1/29/2010

पद्मश्री देकर महाकवि को अपमानित करने की भर्त्सना




देश के प्रख्यात कवि एवं मूर्धन्य साहित्यकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री को ‘पद्मश्री’ अंलकरण देने के लिए भारत सरकार की तीव्र भर्त्सना की है और कहा है कि जिस सरकार को साहित्य के क्षेत्र में एक महाकवि और एक चुटकुलेबाज़ के बीच कोई अंतर नहीं दिखाई देता हो, उस सरकार के हाथों यह अंलकरण लेना किसी भी साहित्यकार के लिए अशोभनीय और निंदनीय है । (ज्ञातव्य हो कि छत्तीसगढ़ के एक मंचीय कवि डॉ. सुरेन्द्र दुबे को पद्मश्री अंलकरण मिला है । )


डॉ। मिश्र ने देश के सभी वरेण्य साहित्यकारों से अपील की है कि वे अपने नाम के आगे ‘पद्मश्री रहित’ लिखें, जो उनके चरित्र की शुचिता का प्रमाण होगा । उन्होंने कहा कि पद्म अलंकरण ऐसे अयोग्य व्यक्तियों को दिये जाते हैं जो इनका दुरुपयोग उपाधि के रूप में करते हैं । वे दिन लद गए जब शासन की बागडोर नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे संस्कारवान राजनेताओं के हाथ में था, और दिनकर और बच्चन जैसे अग्रणी साहित्यकारों को अंलकरण दिये जाते थे । अब पद्मश्री अंलकरण पाना किसी साहित्यकार के चापलूस, जुगाड़ी और घटिया होने का सबूत है । इसलिए जो भी साहित्यकार समाज के समक्ष अपने आदर्श चरित्र का उदाहरण रखना चाहते हैं, वे इसे स्वीकार न करें ।


आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के वरिष्ठ सदस्य डॉ। मिश्र ने दावा किया है कि उनके आव्हान पर बनारस, प्रयाग, रावर्टगंज, लखनऊ, पटना, रायपुर, कोलकाता, मुजफ्फरपुर, दिल्ली, भोपाल, मुरादाबाद, मुंबई, देहरादून, काशीपुर चैन्ने आदि शहरों के साहित्यिकारों ने अपने नाम के सात ‘पद्म्श्री रहित’ लिखने का संकल्प किया है । डॉ. मिश्र ने कहा कि देश के साहित्यकारों का यह अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक भारत सरकार की ओर से अधम साहित्यकारों को पद्म अलंकरण देने पर खेद न व्यक्त किया जाये ।



बुद्धिनाथ मिश्र
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