लिट्ररी क्लब भिलाई इस्पात संयंत्र के अध्यक्ष व राजभाषा प्रमुख श्री अशोक सिंघई को भुवनेश्वर (उड़ीसा) में सम्पन्न अखिल भारतीय राजभाषा संगोष्ठी में मुख्य अतिथि डॉ. प्रसन्न पाटसाणि सांसद् भुवनेश्वर एवं माननीय सदस्य संसदीय राजभाषा समिति ने भारतीय भाषाओं में लिखी गई हिंदी की आधुनिक कविता में सर्वाधिक प्रदीर्घ कविता अलविदा बीसवीं सदी के लिये महाप्राण निराला साहित्य शिरोमणि सम्मान से विभूषित किया।
मुम्बई स्थित संस्थान राजभाषा किरण के तत्वावधान में भुवनेश्वर में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में 8 जनवरी 2010 को राष्ट्रीय हिंदी अकादमी के निदेशक डॉ. शंकर लाल पुरोहित की अध्यक्षता में श्री अशोक सिंघई को शाॅल प्रशस्तिपत्र व स्मृतिचिन्ह से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उत्कल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 बिनायक रथ तथा भुवनेश्वर दूरदर्शन केन्द्र के निदेशक श्री विमल चन्द्र गुप्ता के विशिष्ट आतिथि के रूप में मंचस्थ थे। उल्लेखनीय है कि श्री अशोक सिंघई इसके पूर्व कोडंग्गल्लूर (केरल) जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) रायपुर (छत्तीसगढ़) एवं जोधपुर (राजस्थान) में राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं।
अशोक सिंघई ने अपनी प्रदीर्घ कविता अलविदा बीसवीं सदी से कविता के संसार में दस्तक दी थी। 12 फरवरी 2000 को नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला में कवि केदार नाथ सिंह ने श्री पुरुषोत्तम अग्रवाल की अध्यक्षता में इस पुस्तक का विमोचन किया था। महत्वपूर्ण यह है कि उस वक्त स्व. कमलेश्वर डॉ. नामवर सिंह अशोक वाजपेयी कामता नाथ कात्यायनी आदि जैसे वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित थे और श्री लीलाधर मंडलोई ने कार्यक्रम का संचालन किया था। 2009 में मेधा बुक्स नई दिल्ली ने इसका दूसरा संस्करण जारी किया है। श्री सिंघई के दूसरे काव्य संग्रह धीरे धीरे बहती है नदी के भी दो संस्करण आ चुके हैं। सम्भाल कर रखना अपनी आकाशगंगा दीर्घ और वैचारिक कविताओं का संग्रह है। श्री सिंघई के चौथे काव्य संग्रह सुन रही हो ना! में 81 प्रेम-कवितायें संग्रहित हैं। उनका पाँचवा संग्रह समुद्र चाँद और मैं दिल्ली से 30 जनवरी 2010 में विश्व पुस्तक मेला में इस वर्ष लोकार्पित होगा। हर अगली पुस्तक में वे अपनी ही कविताओं से बहुत अलग खड़े दिखते हैं।
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