1/31/2010

शब्दों की सत्ता का क्षरण रोकें - पंत



माखनलाल जी पुण्यतिथि पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय में व्याख्यान


भोपाल, 30 जनवरी। शब्द की सत्ता से उठता भरोसा सबसे बड़ा खतरा है। इसे बचाने की जरूरत है। ये विचार माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में पं. माखनलाल चतुर्वेदी की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित स्मृति व्याख्यान में अध्यक्षीय भाषण देते हुए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के मंत्री-संचालक कैलाशचंद्र पंत ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि माखनलाल जी एक साथ प्रखर वक्ता, कवि, पत्रकार और सेनानी रूपों में नजर आते हैं। उनका हर रूप आज भी प्रेरित करता है। वे सही मायनों में भारतीयता का जीवंत प्रतीक हैं और मानवीय दृष्टि से पूरी मानवता को संदेश देते हैं।
कार्यक्रम के मुख्यवक्ता कवि-कथाकार ध्रुव शुक्ल ने कहा कि हमारा समय अभिव्यक्ति की मुश्किलों का समय है। आज के समय में किस बात से कौन मर्माहत हो जाए कहा नहीं जा सकता। देश में अजीब से हालात हैं। उन्होंने कहा कि वे बौद्धिक नहीं अंर्तमन की भाषा लिखते थे। वे सही मायनों में एक भारतीय आत्मा थे। उनकी हिंदी चेतना और भारतीय मन आज के समय की चुनौतियों का सामना करने में समर्थ है।


मुख्यअतिथि वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि माखनलाल जी मूल्यों की परंपरा स्थापित की और उसपर चलकर दिखाया। हिंदी के लिए उनका संघर्ष हमें प्रेरित करता है। वे समय के पार देखने वाले चिंतक और विचारक थे। भारतीय पत्रकारिता के सामने जो चुनौतियों हैं उसका भान उन्हें बहुत पहले हो गया था। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो। बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि आज का दिन संत रविदास, महात्मा गांधी और माखनलाल जी से जुड़ा है तीनों बहुत बड़े संचारक के रूप में सामने आते हैं। अपनी संचार प्रक्रिया से इन तीनों महापुरूषों ने समाज में चेतना पैदा की। मानवता की सेवा के लिए तीनों ने अपनी जिंदगी लगाई। उन्होंने कहा कि मीडिया को जनधर्मी बने बिना सार्थकता नहीं मिल सकती। पश्चिम का मीडिया आतंकी हमलों के बाद अपने को सुधारता दिखा है हमें भी उसे उदाहरण की तरह लेते हुए बदलाव लाने की जरूरत है।

कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी और आभार प्रर्दशन कुलसचिव प्रकाश साकल्ले ने किया। इस अवसर पर सर्वश्री विजयदत्त श्रीधर, रेक्टर जेआर झणाणे, डा।श्रीकांत सिंह, चैतन्य पुरूषोत्तम अग्रवाल, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव, पत्रकार मधुकर द्विवेदी, रामभुवन सिंह कुशवाह, सरमन नगेले, युगेश शर्मा, सुरेश शर्मा, अनिल सौमित्र सहित अनेक साहित्यकार, पत्रकार एवं विद्यार्थी मौजूद थे।


( संजय द्विवेदी)

1/29/2010

पांडुलिपि हेतु गंभीर रचनाकारों से रचना आमंत्रण


पद्मश्री देकर महाकवि को अपमानित करने की भर्त्सना




देश के प्रख्यात कवि एवं मूर्धन्य साहित्यकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री को ‘पद्मश्री’ अंलकरण देने के लिए भारत सरकार की तीव्र भर्त्सना की है और कहा है कि जिस सरकार को साहित्य के क्षेत्र में एक महाकवि और एक चुटकुलेबाज़ के बीच कोई अंतर नहीं दिखाई देता हो, उस सरकार के हाथों यह अंलकरण लेना किसी भी साहित्यकार के लिए अशोभनीय और निंदनीय है । (ज्ञातव्य हो कि छत्तीसगढ़ के एक मंचीय कवि डॉ. सुरेन्द्र दुबे को पद्मश्री अंलकरण मिला है । )


डॉ। मिश्र ने देश के सभी वरेण्य साहित्यकारों से अपील की है कि वे अपने नाम के आगे ‘पद्मश्री रहित’ लिखें, जो उनके चरित्र की शुचिता का प्रमाण होगा । उन्होंने कहा कि पद्म अलंकरण ऐसे अयोग्य व्यक्तियों को दिये जाते हैं जो इनका दुरुपयोग उपाधि के रूप में करते हैं । वे दिन लद गए जब शासन की बागडोर नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे संस्कारवान राजनेताओं के हाथ में था, और दिनकर और बच्चन जैसे अग्रणी साहित्यकारों को अंलकरण दिये जाते थे । अब पद्मश्री अंलकरण पाना किसी साहित्यकार के चापलूस, जुगाड़ी और घटिया होने का सबूत है । इसलिए जो भी साहित्यकार समाज के समक्ष अपने आदर्श चरित्र का उदाहरण रखना चाहते हैं, वे इसे स्वीकार न करें ।


आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के वरिष्ठ सदस्य डॉ। मिश्र ने दावा किया है कि उनके आव्हान पर बनारस, प्रयाग, रावर्टगंज, लखनऊ, पटना, रायपुर, कोलकाता, मुजफ्फरपुर, दिल्ली, भोपाल, मुरादाबाद, मुंबई, देहरादून, काशीपुर चैन्ने आदि शहरों के साहित्यिकारों ने अपने नाम के सात ‘पद्म्श्री रहित’ लिखने का संकल्प किया है । डॉ. मिश्र ने कहा कि देश के साहित्यकारों का यह अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक भारत सरकार की ओर से अधम साहित्यकारों को पद्म अलंकरण देने पर खेद न व्यक्त किया जाये ।



बुद्धिनाथ मिश्र
देवधा हाऊस, गली – 5, बसंत विहार एन्क्लेव
देहरादून, उत्तराखंड – 248006
मोबाईल – 09412992244
ई-मेल - buddhinathji@yahoo.co.in

1/22/2010

डॉ.अभिज्ञात को अम्बडेकर उत्कृष्ट पत्रकारिता सम्मान

कोलकाताः रविवार की देर रात तक आयोजित एक भव्य समारोह में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए अम्बेडकर सम्मान प्रदान किये गये। डॉ.अभिज्ञात को उत्कृष्ट पत्रकारिता सम्मान आरके एचआईवी एड्स रिसर्च एंड केयर सेंटर के चेयरमैन डॉ.धर्मेन्द्र कुमार ने प्रदान किया। दो दशकों से पत्रकारिता कर रहे डॉ.अभिज्ञात सम्प्रति सन्मार्ग में वरिष्ठ उप-सम्पादक हैं। वे साहित्य में भी सक्रिय हैं और छह कविता संग्रह तथा दो उपन्यास प्रकाशित हुए हैं। साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें पांच पुरस्कार-सम्मान मिले हैं। यह समारोह उपनगर टीटागढ़ में आयोजित था।

महिलाओं के विकास में योगदान के लिए डॉ.सुरंजना चौधरी, ग्लोबल पर्सनालिटी आफ द ईयर रमेश प्रसाद हेला, औद्योगिक उपलब्धि सम्मान लोकनाथ गुप्ता, अम्बेडकर गुरुद्रोण सम्मान नृत्यानंद जी महाराज, सामाजिक जागरुकता सम्मान डॉ.संतोष गिरि, मैन आफ द ईयर सम्मान आत्माराम अग्रवाल, उभरता मीडिया उद्योग सम्मान विजन खबरा खबर (चैनल विजन) और यूथ आइको आफ द ईयर अवार्ड शिव प्रसाद गोसार्इं को प्रदान किया गया।

कार्यक्रम डॉ.भीमराव अम्बेडकर शिक्षा निकेतन और आरके एचआईवी एड्स रिसर्च एंड केयर सेंटर की ओर से आयोजित था। इस अवसर पर टीटागढ़ डॉ.भीमराव अम्बेडकर शिक्षा निकेतन संस्था का उद्घाटन, डॉ.अम्बेडकर और संस्था के संस्थापक स्व.मक्खनलाल की मूर्ति का अनावरण उद्योगपति आत्माराम अग्रवाल ने किया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुत्फ उपस्थित श्रोताओं ने उठाया। आराधना सिंह ने भोजपुरी गीत पेश किये।

डॉ. गोकुल मुखर्जी इस्पात राजभाषा सम्मान से सम्मानित


भिलाई इस्पात संयंत्र की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 4 जनवरी 2010 को सम्पन्न 95वीं बैठक में प्रबंध निदेशक श्री रा. रामराजु ने हिंदी तकनीकी पुस्तक समग्र इस्पात परिचय के यशस्वी लेखक व सेल के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. गोकुलानन्द मुखर्जी को इस्पात राजभाषा सम्मान से अलंकृत किया। उल्लेखनीय है कि डॉ. मुखर्जी ने उक्त पुस्तक बाँग्ला में लिखी है जिसका कि हिंदी अनुवाद मानव संसाधन विकास विभाग के सौजन्य से बीएसपी मुद्रण सेवायें विभाग द्वारा मुद्रित किया गया।

अपने सारगर्भित उद्बोधन में श्री रा. रामराजु ने कहा कि भारतीय भाषाओं में तकनीकी लेखन और उनका आपस में अनुवाद लेखन एक अग्रगामी कदम और सोच है। आने वाले समय में इसका महत्व समझा जायेगा। इसके लिये वयोवृद्ध इस्पात विशेषज्ञ डॉ. मुखर्जी की जितनी प्रशंसा की जाये कम है।

इस अवसर पर सम्मान के लिये हार्दिक आभार व्यक्त करते हुये डॉ. मुखर्जी ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद समाज की सेवा करनी चाहिये। इस्पात का समाज ही मेरा समाज है और मैंने यह महसूस किया कि इस्पातकर्मियों को उनकी अपनी मातृभाषा में इस्पात-तकनीक की जानकारी देने से उत्पादन और उत्पादकता में गुणात्मक वृद्धि हो सकती है। इसीलिये मैंने बाँग्ला में यह किताब लिखी और जहाँ-जहाँ इस्पात संयंत्र स्थित हैं वहाँ की भाषाओं में इन्हें अनुदित और प्रकाशित करने के प्रयास किये।

प्रारम्भिक वक्तव्य में श्री अशोक सिंघई ने कहा कि हिंदी को आर्थिक आधार देते हुये प्रयोजनमूलक बनाने में ज्ञान के सभी स्वरूपों को इसमें अवतरित करना होगा। इससे ही देश की विराट सामूहिक प्रतिभा बेहतर ढंग से उन्नत राष्ट्र का निर्माण कर सकेगी।
(अशोक सिंघई की रपट)

अशोक सिंघई महाप्राण निराला सम्मान से विभूषित


लिट्ररी क्लब भिलाई इस्पात संयंत्र के अध्यक्ष व राजभाषा प्रमुख श्री अशोक सिंघई को भुवनेश्वर (उड़ीसा) में सम्पन्न अखिल भारतीय राजभाषा संगोष्ठी में मुख्य अतिथि डॉ. प्रसन्न पाटसाणि सांसद् भुवनेश्वर एवं माननीय सदस्य संसदीय राजभाषा समिति ने भारतीय भाषाओं में लिखी गई हिंदी की आधुनिक कविता में सर्वाधिक प्रदीर्घ कविता अलविदा बीसवीं सदी के लिये महाप्राण निराला साहित्य शिरोमणि सम्मान से विभूषित किया।


मुम्बई स्थित संस्थान राजभाषा किरण के तत्वावधान में भुवनेश्वर में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में 8 जनवरी 2010 को राष्ट्रीय हिंदी अकादमी के निदेशक डॉ. शंकर लाल पुरोहित की अध्यक्षता में श्री अशोक सिंघई को शाॅल प्रशस्तिपत्र व स्मृतिचिन्ह से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उत्कल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 बिनायक रथ तथा भुवनेश्वर दूरदर्शन केन्द्र के निदेशक श्री विमल चन्द्र गुप्ता के विशिष्ट आतिथि के रूप में मंचस्थ थे। उल्लेखनीय है कि श्री अशोक सिंघई इसके पूर्व कोडंग्गल्लूर (केरल) जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) रायपुर (छत्तीसगढ़) एवं जोधपुर (राजस्थान) में राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं।


अशोक सिंघई ने अपनी प्रदीर्घ कविता अलविदा बीसवीं सदी से कविता के संसार में दस्तक दी थी। 12 फरवरी 2000 को नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला में कवि केदार नाथ सिंह ने श्री पुरुषोत्तम अग्रवाल की अध्यक्षता में इस पुस्तक का विमोचन किया था। महत्वपूर्ण यह है कि उस वक्त स्व. कमलेश्वर डॉ. नामवर सिंह अशोक वाजपेयी कामता नाथ कात्यायनी आदि जैसे वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित थे और श्री लीलाधर मंडलोई ने कार्यक्रम का संचालन किया था। 2009 में मेधा बुक्स नई दिल्ली ने इसका दूसरा संस्करण जारी किया है। श्री सिंघई के दूसरे काव्य संग्रह धीरे धीरे बहती है नदी के भी दो संस्करण आ चुके हैं। सम्भाल कर रखना अपनी आकाशगंगा दीर्घ और वैचारिक कविताओं का संग्रह है। श्री सिंघई के चौथे काव्य संग्रह सुन रही हो ना! में 81 प्रेम-कवितायें संग्रहित हैं। उनका पाँचवा संग्रह समुद्र चाँद और मैं दिल्ली से 30 जनवरी 2010 में विश्व पुस्तक मेला में इस वर्ष लोकार्पित होगा। हर अगली पुस्तक में वे अपनी ही कविताओं से बहुत अलग खड़े दिखते हैं।

भिलाई इस्पात संयंत्र कम्प्यूटर पर हिंदी प्रयोग में अग्रणी


मुम्बई स्थित संस्थान राजभाषा किरण के तत्वावधान में भुवनेश्वर में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में 8 जनवरी 2010 को मुख्य अतिथि डॉ. प्रसन्न पाटसाणि सांसद् भुवनेश्वर एवं माननीय सदस्य संसदीय राजभाषा समिति ने अखिल भारतीय स्तर कम्प्यूटर व आॅन-लाइन पर सर्वाधिक हिंदी प्रयोग के लिये भिलाई इस्पात संयंत्र को सर्वोत्कृष्ट निरूपित करते हुये सम्मानित किया। भिलाई इस्पात बिरादरी की ओर से संयंत्र के राजभाषा प्रमुख श्री अशोक सिंघई ने यह सम्मान ग्रहण किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय हिंदी अकादमी के निदेशक डॉ. शंकर लाल पुरोहित उत्कल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 बिनायक रथ तथा भुवनेश्वर दूरदर्शन केन्द्र के निदेशक श्री विमल चन्द्र गुप्ता मंचस्थ थे।


भिलाई को देश का नवरत्न निरूपित करते हुये सांसद् डॉ. पाटसाणि ने कहा कि भिलाई देश का ऐसा आधुनिक तीर्थ है जहाँ समस्त भारतीय भाषाओं का संगम विद्यमान है। ऐसे जटिल तकनीकी से युक्त संयंत्र में आधुनिक कार्यप्रणालियों में हिंदी के प्रयोग की सोच एक अग्रगामी और अनुकरणीय पहल है। हिंदी कार्य में लगातार विकास भिलाई जनशक्ति के राष्ट्रप्रेम तथा कर्तव्य परायणता का द्योतक है और यह संयंत्र के नेतृत्वकर्ता के सकारात्मक सोच का सुफल है।


संयंत्र को कम्प्यूटर व हिंदी के सम्मिलन के सराहनीय कार्य के लिए प्राप्त शील्ड को श्री पवन कुमार अग्रवाल कार्यपालक निदेशक (कार्मिक व प्रशासन) ने राजभाषा विभाग के कर्मियों की उपस्थिति में श्री रा. रामराजु प्रबंध निदेशक महोदय को सौंपा। श्री रामराजु ने राजभाषा के क्षेत्र में किये जा रहे कार्य की सराहना करते हुए विभागीय टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि भिलाई इस्पात बिरादरी आने वाले कल में विज्ञान और तकनीकी में भी हिंदी की उपयोगिता सिद्ध करने में अपनी पहल की संस्कृति क़ायम रखेगी।
(अशोक सिंघई की रपट)

अशोक सिंघई भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सम्मान से विभूषित



लिट्ररी क्लब भिलाई इस्पात संयंत्र के अध्यक्ष व राजभाषा प्रमुख श्री अशोक सिंघई को जोधपुर में सम्पन्न अखिल भारतीय राजभाषा संगोष्ठी में मुख्य अतिथि राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बनवारी लाल गौड़ ने भारतीय भाषाओं में लिखी गई हिंदी की आधुनिक कविता में सर्वाधिक प्रदीर्घ कविता अलविदा बीसवीं सदी के लिये भारतेन्दु हरिश्चन्द्र साहित्य शिरोमणि सम्मान से विभूषित किया। प्रो0 गौड़ ने कहा कि अपनी कविताई में अशोक सिंघई स्वच्छंद हैं। नई कविता के फ्रेम में वे नहीं बँधते और न ही गीत-अगीत के चक्करों से उनका कोई नाता है। उनका हर संग्रह सर्वथा भिन्न है।


भारतीय राजभाषा विकास संस्थान देहरादून के तत्वावधन में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में 9 अक्टूबर 2009 प्रख्यात शिक्षाशास्त्री प्रो0 लक्ष्मण सिंह राठौर पूर्व कुलपति जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर की अध्यक्षता में श्री सिंघई को शॉल प्रशस्तिपत्र व स्मृतिचिन्ह से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर प्रो. प्रवीण कुमार मीणा हिंदी विभागाध्यक्ष जोधपुर विश्वविद्यालय भारतीय रेलवे के निदेशक श्री अनुराग कपिल एवं एस.ई.सी.एल. के निदेशक (कार्मिक) श्री आर.एस. सिंह मंचस्थ थे।

हिंदी आशुलिपि एक धरोहर है - राजकुमार नरूला


राजभाषा विभाग भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संयंत्र कार्मिकों के लिए प्रथम बार हिंदी आशुलिपि प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ दिनांक 4-11-2009 को मानव संसाधन विकास केन्द्र के कक्ष 125 में श्री राजकुमार नरूला महाप्रबंधक (कार्मिक) के मुख्य आतिथ्य एवं श्री दिलीप नंनौरे उप महाप्रबंधक (संपर्क व प्रशासन) की अध्यक्षता तथा श्री अशोक सिंघई सहायक महाप्रबंधक (राजभाषा) की विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण पश्चात् मंगलदीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। उल्लेखनीय है कि इस सत्र में संयंत्र के 17 कार्मिक हिंदी आशुलिपि प्रशिक्षण हेतु पंजीकृत हैं।
मुख्य अतिथि श्री आर.के. नरूला ने अपने सारगर्भित सम्बोधन में कहा कि हिंदी आशुलिपि एक महान कला है जिसको सीखने के लिए आप लोगों को चयनित किया गया है यह गर्व की बात है। राजभाषा आज देश की भाषा बन चुकी है जिसके माध्यम से कार्यालयीन कार्य सम्पादित किये जाते हैं। सर्वप्रथम अपने स्वागत सम्बोधन में श्री अशोक सिंघई सहायक महाप्रबंधक (राजभाषा) ने कहा कि प्रबंध निदेशक महोदय की अध्यक्षता में कार्यरत राजभाषा कार्यान्वयन समिति में लिए गए निर्णयों के तहत हिंदी आशुलिपि का प्रथम बार भारत सरकार गृह मंत्रालय राजभाषा विभाग हिंदी शिक्षण योजना द्वारा संचालित प्रशिक्षण के तहत हिंदी टंकण में उत्तीर्ण मिनिस्टिरियल स्टाॅफ के लिए शुरूआत की गई है। भिलाई बिरादरी जो सोचती है वह करके रहती है हम सभी क्षेत्र में अग्रणीय की भूमिका निभाते हैं। उन्होंने आव्हान किया कि हिंदी आशुलिपि एक कला है संकोच को दूर करते हुए उत्साह व गर्व से इस विधा को सीखें निरंतर अभ्यास करें और कार्यालयीन कामकाज में अवश्य ही इसका प्रयोग करें।

डॉ. मैनेजर पाण्डेय इस्पात राजभाषा सम्मान से विभूषित



राजभाषा विभाग भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा 13 नवम्बर 2009 को इस्पात भवन में आयोजित राजभाषा संगोष्ठी में मुख्य अतिथि की आसंदी से सुविख्यात समालोचक व साहित्यकार डॉ. मैनेजर पाण्डेय के विचारोत्तेजक व्याख्यान से समस्त प्रतिभागी मंत्रमुग्ध रह गये। भिलाई इस्पात संयंत्र के कार्यपालक निदेशक (खदान-रावघाट) श्री मानवेन्द्र नाथ राय की अध्यक्षता में सम्पन्न इस संगोष्ठी में श्री सुनील कुमार जैन उप महाप्रबंधक प्रभारी (निगमित सामाजिक उत्तरायित्व) तथा श्री दिलीप नन्नौरे सचिव राजभाषा कार्यान्वयन समिति व उप महाप्रबंधक (सम्पर्क व प्रशासन) विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। संयंत्र के हिंदी समन्वय अधिकारियों के लिये आयोजित इस राजभाषा संगोष्ठी में कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री मानवेन्द्र नाथ राय ने विद्वान वक्ता डॉ. मैनेजर पाण्डेय को इस्पात राजभाषा सम्मान से विभूषित किया।
मुख्य अतिथि डॉ. मैनेजर पाण्डेय ने संयंत्र भ्रमण पर टिप्पणी करते हुये कहा कि यह न भूलने वाला अनुभव है। भारत में कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। तत्कालीन सोवियत संघ से केवल तकनालाॅजी ही भिलाई नहीं आई बिरादाराना भाव के विचार भी आये और भिलाई की एक शानदार अनुकरणीय औद्योगिक संस्कृति अस्तित्व में आई। उन्होंने कहा कि सभ्यता संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र का अनुभव बताता है कि सत्ता के हस्तक्षेप से भाषा का प्रश्न और अधिक उलझ जाता है। सन् 1909 में ही महात्मा गाँधी ने कह दिया था कि हिंदी भारत की भाषा होगी। इसे दूरदर्शिता कहते हैं। आज की राजनीति तो आत्मदर्शी भी नहीं रह गई है। भाषा के विवाद को महाराष्ट्र में हवा दी जा रही है। महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर नामदेव तुकाराम की सदियों की परम्परा में बीसवीं सदी के भक्त कवि माणिक तक ने मराठी के साथ हिंदी में रचनायें की हैं। हिंदी के आपके प्रदेश के ही दो नक्षत्र माधव राव सप्रे और मुक्तिबोध मूलतः मराठी ही थे। मुझे यह देख-सुनकर विशेष प्रसन्नता हुई कि इस इस्पात संयंत्र में विज्ञान और तकनीक की हिंदी भाषा गढ़ी जा रही है। हिंदी प्रेम की भाषा है पर प्रेम की भाषा से ही हमारे समय का कारोबार नहीं सधेगा। हिंदी को अर्थ समाजशस्त्र व्यापार राजनीति ज्ञान और विज्ञान की कायाओं के रूप में नये अवतार लेने होंगे।


प्रारम्भ में अपने स्वागत वक्तव्य में संयंत्र के राजभाषा प्रमुख श्री अशोक सिंघई ने कहा कि समकालीन आलोचना के शिखर पुरुषों में डॉ. मैनेजर पाण्डेय का नाम बहुत ही आदर व सम्मान से लिया जाता है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के भारतीय भाषा केन्द्र के निदेशक पद से सेवानिवृत्त डॉ. मैनेजर पाण्डेय ने साहित्य और इतिहास साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका भक्ति आन्दोलन और सूरदास का काव्य शब्द और कर्म आदि अमूल्य ग्रन्थ हिंदी आलोचना को दिये हैं। सूरदास के काव्य जगत की इन्होंने वैसी ही विलक्षण विवेचना की है जैसी कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर की और गोस्वामी तुलसीदास की आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने की है।
(भिलाई से अशोक सिंघई की रपट)

1/17/2010

भारत को पहचानने की जरूरत- श्रीभगवान सिंह


आधुनिक व दार्शनिक दृष्टि से हिन्द स्वराज अधिक प्रासंगिक- आचार्य नंदकिशोर
हिन्द स्वराज की प्रासंगिकता पर व्याख्यान सम्पन्न


रायपुर, 16जनवरी । ख्यातिनाम गांधीवादी, चिंतक और लेखक जयपुर के नंदकिशोर आचार्य ने कहा है गांधी जी की किताब हिन्द स्वराज्य आधुनिक एवं दार्शनिक दृष्टि से आज अधिक प्रासंगिक है। उन्होंने हिन्द स्वराज्य का विश्लेषण करते हुए कहा कि स्वदेशी, स्थानीय जरूरतों के, लिए स्थानीय संस्थानों से स्थानीय लोगों के लिए विकसित टेक्नालाजी है। यह विचार आचार्य ने महात्मा गांधी द्वारा रचित विश्व प्रसिद्ध कृति हिन्द स्वराज की 100 वीं वर्षगांठ के अवसर पर रायपुर प्रेस क्लब के सभागार में हिन्द स्वराज्य की प्रासंगिकता विषय पर आयोजित व्याख्यान के दौरान व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा किया गया। उक्त अवसर पर प्रख्यात आलोचक श्रीभगवान सिंह की नाट्यकृति बिन पानी बिन सुन का विमोचन भी श्री नंदकिशोर आचार्य के हाथों संपन्न हुआ ।


नंदकिशोर आचार्य ने हिन्द स्वराज्य की प्रासंगिकता पर कहा कि इस पर देश में गंभीर, चिन्तन नहीं हुआ। यह अपने आप में एक सनातन प्रासंगिकता है। प्राणियों में मनुष्य में चेतना का विकास हुआ और बाद में उसमें हस्तक्षेप करने की क्षमता विकसित हुई। वर्तमान मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह उसका उपयोग विकास के लिए करें या विनाश के लिए। उन्होंने तीन महान विचारकों की पुस्तकों का जिक्र करते हुए कहा कि एडम स्मिथ ने उत्पादन पर जोर दिया उससे बाजार की समस्या उत्पन्न हो गई परिणाम स्वरूप यह सिद्धांत समस्या सुलझाने में असमर्थ हो गया। इसी तरह कार्ल माक्र्स ने उत्पादन पर समाज के अधिकार का सिद्धांत दिया जिससे कार्पोरेट सेक्टर के पास स्वामित्व चला गया और नतीजा यह हुआ कि रूस में एकाएक आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। जबकि गांधी जी के हिन्द स्वराज में ऐसी टेक्नालाजी पर बल दिया गया है जो समतामूलक एवं अहिंसात्मक हो। उन्होंने कहा कि प्रकृति और मनुष्य के बीच का संबंध ही आपसी रिश्तों को बढ़ाएगा। उन्होंने कहा कि हिन्द स्वराज्य सनातन सिद्धांतों पर आधारित है और आज के इस वैज्ञानिक युग में यह हम सब पर निर्भर करता है कि विकास अथवा विनाश में से कौन सी स्वतंत्रता चाहते हैं।


इसके पूर्व व्याख्यान कार्यक्रम के आरंभ में भागलपुर से आए चर्चित आलोचक श्रीभगवान ने कहा कि गांधी जी उपनिवेशवाद के विरोधी थे और सर्व समाज एवं सभी देशों के आगे बढऩे की बात करते थे। उन्होंने कहा कि विज्ञान का मतलब ज्ञान का सोच समझकर उपयोग करना है। गांधी जी भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल आचरण, नीतियों और श्रुतियों के अनुसार विकास की बात करते थे। गांधी जी स्वावलंबन और स्वायतता की बात करते थे क्योंकि उससे ही देश में सबको रोजगार मिलने के साथ ही आत्मनिर्भर बढ़ सकती थी। कालान्तर से देश में ही उनके हिन्द स्वराज की कल्पना की उपेक्षा कर दी गई मगर आज उसकी प्रासंगिकता और बढ़ गई है। श्री भगवान ने कहा कि गांधी जी के सिद्धांतों में ग्रामीण स्वावलंबन की भावना छुपी हुई है। पश्चिमी दौड़ के कारण अपव्यय तथा धन का दुरूपयोग बढ़ा है जिस पर किसी का ध्यान नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि गांधी जी के सिद्धांतों को याद नहीं किया गया तो हम सब पर भारी संकट आने वाला है।


व्याख्यान के अध्यक्षीय उद्बोधन में कवि विश्वरंजन ने कहा कि एडम स्मिथ कार्ल मार्क्स एवं समतावादी समाज की संरचना से ज्यादा वैज्ञानिक व्यवहारिक, सोच गांधी जी की थी। गांधी जी नए युग के मनुष्य के लिए सबसे बड़े प्रकाशपुंज की तरह हैं। आज हम उनकी बुनियाद को अपने अंदर कितना गहरे में उतार पाते हैं यह आज की सबसे बड़ी प्रासंगिकता है। उन्होंने कहा कि बस्तर में पहले सामंतवादी माहौल था उसके बाद वन संरक्षण अधिनियम, पर्यावरण अधिनियम के कारण आदिवासियों को काफी दिक्कतें आई। इन्हीं सबके चलते नक्सलवादी जैसी ताकतों को पैर पसारने के लिए अवसर मिल गया। उन्होंने कहा कि नक्सली सिद्धांत हिंसा पर केन्द्रित है और आखिर में वह टूटेगी पर बहुत नुकसान के बाद। उन्होंने कहा कि बस्तर की परिस्थिति अलग है कितने भी तथाकथित गांधीवादी हों वे नक्सली सुरंग के बीच जाकर बताएं। विश्वरंजन ने कहा कि सोच वाला व्यक्ति निडर होता है। गांधी जी बड़े सत्यान्वेषी थे। उनकी सोच समतावादी थी। जो लोक के लिए सुविधाजनक है वह प्रासंगिक है।


कार्यक्रम के अंत में प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान की ओर से संस्थान के अध्यक्ष विश्वरंजन ने नंदकिशोर आचार्य और श्रीभगवान को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। आरंभ में अतिथियों का पुष्पहार से स्वागत किया गया। इस अवसर पर श्रीमती इंदिरा मिश्र, विनोद कुमार शुक्ल, नंदकिशोर तिवारी, राजेन्द्र मिश्र, बसंत तिवारी, संस्कृति आयुक्त राजीव श्रीवास्तव, प्रभाकर चौबे, रवि भोई, अशोक सिंघई, केयूर भूषण, गुलाब सिंह, प्रभाकर चौबे, विनोद शंकर शुक्ल, सुभाष मिश्र, जयप्रकाश मानस डी.एस.अहलुवालिया, डॉ. प्रेम दुबे, डॉ. वंदना केंगरानी, एच.एस.ठाकुर, एस. अहमद, संजीव ठाकुर, डॉ,सुधीर शर्मा, राम पटवा, हसन खान, अलीम रजा, नईम रजा, विनोद मिश्र, रवि श्रीवास्तव, विनोद साव, कमलेश्वर, बी. एल. पॉल, चित्रकार सुश्री सुधा वर्मा, एवं बड़ी संख्या में दुर्ग, भिलाई, बिलासपुर और रायपुर के लेखक, पत्रकार, एवं प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे।

(राम पटवा की रपट)