3/27/2009

बड़े आये चुनाव आयोग को समझानेवाले

व्यंग्य
विश्वरंजन साहब ! नक्सलियों से दो-दो हाथ लेना, उन्हें इस हद तक दबाव में ले आना कि वह बातचीत करने की तैयारी करने लगें एक बात है और चुनाव आयोग से लोहा लेना दूसरी बात । आप इतने दिनों से शासन में अधिकारी रह चुके हैं । आई-बी में भी थे और चुनाव आयोग के अंहकारी स्वभाव के बारे में आपको खुफिया जानकारियाँ भी ज़रूर होंगी। आप को मालूम ही होना चाहिये था कि आयोग का चपरासी भी आपके बाप-तुल्य है। आयोग के छोटे और मध्यम स्तर के अधिकारी आपके पितामह-तुल्य हैं। उसके ऊपर तो सभी ईश्वर-तुल्य हैं। आप क्यों गये थे उन्हें समझाने ? कैसे भूल गये कि समझने-समझाने से ऊपर की स्थिति में होता है आयोग और उसके अधिकारी। आपको क्या नहीं मालूम था जिन पुलिस अधीक्षकों के अस्मिता के लिये आपने आवाज़ उठाई उसे आयोग, चाहे तो आयोग का चपरासी भी यह पाठ पढ़ा सकता है कि बस्तर में नक्सलियों से कैसे लड़ा जाये....

पर विश्वरंजन जी आप बहुत भोले हैं, बहुत सरल हैं। कवि जो ठहरे । चित्रकार जो ठहरे । अब कवि तो सच ही बोलेगा। पर आप सिर्फ कवि नहीं हैं विश्वरंजन साहब, आप एक पुलिस अधिकारी भी हैं। डीजीपी। हैं। इतना तो आप जानते ही होंगे कि प्रशासनिक अधिकारी को बहुत बार झूठ का सहारा लेना पड़ता है। सच पर हमेशा अड़ियेगा तो मरियेगा ही। और फिर सच के लिये या अपने अधीनस्थ अधिकारियों की मान-मर्यादा के लिये तो बेवकूफ ही लड़ते-भिड़ते हैं। अच्छा अधिकारी ऊपर वालों की चापलूसी करता है और अधीनस्थ अधिकारियों को लात मारता है। और आपने तो ‘साहबों’ के दोगले चरित्र को अपनी बहुत सारी कविताओं में रेखांकित भी किया है। फिर आप कैसे ग़लती कर बैठे, आयोग के वाले साहबों के मनोविज्ञान को समझने में ?

आप शायद यह भी भूल गये कि सबसे बड़ा आतंकी अधिकारी ही होता है। जिसके पास जितना अधिकार वह उतना बड़ा आतंकी ! और चुनाव आयोग के पास तो अधिकार ही अधिकार हैं। चुनाव के दौरान तो न्यायालयों का भी डर नहीं है उसे । कोई सुनवाई की गुंजाइश नहीं है। किसी राज्य में आयोग का जो कारिन्दा है या जो कारिन्दे चुनाव के दौरान कुछ दिन के लिये तैनात कर दिये जाते हैं वे कैसे भी हों आयोग की नज़रों में राजा हरिश्चद्र होते हैं ? हरिश्चन्द्र कौन ? अरे वही जो डोम राजा के कारिन्द्रे थे काशी में।

पर राजा हरिश्चन्द्र तो सच्चे इंसान थे। सच ही बोलते थे। आज के हरिश्चन्द्रों की जमात ही कुछ और किस्म की है। बाज़ार में गर्म चर्चाओं को माने तो उनमें से एक तो दहेज प्रताड़ना के लिये अन्दर होना चाहिये था। कहा जा रहा है उस वक्त पुलिस को उस पर तरस आ गई। यह आपके छत्तीसगढ़ आने के पूर्व की घटना है विश्वरंजन साहब, जरा पुराने रिकार्डों का मुआयना कीजिये। भ्रष्ट्राचार की जाँच भी शायद आर्थिक अपराध शाखा कर रही है। एक अन्य कारिन्दे आज नहीं तो कल एक अपराधिक प्रकरण में फँस सकते हैं। बशर्ते पुलिस को तरस न आ जाये।

विश्वरंजन साहब, आपने बड़ी गलती की छत्तीसगढ़ आकर। उठा पटक के खेल में माहिर नहीं थे, न आपने किलाबन्दी की । नहीं तो नक्सलियों से लड़ने के पहले अपने आस-पास घुमते अधिकारियों की फाईले बनवाते । उनके खिलाफ पुराने प्रकरणों को फिर से खुलवाते। पहले आप “ब्लैकमेलिंग” कला में खुद को निपुण करते । और यदि आप यह सब नहीं करना चाहते थे तो क्या ज़रूरत थी चुनाव आयोग के कारिन्दों को राय-मशविरा देनें की। क्या ज़रूरत थी यह कहने की कि नक्सली क्षेत्र में पुलिस इंतेज़ाम उस इलाके में काम करने वाला पुलिस अधिकारी ज्यादा सही तरीके से कर सकता है। आपको जानना चाहिये था कि आयोग के कारिन्दे ऐसा नहीं मानते । आप फिजूल ही अपने लेखों में जब-तब यह शेर उद्धित करते रहे हैं-
जब तक ऊँची न हो ज़मीर की लौ
आँख को रौशनी नहीं मिलती

अब आप रौशनी देने चले थे उन्हें जिनके ज़मीर में आग ही नदारत थी। तो आपको चारों खाने चित होना ही था। जो चाह कर भी नक्सली नहीं कर पाये चुनाव आयोग कर गया। पर एक बात माननी पड़ेगी। आप गिरे ज़रूर पर टकराने के बाद गिरे। गिरते हैं सर सवार ही मैदाने जंग में । आप घुटनों के बल रेंगते हुए नहीं गिरे। देखिये न आपके चारों ओर दूसरे राज्यों के डीजीपी तो बिना कारण ही हटाये जा रहे हैं। चुनाव आयोग अतुलित बलधामा है। वह हरि है। और हरि के विषम में ज्यादा नहीं लिखा जा सकता। पाप लगता है। क्योंकि हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता.......
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-डॉ राजेन्द्र
पहचान प्रकाशन, कुशालपुर, रायपुर

3/24/2009

चुनाव आयोग के निर्देशों पर विचार-गोष्ठी

रायपुर । राजधानी की सक्रिय संस्था लोकमान्य सद्-भावना समिति के अध्यक्ष तपेश जैन ने बताया है कि कल २५ मार्च, २००९ को स्थानीय अमिट होटल में शाम ४ बजे नगर के बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, कलाकारों, रंगकर्मियों, पत्रकारों, समाजसेवियों, सहित आम नागरिकों की एक विचार-गोष्ठी आयोजित है ।
इस विचार-गोष्ठी का केंद्रीय विषय है - केंद्रीय चुनाव के आदेश और प्रजातंत्र । श्री जैन ने बताया है कि विगत दिनों जिस तरह से आयोग ने आदर्श आचरण संहिता के नाम पर आदेश जारी किये हैं वे उस निष्पक्षता के लिए तो आवश्यक हैं किन्तु उसके पीछे के कारणों पर भी चिंतन ज़रूरी है । उसके परिणामों को देखने से वे तानाशाहिता को भी प्रदर्शित करते हैं । कुछ ऐसे आदेश भी हैं जिस पर एकतरफा कार्यवाई तो की गई है किन्तु उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई है । यह एक तरह से नागरिक अधिकारों, अभिव्यक्ति के अधिकारों का भी हनन है । यद्यपि आयोग को संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं जिसके आलोक में वह ऐसा कार्य कर सकता है किन्तु इसकी भी गांरटी आयोग को लेनी होगी जो राज्य या किसी व्यवस्था, संवैधानिक मूल्यों, स्वस्थ परंपराओं पर कुठाराघात सिद्ध न हो ।
श्री जैन ने इस संगोष्ठी में खुली चर्चा व विचार हेतु सर्वसंबंधितों को आमंत्रित किया है ।

विश्वरंजन की कविता स्वप्न देखने को प्रेरित करती है


भिलाई नगर। कल्याण महाविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा कवि, एवं छग के पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन के सद्य:प्रकाशित एकाग्र संग्रह, 'एक नई पूरी सुबह' (जयप्रकाश मानस द्वारा संपादित)पर एक समीक्षा गोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कवि, कथाकार एवं आलोचक डॉ। प्रभात त्रिपाठी थे। विशेष अतिथि के रुप में डॉ. बलदेव, डॉ. एचएन दुबे, डॉ. सरोज प्रकाश एवं दुर्ग जिला के पुलिस अधीक्षक दीपांशु काबरा उपस्थित थे। अध्यक्षता ललित निबंधकार श्रीराम परिहार ने की है।
स्वागत भाषण देते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ। सरोज प्रकाश ने श्री विश्वरंजन की कविताओं पर आहूत समीक्षा गोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। डॉ. बलदेव ने कवि विश्वरंजन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। कविता पाठ के लिए विश्वरंजन को आमंत्रित किया गया तो उन्होंने सहर्ष ही मंच पर खड़े होकर अपनी सात कविताओं का पाठ किया। कविता पाठ करने की उनकी अपनी मौलिक शैली है। कुछ कविताओं के शीर्षक इस तरह से है-तुम गलत कहती हो मैं तुम्हारा वही मुन्ना नहीं हूं मां, रात की बात, मैं फिर से नया लोहाबान जलाता हूं, साहब कोलाज और साधों। प्रेम में सब कुछ संभव है। कवि द्वारा अपनी ही कविता का सस्वर पाठ उपस्थित दर्शकों। श्रोताओं के लिए यादगार क्षण में तब्दील हो गया। विश्वरंजन के काव्य संग्रह पर तीन आलेख पढ़े गए जिसमें प्रथम दो आलेख डॉ. के.एस. प्रकाश, कमलेश्वर साहू द्वारा कविता के संदर्भ में पढ़े गए। तथा अंतिम आलेख शरद कोकास द्वारा विश्वरंजन के गद्य लेखन के संदर्भ में पढे ग़ये।विशेष आमंत्रित वक्ताओं ने भी विश्वरंजन की कविताओं के संदर्भ में अपने-अपने विचार व्यक्त किए। इनमें डॉ. अनिता करडेकर, विनोद साव, अशोक सिंघई, सियाराम शर्मा और रवि श्रीवास्तव ने काफी विस्तार से कविता के अर्थ को खोलने का प्रयास किया।
मुख्य अतिथि डॉ। प्रभात त्रिपाठी ने कहा कि विश्वरंजन ब्रह्माण्डीय चेतना के कवि हैं। उनका अनुराग जगत बहुस्तरीय है। जीवन और मनुष्यता के प्रति उत्कट लगाव ने उसके कविपन को संजोया, संवारा है। उनकी प्रेम कविता एक एैवीम नहीं है। उन्होंने अपने प्रेमानुभव को मूल्यदृष्टि में तब्दील किया है। डॉ। त्रिपाठी ने हिन्दी कविता पर हो रहे लोक लुभावन वासी बहस पर चिन्ता चाहिर की। उन्होंने उपस्थित पाठकों के समक्ष यह प्रश् उठाया कि कविता में समय किस तरह से रुपांतरित होता है? कवि का समय और दूसरे अनुशासनों में व्यक्त समय का अर्थ समान है अथवा भिन्न? यद्यपि उन्होंने गोष्ठी की बहस को काफी जीवंत माना। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए राम परिहार ने कहा कि पिछले पचास वर्षों से हिन्दी में छोटा-बड़ा कवि बनाने का खेल चल रहा है। विश्वरंजन की कविता विकल्प प्रस्तुत करती है। विश्वरंजन ने एक संवेदनशील आम भारतीय नागरिक की हैसियत से कविता लिखी है। उन्होंने नये सिरे से शब्द सत्ता की प्रतिष्ठा की है। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन वरिष्ठ कवि एवं गीतकार मुकुंद कौशल ने किया। कार्यक्रम संचालन वरिष्ठ कवि नासिर अहमद सिकंदर और रजनीश उमरे ने किया।
उक्त अवसर पर किताब के संपादक जयप्रकाश मानस, एच एस ठाकुर, तपेश जैन, रामशरण टंडन आदि कई साहित्यकार एवं पत्रकार उपस्थित थे ।
प्रस्तुत: भागवत प्रसाद