशेषज्ञ लगभग ऐसे सभी ब्लॉगों की जानकारी (नेट पर उपलब्ध तकनीकी सुविधा के कारण) रखते हैं । तथापि हिंदी ब्लॉगरों से आग्रह है कि वे अपनी प्रविष्टि निम्नांकित जानकारियों के साथ
श्री रवि रतलामी को 30 दिसम्बर 2007 तक भेज सकते हैं । अंतिम रूप से चयनित 3 हिंदी ब्लॉगरों को अपना बायोडेटा व एक छायाचित्र सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़ को स्मारिका में प्रकाशनार्थ भेजना होगा तथा समारोह में सम्मान-स्वीकृति का पत्र 15 जनवरी 2008 तक प्रेषित करना होगा ।

1. नाम
2. स्थान, जहाँ से यह ब्लॉग संचालित कर रहे हैं
3. ब्लॉग का केंद्रीय विषय
4. ब्लॉग में कुल प्रविष्टि
5. मौलिक लेखन या पूर्व प्रकाशित सामग्री का प्रकाशन
6. ब्लॉग का युआरएल
7. संपर्क हेतु ई-मेल



सम्मान-विवरण
1. निर्णायक मंडल के सदस्य द्वय श्री रतलामी व श्री दाधीच जी के अंतिम अनुशंसा के आधार पर 3 सर्वश्रेष्ठ हिंदी ब्लॉगरों को सम्मान-स्वरूप 2000 रुपयों की साहित्यिक कृतियाँ, मोमेन्टो (प्रतीक चिंह), सम्मान-पत्र, शॉल एवं श्रीफल से सम्मानित किया जायेगा । यह सम्मान
संस्था द्वारा रायपुर में आयोजित छठवें अखिल भारतीय साहित्य महोत्सव-07 (16-17 फरवरी, 2008) में राज्य के राज्यपाल, मुख्य मंत्री व देश के प्रमुख साहित्यकार के हाथों दिया जायेगा ।

2. इसके अलावा
संस्था की तीन सहयोगी एवं महत्वपूर्ण पत्रिकायें सद्भावना दर्पण (अनुवाद की त्रैमासिक पत्रिका-संपादक गिरीश पंकज), मीडिया विमर्श (संपादक-संजय द्विवेदी) तथा साहित्य वैभव (संघर्षशील रचनाकारों की मासिक पत्रिका, संपादक-डॉ। सुधीर शर्मा) निःशुल्क 1 वर्ष तक भेजीजायेगी ।

3. सम्मानित होने वाले ब्लॉगरों की कोई स्तरीय एवं साहित्यिक पांडुलिपि
संस्था को प्रस्तुत होने पर संस्था उसे निःशुल्क प्रकाशित कर सकेगी । तथा ऐसे रचनाकार को संबंधित कृति की 100 प्रतियाँ अर्थात् (लगभग10,000 रुपये का सहयोग)प्रदान किया जायेगा ।

4.
संस्था द्वारा प्रकाशित ऐसी कृतियों पर राज्य एवं राज्य से बाहर की इकाईयों में चर्चा गोष्ठियाँ भी आयोजित की जायेगी ।

टीपः-
संस्था द्वारा भोजन एवं आवास की व्यवस्था भी सम्मान समारोह-16-17 फरवरी, 2008 के दौरान की जायेगी । उनका बोयोडेटा सचित्र संस्था के वार्षिकांक-स्मारिका में प्रकाशित की जायेगी। सृजन-सम्मान रचनाकारों की संस्था है फलस्वरूप संस्था चाहते हुए भी उनके मार्ग-व्यय की व्यवस्था की स्थिति में नहीं है ।


राम पटवा
महासचिव
सृजन-सम्मान

12/20/2007

सृजन-सम्मान अंलकरणों की घोषणा हुई

रायपुर । छत्तीसगढ राज्य की बहुआयामी सांस्कृतिक संस्था “सृजन-सम्मान” द्वारा साहित्य, संस्कृति, भाषा एवं शिक्षा की विभिन्न विधाओं में प्रतिष्ठित रचनाकारों को पिछले 6 वर्षों से प्रतिवर्ष दिये जाने वाले सम्मानों के अनुक्रम में इस वर्ष के अखिल भारतीय सम्मानों की घोषणा कर दी गई है। यह सम्मान महामहिम राज्यपाल एवं देश के चुनिंदे वरिष्ठ साहित्यकारों की उपिस्थिति में दिया जाता है । छत्तीसगढ राज्य के गौरव पुरुषों की स्मृति में दिये जाने वाले ये सम्मान 2 दिवसीय अखिल भारतीय साहित्य महोत्सव-07 (16-17फरवरी,2008) में प्रदान किये जायेंगे ।

संस्था द्वारा सम्मान स्वरुप रचनाकारों को नगद राशि(निर्धारित), प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह, शॉल, श्रीफल एवं 500 रुपयों की कृतियाँ भेंट की जाती हैं ।

संस्था की उच्चस्तरीय चयन समिति के निर्णय अनुसार सम्मान एवं सम्मानित होने वाले रचनाकारों के नाम इस प्रकार हैं-

01.पद्मभूषण झावरमल्ल शर्मा (पत्रकारिता)श्री विश्वनाथ सचदेव, पत्रकार, मुंबई
02.पद्मश्री मुकुटधर पांडेय(लघुपत्रिका)-मसि कागद, श्री श्याम सखा श्याम, रोहतक
03.माधवराव(लघुकथा) -श्री सुकेश साहनी, संपादक, लघुकथा डॉट कॉम, बरेली
04.महाराज चक्रधर (ललित निबंध-सुश्री रंजना अरगड़े, अहमदाबाद, गुजरात
05.महंत बिसाहू (कबीर साहित्य)- डॉ. हीरालाल शुक्ल, वरिष्ठ लेखक, भोपाल

06. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल(समग्र व्यक्तित्व)- श्री केशरीनाथ त्रिपाठी, लेखक, लखनऊ
07.हरि ठाकुर(समग्र कृतित्त्व)- श्री कमल किशोर गोयनका, वरिष्ठ आलोचक, दिल्ली
08.ना.ला. परमार (कविता/गीत)-श्री निर्मल शुक्ल, संपादक, उत्तरायण, लखनऊ
09.बल्देव प्रसाद मिश्र(कहानी)- श्री सुरेन्द्र तिवारी, कहानीकार, दिल्ली
10.मिनीमाता(दलित विमर्श)-डॉ. विनय पाठक, आलोचक, बिलासपुर

11.महेश तिवारी(विचारात्मक लेखन) - श्रीमोहनदास नैमिशराय, दलित चिंतक, मेरठ
12.मुस्तफ़ा हुसैन मुश्फ़िक (गीत/ग़ज़ल)-श्री हस्तीमल “हस्ती”, ग़ज़लकार, मुंबई
13.मावजी चावड़ा(बाल साहित्य) -श्री भैरूलाल गर्ग, संपादक, बालवाटिका, जयपुर
14.धुन्नीदूबे (आंचलिक पत्रकारिता) -श्री रावलमल जैन, पत्रकार, लेखक, दुर्ग
15.प. गोपाल मिश्र(कविता/गीत)- डॉ. अजय पाठक, गीतकार, बिलासपुर

16.रामचंद्र देशमुख(लोक-रंग)-श्री दिलीप षडंगी, लोकगायक, रायगढ़
17.श्रीमती राजकुमारी पटनायक(भाषा)-श्री नंद किशोर तिवारी, लोकाक्षर, बिलासपुर
18.विश्वम्भरनाथ ठाकुर(छंद)-श्री बुद्धिनाथ मिश्र, गीतकार, देहरादून, उत्तरांचल
19.समरथ गंवईहा(व्यंग्य-आलोचना) -श्री सुभाष चंदर, आलोचक, नई दिल्ली
20.गृंधमुनि साहब (कबीर साहित्य)- श्री आनंद प्यासी, लेखक, भोपाल

21.दादा अवधूत(शिक्षा-संस्कृति)-डॉ. रामनिवास मानव, लघुकथाकार, हिसार
२२.सम्मान(अनुवाद कार्य)-श्री कालिपद दास, अनुवादक, कोलकाता
23.हिंदी गौरव सम्मान (हिंदी-वेबसाइट)-सुश्री पूर्णिमा वर्मन, अभिव्यक्ति, दुबई
24.प्रवासी सम्मान(विदेश मे हिंदी सेवा) श्री आदित्य प्रकाश सिंह, रेडियो सलाम नमस्ते, युएसए
25.प्रथम कृति(प्रथम कृति)-श्री अरविंद मिश्रा, कवि, राजनांदगाँव

26.भाषा-सेतु(अहिंदीभाषी रचनाकार)- डॉ. तिप्पेस्वामी, रचनाकार, मैसूर, कर्नाटक
२७कृतिसम्मान(श्रेष्ठ पांडुलिपि)-श्री लक्ष्मण मस्तुरिया, वरिष्ठ कवि, रायपुर
२८.षष्ठी पूर्ति(वरिष्ठ साहित्यकार)- श्री बच्चू जांजगिरी, वरिष्ठ रचनाकार, रायपुर
29.लघुकथा गौरव (लघुकथा में योगदान) - लघुकथाकार

टीप- उत्कृष्ट चिट्ठों ब्लॉगर की सूची यथाशीघ्र घोषित की जायेगी ।

विस्तृत विवरण देखें- http://srijangatha.com/srijansamman/index.htm


12/13/2007

रायपुर में लघुकथा पर राष्ट्रीय विमर्श 16-17 फरवरी को

राज्य की बहुआयामी और रचनाकारों की सांस्कृतिक संस्था “सृजन-सम्मान” द्वारा आगामी 16-17 फरवरी को रायपुर में नये समय की सबसे कारगर विधा लघुकथा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है । विमर्श का केंद्रीय विषय “लघुकथाः नई सदी की केंद्रीय विधा” रखा गया है । इस राष्ट्रीय विमर्श में लघुकथा आंदोलन से संबंद्ध रहे 100 सक्रिय लघुकथाकार सहित लगभग 300 साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षाविद् एवं आलोचक सम्मिलित होंगे ।

विमर्श एवं ग्रंथ हेतु शोध आलेख

संस्था द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले अखिल भारतीय साहित्य महोत्सव की कड़ी के रूप में होने वाले इस राष्ट्रीय विमर्श में लघुकथा विधा के विभिन्न आयामों पर आलेख वाचन, संवाद एवं हस्तक्षेप का सत्र रखा गया है । विमर्श में प्राप्त आलेखों का प्रकाशन भी किया जायेगा। संगोष्ठी हेतु लघुकथाकारों, शिक्षाविदों, आलोचकों, साहित्यकारों से निःशुल्क आलेख आमंत्रित किया जा रहा है ।

आलेख भेजने के नियमः-
1. मूल आलेख अधिकतम 3-4 पृष्ठ का होना चाहिए । विस्तृत आलेख अलग से भेजा सकता है ।
2. आलेख टाइप या हस्तलिखित हो सकता है किन्तु वह पठनीय हो ।
3. आलेख के साथ रचनाकार अपना फोटो, संक्षिप्त परिचय अवश्य भेजें ।
4. प्रविष्टि प्राप्ति की अधिकतम तिथि 30 जनवरी, 2008 ।
५. अंतिम रूप से चयनित 45 आलेख लेखक विमर्श में आलेख वाचन कर सकेंगे । लेखक विमर्श में समुपस्थित रह सकेंगे । उनके आलेखों का प्रकाशन भी किया जायेगा ।
6. समस्त आलेख लेखकों को प्रकाशित विमर्श-कृति की एक-एक प्रति निःशुल्क भेंट की जायेगी ।
7. विमर्श के सम्मिलित प्रतीभागियों के आवास, भोजन आदि की निःशुल्क व्यवस्था संस्था द्वारा की जायेगी ।

लघुकथाकार के विकास में योगदान देने वालों का सम्मान

हिंदी लघुकथा की विधा के विकास में संघर्षरत रहे एवं अपनी रचनात्मकता से इस विधा को गति देने वाले देश के वरिष्ठ लघुकथाकारों, लघुकथा केंद्रित पत्रिका संपादकों, आलोचकों, शोधार्थियों, अनुवादकों, संगठनों का इस साहित्य महोत्सव में राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान भी किया जायेगा । उन्हें इस अवसर पर देश के प्रख्यात साहित्यकारों, आलोचकों एवं महामहिम राज्यपाल, संस्कृति मंत्री, शिक्षामंत्री के करकमलों से “लघुकथा-गौरव” एवं “सृजन-श्री” अलंकरण प्रदान कर उनके साहित्यिक योगदान को रेखांकित किया जायेगा । सम्मान स्वरूप रचनाकारों को एक प्रशस्ति-पत्र, प्रतीक चिन्ह, 1000 रूपयों की साहित्यिक कृतियाँ भेंट की जायेगी ।

इस हेतु एक चयन समिति का गठन किया गया है जो देश के प्रमुख विद्वानों से प्राप्त संस्तुतियों पर अंतिम निर्णय देगी । इस सम्मान हेतु लघुकथा विधा से संबंद्ध रचनाकार, आलोचक, पत्रिका संपादक सहित आदरणीय लघुकथा पाठक भी अपना खुला प्रस्ताव दे सकते हैं ।

लघुकथा पाठ का राष्ट्रीय आयोजन

इस महती आयोजन में 16 फरवरी, 2007 को रात्रि 8 बजे से 12 बजे तक राष्ट्रीय लघुकथा पाठ का आयोजन भी किया जा रहा है, जिसमें हिंदी सहित अन्य भाषाओं के लघुकथाकार भी हिंदी अनुवाद का पाठ कर सकेंगे । यह सत्र आंशिक रूप से खुला सत्र है। लघुकथा पाठ हेतु देश के सभी प्रदेशों के चुनिंदे लघुकथाकारों को आमंत्रित किया गया जा रहा है किन्तु इच्छुक लघुकथाकार भी लघुकथा पाठ हेतु संबंधित एवं प्रतिनिधि लघुकथा की एक प्रति डाक से भेज सकते हैं । लघुकथा पाठ हेतु लघुकथाकारों का अंतिम चयन कर उन्हें सूचित कर दिया जायेगा । लघुकथा पाठ हेतु प्रतिभागियों के भोजन एवं आवास की व्यवस्था संस्था द्वारा की जायेगी ।

लघुकथा प्रदर्शिनी

सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़ के इस महत्वपूर्ण आयोजन में लघुकथा पर केंद्रित एक प्रदर्शिनी भी लगाई जायेगी जिसमें ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण लघुकथा, लघुकथा संग्रह, लघुकथा केंद्रित लघु-पत्रिका, विशेषांक आदि प्रदर्शित की जायेंगी । लघुकथा के संवर्धन एवं विकास से जुड़ी संस्थायें एवं लघुकथाकार अपनी सामग्री 30 जनवरी 2007 तक भेज सकते हैं । प्रदर्शित सामग्री वे प्रदर्शिनी पश्चात वापस ले सकते हैं ।

लघुकथा संग्रह हेतु रचनायें आमन्त्रित

संस्था द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में केंद्रित विषय पर एक उत्कृष्ट संग्रह का प्रकाशन भी विधागत उन्नयन हेतु किया जाता है । इसी कड़ी में इस वर्ष लघुकथा संग्रह का प्रकाशन भी संस्था द्वारा निःशुल्क किया जा रहा है । लघुकथाकार वर्ष 2005 से अब तक लिखी गई, प्रकाशित या अप्रकाशित केवल 1 प्रतिनिधि लघुकथा भेज सकते हैं । इस संग्रह का विमोचन भी उक्त अवसर पर किया जायेगा तथा लघुकथाकारों को एक-एक प्रति भेंट की जायेगी । लघुकथाकार अपनी लघुकथा 20 जनवरी, 2007 के पूर्व तक भेज सकते हैं ।

संपर्क-सूत्र
१. जयप्रकाश मानस, सृजन-सम्मान,एफ-3, छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल, आवासीय कॉलोनी, रायपुर, छत्तीसगढ़-492001 (मोबाइल-94241-82664) या

२. डॉ. सुधीर शर्मा, प्रांतीय संयोजक, सृजन-सम्मान, वैभव प्रकाशन, शिवा इलेक्ट्रानिक के पास, पुरानी बस्ती, रायपुर, 492001 (मोबाइल-94253-58748) या

३। श्री राम पटवा, महासचिव, सृजन-सम्मान, बसंत पार्क, गुरुतेगबहादूर नगर, रायपुर, छत्तीसगढ़-492001- (मोबाइल- 98271-78279)

ई-मेल-
srijan2samman@gmail.com

11/03/2007

गोपाल सिंह नेपाली स्मृति निबंध प्रतियोगिता - परिणाम

भाषा, साहित्य और संस्कृति की वेब-पत्रिका सृजनगाथा डॉट कॉम, काव्यांजलि (बहुभाषीय एवं भारतीय संस्कृति के संवर्धन हेतु प्रतिबद्ध रेडियो सलाम नमस्ते, डलास, अमेरिका) के संयुक्त तत्वाधान में हिंदी के प्रभापुरुष एवं गीतकार स्व. गोपाल सिंह नेपाली की स्मृति में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था ।
(विस्तृत विवरण यहाँ पढें)



हमें खुशी है कि हमें ढ़ेरी प्रविष्टियाँ मिली

अरुण यह मधुमय देश हमारा -2

गोपाल सिंह नेपाली स्मृति निबंध प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त रचना


इतिहास के अनुसार हमारा देश दस हजार (वर्ष) पुराना है। हमारे देश ने कई प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक समस्याओं का सामाना करते हुए आज भी विश्व में अपना एक अलग स्थान बनाया हुआ है। जहां अनेक प्रकार की विभिन्नता के बावजूद भी एक अनोखी एकता दिखाई देती है। हमारा देश भारत लगभग तीन शताब्दियों तक पराधीनता की बेडियों में जकड़ा था। इसी बीच अग्रेजों ने उसे बिलकुल कगांल कर दिया इसके अलावा बगंलादेश, बर्मा, श्रीलंका और पाक्स्तान को भारत से अलग कर दिया जो भारत के अंग थे। 15 अगस्त सन् 1947 को जब भारत आजाद हुआ तो उनके सामने अनेक समस्यायें विकराल रूप लेकर खड़ी थीं सिसमें से 50 वर्षों में अधिकांश समस्याओं का समाधान हो गया है और भारत सभी क्षेत्रों में निरन्तर आगे बढ़ते हुए विकसित देशों की श्रृखला में आने की कोशिश कर रहा है।

शिक्षा का विकासः-
मनुष्य के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। हमारा देश शिक्षा के प्रति अनेक महत्वपूर्ण भावनाओं से जैसे राजीव गांधी शिक्षा मिशन के अंतर्गत सर्व शिक्षा अभियान के तहत ग्रामीण बच्चों की सुविधा के लिए स्कूल एक किलोमीटर के दायरे में खोले गये हैं । 98 प्रतिशत जिलों में सरकारी साक्षरता अभियान चलाया जा रहा है। प्राथमिक शालाओं में बच्चो को मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था कराई जा रही है। 1से 8वीं तक के बच्चों के लिये निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था कराई जा रही है। इस प्रकार हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में बहुत से अभियान चला रही है जिससे देश के नागरिक शिक्षित होकर देश की प्रगति में योगदान कर सके।

आधुनिक जन परिवहन प्रणाली-
जानलेवा दुर्घटनाओं और यातायात जाम की स्थिति से बचने के लिए सरकार ने इस प्रणाली को अपनाया है। इसके अंतर्गत दिल्ली में मेट्रो रेल चलाने की कवायद शुरू की है । इससे ईधन की बचत होगी । क्योंकि हमारे राजधानी के सड़कों पर दौड़ने वाली वाहनों की संख्या करीब पैंतीस लाख है । मेट्रो रेल के संचालित होने से रफ्तार को बढ़ाने और यातायात की जाम की स्थिति से निपटने तथा सड़क हादसों में कमी लाने में काफी सहायक सिद्ध हो सकती है।

पंचायती राज-
हमारा भारत वर्ष गाँवो का देश है। गांवों की उन्नति के बिना हारे देश की उन्नति संभव नहीं है। सच्चे प्रजातंत्र के लिए सारे समान में सुख समृद्धि तथा समानता होना आवश्यक है। प्राचीन भारत में हमारे देश में पंचायतें उन्नत अवस्था में थी उनका रूप प्रजातांत्रिक था लेकिन जब भारत अंग्रेजों का गुलाम हो गया था, पंचायतों का अस्तित्व समाप्त हो गया । आजादी के बाद गाँधी जी की इच्छा थी कि भारत में एक बार फिर रामराज्य स्थापना हो । इस स्वप्न को पूरा कराने के लिए सन 1947 में एक पंचायती राज्य कानून बनाया गया । इसके बाद गाँवों की स्थिति में सुधार शुरू हुआ। आम सभा के अंदर सड़कें बनवाना, मरम्मत करवाना, सफाई, रोशनी का प्रबंध, चिकित्सा, जच्चा बच्चा की देखभाल तथा संपति की रक्षा जन्म मरण का हिसाब रखना मुख्य कार्य है।

विश्व शांति और भारत
आज विश्व बारूद की ढेर पर खड़ा है। आये दिन बम धमाके हो रहे हैं। जिससे हजारों बेगुनाहों की मौत हो रही है। भारत की नीति हमेशा से तटस्थता की नीति रही है। भारत की सेनाएं जब कभी भी अपनी सीमाओं से बाहर गई है तब या तो आक्रमणकारियों को सबक सिखाने के लिए की गई या फिर युद्धग्रस्त क्षेत्रों में शांति स्थापनार्थ ही की गई है। भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ शांति पूर्ण सबंध स्थापित किए है। पाकिस्तान के साथ अपने सबंध सुधारने के लिए भारत ने कई बार शांति पूर्ण वार्ता की है। इन्हीं भावनाओं के तहत 6 अप्रैल 2006 को श्रीनगर- मुजफ्फराबाद बस सेवा फिर से शुरू की गई, जिससे दोनों देशों के नागरिकों में खुशी की लहर दौड़ गई और । इसे “शांति का कारवां कहा” गया।

अंतरिक्ष में भारत
विश्व में आज अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में जो होड़ लगी हुई है उसमें हमारा देश भारत भी पीछे नहीं है। भारत के द्वारा छोड़ा गया प्रथम उपग्रह “एप्पल” उसके बाद “भास्कर द्वितीय”, रोहिणी उपग्रह “बी-2” “इन्सेट ‘A’, ‘आर्यभट्ट’, ‘इन्सेट’ ‘इन्सेट 3A’ जैसे उपग्रह भारत के द्वारा अंतरिक्ष पर भेजे गए हैं । अनेक भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष की यात्रा में सफलता प्राप्त की है । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान विज्ञान की प्रगति से भारतीय वैज्ञानिको की अद्भुत प्रतिभा, साहस, धैर्य, क्षमता और जिज्ञासा की भावना प्रगट होती है ।

देश में दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में गति लाने के लिए स्वदेश निर्मित शैक्षणिक उपग्रह “एडूसैट” का प्रक्षेपण 2004 को किया गया है । एडूसैट के कार्यशील होने से दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है । (इससे) टेवीविजन स्टूडियो में बैठे शिक्षक विद्यालयों महाविद्यालयों में सैकड़ों हजारों महाविद्यालयों को एक साथ संबोधित कर सकेंगे । इस व्यवस्था से दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी से निपटा जा सकेगा । इस प्रकार भारत अंतरिक्ष अनुसंथान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत की है । और करता रहेगा ।

भारत में हरित क्रांति-
हमारे भारत को हरियाली या हरेपन का खिलाव, विकास एवं सब तरह से सुख समृद्धि का प्रतीक माना गया है । हरित क्रांति का अर्थ भी देश का अनाजों या खाद्य पदार्थों की दृष्टि से सम्पन्न या आत्मनिर्भर होने का है । वह सर्वथा उचित ही है । विश्व में भारत ही एक मात्र ऐसा दैश है जिसे आज भी कृषि प्रधान या खेती बाड़ी प्रधान देश कहा और माना जाता है । हरित क्रांति ने भारत की खाद्य समस्या का समाधान तो किया ही उसे उगाने वाले के जीवन को भी पूरी तरह से बदल कर रखा दिया अर्थात् उनकी गरीबी दूर कर दी । छोटे और बड़े सभी किसानों को समृद्धि और सुख का द्वार देख पाने में सफलता पा सकने वाला बनाया गया । (इसमें) नए-नए अनुसंधान और प्रयोग में लगी सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं का भी निश्चय ही बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने उन्नत किस्म के बीजों का विकास तो किया ही है, साथ ही मिट्टी का निरीक्षण (परीक्षण) कर यह भी बताया है कि किस मिट्टी में कौन-सा बीज बोने से ज्यादा लाभ मिल सकता है । इस प्रकार हरित क्रांति ने भारत की खाद्यान्न की समस्या पर विजय प्राप्त की है ।

भारत की धर्म निरपेक्षता की नीति-
धर्मनिरपेक्षता हमारी सांवैधानिक व्यवस्था की सामाजिक चेतना और मानवता का सार तत्व है । धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है – राज्य का, सरकार का कोई धर्म नहीं, राज्य के सभी नागरिक अपना धर्म मानने के लिए स्वतंत्र है । इससे सभी देशों में भारत का सम्मान बढ़ा है । आज का भारत अनेकता में एकता का श्रेष्ठ उदाहरण है । इस देश में सभी धर्मों तथा उनके मानने वालों का एक समान सम्मान है । यह हमारे प्रजातंत्र की सफलता है ।

भारतीय धर्म और संस्कृति-
हमारे भारत में 325 में अधिक भाषायें व 1200 से भी अधिक बोलियां हैं । भारतभूमि अपने आँचल में विभिन्न धर्म और तद्-नुसार संस्कृतियां समेटे हुए हैं । भारत की मुख्यतः छः प्रमुख धर्म- हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई बौद्ध और जैन धर्म हैं । इनके अवाला अन्य धर्मों की भी गरिमामयी उपस्थिति है । विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के जीवन के रंग-ढंग और तरीकों ने भारतीय संस्कृति को निरंतर समृद्ध किया है । जनजीवन के उल्लास को अभिव्यक्ति करने वाले नृत्य. संगीत, गायन और चित्रकला जैसी विधाओं में इनकी छटा नजर आती है । इस प्रकार भारत में विभिन्न धर्म और संस्कृति के बीच एक अनोखी एकता है ।

भारत में अनेकता में एकता-
हमारी भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में से एक है । हमारे देश में विभिन्न भाषाओं, धर्मों, जातियों, सम्प्रदायों के लोग निवास करते हैं । लेकिन उनका लक्ष्य सब को सुखी और प्रसन्न रखना है । यहाँ वसुधा को ही कुटुम्ब माना जाता है । हमारे देश में शक, कुषाण, हुण, ग्रीक पारसी, यहुदी, मुसलमान आदि अनेक जाति के लोगों ने शासन किया लेकिन सभी भारतीय संस्कृति में रंगते चले गये जो हमारे देश में अनेकता में एकता की एक मिसाल है ।

भारत में सहकारिता आंदोलन-
सहकारिता का अर्थ है - कुछ या कई लोगों को सहयोग या मेल मिलाप से संगठित किया गया कार्य । सहकारिता के आधार पर कोई भी कार्य करना आसान हो जाता है । भारत में अनेक प्रकार की सहकारी संस्थाएं कार्य कर रही हैं । दैनिक उपभोक्ता वस्तुओं के सरकारी स्टोर कैण्टिन्स, भवन-निर्माण, संस्थाएं आदि सहकारी क्षेत्रों में कार्य कर रही है। भारत में सरकारी संस्थाओं का अनुभव और आंदोलन प्रायः लाभदायक एवं जनहितकारी साबित हुआ है। कई बार ऐसा भी हुआ करता था कि अथक परिश्रम करते रहने पर भी अकेले व्यक्ति को आवश्यकतानुसार उचित परिश्रमिक नहीं प्राप्त होता था। सहकारिता आंदोलन से भारत ने इस समस्या पर विजय हासिल कर ली है। और अब निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है।

कम्प्यूटर का उपयोग-
वर्तमान समय में भारत में अधिकाधिक कम्प्यूटर का उपयोग होता जा रहा है। स्कूलों, कालेजों, सरकारी दफ्तरों, दुकानों, अस्पतालों आदि सभी जगहों पर कम्प्यूटर के द्वारा कार्य संचालित किए जा रहे हैं। जिससे कार्य करने में तेजी आ गई है। हमारे देश में कम्प्यूटर नेटवर्क के माध्यम से देश के प्रमुख नगरों को एक दूसरे साथ जोड़े जाने की प्रक्रिया जारी है। भवनों, मोटरगाडियों, हवाई जहाजों आदि के डिजाइन आजकल कंप्यूटर के द्वारा ही किया जा रहा है । कम्प्यूटर से करोड़ मील दूर अंतरिक्ष के चित्र लिए जा रहे हैं। भारत में भी अन इंटरनेट का प्रयोग किया जाने लगा है। इसके द्वारा हम एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर पर उपस्थित व्यक्ति को संदेश भेज सकते हैं। इस प्रकार हमारा देश भी अब कम्प्यूटर का अधिकाधिक प्रयोग कर उससे लाभान्वित हो रहा है।

भारत में प्रक्षेपास्त्र विकास का कार्यक्रम-
आज जिसे मिसाइल या प्रक्षेपास्त्र कहा जाता है वे सैकड़ों हजारों मिलों तक जाकर तबाही कर सकने में समर्थ परमाणु शक्ति से संचालित अस्त्र-शस्त्र है। इनके द्वारा परमाणु या अन्य बम भी घर पर बैठे बिठाए अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार गिराये जा सकते हैं । प्रक्षेपास्त्र के निर्माण में भारत भी पीछे नहीं है । राष्ट्रीय हितों को सामने रख कर भारत आज कई प्रकार के गाइडेड मिसाइलों का निर्माण और परीक्षण कर रहा है । इस श्रृखला में “पृथ्वी” नामक मिसाईल का निर्माण और परीक्षण किया गया । उसके बाद त्रिशूल नाम के प्रक्षेपास्त्र, अग्नि का निर्माण और परीक्षण किया । इसके निर्माण और सफल परीक्षण ने भारत को मिसाईल कार्यक्रमों के क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बना दिया है । अब इस कला में दक्ष भारत विश्व का छठा देश बन गया है । इसके अतिरिक्त भारत नाम और आकाश नामक दो अन्य प्रक्षेपास्त्रों का निर्माण भी कर चुका है । वह दिन दूर नहीं जब भारत प्रक्षेपास्त्रों की अपनी विकास यात्रा में अन्य विकसित देशों की सक्षमता को प्राप्त कर लेगा ।

इस समय हमारे देश में जनसंख्या एक अरब से अधिक हो चुकी है । इसका क्षेत्रफल 32 लाख 68 हजार 10 वर्ग किलो मीटर है । इस आकार के रुप में भारत वर्ष का विश्व में सातवां स्थान है । 26 जनवरी 1950 को हमारा देश सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बना। तब से लेकर आज तक हमारा देश निरंतर विकास एवं समृद्धि की ओर अग्रसर है। “हिन्दी” भारत संघ की राष्ट्रभाषा है। राष्ट्रचिन्ह अशोक स्तंभ के “सिंह” है। “चक्रांकित” “तिरंगा” यहां का राष्ट्रीय ध्वज है। “जन गण मन” हमारा राष्ट्रगान है। तथा “वंदेमातरम” राष्ट्रगीत है। और मोर राष्ट्रीय पक्षी तथा “बाज” राष्ट्रीय पशु है। तुला राष्ट्रपति का चिन्ह है।

जलवायु की दृष्टि से भी भारत विश्व में श्रेष्ठ है। यहाँ प्रकृति ने छः ऋतुए है। बसंत से प्ररंभ होने वाला ऋतु का यह चक्र ग्रीष्म, वर्षा शरद तथा हेमंत से होता हुआ शिशिर पर समाप्त होता है। इसलिए राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा कि

“षट ऋतुओम का विविध दृष्ययुक्त अद्भुत क्रम है,
हरियाली का फर्श नहीं, मखमल से कम है।
शुचि सुधा सींचता रात में, तम पर चंड प्रकाश है,
हे मातृभूमि, दिन में तर्पण करता नभ का नाश है।”

भारत की प्राचीन वास्तुकला अपने आप में एक बेजोड़ है । भारत का अतीत कितना उन्नत था इस बात का अंदाजा आयुर्वेद, धनुर्वेद, ज्योतिष, गणित, राजनीति चित्रकला वस्त्र निर्माण से लगाया जा सकता है। आज भी विश्व के लोग भारत के अध्यात्म और जीवन मूल्यों के प्रति आकर्षित है। यही कारण है कि भौतिक सुखों का त्याग और आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए आज भी विदेशियों का भारत आना जारी है। संस्कृति, सभ्यता, जीवन मूल्य, जीवन शैली तथा आत्माज्ञान भारत की भूमि के कण-कण में व्याप्त है ।

हमारे देश की “सर्वजन सुखाय व सर्व जन हिताय” की भावना में दृढ़ विश्वास है। और मानव-मानव में सद्बाव व प्रेम संचार करने में प्राचीन काल से ही कार्यरत है। परोपकार, त्याग के जितने सुंदर उदाहरण हमारे महापुरुषों के मिलते हैं, शायद ही किसी अन्य राष्ट्र के मिलें । भगवान श्री राम, भगवान श्रीकृष्ण, भगवान महावीर, महर्षि दधीचि आज संपूर्ण मानव जाति के लिए आदरणीय व पूजनीय हैं। इसके अतिरिक्त प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, अकवर तथा शिवाजी जैसे सम्राट तथा रानी लक्ष्मीबाई, तात्याटोपे, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चन्द्रशेखर आजाद जैसे महान स्वाधीनता स्वतंत्रता सेनानी भी हमारे देश में पैदा हुए हैं। जिनके बलिदान से ही आज हमारा अस्तित्व है ।

इस प्रकार हमारा भारत देश अपने प्राचीन और नवीन परिवर्तनों के साथ समायोजन करते हुए, अनेक समस्याओं का सामना करते हुए, राष्ट्र प्रगति के लिए नवीन योगनाओं का निर्माण करते हुए तथा अपनी धर्म निरपेक्षता, शांतिवाद की भावना को कायम रखते आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है। नवीन तकनीकियों और प्रणालियों के द्वारा देश की आर्थिक दशा को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है। जिससे देश आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सके और निरंतर प्रगति की ओर बढ़ सके।

इस प्रकार हमारा भारत वर्ष प्रगति की ओर बढ़ता हुआ - अरुण होता हुआ मधुमय भरा देश है।




नाम - जया मेहर
कक्षा - आठवी ‘ब’
उम्र – 12 वर्ष
पता – सेठ किरोड़ीमल बाल मंदिर, रायगढ़, छत्तीसगढ़

अरूण यह मधुमय देश हमारा-3

गोपाल सिंह नेपाली स्मृति निबंध प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त रचना

सर्वप्रथम मुझे यह निबंध जिस शीर्षक पर लिखने का सुअवसर मिला है-“ अरूण यह मधुमय देश हमारा” अर्थात् कभी न समाप्त होने वाला (मधु) शहद जैसा मिठास देश हमारा” जिसमें विभिन्न प्रकार की हमारे पूर्वजों से मिली विरासतें व प्राचीनकाल की संस्कृति, जो आज भी विद्यमान है। भारत वर्ष में भिन्न-भिन्न प्रान्तों से भिन्न-भिन्न लोग रहते हैं। जिसकी अपने-अपने प्रान्त की भाषायें हैं । अपने-अपने राज्य की अपनी-अपनी कला संस्कृति है । हमारे भारत वर्ष में विभिन्न प्रान्तों की विभिन्न बोलियां बोली जाती है । इस विशाल देश में इतनी बोलियों के बावजूद इतनी जातियां जो अपनी-अपनी रीतिरिवाजों के मानने वाले हर मजहब के लोग होने के बावजूद भी जो दुनिया के किसी भी क्षेत्र में ऐसी मिशाल नहीं होगी, जो इतने विशाल देश में इतनी जातियों के लोग रहते हुए भी एकता व भाईचारे की जीती जागती एक तस्वीर है। जहां हर त्यौहार हर जाति के लोग अपने-अपने ढंग से मनाते हैं। वह इतनी जाति के लोग एक दूसरे के त्यौहारों में शामिल होकर एकता व भाईचारे का उदाहरण प्रस्तुत किया है। जब-जब इस देश में कोई संकट आया है सबने मिलकर उसका मुकाबला किया है और एकता की मिसाल कायम की है। हमारा भारत वर्ष कभी सोने की चिड़िया कहलाता था जिसे अंग्रेजों ने धीरे-धीरे लूटकर खाली कर दिया था।

हमारे भारत वर्ष में कई प्राचीन विरासतें हैं। जैसे-अजंता एलोरा की गुफाएं, हैदराबाद की चारमीनार, दिल्ली की कुतुबमीनार, हुमायूं का मकबरा, लाल किला, इंडिया गेट, ग्वालियर का किला, सुन्दर बन, राष्ट्रीय उद्यान गुजरात, नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान, चमोली उत्तरांचल, छत्रपति टर्मिनल, महाराष्ट्र नीलगिरी माउंटन रेल्वे, तामिलनाडु फूलों की घाटी, राष्ट्रीय उद्यान, सांची बौद्ध स्मारक मध्यप्रदेश एवं हमारे देश में जो पूरे विश्व विख्यात हैं । आगरा का ताजमहल तो वास्तुशिल्प का एक अनुपम उदाहरण है। जिसे मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की कब्र (याद में )पर बनाया गया। इसकी निर्माण 1631 ईसवी में आरंभ हुआ और 1653 ई. में पूर्ण हुआ। इसे बनने में पूरे 22 वर्ष लग गये ।

ताजमहल की कला नक्काशी इतनी सुन्दर है कि देखते ही बनती है। जिसकी दीवार पर इतनी सुन्दर नक्काशी उकेरी गई है जो कि पूरे विश्व में कहीं नहीं । इसी तरह अजमेर, राजस्थान मैं “ढ़ाई दिन का झोपड़ा” नाम से बना एक स्मारक जैसा महल जिसके दरवाजों पर ऐसी नक्काशी बनी है जो देखते ही बनती है। जिसका दरवाजा एक ही चट्टान (पत्थर) का बना है और उस पर उर्दू, अरबी भाषा मे कुरान लिखी (उकेरी) गई है। जो मात्र ढाई दिन में पूरा महल बनाया गया जिस पर उनका नाम “ढाई दिन का झोपड़ा” पड़ा है।

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिसे में स्थित खजुराहो का मन्दिर जो पूरे विश्व में विख्यात है, जिसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं। जो देखता है वह देखता ही रह जाता है । बस मानो ये पत्थर की मूर्तियां कब अपने से बातें करने लग जाये । इतनी बारीकी और सुन्दरता से उन मूर्तियों को उकेरा गया है कि पूछिए मत। इसी तरह कलकत्ता का हावड़ा ब्रिज एवं पूरी में कोणार्क का सूर्य मन्दिर एवं कश्मीर की झील पहाड़ी जिसे देखने-घूमने पूरी दुनिया से लोग आते हैं, जिसे धरती का स्वर्ग (जन्नत) का नाम दिया गया है।

हमारे भारतवर्ष में छत्तीसगढ़ में गुरू घासीदास बाबा की जन्मस्थली गिरौधपूरी धाम है। जो छत्तीसगढ़ के रायपुर जिला के राजिम अंतर्गत है।(वस्तुतः यह राजिम में नहीं अपितु बलौदाबाजार तहसील में है ) इस क्षेत्र की जनता की आस्था में माननीय मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने देश की राजधानी दिल्ली में बने सबसे ऊंची 77 मी. ऊंची कुतूरमीनार से पांच मीटर ऊंचे जैतखाम्भ का आधार व्यास 60 मीटर होगा। आधार तल पर बनने वाला सभागृह में करीब 2000 लोग एक साथ बैठ सकेंगे। जैतखाम्भ को सुन्दर आकार देने के लिए इसमें 07 तल बनेंगे तथा प्रत्येक तल पर एक-एक बाल्कनी होगी जिसमें खड़े होकर आस-पास की हरियाली व ऊँची-ऊँची पहाडियों की सुन्दरता का अवलोकन कर सकेंगे।

हमारा भारत वर्ष आजादी के पूर्व अंग्रेजों का गुलाम था । अंग्रेंजो ने अपनी राजनीति - फूट डालो और राज करो वाली नीति अपनायी थी । उन्हीं दिनों हमारे बापू गांधी जी, चाचा जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादर शास्त्री, सुभाष चन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, लौहपुरुष वल्लभ भाई पटेल आदि जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपना मोर्चा खोला तथा एक नारा दिया जिसे भारत छोड़ो आन्दोलन नाम दिया गया। जिसकी चिन्गारी पूरे भारतवर्ष में आग की तरह फैली थी और एक एक भारत वासी उस आन्दोलन मे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिये। यह चिन्गारी इतनी तेजी से फैली कि अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये और अंग्रेजों को हारकर इस देश को छोड़कर जाना पड़ा।

देश आजाद होने पर हमारे देश के नौजवानों ने धीरे-धीरे मेहनत और लगन से देश को आत्मनिर्भर बना दिया। आज हमारे देश में अनेकानेक फैक्ट्रियां और कलकारखाने हैं जो अपने देश में ही उत्पादन करके विदेशों में निर्यात कर रहे हैं और विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहे हैं तथा खेती-किसानी में आत्मनिर्भरता है। हर क्षेत्र में इतना अधिक उत्पादन कर रहे हैं कि सूई से लेकर हवाई जहाज का निर्माण हमारे देश में हो रहा है। कई कारखाने, कई उद्योग हमारे देश में स्थापित है। वैज्ञानिक हमारे देश में वैज्ञानिक चमत्कार से पूरे देश मे शोहरत हासिल कर रहे हैं। फिर चाहे वह एक छोटे से रेडियों से लेकर, टीवी हो या कम्प्यूटर, हर क्षेत्र में अग्रणी है।

कला एवं सस्कृति
भारत का फिल्म उद्योग विश्व के प्राचीनतम बड़े तथा आधुनिकतम फिल्म उद्योंगों में से एक है। भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 14 भारतीय तथा क्षेत्रीय भाषाओं में लगभग 500 कला एवं संस्कृति पर आधारित फिल्में बनती हैं और अब तो दूरदर्शन धारावाहिकों विशेषकर धार्मिक, कथा, मनोरंजन प्रधान धारावाहिकों ने फिल्म निर्माण की संख्या को चुनौती देना प्रारंभ कर दिया है। भारतीय फिल्मों तथा दूरदर्शन धारावाहिकों का सम्पूर्ण देश मे होने के साथ ही उनका लगभग 85 अन्य देशों में निर्यात भी किया जाता है। इनमें अधिकतर संख्या हिन्दी तथा तमिल भाषा की फिल्मों की होती है। अनेकोनेक प्रस्तुतियां अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में डब करके विदेशों में प्रदर्शित की जाती है। भारत सरकार ने उनके समूचित निर्यात हेतु वर्ष 1963 में भारतीय चलचित्र निर्यात निगम की व्यवस्था की है जो देश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने के साथ ही भारतीय फिल्म उद्योग की प्रतिभाओं को विदेशी फिल्म बाजार में प्रस्तुत कर रहा है। भारत में सिनेमा आये 105 वर्ष हो गये हैं । 1913 के पूर्व निर्मिल मूक व लघु फिल्मों की संख्या सैकड़ों में थी लेकिन दादा साहब फालके ने 1913 से फीचर फिल्म बनाने का सिलसिला शुरू किया।

भारतीय संगीत कला
हिन्दुस्तानी संगीत इस शैली में गायक-गायिका को प्रमुखता दी जाती है हीराबाई बरोड़कर इस शैली की प्रमुख गायिका है। कर्नाटक शैली इस शैली की गायिका से कहीं अधिक वाद्य यंत्रों के वादन को प्रमुखता प्रदान की जाती है। इस शैली के प्रमुख कलाकार श्री सेमनगुड़ी, मल्लिकार्जून, मंसूर, पालघाट, अय्यर, रामभागवत आदि अनेक हैं।

पंडवानी शैली :- पद्मभूषण तीजन बाई, व ऋतु वर्मा।
गजल गायिकी – पद्मभूषण जगजीत सिंह, पंकज उधास, पिनाज मसानी, चित्रासिंह, भूपेन्द्र मिताली, अनूप जलोटा,

विशिष्ट वाद्ययन्त्र एवं उनके वादकः-
सितार-भारत रत्न पंडित रविशंकर उस्ताद, विलायत खां, शाहिद परवेज, सुजात हुसैन, मणिलाल नाग, जया विश्वास, निखिल बैनर्जी, देवव्रत चौधरी, शशि मोहन भट्ट

सरोद-अली अकबर खां, अमजद अली खां, बुद्धदेवदास गुप्ता, नरेन्द्रनाथ धर, गुरूदेव सिंह, विश्वजीत राव चौधरी, अभिषेक सरकार, मुकेश शर्मा, उस्ताद अलाउद्दीन खान, वेदनारायण, चन्दनराय। अमान एवं अयान।

शहनाईः- उस्ताद बिसमिल्ला खान, अली अहमद हुसैन

तबलाः- उस्ताद अल्ला रका, उस्ताद जाकिर हुसैन,
बासुरीः- पं. हरिप्रसाद चौरसिया, राजेन्द्र प्रसन्ना,
संतूरः- शिव कुमार शर्मा, तरूण भट्टाचार्य
वीणाः- एस. बालचन्द्रन, रमेश प्रेम, गोपाल
सारंगीः- पंडित रामनारायण,
वायलिनः- गोविंद स्वामी पिल्लै,


नाम - नगमा अंजुम
कक्षा - 11वीं
पता - माता सुन्दरी हायर सेकेंडरी स्कूल न्यू बस स्टैण्ड रायपुर।
मो. न. – 99265- 41543

अरुण यह मधुमय देश हमारा -1




अरुण यह मधुमय देश
‘अरुण यह मधुमय देश हमारा
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा ।’
जयशंकर प्रसाद
हम सचमुच भाग्यवान हैं कि हमारा जन्म स्वर्ग से भी सुन्दर भारत वर्ष में हुआ । स्वर्ग के अपरिमित भोग भोगने वाले, उन्मुक्त विलासी देवगण भी जिस भारत की मिट्टी में लोटने के लिए तरसते हैं, जिसकी प्रशंसा के गीत अनवरत गाते हैं, वही प्रकृति का पावन पालना हमारा भारत वर्ष है । ‘विष्णु पुराण’ कहता है-

गायन्ति देवाः किल गीतिकानि ।
धन्यास्तु ते भारतभूमि भागे ।
स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ।।

हमारे देश का भौगोलिक विस्तार मानो विधाता की कलाकारिता का अद्भूत नमूना है । इसका मुकुट हिमालय है, तो हीरकहार गंगा-ब्रह्मपुत्र । इसके कटिप्रदेश में कृष्णा, कावेरी, नर्मदा और ताप्ती की मणिमालाएँ शोभती रहती हैं । इसके चरणों को हिन्दमहासागर अपने लंबे लहरों के अनगिन हाथों से पखारता रहता है । पूर्वी और पश्चिमी घाट के पर्वतसमुदाय अपने वृक्षरुपी संतरियों से इसकी सेवा के लिए सदा तत्पर रहते हैं । यहां कभी एक ऋतु की कठोरता का कोप भाजन नहीं होना पड़ता । बारी-बारी से आधी दर्जन ऋतुएँ आती हैं और अपनी सुषमा लुटा कर चली जाती हैं, एकरसता दूर करती रहती हैं ।

हमारा देश देवों का दुलारा, प्रकृति का प्यारा ही नहीं, लक्ष्मी का लाड़ला भी रहा है । इस देश की धरती सोने की बनी रही, नीलम का आसमाँ रहा । इस देश की नदियाँ रजतवर्षिणी रहीं । इस देश पर अभाव की काली छाया कभी भी मँडराती नहीं थी । दरिद्रता की छाया भी कभी नहीं पड़ती थी । यहाँ के निवासी की आँखों में हर क्षण प्रसन्नता झलकती थी । जीवन के हर क्षण में बसंत खुशियाँ बिखेरता थी । यहाँ अन्न, जल, फूल, मेवा, मिष्ठान का कुबेर कोष था ।

भारत इसलिए भा-रत है यानी कि यह वेदों उपनिषदों, महाभारत और रामायण की भूमि है । इसने साहित्य, कला, दर्शन और विज्ञान के ऐसे खजानों का भंडार दिये हैं कि उनका मुकाबला संसार में नहीं है । भारत में महान कवियों की भरमार हैं जैसे-कबीर, जयशंकर प्रसाद, बिहारी, तुलसीदास, मैथलीशरण गुप्त, इन्होंने अपने कविताओं के माध्यम से भारत का नाम रोशन किया है । भारत में एक से बढ़कर एक साहित्यकारों की श्रृंखलाएँ भी है । यहाँ वैज्ञानिकों की भी कमी नहीं है । आज भारत हर क्षेत्र में उन्नति कर रहा है । मैक्समूलर ने लिखा है - “यदि हम संपूर्ण विश्व की खोज करें, ऐसे देश का पता लगाने के लिए, जिसे प्रकृति ने सर्वसंपन्न, शक्तिशाली और सुन्दर बनाया है, तो मैं भारत वर्ष की ओर संकेत करुँगा । यहाँ के मानव ने अपने मस्तिष्क का उपयोग कर एक से एक प्रयोग करके कई चीजों का आविष्कार भी किया है । भारत केवल हिन्दूधर्म का घर नहीं है वरन् यहाँ अनेक धर्मों का व सभ्यता की आदिभूमि है ।”
केवल धर्म, संस्कति, अध्यात्म और साहित्य ही नहीं, वरन् विज्ञान के क्षेत्र में भी भारत ने हमेशा अपना योगदान दिया है, मार्गदर्शन किया है । अभी पिछले साल सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष में जाकर और वहाँ से लौटकर पूरे भारत वर्ष का नाम रोशन किया है । पुरुष के साथ-साथ महिलाएँ भी अपने को आगे बढ़ाने में लगी हैं । देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल बनी है जो अपने आप में सराहनीय है । पूर्वी व पश्चिमी देशों में तरह-तरह के फल-फूल पैदा होते हैं, भारत से ही लाकर लगाये गये हैं । मलमल, घोडे़, टिन, रेशम, लोहे, शीशे का प्रचार भी यूरोप में भारत से ही हुआ है । केवल इतना ही नहीं ज्योतिष, वैद्यक, अंकगणित, चित्रकारी और कानून भी भारत वासियों ने ही यूरोप वालों को सिखाया ।

भारत शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा है । लालंदा, तक्षशिला, उज्जयिनी, विक्रमशिला विश्वविद्यालय विख्यात रहे हैं जहाँ विदेशों से छात्र पढ़ने आते थे । इन विद्यालयों में धार्मिक, आध्यत्मिक, दार्शनिक शिक्षा के साथ-साथ जीवन मूल्य आधारित शिक्षा पर विशेष जोर दिया जाता था । सत्य, अहिंसा एवं सदाचार का पाठ यहीं पढ़ाया गया । बौद्धधर्म एवं जैनधर्म का प्रादुर्भाव यहीं हुआ जो आज चीन, श्रीलंका, थाइलैंड़ आदि देशों का प्रमुख धर्म हैं । चिकित्सा के क्षेत्र में चरक, एवं सुश्रुत के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । आर्यभट्ट, वराहमिहिर ख्यातिलब्ध खगोल शास्त्रीय थे । शून्य का आविष्कार भारत में ही हुआ था ।

भारत खेल के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा है । जैसे.पीटी. उषा, सानिया मिर्ज़ा, मल्लेश्वरी, ध्यानचंद, सुनील गावस्कर, दिलीप वेंगसकर, सचिन तेंदुलकर, महेश भूपति, विजय अमृतराय आदि खिलाड़ियों ने भारत का नाम रोशन किया ।

भारत में इतने बड़े-बड़े ख्यति प्राप्त महापुरुषों ने जन्म लिया और अच्छे कार्य करते हुए शहीद हो गये जिनमें महात्मा गांधी, सुभाष चंद्रबोस, चंद्रशेखर आजा़द, भगत सिंह आदि नेता लोग थे । संगीत के क्षेत्र में भी भारत हमेशा से आगे रहा है और आगे ही रहेगा । बड़े-बड़े संगीतकारों का जन्म भी इसी भारत में हुआ है जैसे के. एल सहगल, सुरैया, मुकेश, मो.रफी, तलत महमूद गुलजार, बैजूबावरा, लता मंगेशकर, आशा भोंसले आदि ।

आज विज्ञान ने इतनी ज्यादा उन्नति कर ली जिसमें हमारा भारत देश भी है यहाँ तरह-तरह के वैज्ञानिकों ने कई छोटे बड़े आविष्कार किये हैं । विदेशों के साथ-साथ भारत में कम्प्यूटर ने भी अपनी जगह बना ली है । हर प्रदेशों के गाँवों में शहरों में आज हर बच्चा कम्प्यूटर की ज्ञान रखने में व सीखने में रुचि लेता है ।
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भारत में कई आश्चर्य जनक इमारते हैं । ताजमहल, लालकिला, फतेहपुर सीकरी का बुलन्द दरवाजा, हुँमायू का मकबरा, गेटवे ऑफ इंडिया, हवा-महल, विक्टोरिया मेमोरियल, जंतर मंतर आदि है ।

इन सभी विशेषताओं को देखते हुए हमारे कवियों ने भी भारतभूमि के बारे में कविता लिख डाली है । सियारामशरण गुप्त के अनुसार, संसार के सभी देशों ने हमारे देश से ही सदुपदेश पीयूष का पान किया –

है क्या कोई देश यहाँ से जो न जिया है ?
सदुपदेश- पीयूष सभी ने यहाँ पिया है ।
नर क्या, इसको अवलोक कर कहते हैं, सुर भी वही
जय-जय भारत वासी कृती, जय जय जय भारत-मही ।

कवि मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार सारे संसार में हमारी समता का और कोई देश नहीं था-
“देखो हमारा देश में, कोई नहीं अपमान था ।
नरदेव थे हम और भारत देवलोक-समान था ।

भारत का अतीत जितना भव्य था, उतना ही इसका वर्तमान और भविष्य भी भव्य रहेगा, ऐसी आशा की जाती है ।



जागृति यादव
कक्षा – आठवीं
उम्र – 14 वर्ष
पता – ओ.पी. जिंदल स्कूल, रायगढ़, छत्तीसगढ़
मोबाईल – 98261-63945

गोपाल सिंह नेपाली स्मृति निबंध प्रतियोगिता - परिणाम

भाषा, साहित्य और संस्कृति की वेब-पत्रिका सृजनगाथा डॉट कॉम, काव्यांजलि (बहुभाषीय एवं भारतीय संस्कृति के संवर्धन हेतु प्रतिबद्ध रेडियो सलाम नमस्ते, डलास, अमेरिका) के संयुक्त तत्वाधान में हिंदी के प्रभापुरुष एवं गीतकार स्व. गोपाल सिंह नेपाली की स्मृति में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था ।
(विस्तृत विवरण यहाँ पढें)

हमें खुशी है कि ढ़ेरों प्रविष्टियाँ मिंली । विश्वास भी हुआ कि नई पीढ़ी भारतीयता और राष्ट्रीयता के प्रति जागरुक है । दृष्टिकोण में सकारात्मकता की बांते भी सामने आयीं । निर्णायकों की आम राय से प्रतियोगिता के परिणाम इस प्रकार रहे हैं -

प्रथम पुरस्कार -
जागृति यादव
कक्षा – आठवीं, उम्र – 14 वर्ष, पता – ओ।पी. जिंदल स्कूल, रायगढ़, छत्तीसगढ़,
मोबाईल – 98261-६३९४५


द्वितीय पुरस्कार -
नाम - जया ,कक्षा - आठवी ‘ब’, उम्र – 12 वर्ष, पता – सेठ किरोड़ीमल बाल मंदिर, रायगढ़, छत्तीसगढ़

तृतीय पुरस्कार -
नाम - नगमा , 11वीं, पता - माता सुन्दरी हायर सेकेंडरी स्कूल न्यू बस स्टैण्ड रायपुर,
मो. न. – 99265- 41543

अन्य निबंधकार, जिन्हें उपर्युक्त प्रविष्टियों से कतई कम नहीं आंका जा सकता है -
नाम- अक्षिता कश्यप
कक्षा- आठवीं
उम्र- 14 साल
स्कूल- ओ.पी. जिंदल स्कूल, रायगढ़

नाम- कु. आस्था सिंह ठाकुर
कक्षा- आठवीं ‘ब’
उम्र- 12 वर्ष
स्कूल- आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- कु. इन्दु निर्मलकर
कक्षा- दसवीं
उम्र-15 साल
स्कूल- सेठ किरोडी आदर्श कन्या उच्च माध्य. शाला बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- देवेश पटेल
कक्षा- नवमीं ‘ब’
स्कूल- केन्द्रीय विद्यालय, रायगढ़

नाम- वीणा पटेल
कक्षा- 11 वीं
स्कूल- सरस्वती शिशु मंदिर बरमकेला, जिला रायगढ़

नाम- कु. नीलम केड़ियाँ
कक्षा- दसवीं (अ)
उम्र- 14 वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श कन्या उ. मा. शाला. रायगढ़

नाम- राजन कुमार
कक्षा- 12 वीं
उम्र- 17 वर्ष
स्कूल- आदर्श विद्यालय, रायगढ़

नाम- निकिता मोहिले
कक्षा- नवमीं
उम्र- 14 वर्ष
स्कूल- ओ.पी. जिंदल, खरसीया रोड, रायगढ़


नाम- ऋषिकेश शास्त्री
कक्षा- बारहवीं
उम्र- सत्रह वर्ष
स्कूल- ओ.पी. जिंदल स्कूल, खरसिया रोड, रायगढ़

नाम- कुमारी आरती नायक
कक्षा- 11 वीं (अ)
स्कूल- शा.उ.मा.वि. कोडातराई, जिला रायगढ़

नाम- कु. गायत्री देवाँगन
कक्षा- नवमीं
उम्र- 14 वर्ष
स्कूल- पंडित सुन्दर लाल शर्मा हायर सेकेन्डरी स्कूल ,सुन्दर नगर, रायपुर

नाम- ऋतु सिंह ठाकुर
कक्षा- 8वीं
उम्र- 13वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- प्रिया मेहर
कक्षा- दसवीं (अ)
उम्र- 14 वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्ष उ. मा. कन्या शाला रायगढ़

नाम- कु. इंदु सिंह ठाकुर
कक्षा- आठवीं (ब)
उम्र- 12 वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- शीतल शर्मा
कक्षा- दसवीं
उम्र- 15 वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- सोनम सोनी
कक्षा- आठवीं (अ)
उम्र- 13 वर्ष
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- माला शर्मा
कक्षा- दसवीं (अ)
उम्र- 15 वर्ष
स्कूल- आदर्श बाल मंदिर क.उ.मा. शाला

नाम- शिखा अग्रवाल
कक्षा- आठवीं (अ)
उम्र-12 वर्ष
स्कूल- आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- कु. अनमोल सिंह ठाकुर
कक्षा- आठवीं
उम्र- 14 वर्ष
स्कूल- ओ.पी. जिंदल स्कूल, खरसिया रोड़, रायगढ़

नाम- ज्योति कौर
कक्षा- आठवीं (ब)
उम्र- तेरह
स्कूल- सेठ किरोड़ीमल आदर्श बाल मंदिर, रायगढ़

नाम- कु चम्पा पाव
कक्षा- बारहवीं (अ)
स्कूल- शा. उच्च. माध्य. विद्यालय कोड़ातराई, जिला रायगढ़

नाम- कु ममता पटेल
कक्षा- ग्यारवीं (अ)
स्कूल- शाला उ.मा.वि. कोडा़तराई, जिला-रायगढ़

नाम- दीपिका चौहान
कक्षा- ग्यारवीं
स्कूल-कोड़ातराई, जिला रायगढ़


इन्हें इसी माह १५ से २० तारीख के मध्य एक आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित किया जायेगा । प्रत्येक विजेताओं को पूर्व घोषित पुरस्कारों के अलावा १००० रुपयों की कृतियाँ भी भेंट की जायेंगी ।

सभी नन्हें विचारकों को रेडियो सलाम नमस्ते, डैलास अमेरिका, सृजनगाथा परिवार की ओर से ढेरों बधाईयाँ ।

11/02/2007

छत्तीसगढ़ राज्य गठन दिवस पर विशेष


लगाएं महतारी के माथे पर सौभाग्य का टीका

सपनों को सच करने की जिम्मेदारी उठाएं राजनीतिक दल
-संजय द्विवेदी
एक नवंबर 2000 को जब छत्तीसगढ़वासी अपना भूगोल और इतिहास दोनों रच रहे थे, तो वह दिन सपनों के सच में बदल जाने का दिन था। यह दिन ढेर सारी खुशियां और नियामतें लेकर आया था, जिसके पीछे यह भावना भी थी कि अब सालों साल से दमित भावनाएं, आकांक्षाएं विकास के सपने, सब कुछ पूरे हो जाएंगे। राज्य गठन के सात साल पूरे होने के बाद अब समय है कि हम इस यात्रा की पड़ताल करें और यह विचार करें कि ऐसे कौन से कारक और कारण हैं जिसके चलते राज्य का गठन अब वह उम्मीदें जगाता नहीं दिखता, जो हमने सोच रखा था।

कोई भी सपना एक दिन में पूरा नहीं होता। जादू की झप्पी से सदियों के दर्द फना नहीं होते। इसके लिए लंबी साधना, सही दिशा में लिए हुए संकल्प, आम नागरिक की भागीदारी जरूरी होती है। यह राज्य बना है, तो इसके पीछे एक लंबा संघर्ष, भले ही वह एक विचार के ही रूप में रहा हो, हमें देखने को मिलता है। जरूरी नहीं कि हर लड़ाइयां सड़कों पर ही लड़ी जाएं। छत्तीसगढ़ का विचार इसीलिए यहां के चिंतकों, विचारकों, बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों और कुछ राजनेताओं के मन में पलता और बढ़ता रहा। अपने शाश्वत भूगोल के साथ छत्तीसगढ सन 2000 में नहीं पैदा हुआ। एक सांस्कृतिक इकाई के रूप में पूरे देश में इसकी आवाज सुनी और मानी जाती रही। संयुक्त मध्यप्रदेश में भी छत्तीसगढ़ एक अलग आवाज के रूप में पहचाना जाता रहा। यहां के दिग्गज राजनेताओं पं. सुंदरलाल शर्मा, पं. रविशंकर शुक्ल, बिसाहूदास महंत, खूबचंद बघेल, चंदूलाल चंद्राकर, लरंग साय आदि की एक विशिष्ट पहचान तब भी थी और आज भी है। उनकी स्मृति, उनका संघर्ष और उनकी जिजीविषा हौसला देती थी। इस हौसले के सहारे ही छत्तीसगढ़ ने एक लंबा समय उन सपनों के साथ काट लिया, जो सपने 2000 में राज्य गठन के रूप में पूरे हुए। अब जबकि सात साल पूरे कर यह राज्य प्रगति के कई सोपान तय कर चुका है, तब हमें यह विमर्श करने की जरूरत है कि क्या हम उन सपनों की तरफ बढ़ पाए हैं, जिसके लिए इस राज्य का गठन हुआ था? मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह जब यह कहते हैं-'पलायन को रोकना उनकी सबसे बड़ी इच्छा है', तो वे इस क्षेत्र के सबसे बड़े दर्द का भी बयान करते हैं। इसी के साथ उनकी दूसरी प्राथमिकता नक्सलवाद का उन्मूलन है। शायद पलायन और नक्सलवाद दो ऐसी विकराल समस्याएं हैं, जिन्हें समाप्त किए बिना इस राज्य की राजनीति और समाज को कुछ भी हासिल नहीं होगा।

विकास के मोर्चे पर अनेक दिशाओं में सार्थक प्रयास प्रारंभ हुए हैं। बावजूद इसके कहीं न कहीं कोई कमी है, जो फांस जैसी चुभती है। जिसका उल्लेख चतुर सुजान लोग प्राय: इसलिए नहीं करते, क्योंकि वे राजसत्ता के कोपभाजन नहीं होना चाहते। प्रशासन की संवेदनशीलता, राजनीतिज्ञों की नैतिकता, राज्य के आम लोगों की विकास में हिस्सेदारी, उनके जीवन से जुड़े प्रश्नों के त्वरित हल कुछ ऐसे विषय हैं, जिन पर आज भी सवालिया निशान हैं। अच्छी नीयत और उत्साह से काम करके कोई भी समाज और क्षेत्र दरिद्रता में रहकर भी बड़ी लड़ाइयां जीत सकता है। नीयत का यह सवाल हमें आज भी कई तरह से घेरता और परेशान करता है।

नया राज्य लगभग हर संदर्भ पर बातचीत करता नजर आता है। अचानक राजधानी में गतिविधियों की भरमार हो गई है। समाज जीवन के हर क्षेत्र पर विमर्श के मंच लगे हैं, जहां अखंड और निष्कर्षहीन चर्चाएं हो रही हैं। बावजूद इसके नए राज्य में आम जनता का एजेंडा क्या हो? उसके सपनों का क्या हो? इस पर बातचीत नहीं दिखती। चीजें या तो बिलकुल लोटपोट की शैली में हैं, या फिर सिर्फ आलोचना से बढ़कर षडयंत्र की शक्ल में। जाहिर है ऐसे विमर्श जोड़ते कम और तोड़ते ज्यादा हैं। बातचीत यह भी होनी चाहिए कि वे कौन से लोग हैं, जिन्होंने एक तेजी से प्रगति करते राज्य के रास्ते में रोड़े अटका रखे हैं। फाइलें क्यों इतना धीरे मूव करती हैं, फैसले क्यों घंटे और दिनों में नहीं, सालों में होते हैं? क्या हमारे अपने राज्य के विकास पर हमारी ही बुरी नजर है? या हम किसी भागीरथ के इंतजार में बैठे हुए हैं। नौकरशाही ने अपनी परंपरागत शैली में जिस तरह सत्ता की शक्तियों का नियमन और अनुकूलन किया है, वह बात भी आंखों में चुभती है। राजनीति में आने वालों के सामने कई तरह के प्रश्न होते हैं और उनकी अपनी प्राथमिकताएं भी होती हैं। उनकी पहली प्राथमिकता तो यही होती है कि वे येन-केन-प्रकारेण सत्ता में बने रहें और जो सत्ता से बाहर हैं, वे सत्ता की तरफ लालची निगाहों से देखते रहें। राजनेताओं की यही सीमाएं उन्हें 'वामन' से 'विराट' बनने से रोकती हैं। दूसरा संकट यह है कि राजनीतिक दलों में जिस तरह से प्रशिक्षण और वैचारिक चिंतन घटा है, उसमें अप्रशिक्षित राजनीतिक नेतृत्व सत्ता में अवसर तो पा जाता है पर चालाक नौकरशाही उसे अपने हिसाब से अनुकूलित कर लेती है। शायद इसीलिए आज भी हम अपने लोगों को यह भरोसा नहीं दिला पाए हैं कि नए राज्य का यह राजनैतिक, प्रशासनिक तंत्र आपके और हमारे लिए संवेदनशील है। हमारे पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कहा करते थे-'यहां अमीर धरती पर गरीब लोग रहते हैं', यह कड़वा सच राज्य बनने के बाद भी कहीं से टूटता नहीं दिखता। दुनिया जहान में आज भी हमारे राज्य को लेकर तमाम नकारात्मक टिप्पणियां की जाती हैं। अगर ऐसा हो रहा है तो उन परंपरागत छवियों को बदलने के लिए हमारी कोशिशें क्या हैं? शोषण और अपमान का शिकार होकर अपना पसीना बहाने वाले श्रमिकों का क्षेत्र हम कब तक बने रहेंगे। क्या यही चेहरा लेकर हम लोगों में भरोसा जगाएंगे? राज्य की बेहतरी की संकल्पना, विकास के संकल्प और प्राथमिकताएं सही नीयत और बुलंद इरादों से ही तय हो सकती हैं।

भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारा कोई आक्रामक संकल्प सरकार या समाज की तरफ से इन सात सालों में कभी नजर नहीं आया। आरोप, आरोपों की जांच और आरोपी पाए जाने पर किसी प्रकार की कार्रवाई न होना, ऐसे एक नहीं सैकड़ों उदाहरण हमारे-आपके बीच खड़े हैं। सरकारी स्तर पर नित-नई योजनाएं और आम आदमी के हित में बजट के आबंटन के बावजूद प्रशासनिक क्षेत्र में जो कसावट और संवेदना नजर आनी चाहिए, वह नहीं दिखती। सात सालों के सफर का पाठ यही है कि हम गलतियों से सीखें और फिर वह गलतियां न दुहराएं। कम समय में ज्यादा हासिल करने की आकांक्षा अगर व्यक्तिगत है तो वह अपराधिक है, किंतु यह भावना अगर सामूहिक और राज्य के हित में है, तो यह पूज्य है। हमें यह सोचकर खुश होने का अधिकार नहीं हैं कि हम झारखंड से आगे हैं। झारखंड को जिस तरह की राजनैतिक स्थितियां और जैसा नेतृत्व मिला है, उसमें ऐसे हालात बहुत स्वाभाविक हैं। छत्तीसगढ़ की कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों को पूर्ण बहुमत और योग्य मुख्यमंत्री मिले, जिसके नाते इसकी राजनीतिक स्थिरता कभी संदिग्ध नहीं रही। ऐसे में दोनों राजनैतिक दल अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते। राज्य में व्यापक प्रभाव रखने वाले दोनों राजनैतिक दलों और उनके नेताओं को जनता की अदालत में इस राज्य के विकास के मार्ग में आ रहे अवरोधों पर सफाई देनी ही होगी। नक्सलवाद जैसे प्रश्न पर भी जब दो प्रमुख राजनैतिक दल एक स्वर में बात नहीं करते, तो यह दर्द और भी बढ़ जाता है। छत्तीसगढ़ के लोगों के सपनों को अमली जामा पहनाना सही अर्थों में राजनैतिक नेतृत्व की ही जिम्मेदारी है। राज्य के दो करोड़ दस लाख लोग अपना सर्वांगीण विकास करते हुए देश के लिए एक श्रेष्ठ मानव संसाधन के रूप में सामने आएं तो यह बात हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण होगी। छत्तीसगढ़ के दूर-दराज गांवों, वनांचलों में स्वास्थ्य शिक्षा और पेयजल का आज भी गंभीर संकट मौजूद है। शहरों को चमकाते हुए हमें अपने इन इलाकों के भी विकास को दृष्टिगत रखना होगा। मध्यप्रदेश में रहते वक्त हमारे 'नायक' मध्यभारत के मंत्रियों और मध्यप्रदेश के सरकार को सारे अपयश देकर अपना पल्ला झाड़ लेते थे, लेकिन आज जब हम अपना छत्तीसगढ़ बना चुके हैं, तो हमें किसी से शिकायत करने की कोई आजादी नहीं है। आज की इस घड़ी में हमें अपने राज्य को ज्यादा संवेदनशील, ज्यादा बेहतर, ज्यादा मानवीय और ज्यादा सरोकारी बनाने के लिए संकल्प लेने होंगे और इन संकल्पों को मूर्त रूप देने के लिए कठिन श्रम भी करना होगा। क्या आप और हम इसके लिए दिल से तैयार हैं? यदि तैयार हैं तो यह बात छत्तीसगढ़ महतारी के माथे पर सौभाग्य का टीका साबित होगी।

(लेखक हरिभूमि रायपुर के स्थानीय संपादक हैं। )

10/28/2007

35 वर्षों से 17 घंटे प्रतिदिन रेडियो सुनने वाला शख्स

रेडियो कभी नहीं मर सकता, खासकर तब जब मोहनलाल देवांगन जैसे लोग हों और उनकी दीवानगी बची रहे । दरअसल रेडियो है ही ऐसी चीज़ जिसे भी इसका चस्का लग जाये, जो भी इसके महत्व को जान ले, शायद ही वह रेडियो से दूर हो सकता है । जी हाँ, हम यहाँ ऐसे ही नायाब रेडियो प्रेमी के बारे में कुछ कहने जा रहे हैं जो विगत 35 वर्षों से प्रतिदिन 17 घंटे रेडियो सुनते हैं । उनका रेडियो तभी बंद होता है जब वे सो जाते हैं । आपके मन में प्रश्न उठ खड़ा हो रहा होगा कि वे जब चलायमान होते हैं तो कैसे करते हैं ? चलिए हम ही बताये देते हैं – उनकी साइकिल और मोटर सायकिल में भी रेडियो वर्षों से शोभा बढ़ा रहा है । वे चाहे काम पर हों या कहीं यात्रा पर हों उन्हें रेडियो के बिना देख पाना असम्भव सा है । हमें जब पता चला तो जिज्ञासा हुई कि उनसे मिला जाय। आख़िर यह शख्स करते क्या हैं ? यानी कि उनकी दिनचर्या क्या है । उनसे मिलने का जिम्मा उठाया मेरे बेटे ने । दरअसल मुझे समय भी नहीं निकाल पा रहा था । मैंने ताकीद किया – गुणी आदमी होंगे । पर तुम सहजता से बातचीत करना । बेटा प्रशांत जब मिला तो वह भी आश्चर्य हो उठा । उसने पहली ही बार में देवांगन से बातों ही बातों में साक्षात्कार जैसी चीज तैयार कर लीं । पेशे से टेलरिंग का काम करने वाले श्री देवांगन अपनी सिलाई के लिए भी जाने जाते हैं । उनके टेलरिंग शाप में कई कारीगर काम करते हैं । अब तो मेरा बेटा भी स्कूल से लौटते वक्त उनके शॉप से होकर ही घर लौटता है । वह बताता है कि चाहे कितना बड़ा आदमी भी उनके पास सुट सिलवाने क्यों न आये वे रेडियो बंद नहीं करते । लोग उन्हें टी.वी.चैनलों की बात करते हैं पर पर हँसकर टाल देते हैं । वे मानते हैं कि रेडियो ज्ञान-विज्ञान के बीच मनोरंजन का साधन है पर टी.व्ही. मनोरंजन के दुनिया से निकलने ही नहीं देता । आँखे भटकती रहती हैं । बहरहाल पढिये आप भी किशोर बालक प्रशांत और रेडियो के दीवाने श्री देवांगन के बीच हुई बातचीत का सारांश - संपादक


प्रश्न - आप रेडियो कब से सुनते है ?
उत्तर - 1972 से रेडियो सुनना प्रारंभ किया और पिछले 35 साल से सुन रहा हूँ।


प्रश्न - सबसे पहले किस उद्घोषक की आवाज़ में रेडियो सुना और कौन सा कार्यक्रम ?
उत्तर - मैनें सबसे पहले उद्घोषक बरसाती भैया और बिसाहू भैया की आवाज़ में चौपाल नामक कार्यक्रम सुना।


प्रश्न - आप पहले कौन से कार्यक्रम सुना करते थे ?
उत्तर - घर आंगन बिंदिया, आप मन के गीत, सुर-श्रृंगार, आप के गीत।


प्रश्न - आप का सबसे पहला पत्र कब और किस कार्यक्रम में सम्मिलित हुआ ?
उत्तर - मेरा पहला पत्र -आपके मीत ये गीत कार्यक्रम में 1983 में लाल राम कुमार सिंह के द्वारा सम्मिलित किया गया।


प्रश्न - कहाँ-कहाँ सुनते हैं ?
उत्तर - घर में 6-9, फिर मोटर साइकिल में । दुकान में तो आप देख ही रहे हैं ।


प्रश्न - रेडियो के बिना कैसा लगता है ?
उत्तर - लगता है जैसे दम निकल रहा हो । रेडियो मेरी प्राण है । इसके विना में नहीं रह सकता हूँ। बिजली नहीं तो बैटरी से सुनता हूँ ।


प्रश्न - आप कहां के रहने वाले हैं ?
उत्तर - वैसे तो मेरा निवास ग्राम कुम्हारी, थाना आरंग,पोस्ट गौरभाठ, जिला रायपुर छ।ग. है। पर अब वर्षों से शक्ति नगर, मेन रोड (शंकर नगर) रायपुर छ.ग. में रहता हूँ । मेरा टेलरिंग का कार्य है, जो कटोरा तालाब, रायपुर छ.ग. मे स्थित है।


प्रश्न - रेडियो से कैसे जुड़े ?
उत्तर - गाँव में स्थानीय मनोरंजन के साधनों के अलावा एक रेडियो ही था जो संचार और सूचना के साथ-साथ मनोंरजन का खास जरिया था । तब गाँव भर के लोग बड़े चाव से रेडियो सुना करते थे । वह सबसे विश्वसनीय माध्यम भी था । बचपन से रेडियो सुनते-सुनते मैं इतना रमने लगा कि आज और अभी तक रेडियो से जुड़ा हूँ।


प्रश्नौ - यदि हम घंटो की बात करें तो आप प्रतिदिन कितने घंटे रेडियो सुनते हैं ?
उत्तर - सुबह 6 बजे से रात 11 बजे तक (17 घंटा) सुनता हूँ।


प्रश्न - रेडियो से जुड़ने के पीछे मनोरंजन महत्वपूर्ण था या कुछ और ?
उत्तर - मनोरंजन तथा कार्यक्रम की विविधता, ज्ञानवर्धन और नाम प्रसिद्ध पाना।


प्रश्न - आपके प्रिय रेडियो स्टेशन कौन से हैं ?
उत्तर - क्षेत्रीय स्टेशनों में आकाशवाणी रायपुर और अंतराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय विविध भारती प्रसारण सेवा तथा एफ।एम. जो कि हमारे लिए दिल की धड़कन है।


प्रश्न -आप किन-किन भाषाओं में रेडियो सुनते हैं ?
उत्तर - हिन्दी, छत्तीसगढ़ी सिन्धी व पंजाबी भाषाओं में रेडियो सुनता हूं।


प्रश्न - आपके पत्र किस किस रेडियो स्टेशन से प्रसारित हो चुके हैं ?
उत्तर - आकाशवाणी रायपुर, इंदौर, ग्वालियर, बिलासपुर, विविध भारती, विविध भारती-एफ।एम. ऑल इंडिया उर्दू सर्विस आदि में प्रसारित हो चुके हैं। बीबीसी आदि कई विदेशी रेडियो स्टेशनों में भी


प्रश्न - आज मनोरंजन के दूसरे माध्यम जैसे टी.व्ही., वेब मीडिया जोरों पर है ऐसे में भी रेडियो पर जुड़ाव का क्या कारण है ?
उत्तर - आज के इस दौर में टी।व्ही. और वेब मीडिया कितना भी आ जाये और जो रेडियो में बात है वह किसी में नहीं है क्योंकि यह जीवन, दिनचर्या में कभी रूकावट नहीं करता, यही रेडिया से जुड़ाव का कारण है।


प्रश्न - रेडियो उद्घोषकों में आप किसे सर्वाधिक पसंद करते हैं और क्यों ?
उत्तर - क्षेत्रीय श्री श्याम वर्मा जी (उद्घोषक) उनकी आवाज् में मधुरता और हंसमुख के व्यक्ति हैं, हरेक के दिलों में समा जाने वाले व्यक्ति है। अंतरराष्ट्रीय विविध भारती के उद्घोषक कमल शर्मा जी के बारे में कहा जाये तो इनसे जब फोन इन फरमाइश कार्यक्रम में बातें होती है तो उनकी बातों से कमल के फूल की तरह, प्रकृति की याद दिलाती है और इनके बारे में जो कहे वह कम है। अमीन सयानी के बारे में क्या बतायें । लगता था उन्हें चौबीसों घंटे सुनते रहें ।


प्रश्न - रेडियो की समाज में उपयोगिता क्या है ?
उत्तर - रेडियो की समाज के लिए उपयोगिता है, जैसे बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय ज्ञानवर्धक बातें दूर दूर से इसके माध्यम से पहुँचता है।


प्रश्न - क्या रेडियो पहले जैसे स्थापित हो पायेगा ?
उत्तर - हाँ। रेडियो एवं ऐसा माध्यम है जिसे अपने कार्य करते हुए बिना डिर्स्टबेन्स के सुना जा सकता है। लोगबाग़ टीव्ही से उबने लगे हैं । रेडियो खासकर एफएम सुनने वाले लगातार बढ़ रहे हैं ।


प्रश्न - आपके पास पहला पत्र किस श्रोता का आया, और कहां से ?
उत्तर - हमारे पास पहला पत्र खेमूराम साहू / ग्राम सिंगदई, जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़ से आया।


प्रश्न - पत्र पाकर आपको कैसे लगा और क्या अनुभूति हुई ?
उत्तर - उनका पत्र पाकर मैं झूम उठा और रेडियो के माध्यम से उनको धन्यवाद दिया और मैने पत्र भी लिखा।


प्रश्न - क्या आप अपनी जिन्दगी कुछ परिवर्तन पाते हैं रेडियो के कारण ?
उत्तर - मेरे ज़िन्दगी में बहुत कुछ परिवर्तन हुआ। रेडियो के माध्यम से देश-प्रदेश के श्रोता लोग मुझे जानने लगे, पत्र भेजने लगे और मिलने के लिए आते रहते हैं। सैकड़ों लोग मुझसे मिलने आ चुके हैं ।


प्रशान्त रथ

10/14/2007

छत्तीसगढ़ की चमत्कारी देवियाँ

नवरात्रि के अवसर पर

चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है..

नवरात्रि पर्व- नौ दिन तक देवियों की पूजा-अर्चना का सात्विक पर्व, ग्रामदेवी, ईष्टदेवी और कुलदेवी को प्रसन्न करने का पर्व। शक्ति साधक जगत की उत्पत्ति के पीछे ''शक्ति'' को ही मूल तत्व मानते हैं और माता के रूप में उनकी पूजा करते हैं। समस्त देव मंडल शक्ति के कारण ही बलवान है, उसके बिना वे शक्तिहीन हो जाते हैं। यहाँ तक कि सृष्टि के निर्माण में शक्ति ईश्वर की प्रमुख सहायिका होती हैं। शक्ति ही समस्त तत्वों का मूल आधार है। शक्ति को समस्त लोक की पालिका-पोषिता माना गया है। वह प्रकृति का स्वरूप है। इस प्रकार शाक्तों अथवा शक्ति पूजकों ने प्रकृति की सृजनात्मक शक्ति को पारलौकिक पवित्रता और ब्रह्मवादिता प्रदान की है। अत: शक्ति सृजन और नियंत्रण की पारलौकिक शक्ति है। वह समस्त विश्व का संचालन भी करती है। इसीकारण वह जगदंबा और जगन्माता है।

देवी पूजन की परंपरा मुख्यत: दो रूपों में मिलती है- एक मातृदेवी के रूप में और दूसरी शक्ति के रूप में। प्रारंभ में देवी की उपासना माता के रूप में अधिक लोकप्रिय थी। पुराणों में दुर्गा स्तुतियों में जगन्माता या जगदम्बा स्वरूप की अवधारणा में देवी के माता स्वरूप का स्पष्ट संकेत मिलता है। भारत, मिस्र, मेसोपोटामिया, यूनान और विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में धर्म की अवधारणा के साथ ही मातृपूजन की परंपरा आरंभ हुई। सृष्टि की निरंतरता बनाये रखने में योगदान के कारण ही मातृ देवियों का पूजन प्रारंभ हुआ। माता की प्रजनन शक्ति जो सभ्यता की निरंतरता का मूलाधार है, मातृदेवी के रूप में उनके पूजन का मुख्य कारण रही है। सिंधु सभ्यता के समय से मातृदेवियों की पूजा प्रचलित थी। शक्ति वस्तुत: क्रियाशीलता का परिचायक और उसी का मूर्तरूप है। शक्ति पूजन के अंतर्गत विभिन्न देवताओं की क्रियाशीलता उनकी शक्तियों में निहित मायी गयी। तद्नुरूप सभी प्रमुख देवताओं की शक्तियों की कल्पना की गयी। देवताओं की शक्तियों की कलपना सांख्यदर्शन की प्रकृति और पुरूष तथा दोनों के अंतरावलंबन के भाव से संबंधित है। इसी कारण शिव भी शक्ति के बिना शव या निष्क्रिय बताये गये हैं। योनिपट्ट पर स्थापित शिवलिंग और अर्ध्दनारीश्वर स्वरूप की परिकल्पना वस्तुत: शिवशक्ति या प्रकृति पुरूष की समन्वय का परिचायक है। मनुष्य की विभिन्न प्रकार की शक्तियों को प्राप्त करने की अनंत इच्छा ने शक्ति की उपासना को व्यापक आयाम दिया है।

छत्तीसगढ़ में भी अनेक शक्तिपीठ बने। यहाँ देवियाँ ग्रामदेवी और कुलदेवी के रूप में पूजित हुई। विभिन्न स्थानों में देवियाँ या तो समलेश्वरी या महामाया देवी के रूप में प्रतिष्ठित होकर पूजित हो रही हैं। राजा-महाराजाओं, जमींदारों और मालगुजार भी शक्ति उपासक हुआ करते थे। अपनी राजधानी में देवियों को ''कुलदेवी'' के रूप में स्थापित किये हैं। देवियों को अन्य राजाओं से मित्रता के प्रतीक के रूप में भी अपने राज्य में प्रतिष्ठित करने का उल्लेख तत्कालीन साहित्य में मिलता है। छत्तीसगढ़ में देवियों की अनेक चमत्कारी किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। आइये नवरात्र में देवि दर्शन को चले। भक्तगण गाते जाते हैं..चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है। नवरात्रि में देवियों की कृपा प्राप्त करने के लिए देवि दर्शन की जाती हैं। ग्रामीणजनों में देवियों की प्रसन्न करने के लिए ''बलि''' दिये जाने और मातासेवा गीत गाकर किये जाने की परंपरा है। उड़ियान राज से जुड़े चंद्रपुर में चंद्रसेनी माता के दरबार में ग्रामीणजनों द्वारा बलि देकर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। देवी मंदिरों में श्रध्दालुओं की बढ़ती भीढ़ बढ़ती जा रही है और देवी स्थल शक्तिपीठ के रूप में विकसित होते जा रहे हैं।

रतनपुर की महामाया :-

दक्षिण-पूर्वी रेल्वे के बिलासपुर जंक्शन और जिला मुख्यालय से लगभग 22 कि.मी. की दूरी पर महामाया की नगरी रतनपुर स्थित है। यह हैहयवंशी कलचुरी राजाओं की विख्यात् राजधानी रही है। इस वंश के राजा रत्नदेव ने महामाया के निर्देश पर ही रत्नपुर नगर बसाकर महामाया देवी की कृपा से दक्षिण कोसल पर निष्कंटक राज किया। उनके अधीन जितने राजा, जमींदार और मालगुजार रहे, सबने अपनी राजधानी में महामाया देवी की स्थापना की और उन्हें अपनी कुलदेवी मानकर उनकी अधीनता स्वीकार की। उनकी कृपा से अपने कुल-परिवार, राज्य में सुख शांति और वैभव की वृध्दि कर सके। पौराणिक काल से लेकर आज तक रतनपुर में महामाया देवी की सत्ता स्वीकार की जाती रही है। राजा रत्नदेव भटकते हुए जब यहाँ के घनघोर वन में आये और साँझ होने के कारण एक पेड़ पर चढ़कर रात्रि गुजारी। पेड़ की डगाल को पकड़कर सोते रहे। अचानक अर्ध्दरात्रि में पेड़ के नीचे देवी महामाया की सभा लगी दिखाई दी। उनके निर्देश पर ही उन्होंने यहाँ अपनी राजधानी स्थापित थी। यही देवी आज जन आस्था का केंद्र बनी हुई है। मंत्र शक्ति से परिपूर्ण दैवीय कण यहाँ के वायुमंडल में बिखरे हैं जो किसी भी उद्दीग्न व्यक्ति को शांत करने के लिए पर्याप्त हैं। यहाँ के भग्नावशेष हैहयवंशी कलचुरी राजवंश की गाथा सुनाने के लिए पर्याप्त है। महामाया देवी और बूढ़ेश्वर महादेव की कृपा यहाँ के लिए कवच बना हुआ है। पंडित गोपालचंद्र ब्रह्मचारी भी यही गाते हैं :-

रक्षको भैरवो याम्यां देवो भीषण शासन:
तत्वार्थिभि:समासेव्य: पूर्वे बृध्देश्वर: शिव:॥
नराणां ज्ञान जननी महामाया तु नैर्ऋतै
पुरतो भ्रातृ संयुक्तो राम सीता समन्वित:॥

देवी महामाया मंदिर ट्रस्ट बनाकर अराधकों द्वारा मंदिर का जीर्णोध्दार कराया गया है। दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए धर्मशाला, यज्ञशाला, भोगशाला और अस्पताल आदि की व्यवस्था की गयी है। नवरात्र में श्रध्दालुओं की भीड़ '' चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है...'' का गायन करती चली आती है।

सरगुजा की महामाया और समलेश्वरी देवी :-

वनांचल प्रांत की सीमा से लगा छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य वनाच्छादित जिला मुख्यालय अम्बिकापुर चारों ओर से सड़क मार्ग और अनुपपुर से विश्रामपुर तक रेल्वे लाईन से जुड़ा पूर्व फ्यूडेटरी स्टेट्स है। यहाँ की पवित्र पहाड़ी पर महाकवि कालिदास का आश्रम था। विश्व की प्राचीनतम् नाटयशाला भी यहाँ की रामगढ़ पहाड़ी में स्थित है। त्रेतायुग में श्रीराम और लक्ष्मण लंका जाते देवियों की इस भूमि को प्रणाम करने यहाँ आये थे। यहाँ आज भी महामाया और समलेश्वरी देवी एक साथ विराजित हैं। तभी तो छत्तीसगढ़ गौरव के कवि पंडित शुकलाल पांडेय गाते हैं :-

यदि लखना चाहते स्वच्छ गंभीर नीर को
क्यों सिधारते नहीं भातृवर ! जांजगीर को ?
काला होना हो पसंद रंग तज निज गोरा
चले जाइये निज झोरा लेकर कटघोरा
दधिकांदो उत्सव देखना हो तो दुरूग सिधारिये
लखना हो शक्ति उपासना तो चले सिरगुजा जाईये॥

कवि की बातों में सच्चाई है तभी तो सरगुजा आज अद्वितीय शक्ति उपासना का केंद्र है। छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि सुदूर उड़ीसा के संबलपुर तक समलेश्वरी देवी, रतनपुर में महामाया देवी और चंद्रपुर में चंद्रसेनी देवी सरगुजा की भूमि से ही ले जायी गयी। मराठा शासकों के सैनिक और सामंतों द्वारा महामाया को नहीं ले सकने पर उसके सिर को काटकर रतनपुर ले आये लेकिन आगे नहीं ले जा सके और रतनपुर में ही प्रतिष्ठित कर दिये।

चंद्रपुर की चंद्रसेनी देवी :-

महानदी और माँड नदी से घिरा चंद्रपुर, जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत रायगढ़ से लगभग 32 कि।मी., सारंगढ़ से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ चंद्रसेनी देवी का वास है। किंवदंति है कि चंद्रसेनी देवी सरगुजा की भूमि को छोड़कर उदयपुर और रायगढ़ होते हुये चंद्रपुर में महानदी के तट पर आ जाती हैं। महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर यहाँ पर वह विश्राम करने लगती हैं। वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुलती। एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहाँ से गुजरी और अनजाने में चंद्रसेनी देवी को उनका पैर लग जाता है और उनकी नींद खुल जाती है। फिर स्वप्न में देवी उन्हें यहाँ मंदिर निर्माण और मूर्ति स्थापना का निर्देश देती हैं। संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिर निर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है। देवी की आकृति चंद्रहास जैसे होने के कारण उन्हें '' चंद्रहासिनी देवी '' भी कहा जाता है। इस मंदिर की व्यवस्था का भार उन्होंने यहाँ के जमींदार को सौंप दिया। यहाँ के जमींदार ने उन्हें अपनी कुलदेवी स्वीकार करके पूजा अर्चना करने लगा। आज पहाड़ी के चारों ओर अनेक धार्मिक प्रसंगों, देवी-देवताओं, वीर बजरंग बली और अर्ध्दनारीश्वर की आदमकद प्रतिमा, सर्वधर्म सभा और चारों धाम की आकर्षक झांकी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। कवि तुलाराम गोपाल की एक बानगी पेश है :-

खड़ी पहाड़ी की सर्वोच्च शिला आसन पर
तुम्हें देख बराह रूप में चंद्राकृति पर
जब मन ही में प्रश्न किया सरगुजहीन महानदी की बीच धार की धरती डोली।

बस्तर की दंतेश्वरी देवी :-

विशाल भूभाग में फैले बस्तर को यदि देवी-देवताओं की भूमि कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। यहाँ के हर गाँव के अपने देवी-देवता हैं। हर गोव में '' देव गुड़ी '' होती है, जहाँ किसी न किसी देवी-देवता का निवास होता है। लकड़ी की पालकी में सिंदूर से सने और रंग बिरंगी फूलों की माला से सजे विभिन्न आकृतियों वाली आकर्षक मूर्तियाँ प्रत्येक देव गुड़ी में देखने को मिल जायेगी। ये यहाँ के गांवों के आस्था के केंद्र हैं। सम्पूर्ण बस्तर की अधिष्ठात्री दंतेश्वरी देवी हैं जो यहाँ के काकतीय वंशीय राजाओं की कुलदेवी है। इन्हें शक्ति का प्रतीक माना जाता है और शंखिनी डंकनी नदी के बीच में दंतेश्वरी देवी का भव्य मंदिर है। भारत के शक्तिपीठों में एक दंतेवाड़ा में शक्ति का दांत गिरने के कारण यहाँ की देवी दंतेश्वरी देवी के नाम से प्रतिष्ठित हुई, ऐसा विश्वास किया जाता है। देवी के नाम पर दंतेवाड़ा नगर बसायी गयी जो आज दंतेवाड़ा जिला का मुख्यालय है।

बस्तर के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दृष्टिपात करने से पता चलता है कि राजा प्रताप रूद्रदेव के साथ दंतेश्वरी देवी आंध्र प्रदेश के वारंगल राज्य से यहाँ आयी। मुगलों से परास्त होकर राजा प्रताप रूद्रदेव वारंगल को छोड़कर इधर उधर भटकने लगे। देवी अराधक तो वे थे ही, वे उन्हीं के शरण में गये। तब देवी माँ का निर्देश हुआ कि '' मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन घोड़े पर सवार होकर तुम अपनी विजय यात्रा आरंभ करो, जहाँ तक तुम्हारी विजय यात्रा होगी वहाँ तक तुम्हारा एकछत्र राज्य होगा...।'' राजा के निवेदन पर देवी माँ उनके साथ चलना स्वीकार कर ली। लेकिन शर्त थी कि राजा पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे। अगर राजा पीछे मुड़कर देखेंगे, तब देवी माँ आगे नहीं बढ़ेंगी। राजा को उनके पैर की घुंघरूओं की आवाज़ से उनके साथ चलने का आभास होता रहेगा। राजा प्रताप रूद्र्र्रदेव ने विजय यात्रा आरंभ की और देवी माँ उनकी विजय यात्रा के साथ चलने लगी। जब राजा की सवारी शंखिनी डंकनी नदी को पार करने लगी तब देवी माँ के पैर की घुंघरू सुनायी नहीं देता है तब राजा पीछे मुड़कर देखने लगे जिससे देवी आगे बढ़ने से इंकार कर दी और वहीं प्रतिष्ठित हुई। बाद में राजा ने उनके लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया और उनके नाम पर दंतेवाड़ा नगर बसायी। बस्तर में कोई भी पूजा-अर्चना और त्योहार दंतेश्वरी देवी की पूजा के बिना पूरा नहीं होता। दशहरा के दिन यहाँ रावण नहीं मरता बल्कि दंतेश्वरी देवी की भव्य शोभायात्रा निकलती है जिसमें बस्तर के सभी देवी-देवता शामिल होते हैं। नवरात्र में बस्तर का राजा दंतेश्वरी देवी के प्रथम पुजारी के रूप में नौ दिन मंदिर में निवास करके पूजा-अर्चना करते थे। इसी प्रकार खैरागढ़ में दंतेश्वरी देवी की काष्ठ प्रतिमा स्थापित है जो खैरागढ़ राज परिवार की कुलदेवी है।

डोंगरगढ़ की बमलेश्वरी देवी :-

राजनांदगाँव जिलान्तर्गत 25 कि.मी पर स्थित दक्षिण-पूर्वी रेल्वे के डोंगरगढ़ स्टेशन में ट्रेन से उतरते ही सुन्दर पहाड़ी उसमें छोटी छोटी सीढ़ियाँ और उसके उपर बमलेश्वरी देवी का भव्य मंदिर का दर्शन कर मन प्रफुल्लित हो श्रध्दा से भर उठता है। प्राचीन काल में यह कामावती नगर के नाम से विख्यात् था। यहाँ के राजा कामसेन बड़े प्रतापी और संगीत कला के प्रेमी थे। राजा कामसेन के उपर बमलेश्वरी माता की विशेष कृपा थी। उन्हीं की कृपा से वे सवा मन सोना प्रतिदिन दान किया करते थे। उनके राज दरबार में कामकंदला नाम की अति सुन्दर राज नर्तकी थी। कामकंदला वास्तव में एक अप्सरा थी जो शाप के कारण पृथ्वी में अवतरित हुई थी। राजनर्तकी को यहाँ कुंवारी रहना पड़ता था। इस राज दरबार में माधवानल जैसे कला और संगीतकार भी थे। एक बार राजदरबार में दोनों का अनोखा समन्वय देखने को मिला और राजा कामसेन उनकी संगीत साधना से इतने प्रभावित हुए कि वे माधवानल को अपने गले का हार दे दिये। मगर माधवानल ने इसका श्रेय कामकंदला को देते हुए उस हार को उसे पहना देता है। इससे राजा अपने को अपमानित महसूस किये और गुस्से में आकर माधवानल को देश निकाला दे दिया। इधर कामकंदला उनसे छिप छिपकर मिलती रही। दोनों एक दूसरे को प्रेम करने लगे थे लेकिन राजा के भय से सामने नहीं आ सकते थे। फिर उन्होंने उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की शरण में गया और उनका मन जीतकर उनसे पुरस्कार में कामकंदला को राजा कामसेन से मुक्त कराने की बात कही। राजा विक्रमादित्य ने दोनों के प्रेम की परीक्षा ली और दोनों को खरा पाकर कामकंदला की मुक्ति के लिए पहले राजा कामसेन के पास संदेश भिजवाया। उसने कामकंदला को मुक्त करने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप दोनों के बीच घमासान युध्द होने लगा। दोनों वीर योध्दा थे और एक महाकाल के भक्त थे तो दूसरा विमला माता के भक्त। दोनों अपने अपने इष्टदेव का आव्हान करते हैं। तब एक तरफ महाकाल और दूसरी ओर भगवती विमला माँ अपने अपने भक्त को सहायता करने पहुंचे। फिर महाकाल विमला माता से राजा विक्रमादित्य को क्षमा करने की बात कहकर कामकंदला और माधवानल को मिला देते हैं और दोनों अंतर्ध्यान हो जाते हैं। बाद में राजा कामसेन की नगरी काल के गर्त में समा जाती है। वही आज बमलेश्वरी देवी के रूप में छत्तीसगढ़ वासियों की अधिष्ठात्री है। अतीत के अनेक तथ्यों को अपने गर्भ में समेटे बमलेश्वरी पहाड़ी अविचल खड़ा है। यह अनादिकाल से जग जननी माँ बमलेश्वरी देवी की सर्वोच्च शाश्वत शक्ति का साक्षी है। लगभग एक हजार सीढ़ियों को चढ़कर माता के दरबार में पहुँचने पर जैसे सारी थकान दूर हो जाती है, मन श्रध्दा से भर उठकर गा उठता है :-

तेरी होवे जै जैकार, नमन करूँ माँ करो स्वीकार।
तेरी महिमा अनुपम न्यारी जग में सबसे बलिहारी है।
तू ही अम्बे, तू ही दुर्गा, बमलेश्वरी तेरी सिंह की सवारी।
नैया सबकी पार लगे माँ तरी जै जैकार.....।

इसी प्रकार रायगढ़, सारंगढ़, उदयपुर, चांपा में समलेश्वरी देवी, कोरबा जमींदारी में सर्वमंगला देवी, जशपुर रियासत में चतुर्भुजी काली माता, अड़भार में अष्टभुजी देवी, झलमला में गंगामैया, केरा, पामगढ़ और दुर्ग में चंडी दाई, खरौद में सौराईन दाई, शिवरीनारायण में अन्नपूर्णा माता, मल्हार में डिडनेश्वरी देवी, रायपुर में बिलासपुर रोड में तथा पंडित रविशंकर शुक्ला विश्वविद्यालय के पीछे बंजारी देवी का भव्य मंदिर है। छुरी की पहाड़ी में कोसगई देवी, बलौदा के पास खम्भेश्वरी देवी की भव्य प्रतिमा पहाड़ी में स्थित हैं। नवरात्र में यहाँ दर्शनार्थियों की अपार भीड़ होती है।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥


प्रो. अश्विनी केशरवानी
चाम्पा-495671 (छत्तीसगढ़)

10/06/2007

पृथ्वी से बैकुंठ की दूरी 12 लाख योजन

आज के तीव्र गति वाले वैज्ञानिक युग में भले ही स्वर्ग या बैकुंठ को कपोल कल्पना समझा जाय पर शताब्दियों से भारतीय मन और मनीषा में बैकुंठ की अवधारणा पर अटूट विश्वास है । हाल ही में मिली 400 वर्षीय प्राचीन और दुर्लभ पांडुलिपि ब्रह्मांड पुराण की मानें तो पृथ्वी से बैकुंठ की दूरी 12 लाख योजन है ।

रायगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर एवं उड़ीसा राज्य से जुड़े ग्राम सरिया के 83 वर्षीय ज्योतिषाचार्य हरिबंधू महापात्र ने जिला प्रशासन के पुरातत्व समिति को हस्तलिखित ब्रहांड पुराण सौंपा है जिसे लगभग 400 वर्ष प्राचीन माना गया है । यह पांडुलिपि कागज़ में नहीं बल्कि ताड़पत्र में है जो उड़िया भाषा में लिखित है । ताड़ वृक्ष के पत्तों में बड़े ही सुंदर ढंग से पुस्तक की तरह निर्मित यह पांडुलिपि 244 पृष्ठों का है । इस ग्रंथ के अनुसार पृथ्वी से बैकुंठ की दूरी 12 लाख योजन है । इतना ही नहीं, ज्योतिष केंद्रित इस दुर्लभ पांडुलिपि में उड़िया भाषा में यह भी लिखा हुआ है कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी 1 लाख योजन, चंद्रमा की 2 लाख योजन, तारागण की 3 लाख योजन, ध्रुवतारा 4 लाख योजन, यम का घर 5लाख योजन, इंद्रदेव का घर 6 लाख योजन पर स्थित है । दूरी की पारंपरिक इकाई के अनुसार एक योजन को 12 कोस माना जाता है । श्री हरिबंधू महापात्र बताते हैं कि यह पांडुलिपि उनके दादा परदादा के ज़माने से है जिसे वे भी अब तक बड़े जतन से संभाल कर रखे हुए थे, उनके अनुसार इस पांडुलिपि की सहायता से जब भी कुछ ज्योतिषीय भविष्यवाणी की है सब कुछ सही साबित हुईं हैं । वे इसे विज्ञान सम्मत ज्ञान मानते हैं । इन सिद्धियों पर विश्वास करें तो निश्चय ही कहा जा सकता है कि भारतीय विद्वानों को ब्रह्मांड भूगोल की सम्यक ज्ञान हजारों वर्षों पहले से ही था ।

श्री महापात्र के द्वारा जिन दुर्लभ पांडुलिपियों को पुरात्व समिति को जनहित में उपलब्ध कराया गया है उनमें प्राचीन शिक्षण से लेकर आधुनिक शिक्षा, ज्योतिष, खगोल विज्ञान, सामाजिक जीवन पद्धति आदि की किताबें सम्मिलित हैं । इसमें विष्णु सहस्त्रनाम, खड़ी रत्न पंजिका, झाड़-फूँक मंत्र, विवाह पद्धति, नित्याचार शैव पद्धति, भार्गव केरल ज्योतिष, ब्रह्मांड पुराण, व्रत संहिता, गृह योग पद्धति, उड़िया भाषा का शब्दकोश-अमरकोश, शिव मंदिर प्रतिष्टा, यजुर्वेद कांड संहिता, तालाब प्रतिष्ठा आदि प्रमुख हैं । रविशंकर विश्वविद्यालय के इतिहासविद् डा. रमेन्द्रनाथ मिश्र का कहना है कि यद्यपि इनमें से अधिकांश किताबें कर्मकांड की हैं किन्तु इसमें भारतीय संस्कृति की समृद्ध जीवन-पद्धति की जानकारियाँ बिखरी पड़ी हैं और वे गंभीर शोध की विषय-वस्तु हैं । प्रख्यात भाषाशास्त्री डॉ. चित्तरंजन कर के अनुसार इन दुर्लभ कृतियों से उड़िया भाषा की प्राचीनता और उसकी साहित्येत्तर विषयों पर पैठ और क्षमता का भी आंकलन किया जा सकता है ।

कई पीढ़ी पहले श्री महापात्र के पूर्वज उड़ीसा से आकर पश्चिमी उड़ीसा से लगे छत्तीसगढ़ के इस छोटे से ग्राम में बस गये थे, जहाँ वे अपने पड़ोसी गाँवों के अलावा दूर-दूर से आने वाले लोगों की अनेक समस्यायों का हल वैदिक पद्धति से बताते हैं ।

10/04/2007

सत्य, तथ्य एवं क्रिकेट

अमेरिका तथा यूरोपीय देशों में जहाँ फुटबॉल तथा टेनिस जैसे खेलों के प्रति लोगों की दीवानगी दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है, वहीं एशियाई देशों में क्रिकेट का बुख़ार अपने चरम पर है। विशेषकर दक्षिण एशियाई देश तो लगभग पूरी तरह से क्रिकेट के रंग में रंग चुके हैं। बंगलादेश व श्रीलंका जैसे देशों ने न केवल अपनी क्रिकेट टीम का गठन कर लिया है बल्कि यह देश अब क्रिकेट जगत में विश्वस्तर पर एक चुनौती भी साबित हो रहे हैं। इसमें कोई शक़ नहीं कि एशियाई देशों में क्रिकेट के बुख़ार को आम लोगों के सिर पर चढ़ाने में सबसे अहम किरदार यदि किसी माध्यम का रहा है तो वह है मात्र टेलीविज़न का बढ़ता हुआ नेटवर्क। परन्तु ऐसे में जबकि चारों ओर क्रिकेट ही क्रिकेट नज़र आ रहा हो तथा आम लोगों का जीवन ही मात्र क्रिकेट बन गया हो, ऐसे में चन्द व्यवसायियों द्वारा क्रिकेट प्रेमियों के टेलीविज़न पर मैच देखने के अधिकारों पर ही कब्ज़ा जमा लेने को आख़िर कहाँ तक उचित ठहराया जा सकता है।

अभी पिछले दिनों 20-20 विश्व कप का आयोजन दक्षिण अफ्रीका में किया गया। वैसे तो इसमें सभी मैच बड़े ही आकर्षक व रोमांचक रहे परन्तु सेमी फाईनल के दो मैच भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया व पाकिस्तान बनाम न्यूंजीलैंड तथा उसके बाद अन्तिम फाईनल मैच जोकि भारत व पाकिस्तान के बीच खेला गया, पूरे विश्व के क्रिकेट प्रेमियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा। परन्तु आम जनता अपने-अपने टेलीविज़न सेट पर इन खेलों के प्रसारण को नहीं देख सकी। इसका कारण यह था कि किसी एक टी वी चैनल चलाने वाली कम्पनी द्वारा इस 20-20 विश्व कप को प्रसारित करने के समस्त अधिकार ख़रीद लिए गए थे। इसका सीधा सा अर्थ है कि अब केवल वही टी वी चैनल उन खेलों का प्रसारण कर सकता है, जिसके पास इस विश्व कप क्रिकेट को प्रसारित करने का अधिकार है। यदि हम यहाँ मात्र दक्षिण एशियाई देशों विशेषकर भारत, पाकिस्तान व बंगलादेश की ही बात करें तो हम देखते हैं कि इन देशों की अधिकांश जनता गांवों में रहा करती है। उनके पास या तो टेलीविज़न का अभाव है या फिर उनके टेलीविज़न पर केवल राष्ट्रीय चैनल प्रसारित होते हैं। जबकि विश्व कप को प्रसारित करने का अधिकार जिस एकमात्र प्राईवेट टी वी चैनल को दिया गया, उसे देखने हेतु केबल नेटवर्क का होना ज़रूरी है। और यदि केबल नेटवर्क न हो तो बांजार में उपलब्ध विभिन्न कम्पनियों द्वारा बेची जाने वाली डिश के माध्यम से भी उसे देखा जा सकता था। परन्तु यह सभी माध्यम चाहे वह केबल नेटवर्क हो अथवा डिश व्यवस्था, यह सब कुछ या तो सम्पन्न लोगों के वश की बातें हैं या फिर शहरों में रहने वाले लोगों की पहुँच की चीज़ें।

गत् दिनों भारत में आमतौर पर यह देखा गया कि एक ओर तो भारत व पाकिस्तान जैसे पारंपरिक प्रतिद्वन्दी विश्व कप फाईनल मैच में जीत हार के लिए जूझ रहे थे तो दूसरी ओर आम भारतीय इस मैच का सीधा प्रसारण देखने के लिए केवल इसलिए तड़प रहा था क्योंकि भारतीय दूरदर्शन द्वारा इसका सीधा प्रसरण नहीं किया जा रहा था। निश्चित रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा विभिन्न टी वी चैनल आदि एक विश्व स्तरीय बड़े व्यवसाय का रूप धारण कर चुके हैं। यह भी सच है कि व्यवसाय का भावनाओं से कोई रिश्ता नहीं होता। परन्तु क्या यह तथाकथित व्यवसायिकता किसी भी देश के वासियों द्वारा उनके अपने ही देश की टीम का खेल देखने के अधिकारों पर भी ताला लगा सकती है? क्या प्रसारण के अधिकारों के नियमों के अन्तर्गत इस बात की छूट नहीं दी जा सकती कि कम से कम वह देश जिनकी टीम किसी मैच में हिस्सा ले रही हो, वहां के सरकारी टी वी चैनल अथवा वे टी वी चैनल जोकि उन देशों में राष्ट्रीय स्तर पर आम जनता को उपलब्ध हों, अपने देश के मैच का सीधा प्रसारण कर सकें? यदि ऐसी व्यवस्था नहीं बनती तो इसे जनता के साथ एक बड़े सुनियोजित विश्वासघात एवं षडयन्त्र के सिवा आख़िर और क्या कहा जा सकता है। साफ ज़ाहिर है कि पहले तो इसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के खुले प्रसारण ने आम लोगों में गरीब, मध्यम व अमीर सभी के बीच क्रिकेट के प्रति दीवानगी पैदा की तथा जब वह दीवानगी सिर चढ़कर बोलने लगी तो चन्द व्यवसायियों द्वारा इनके प्रसारण के अधिकारों को ख़रीद कर आम जनता को मैच देखने से ही वंचित कर दिया गया? इस व्यवसायिक रणनीति का सीधा सा अर्थ है कि यदि किसी को मैच देखना है तो वह रोटी, कपड़े का प्रबन्ध करे या न करे परन्तु उसे अपनी डिश ज़रूर खरीदनी होगी।

क्रिकेट के प्रति जनता की इस दीवानगी ने जहाँ व्यवसायियों को दोनों हाथों से नोट बटोरने के तमाम अवसर दिए हैं, वहीं क्रिकेट के भूत ने विशेषकर भारत के लोगों को खेल के अपने स्वर्णिम युग की ओर से भी मुँह मोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है। कभी राष्ट्रीय खेल का दर्जा रखने वाले हॉकी के खेल को भारतीय जनता भूलती ही जा रही है। 1928 से लेकर 1956 तक का समय हॉकी का वह स्वर्णिम युग था जबकि भारत ने उस दौरान 24 ओलम्पिक मैच खेले थे तथा सभी 24 मैच पर विजयश्री प्राप्त की थी। इसमें भारत ने कुल 178 गोल किए थे। अर्थात् 7.43 गोल प्रति मैच की दर से किए गए थे। हॉकी ही एक ऐसा खेल था जिसमें भारत 8 स्वर्ण पदक जीत पाने में सफल रहा था। भारत का सर्वोच्च खेल पुरस्कार अर्जुन अवार्ड भी अब तक सबसे अधिक हॉकी के खिलाड़ियों को ही प्राप्त हुआ है। आज भले ही हम सचिन तेंदुलकर व सौरव गांगुली जैसे महान क्रिकेट खिलाड़ियों के गुणगान करते न थक पाते हों परन्तु एक वह दौर भी था जब ध्यानचंद, के डी सिंह बाबू, प्रगट सिंह, अजीत पाल सिंह, गगन अजीत सिंह, जफ़र इक़बाल, भास्करन, असलम शेर खां जैसे हॉकी के खिलाड़ियों के नामों से दुनिया थर्राती थी।

भारतीय हॉकी फेडरेशन का गठन सर्वप्रथम 1928 में ग्वालियर में किया गया था। विश्व भ्रमण पर जाने वाली भारत की पहली हॉकी टीम ही थी जिसने 1932 में मलाया, टोक्यो, लॉस एंजिल्स, ओमाहा, फिलाडेलफ़िया, एम्सर्टडम, बर्लिन, पराग्वे तथा बुड्डापेस्ट आदि देशों का दौरा किया था तथा भारतीय हॉकी के परचम को बुलन्द किया था। बेशक आज मीडिया के क्षेत्र में आई ज़बरदस्त क्रांति के चलते हमें विश्वस्तरीय खिलाड़ियों के खेल, उनके रिकार्डस तथा उनकी असाधारण प्रतिभा के विषय में सब कुछ शीघ्र अति शीघ्र बड़ी आसानी से पता चल जाता है परन्तु भारतीय हॉकी के स्वर्णिम युग के दौरान जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इतना प्रचलित नहीं था, उस समय भी पूरा विश्व भारतीय कप्तान ध्यानचंद के खेल से परिचित तथा उसका दीवाना था। 1936 के बर्लिन ओलम्पिक के हॉकी कप का वह विश्व रिकॉर्ड आज तक दुनिया की कोई हॉकी टीम नहीं तोड़ सकी है, जिसमें कि भारतीय हॉकी टीम के कप्तान ध्यानचंद ने मैच में हुए कुल 38 गोल में से 11 गोल अकेले अपनी ही हॉकी से दांगे थे। ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता था।

विश्व विजेता का सपना संजोने वाले तानाशाह हिटलर ने तो ध्यानचंद के समक्ष एक रात्रिभोज में यह प्रस्ताव रखा था कि यदि वे जर्मन की नागरिकता ग्रहण करें तो उन्हें कर्नल की उपाधि से नवांजा जाएगा परन्तु अपनी रग-रग में भारतीयता व देशभक्ति का जंज्बा रखने वाले ध्यानचंद ने हिटलर के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। ध्यानचंद का नाम उनकी हॉकी के खेल की बदौलत उसी शिखर पर था जहाँ कि क्रिकेट में ब्रेडमेन तथा फुटबॉल में पेले जैसे महान खिलाड़ियों का था। वियाना में तो ध्यानचंद के प्रशंसकों ने हद ही कर दी थी। वियाना के एक स्पोर्टस क्लब में ध्यानचंद की स्मृति में उनकी ऐसी प्रतिमा स्थापित की गई है जिसमें ध्यानचंद के चार हाथ हैं तथा उन चारों हाथों में ध्यानचंद को हॉकी पकड़े हुए दिखाया गया है। इस प्रतिमा के विषय में वियानावासियों का कहना है कि चूंकि दो हाथ तथा एक हॉकी के साथ एक साधारण व्यक्ति ऐसी हॉकी नहीं खेल सकता जैसी कि ध्यानचंद खेलते थे। अत: उन्हें इस रूप में दिखाना ही उचित समझा गया।

बहरहाल भारत क्रिकेट में 20-20 विश्व कप विजेता हो गया है। इससे पूर्व भारत 1983 में 24 वर्ष पूर्व भी क्रिकेट विश्व विजेता हुआ था। बेशक हमारे देश के क्रिकेट खिलाड़ी इस कामयाबी के लिए बधाई के पात्र हैं परन्तु हॉकी की छाती पर चढ़कर क्रिकेट की पताका का लहराना तथा क्रिकेट की दीवानगी में किसी बड़े व्यवसायिक कुचक्र का शिकार हो जाना भी क़तई मुनासिब नहीं कहा जा सकता।
-तनवीर जाफ़री
(सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी)
22402, नाहन हाऊस
अम्बाला शहर। हरियाणा

डा. श्याम सुंदर व्यास नहीं रहे



रायपुर। हिंदी के जाने-माने साहित्यकार और 'वीणा' पत्रिका के संपादक रहे डा. श्याम सुंदर व्यास का बुधवार सुबह इंदौर में निधन हो गया।

3 सितंबर 1927 को इंदौर में जन्मे डा. व्यास ने देश की सर्वाधिक प्राचीन तथा सतत प्रकाशित होने वाली एकमात्र साहित्यिक पत्रिका 'वीणा' का 35 वर्षों तक संपादन किया। इसके अलावा उनके तीन उपन्यास, पांच कथा संग्रह, तीन व्यंग्य संग्रह और बाल साहित्य तथा लघुकथाओं के भी कुछ संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। हाल ही में उन्हें पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किया गया था। उनके निधन पर सृजनगाथा डॉट कॉम के संपादक जयप्रकाश मानस, कुशाभाऊ ठाकरे राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति सच्चिदानंद जोशी, वरिष्ठ पत्रकार बबन प्रसाद मिश्र, रमेश नैयर, दिवाकर मुक्तिबोध, हिमांशु द्विवेदी, संजय द्विवेदी, गिरीश पंकज,, डा. सुधीर शर्मा ने गहरा शोक प्रगट किया है।

9/28/2007

वैज्ञानिक प्रमाण का मोहताज नहीं है राम का अस्तित्व


तमिलनाडू के मुख्यमंत्री तथा डी एम के प्रमुख एम करुणानिधि ने पिछले दिनों राम के अस्तित्व को चुनौती देकर देश की राजनीति में कोहराम बरपा कर दिया है। अभी इस विषय पर बहस व मंथन चल ही रहा है कि रामसेतु को खंडित कर सेतु समुद्रम परियोजना पूरी की जानी चाहिए अथवा नहीं, इस परियोजना को लागू किए जाने का ज़िम्मेदार कौन है और कौन नहीं तथा इस परियोजना के लागू करने में किसी ऐसे नए मार्ग का चुनाव किया जा सकता है जोकि रामसेतु को खंडित किए बिना सेतु समुद्रम परियोजना को पूरा करने में सहायक सिद्ध हो सके। कि इसी बीच आम भारतीयों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला राम के अस्तित्व संबंधी बयान देकर बुजुर्ग द्रविड़ नेता करुणानिधि ने गोया ठहरे हुए पानी में पत्थर मारने जैसा काम कर दिखाया है। यदि करुणानिधि अपने सबसे पहले दिए गए इस बयान पर भी ख़ामोश रह जाते कि रामसेतु के मानव निर्मित होने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यदि वे अपने इस बयान को वापस ले लेते अथवा इससे आगे बढ़ते हुए जलती हुई आग में घी डालने जैसा काम न करते तो भी काफ़ी हद तक मामला सुलझ सकता था। परन्तु करुणानिधि ने न केवल उक्त बयान दिया बल्कि इसके बाद उन्होंने भगवान राम के अस्तित्व में आने को भी यह कहकर चुनौती दे डाली कि भगवान राम के होने के कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं। करुणानिधि के इस बयान ने भारतीय रामभक्तों की भावनाओं को तो ठेस पहुँचाई ही है, साथ-साथ उन्होंने भगवान राम को रजनीति का मोहरा बनाने वालों को भी इसी बहाने अपना नाम चमकाने का अवसर प्रदान कर दिया है।

जिस प्रकार मुस्लिम समुदाय की ओर से कई बार ऐसे फ़तवे सुनाई देते थे कि ईश निंदा किए जाने के कारण अथवा हज़रत मोहम्मद का अपमान किए जाने के कारण जो भी अमुक व्यक्ति का सिर क़लम करेगा, उसे भारी भरकम पुरस्कार से नवाज़ा जाएगा। ठीक उसी प्रकार पहली बार हिन्दू समाज की ओर से एक राजनैतिक संत द्वारा करुणानिधि का सिर कलम करने वाले व्यक्ति को सोने से तोले जाने का फ़तवा जारी किया गया है। इसमें कोई शक नहीं कि करुणानिधि ने भगवान राम के अस्तित्व को चुनौती देकर अति निंदनीय कार्य किया है। उनके इस वक्तव्य के चलते कई प्रमुख लोगों द्वारा उन्हें दक्षिण भारत में रहने वाला रावण का वंशज तक कहकर सम्बोधित किया जा रहा है। यह सब कुछ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किया जा रहा है। जैसा कि वामपंथी नेता प्रकाश करात का मानना है कि 'इस देश में कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी धार्मिक आस्थाएं हैं। वहीं कुछ लोग हमारी तरह भी हैं, अर्थात् जो धर्म के प्रति आस्थावान नहीं है। ऐसे लोगों को अपनी राय प्रकट करने पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।' निश्चित रूप से करात का यह कथन भी बिल्कुल सही प्रतीत होता है। परन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विषय को यदि हम इस कथन के साथ तोलें तो मामला साफ़ हो जाता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संबंधी एक उदाहरण के अनुसार किसी भी व्यक्ति को हवा में अपनी छड़ी घुमाने की इजांजत तो ज़रूर है परन्तु उसी सीमा के भीतर जहां से कि उसकी अपनी हद समाप्त होती है तथा दूसरे की हद शुरु होती है। इस कथन से यह बात साफ़ हो जाती है कि किसी व्यक्ति को अपने विचार रखने का अधिकार तो है परन्तु किसी के दिल दुखाने का या किसी की आस्था या विश्वास को ठेस पहुँचाने का अधिकार हरगिज़ नहीं है।

भगवान राम के अस्तित्व की बात लाखों वर्ष पुरानी है। हंजारों वर्षों से शास्त्रों तथा धार्मिक ग्रन्थों के माध्यम से राम कथा के बारे में न केवल भारतवर्ष बल्कि पूरे विश्व में चर्चा होती रही है। दीपावली, दशहरा व राम नवमी जैसे भारत में मनाए जाने वाले कई त्यौहार भगवान राम के अस्तित्व से जुड़े हैं तथा हजारों वर्षों से भारत में मनाए जा रहे हैं। वैसे तो हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवताओं का ज़िक्र किया गया है परन्तु इन सभी में भगवान राम को ही मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से सम्बोधित किया जाता है। यदि राम का अस्तित्व नहीं था तो सहस्त्राब्दियों से भगवान राम संबंधी उल्लेख शास्त्रों में क्योंकर दर्ज हैं? हिन्दू समाज आख़िर क्योंकर दीपावली व दशहरा जैसे त्यौहार मनाकर राम की पूजा व आराधना करता चला आ रहा है।

रहा प्रश्न वैज्ञानिक प्रमाण होने या न होने का तो करुणानिधि जी तो लाखों वर्ष प्राचीन उस घटना के प्रमाण पूछ रहे हैं जोकि सीधे तौर पर भारतवासियों विशेषकर हिन्दू समाज की भावनाओं तथा विश्वास से जुड़ चुकी है। देश की सबसे बड़ी तीर्थनगरी अयोध्या आज भी राम के नाम से ही जोड़कर देखी जाती है। यदि यह प्रमाण भी करुणानिधि को अपर्याप्त महसूस होते हों तो भी उन्हें विचलित होने की अधिक आवश्यकता इसलिए नहीं होनी चाहिए कि आज के वैज्ञानिक एवं आधुनिक दौर में तमाम ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं जिनके कि कोई प्रमाण नहीं होते। इसका अर्थ यह तो क़तई नहीं हुआ कि अमुक घटना घटी ही नहीं। उदाहरण के तौर पर आज भी अनेक लोगों की हत्याएँ होती हैं। मामले पुलिस और अदालत तक जाते हैं। मुंकद्दमा भी चलता है तथा सभी आरोपी बरी भी हो जाते हैं। अर्थात् आज की अति आधुनिक समझी जाने वाली प्रशासनिक व न्यायिक व्यवस्था इस बात को प्रमाणित करने में असहाय नज़र आती है कि अमुक व्यक्ति की हत्या किसने की। तो क्या इससे यह निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए कि जब कोई हत्यारा प्रमाणित ही नहीं हो सका तो गोया अमुक व्यक्ति की हत्या ही नहीं हुई। तात्पर्य यह है कि आधुनिकता का दम भरने वाले इस दौर में आज भी जब हम ऐसी तमाम बातों को प्रमाणित नहीं कर सकते तो ऐसे में लाखों वर्ष पुरानी घटना के विषय में प्रमाण की तलाश करना वैज्ञानिक सोच तो नहीं हास्यास्पद एवं नकारात्मक सोच का लक्षण अवश्य कहा जा सकता है।

करुणानिधि के बयान को सीधे-सीधे केवल राम के अस्तित्व के प्रश्न तक ही सीमित रखकर नहीं सोचना चाहिए। उनके इस बयान के पीछे दक्षिण भारत व उत्तर भारत के बीच की वह पारंपरिक नकारात्मक सोच भी परिलक्षित होती है जो अन्य कई स्वरों के रूप में भी विभिन्न दक्षिण भारतीय नेताओं के मुँह से कभी-कभार सुनाई देती है। परन्तु हमें उन विवादों में जाने से कोई लाभ नहीं। मोटे तौर पर हमें यही समझना होगा कि हमारी मातृभाषा व राष्ट्रभाषा का सबसे अधिक विरोध सदैव इन्हीं द्रविड़ व तमिल भाषी क्षेत्रों में किया जाता रहा है। ऐसा भी सुना जाता है कि दक्षिण भारत के इन्हीं राज्यों में कहीं-कहीं रावण की भी पूजा की जाती है। इस क्षेत्र के कुछ इतिहासकार यह भी लिखते हैं कि भगवान राम द्वारा स्रूपनखा की नाक काटने की घटना उत्तर भारत के उच्च जाति के एक राजा द्वारा दक्षिण की एक महिला का किया गया अपमान मात्र था।

बहरहाल इस विशाल धर्म निरपेक्ष भारत में जबकि हम सभी धर्मों व सम्प्रदायों के लोगों को साथ लेकर चलने का दम भरते हैं तथा दुनिया को यह बताते हुए हम नहीं थकते कि अनेकता में एकता की जो मिसाल हमारे देश में देखी जा सकती है वह और कहीं नहीं मिलती। ऐसे में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अस्तित्व को लेकर हिन्दू धर्म के भीतर छिड़ा आपसी घमासान ही धर्म निरपेक्षता के सभी दावों को मुंह चिढ़ाता है। अत: बेशक करुणानिधि या किसी भी धर्म एवं सम्प्रदाय का कोई अन्य व्यक्ति किसी समुदाय के ईष्ट के प्रति अपनी आस्था रखे या न रखे नि:सन्देह यह उसका अत्यन्त निजी मामला है व उसका अपना अधिकार भी, परन्तु किसी समुदाय के ईष्ट के अस्तित्व को ही चुनौती दे डालने का अधिकार किसी को भी नहीं होना चाहिए। बेहतर होगा कि करुणानिधि भारतीय समाज से अपने विवादित वक्तव्य के लिए क्षमा मांग कर इस मामले पर यहीं विराम लगा दें।

निर्मल रानी

9/26/2007

सत्ता बड़ी या राम

भारात में धार्मिक भावनाओं को भड़का कर राजनीति करने में महारत रखने वाले लोग एक बार फिर अपने असली चेहरे के साथ सक्रिय हो उठे हैं। मज़े की बात तो यह है कि इस बार वे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आरोप तो भारत की सत्तारूढ़ केन्द्र सरकार पर लगा रहे हैं जबकि अपने इसी आरोप के तहत जनता की धार्मिक भावनाओं को भड़काने के ठेकेदार वे स्वयं बन बैठे हैं। भारतीय राजनीति के इतिहास में दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में साझीदार रह चुकी है। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि 542 सदस्यों की लोकसभा में 183 सीटें प्राप्त करने का उसका अब तक का सबसे बड़ा कीर्तिमान केवल रामनाम की राजनीति करने की बदौलत ही संभव हो सका है। ज्ञातव्य है कि रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने पूरे देश में यह प्रचार किया था कि सत्ता में आने पर वह रामजन्म भूमि मन्दिर का निर्माण कराएंगे। देश के सीधे-सादे रामभक्तों ने इन्हें इसी आस में देश के सबसे बड़े राजनैतिक दल का दर्जा भी दिला दिया।

अफ़सोस की बात है कि भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्रीय सत्ता संभालने के बाद अपना भगवा रंग ही बदल डाला और कांग्रेस की राह पर चलते हुए तथाकथित धर्म निरपेक्षता की राजनीति करने लगी। उस समय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के अन्य सहयोगी दलों ने सरकार बनाने में भारतीय जनता पार्टी का साथ इसी शर्त पर दिया कि वह रामजन्म भूमि, समान आचार संहिता और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने जैसे अपने प्रथम व अग्रणी मुद्दों को त्याग देगी। भाजपा के 'रामभक्तों' ने ऐसा ही किया। उस समय इनके समक्ष दो विकल्प थे। या तो यह राम को चुनते या सत्ता को। इन धर्म के ठेकेदारों ने उस समय सत्ता का स्वाद लेना अधिक ंजरूरी समझा। क्या इन तथाकथित रामभक्तों को उस समय सत्ता को ठोकर मारकर अन्य राजग सहयोगी दलों के समक्ष यह बात पूरी ंजोर-शोर से नहीं रखनी चाहिए थी कि हम रामभक्तों के लिए पहले हमारे वे एजेन्डे हैं जिनके नाम पर हमें सबसे बड़े राजनैतिक दल की हैसियत हासिल हुई है न कि सत्ता। यदि भाजपा उस समय राम मन्दिर के मुद्दे पर सत्ता को ठुकरा देती तो काफ़ी हद तक यह बात स्वीकार की जा सकती थी कि उनमें राम के प्रति लगाव का वास्तविक जज़्बा है परन्तु मन्दिर निर्माण के बजाए सत्ता से चिपकने में दिलचस्पी दिखाकर इन्होंने यह साबित कर दिया कि इनकी नंजर में सत्ता बड़ी है राम नहीं।
एक बार फिर राम के नाम पर यही लोग वोट माँगने की तैयारी कर रहे हैं। इस बार मुद्दा रामजन्म भूमि को नहीं बल्कि रामसेतु को बनाया जा रहा है। भारत-श्रीलंका के बीच बहने वाले समुद्री जल के मध्य ढाई हंजार करोड़ रुपए की लागत से सेतु समुद्रम शिपिंग चैनल परियोजना का निर्माण कार्य किया जाना प्रस्तावित है। 1860 में भारत में कार्यरत ब्रिटिश कमांडर एडी टेलर द्वारा सर्वप्रथम प्रस्तावित की गई इस परियोजना को 135 वर्षों बाद रचनात्मक रूप देने का प्रयास किया जा रहा है। 12 मीटर गहरे और 300 मीटर चौड़े इस समुद्री मार्ग का निर्माण स्वेंज नहर प्राधिकरण द्वारा किया जाना है। यही प्राधिकरण इसे संचालित भी करेगा तथा इसका रख-रखाव भी करेगा।

भारतीय जनता पार्टी इस परियोजना का विरोध कर रही है। भाजपा का यह विरोध इस बात को लेकर है कि चूंकि सेतु समुद्रम परियोजना में उस सेतु को तोड़ा जाना है जिसे कि रामसेतु के नाम से जाना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार समुद्र के मध्य पुल के रूप में नंजर आने वाली यह आकृति उसी पुल के अवशेष हैं जिसका निर्माण हनुमान जी की वानर सेना द्वारा भगवान राम की मौजूदगी में श्रीलंका पर विजय पाने हेतु किया गया था। नि:सन्देह ऐसी किसी भी विषय वस्तु पर जहां कि किसी भी धर्म विशेष की भावनाओं के आहत होने की संभावना हो, किसी ंकदम को उठाने से पूर्व उस विषय पर गंभीर चिंतन किया जाना चाहिए। ऐसी पूरी कोशिश होनी चाहिए कि किसी भी धर्म विशेष की धार्मिक भावनाएं आहत न होने पाएं। परन्तु भारतीय जनता पार्टी जैसे राजनैतिक दल पर तो क़तई यह बात शोभा नहीं देती कि वह रामसेतु मुद्दे पर आम हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं की संरक्षक, हिमायती अथवा पैरोकार स्वयंभू रूप से बन बैठे।

आज भाजपा द्वारा रामसेतु मुद्दे पर हिन्दुओं की भावनाओं को भड़काने तथा इस परियोजना का ठीकरा वर्तमान संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार विशेषकर कांग्रेस, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सिर पर फोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। आश्चर्य की बात है कि वह भारतीय जनता पार्टी ऐसे आरोप लगा रही है जिसके अपने शासनकाल में केन्द्र सरकार के 4 मंत्रियों अरुण जेटली, शत्रुघ्न सिन्हा, वेद प्रकाश गोयल व एस त्रिवुनवक्कारासू द्वारा सन् 2002 में सेतु समुद्रम परियोजना को प्रारम्भिक दौर में ही पहली मंजूरी दी गई थी। उसके पश्चात जब परियोजना से सम्बद्ध सभी मंत्रालयों से हरी झंडी मिल गई तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 2 जुलाई 2005 को इस परियोजना की शुरुआत की गई। यहां भाजपा के विरोध को लेकर एक सवाल और यह उठता है कि उसका यह विरोध 2005 से ही अर्थात् परियोजना पर काम शुरु होने के साथ ही क्यों नहीं शुरु हुआ? आज ही इस विरोध की ज़रूरत क्यों महसूस की जा रही है और वह भी इतने बड़े पैमाने पर कि गत् दिनों भोपाल में आयोजित भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी को यह घोषणा तक करनी पड़ी कि राम के नाम पर भावनाओं से खिलवाड़ भरतीय जनता पार्टी का चुनावी मुद्दा होगा। क्या दो वर्षों की ख़ामोशी इस बात का सुबूत नहीं है कि भाजपा चुनावों के नज़दीक आने की प्रतीक्षा कर रही थी? इसलिए उसे पिछले दो वर्षों तक इस मुद्दे को हवा देकर अपनी उर्जा नष्ट करने की ज़रूरत नहीं महसूस हुई। भाजपा द्वारा सेतु समुद्रम परियोजना का अब विरोध किए जाने से सांफ जाहिर हो रहा है कि विपक्षी पार्टी के नाते भाजपा इस समय इस परियोजना के काम में न केवल बाधा उत्पन्न करना चाहती है बल्कि इसे अपनी चुनावी रणनीति का एक हिस्सा भी बनाना चाहती है।

आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी को उर्जा प्रदान करने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद तथा दक्षिणपंथी विचारधारा के इनके अन्य कई सहयोगी संगठन इस मुद्दे पर राजनीति करने का प्रयास करेंगे। परियोजना को प्राथमिक मंजूरी देने वाली भाजपा इस परियोजना के नाम पर स्वयं को तो रामभक्त तथा रामसेतु का रखवाला प्रमाणित करने का प्रयास कर रही है जबकि परम्परानुसार सत्तारूढ़ दल विशेषकर कांग्रेस व वामपंथी दलों को भगवान राम का विरोधी बताने की कोशिश में लगी है।
उपरोक्त परिस्थितियाँ यह समझ पाने के लिए काफ़ी हैं कि भाजपा कितनी बड़ी रामभक्त है और कितनी सत्ताभक्त। राम के नाम पर वोट मांगने की क़वायद भाजपा के लिए कोई नई बात नहीं है। हां इतना ज़रूर है कि राम के नाम पर वोट माँगने के बाद राम मन्दिर निर्माण के बजाए सत्ता के पाँच वर्ष पूरे कर चुकी भारतीय जनता पार्टी ने भारतीय मतदाताओं के समक्ष अपनी साख को अवश्य समाप्त कर दिया है। लिहाज़ा सेतु समुद्रम परियोजना को लेकर भाजपा भारतीय मतदाताओं की भावनाओं को पुन: भड़का पाने में कितनी सफलता प्राप्त कर सकेगी और कितनी असफलता यह तो आने वाला समय ही बता सकेगा।
- तनवीर जाफ़री