1/22/2010

डॉ. मैनेजर पाण्डेय इस्पात राजभाषा सम्मान से विभूषित



राजभाषा विभाग भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा 13 नवम्बर 2009 को इस्पात भवन में आयोजित राजभाषा संगोष्ठी में मुख्य अतिथि की आसंदी से सुविख्यात समालोचक व साहित्यकार डॉ. मैनेजर पाण्डेय के विचारोत्तेजक व्याख्यान से समस्त प्रतिभागी मंत्रमुग्ध रह गये। भिलाई इस्पात संयंत्र के कार्यपालक निदेशक (खदान-रावघाट) श्री मानवेन्द्र नाथ राय की अध्यक्षता में सम्पन्न इस संगोष्ठी में श्री सुनील कुमार जैन उप महाप्रबंधक प्रभारी (निगमित सामाजिक उत्तरायित्व) तथा श्री दिलीप नन्नौरे सचिव राजभाषा कार्यान्वयन समिति व उप महाप्रबंधक (सम्पर्क व प्रशासन) विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। संयंत्र के हिंदी समन्वय अधिकारियों के लिये आयोजित इस राजभाषा संगोष्ठी में कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री मानवेन्द्र नाथ राय ने विद्वान वक्ता डॉ. मैनेजर पाण्डेय को इस्पात राजभाषा सम्मान से विभूषित किया।
मुख्य अतिथि डॉ. मैनेजर पाण्डेय ने संयंत्र भ्रमण पर टिप्पणी करते हुये कहा कि यह न भूलने वाला अनुभव है। भारत में कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। तत्कालीन सोवियत संघ से केवल तकनालाॅजी ही भिलाई नहीं आई बिरादाराना भाव के विचार भी आये और भिलाई की एक शानदार अनुकरणीय औद्योगिक संस्कृति अस्तित्व में आई। उन्होंने कहा कि सभ्यता संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र का अनुभव बताता है कि सत्ता के हस्तक्षेप से भाषा का प्रश्न और अधिक उलझ जाता है। सन् 1909 में ही महात्मा गाँधी ने कह दिया था कि हिंदी भारत की भाषा होगी। इसे दूरदर्शिता कहते हैं। आज की राजनीति तो आत्मदर्शी भी नहीं रह गई है। भाषा के विवाद को महाराष्ट्र में हवा दी जा रही है। महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर नामदेव तुकाराम की सदियों की परम्परा में बीसवीं सदी के भक्त कवि माणिक तक ने मराठी के साथ हिंदी में रचनायें की हैं। हिंदी के आपके प्रदेश के ही दो नक्षत्र माधव राव सप्रे और मुक्तिबोध मूलतः मराठी ही थे। मुझे यह देख-सुनकर विशेष प्रसन्नता हुई कि इस इस्पात संयंत्र में विज्ञान और तकनीक की हिंदी भाषा गढ़ी जा रही है। हिंदी प्रेम की भाषा है पर प्रेम की भाषा से ही हमारे समय का कारोबार नहीं सधेगा। हिंदी को अर्थ समाजशस्त्र व्यापार राजनीति ज्ञान और विज्ञान की कायाओं के रूप में नये अवतार लेने होंगे।


प्रारम्भ में अपने स्वागत वक्तव्य में संयंत्र के राजभाषा प्रमुख श्री अशोक सिंघई ने कहा कि समकालीन आलोचना के शिखर पुरुषों में डॉ. मैनेजर पाण्डेय का नाम बहुत ही आदर व सम्मान से लिया जाता है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के भारतीय भाषा केन्द्र के निदेशक पद से सेवानिवृत्त डॉ. मैनेजर पाण्डेय ने साहित्य और इतिहास साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका भक्ति आन्दोलन और सूरदास का काव्य शब्द और कर्म आदि अमूल्य ग्रन्थ हिंदी आलोचना को दिये हैं। सूरदास के काव्य जगत की इन्होंने वैसी ही विलक्षण विवेचना की है जैसी कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर की और गोस्वामी तुलसीदास की आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने की है।
(भिलाई से अशोक सिंघई की रपट)

कोई टिप्पणी नहीं: