3/24/2009

विश्वरंजन की कविता स्वप्न देखने को प्रेरित करती है


भिलाई नगर। कल्याण महाविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा कवि, एवं छग के पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन के सद्य:प्रकाशित एकाग्र संग्रह, 'एक नई पूरी सुबह' (जयप्रकाश मानस द्वारा संपादित)पर एक समीक्षा गोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कवि, कथाकार एवं आलोचक डॉ। प्रभात त्रिपाठी थे। विशेष अतिथि के रुप में डॉ. बलदेव, डॉ. एचएन दुबे, डॉ. सरोज प्रकाश एवं दुर्ग जिला के पुलिस अधीक्षक दीपांशु काबरा उपस्थित थे। अध्यक्षता ललित निबंधकार श्रीराम परिहार ने की है।
स्वागत भाषण देते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ। सरोज प्रकाश ने श्री विश्वरंजन की कविताओं पर आहूत समीक्षा गोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। डॉ. बलदेव ने कवि विश्वरंजन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। कविता पाठ के लिए विश्वरंजन को आमंत्रित किया गया तो उन्होंने सहर्ष ही मंच पर खड़े होकर अपनी सात कविताओं का पाठ किया। कविता पाठ करने की उनकी अपनी मौलिक शैली है। कुछ कविताओं के शीर्षक इस तरह से है-तुम गलत कहती हो मैं तुम्हारा वही मुन्ना नहीं हूं मां, रात की बात, मैं फिर से नया लोहाबान जलाता हूं, साहब कोलाज और साधों। प्रेम में सब कुछ संभव है। कवि द्वारा अपनी ही कविता का सस्वर पाठ उपस्थित दर्शकों। श्रोताओं के लिए यादगार क्षण में तब्दील हो गया। विश्वरंजन के काव्य संग्रह पर तीन आलेख पढ़े गए जिसमें प्रथम दो आलेख डॉ. के.एस. प्रकाश, कमलेश्वर साहू द्वारा कविता के संदर्भ में पढ़े गए। तथा अंतिम आलेख शरद कोकास द्वारा विश्वरंजन के गद्य लेखन के संदर्भ में पढे ग़ये।विशेष आमंत्रित वक्ताओं ने भी विश्वरंजन की कविताओं के संदर्भ में अपने-अपने विचार व्यक्त किए। इनमें डॉ. अनिता करडेकर, विनोद साव, अशोक सिंघई, सियाराम शर्मा और रवि श्रीवास्तव ने काफी विस्तार से कविता के अर्थ को खोलने का प्रयास किया।
मुख्य अतिथि डॉ। प्रभात त्रिपाठी ने कहा कि विश्वरंजन ब्रह्माण्डीय चेतना के कवि हैं। उनका अनुराग जगत बहुस्तरीय है। जीवन और मनुष्यता के प्रति उत्कट लगाव ने उसके कविपन को संजोया, संवारा है। उनकी प्रेम कविता एक एैवीम नहीं है। उन्होंने अपने प्रेमानुभव को मूल्यदृष्टि में तब्दील किया है। डॉ। त्रिपाठी ने हिन्दी कविता पर हो रहे लोक लुभावन वासी बहस पर चिन्ता चाहिर की। उन्होंने उपस्थित पाठकों के समक्ष यह प्रश् उठाया कि कविता में समय किस तरह से रुपांतरित होता है? कवि का समय और दूसरे अनुशासनों में व्यक्त समय का अर्थ समान है अथवा भिन्न? यद्यपि उन्होंने गोष्ठी की बहस को काफी जीवंत माना। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए राम परिहार ने कहा कि पिछले पचास वर्षों से हिन्दी में छोटा-बड़ा कवि बनाने का खेल चल रहा है। विश्वरंजन की कविता विकल्प प्रस्तुत करती है। विश्वरंजन ने एक संवेदनशील आम भारतीय नागरिक की हैसियत से कविता लिखी है। उन्होंने नये सिरे से शब्द सत्ता की प्रतिष्ठा की है। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन वरिष्ठ कवि एवं गीतकार मुकुंद कौशल ने किया। कार्यक्रम संचालन वरिष्ठ कवि नासिर अहमद सिकंदर और रजनीश उमरे ने किया।
उक्त अवसर पर किताब के संपादक जयप्रकाश मानस, एच एस ठाकुर, तपेश जैन, रामशरण टंडन आदि कई साहित्यकार एवं पत्रकार उपस्थित थे ।
प्रस्तुत: भागवत प्रसाद

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