4/29/2007

हिंदी ब्लॉगिंग के लिए जयप्रकाश मानस को माता सुंदरी फाउंडेशन पुरस्कार

रायपुर। विगत 10 वर्षों से युवा रचनाकारों को दिया जाने वाला वर्ष 2007 का साहित्य का माता सुंदरी फाडंडेशन, उदीयमान प्रतिभा सम्मान ललित निबंधकार, युवा आलोचक एवं सृजनगाथा के संपादक जयप्रकाश मानस को दिया गया है । गत 23 अप्रैल को राजधानी में आयोजित समारोह में विवेकानंद आश्रम ट्रस्ट के सचिव स्वामी आत्मानंद के करकमलों से प्रदान किया गया । रचनाकार को पुरस्कार स्वरूप 5000 रुपये, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिह्न, शाल एवं श्रीफल भेंट किया जाता है । इस समारोह में हिंदी ग्रंथ अकादमी के संचालक व संडे आब्जर्वर के पूर्व संपादक रमेश नैयर ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की ।

उक्त अवसर पर गिरीश पंकज, कबीर गायक भारती बंधु, आरएनएस के संपादक एच.एस.ठाकुर सहित बड़ी संख्या में पंजाबी समुदाय के गणमान्य नागरिक एवं साहित्यकार, जन प्रतिनिधि उपस्थित थे । ज्ञातव्य हो कि यह सम्मान श्री मानस को अंतरजाल पर हिंदी साहित्य को विशेष तौर पर प्रतिष्ठित करने के लिए प्रदान किया गया । उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के कई रचनाकारों की कृतियों का ब्लॉग बनाकर उन्हें वैश्विक पहचान दी है ।



श्री मानस ने संस्था की ओर से जिन प्रमुख कृतियों का ब्लॉग तैयार की है उनमें प्रमुख हैं -
हिंदी में



सृजन-सम्मान परिवार के अध्यक्ष श्री सत्यनारायण शर्मा (विधायक एवं पूर्व शिक्षा, जनसंपर्क, वाणिज्य मंत्री, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़) एवं सभी सदस्यों ने श्री मानस को बधाई देते हुए इस अवसर पर संस्था के खास सहयोगी और आदि चिट्ठाकारों में प्रमुख श्री रवि रतलामी और हिंदीभाषा डॉट इंफों के श्री शर्मा जी को तहेदिल से स्मरण किया है ।
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दूरदर्शन केंद्र रायपुर ने उन्हें उन्हें खास तौर पर बधाई देते हुए आधे घंटे का एक खास कार्यक्रम रिकार्ड किया - इंटरनेट और हिंदी साहित्य की दिशा - जिसका प्रसारण 11 मई 2007 को संध्या 5 बजे किया जा रहा है ।


0 राम पटवा

प्रादेशिक महासचिव

4/17/2007

मीडिया विमर्श के लिए

रचनाएँ आमंत्रित
मीडिया विमर्श मूलतः मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता की पत्रिका है । मीडिया विमर्श के लिए जनसंपर्क, विज्ञापन, मीडिया शिक्षा, पत्रकारिता एवं जनसंचार के विविध अनुशासनों पर केंद्रित सामग्री (हिन्दी-अंग्रजी दोनों भाषाओं) सादर आमंत्रित है। यह आपकी अपनी पत्रिका है अतः औपचारिक निमंत्रण की प्रतीक्षा न करे। मीडिया विमर्श नए और कम चर्चित लेखकों के प्रति संवेदनशील है। यह उनका अपना मंच है और उन्हें इसमें सहभागी होना ही चाहिए।

जय-संजय
वेब-संपादक

नियमावलीः
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संपादकीय संपर्क :
संपादक : मीडिया विमर्श
ए-2 अनमोल फ्लैट्स, अवंति विहार कालोनी,
रायपुर (छत्तीसगढ़), पिन - 492001
ई-मेलः mediavimarsh at gmail.com

4/16/2007

सम्मोहित करने वाली आवाज




महान साहित्यकार-पत्रकार कमलेश्वर जी की अब स्मृति शेष है। उनसे मेरी पहली मुलाकात ‘गंगा’ के कार्यालय में हुई थी। तब मैंने उनसे साहित्य-संस्कृति और मीडिया के बदलते तेवर पर कुछ बातें की थी। इस साक्षात्कार को मैंने ‘नवभारत’ में प्रकाशित भी किया था। साक्षात्कार की कटिंग भेजने के बाद कमलेश्वर जी का बड़ा प्यारा-सा खत आया था। उन्होंने साक्षात्कार की भाषा एवं उसकी प्रस्तुति की प्रशंसा करते हुए कहा था कि “जैसा मैंने कहा, तुमने बिल्कुल वैसा ही लिखा । वरना कई बार साक्षात्कार कुछ और बातें कह जाते है।” फिर उन्होंने साम्प्रदायिकता पर चिंता व्यक्त करते हुए लिखा था कि “लेखकों को आगे आना होगा।” कुछ समय के बाद कमलेश्वर जी रायपुर आए । तब मैंने ‘दूरदर्शन’ रायपुर के लिए उनसे बातचीत की । यह डेढ़ दशक पहले की बात है इतनी बड़ी शख्तियत से विजुअल मीडिया के लिए साक्षात्कार लेना था। भीतर से डरा हुआ था। मैंने कमलेश्वर जी से अनुरोध किया था कि मेरे पास बहुत अधिक प्रश्न नहीं हैं इसलिए आपसे आग्रह है कि आप मेरे प्रश्नों के लम्बे उत्तर दें ताकि आधे घंटे की बातचीत हो जाए। कमलेश्वर जी ने मुसकराते हुए मेरा कंधा थपथपाया और कहा “चिंता मत करो। जैसा चाहते हो, वैसा होगा।” कमलेश्वर जी के स्पर्श में पता नहीं क्या जादू था कि मैंने पूरे आत्मविश्वास के साथ उनसे बातचीत की। आज मैं सोचता हूं तो अभिभूत हो जाता हूँ कि एक बड़े लेखक ने नए लेखक को किस आत्मीयता के साथ प्रोत्साहित किया था। अब ऐसे लोग दुर्लभ हो गए हैं।

कमलेश्वर की एक कहानी बड़ी मशहूर हुई है-‘दिल्ली में एक मौत’। वर्षों पहले लिखी गई यह कहानी आज भी ताजा लगती है । महानगरीय व्यस्तताओं के चलते आदमी की संवेदनाएं मरती जा रही हैं। यंत्र सरीखा हो गया है आदमी । कोई मरे या जिए कोई खास सरोकार नहीं । बस रस्म अदायगी करनी है। कमलेश्वर की एक यही कहानी उन्हें अमर करने के लिए पर्याप्त है।

कमलेश्वर की कहानियों का दृश्य बंध पाठकों को जैसे दर्शक में तब्दील कर देता है । उनकी सारी कहानियाँ सामने घटती हुई घटना लगती हैं । चाहे वह मानवीय संबंधों की कहानियाँ हों चाहे अन्य विषयों पर केन्द्रित, हर कहानी दृश्य में तब्दील होती चली जाती है । वे अपनी इस विशेषता को जानते थे इसीलिए उन्होंने अपनी इस प्रतिभा का टीवी और फिल्मी दुनिया में भरपूर इस्तेमाल किया । सौ से ज्यादा फिल्में लिखने वाले वे हिंदी के इकलौते साहित्यकार थे ।

कमलेश्वर जब ‘सारिका’ का संपादन कर रहे थे, तब हम लोग बड़ी बेसब्री से ‘सारिका’ की प्रतीक्षा करते थे। साहित्य के केन्द्र में ‘आम आदमी’ की चर्चा और उसे आंदोलन में तब्दील करने वाले कमलेश्वर ही थे। उनके संपादक में ‘सारिका’ साहित्यकारों की पहली पसंद बन चुकी था । लेकीन कमलेश्वर जी कहीं टिक कर नहीं बैठे । वैचारिक मतभेद भी इसके कारण थे। समझौता परस्त अफसरनुमा लेखक नहीं थे कि तमाम अपमानों के बावजूद नौकरी करते रहें। वे तो स्वतंत्रचेता रचनाकार थे। इसलिए जब कभी उन्हें महसूस हुआ कि यहाँ बंधन कुछ ज्यादा कसा जा रहा है, तो वे हाथ जोड़कर विदा हो जाते थे । आर्थिक संकट की परवाह ही नहीं करते थे । वे छोटे कद के बड़े लेखक थे । उन्हें अपना हुनर पता था । उनमें लेखन-प्रतिभा कूट-कूट कर भरी हुई थी इसलिए फाकामस्ती की नौबत नहीं आने पाती थी ।

कमलेश्वर साहित्य और पत्रकारिता के बीच संतुलन बनाए रखने वाले लेखक थे । उनेक लिए दोनों विधाएं अछूती नहीं थी । दो साल पहले भिलाई में ‘बहुमत’ के कार्यक्रम में पधारे थे । तब साहित्य और पत्रकारिता के अंतर्संबंधों पर एक विचार गोष्ठी हुई थी । इसका संचालन मुझे ही करना था । मैंने यह कहा था कि आजादी के दौर में साहित्य और पत्रकारिता एक ही सिक्के के दो अलग-अलग पहलू हुआ करते थे। कमलेश्वर जी ने मेरी बातों का समर्थन करते हुए कहा था कि यह सचमुच दुर्भाग्यजनक बात है कि आजकल के पत्रकार साहित्य से दूर भागते हैं जबकि साहित्य उनकी पत्रकारिता की धार को और ज्यादा पैना कर सकती है । उन्होंने यह भी कही था कि पत्रकारिता में आने वाले पत्रकार को अगर पत्रकारिता के क्षेत्र में सफल होना है तो उसे समकालीन साहित्य का भी अध्ययन करना चाहिए ।

कमलेश्वर की आवाज में जादू था । जैसा उनकी लेखनी में है । वे कहानियाँ लिखें, कोई कार्यक्रम प्रस्तुत करें या व्याख्यान दें, लोग उनकी गुरु गंभीर कड़क आवाज सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते थे । इसलिए एक-दो बार ऐसा भी हुआ कि साहित्यिक आयोजकों ने निमंत्रण नहीं भेजा तो भी कमलेश्वर जी को सुनने हम लोग पहूँच जाया करते थे और बहुत कुछ सीखकर ही लौटते थे ।

कमलेश्वर नए लोगों को प्रोत्साहित करने से पीछे नहीं रहते थे । बड़े लेखक थे लेकिन नए लेखकों से मिलकर उन्हें खुशी होती थी । भोपाल के भाई राजुरकर राज के दुष्यंतकुमार स्मृति संग्रहालय के लिए उन्होंने पूरा सहयोग किया । संग्रहालय के बारे में लिखा भी । फिर संग्रहालय के संरक्षक भी बन गए । भोपाल से मिलने वाले आयोजन के लिए हरदम तैयार रहते थे । इसी बहाने भोपाल जाना तो होगा । महान साहित्यकार दुष्यंतकुमार उनके समधी थे । समधी से पहले अंतरंग दोस्त थे । दुष्यंतकुमार को राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता दिलाने के पीछे ‘सारिका’ और कमलेश्वर के यागदान को भुलाया नहीं जा सकता । उस दौर में ‘सारिका’ में छपना मतलब रचनाकार होने का प्रमाण हुआ करता था । कमलेश्वर ने हिन्दी के अनेक लेखकों की कहानी पहली बार छापी और वे लोग स्थापित लेखक बन गए । कमलेश्वर जी ने अखबारो के लिए लिखा । खूब लिखा । कुछ अखबारों में काम भी किया । लेकिन उनकी खुद्दारी ने उन्हें एक जगह टिकने ही नहीं दिया । मीडिया से जुड़े़ सारे लोगों को पता है कि कैसे किसी बात पर विवाद होने पर कमलेश्वर ने एक समाचार पत्र के प्रबंधन को अंगूठा दिखा दिया और अपने अनेक साथियों के साथ अखबार के साथ विदा ले ली । कमलेश्वर के साथ अखबार छोड़ने वाले पत्रकारों ने रत्ती भर न सोचा कि हमारा क्या होगा ।

दरअसल सच्चे कबीरी तेवर के साथ जोने वाले कमलेश्वर उर्फ कमलेश्वर वैचारिक किस्म की युवा पीढ़ी को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम थे । उनकी कहानियों और फिल्मों ने पूरे देश का ध्यान केन्द्रित किया । ‘चन्द्रकांता संतति’ ने तो कमाल ही कर दिया था । ‘आंधी’ की सफलता जग-जाहिर है । एक कार्यक्रम में जब कमलेश्वर ने इंदिरा गांधी को अपना परिचय दिया कि “आपने ‘आंधी’ देखी है । मैं उसी कृति का लेखक हूँ ।” तब इंदिरा जी ने मुस्कराते हुए कहा था - “मैं आपको जानती हूँ ।”

‘अखबार में छपने वाले उनके स्तंभों’ को पढ़कर समझ में आता था कि उन्होंने कितनी गहराई के साथ लेख लिखा है । लेख के संदर्भों आदि से यह बात भी प्रमाणित होती थी कि किसी भी लेख को लिखने से पहले वे कितना गहन अध्ययन करते थे । उनकी कलम बेबाकी के साथ चलती थी । उनके लिखे को मालिक जी भी नहीं काट सकता था । अब कमलेश्वर नहीं है । साहित्य और पत्रकारिता के संगम में डुबकी लगाने वाला सच्चा लेखक चला गया । डेढ़ साल पहले जब छिहत्तर वर्ष की आयु में निर्मल वर्मा की मृत्यु हुई थी तब कमलेश्वर ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि यह भी कोई जाने की उम्र है । अब जब पचहत्तर वर्ष में खुद कमलेश्वर जी चले गए तो उनका ही कथन दुहराना पड़ता है कि यह भी कोई उम्र थी उनके जाने की । ‘कितने पाकिस्तान’ जैसा उपन्यास लिखने वाले कमलेश्वर के जाने से पत्रकारिता और साहित्य का आँगन सूना-सूना-सा लग रहा है । लेकिन एक बात का संतोष है कि वे हमारे बीच अपनी तमाम कृतियों के कारण सदैव जीवित रहेंगे ।

उनकी भारी-भरकम मगर सम्मोहित करने वाली आवाज वर्षों तक अनुगुंजित होती रहेगी । उनकी कालजयी कहानियाँ भी उनके होने का अहसास कराती रहेंगी । और जब-जब उनकी लिखी गई फिल्में चैनलों के माध्यम से विराट दर्शक वर्ग तक पहुँचेगी तो भी उनकी मौजूदगी को हम लोग शिद्दत के साथ महसूस करेंगे ।


गिरीश पंकज

जी-31, नया पंचशील नगर, रायपुर (छ.ग)

विश्व में गमकने लगा है छत्तीसगढ़ का साहित्य

(इंटरनेट पर छत्तीसगढ़ : एक मूल्याँकन)
वैश्वीकरण को इधर भारत में एक विवाद के रूप में लिया जाता रहा है । इसमें विकसित तकनीक और प्रौद्योगिकी भी सम्मिलित है । भारतीय समाज में उठने वाले प्रतिरोधी स्वरों में कंप्यूटर और इंटरनेट के उपयोग को लेकर उठाये जा रहे प्रश्नों को भी शामिल किया जाता रहा है । इस सब के बावजूद आज का जीवंत सत्य यह है कि कंप्यूटर और इंटरनेट आज के समय की वह योग्यता है जिसके बुनियादी ज्ञान के बगैर नागरिक को निरक्षर जैसी उपाधियों का सामना करना पड़ रहा है । कंप्यूटर साक्षरता जैसे शब्द कदाचित् इसीलिए भारतीय प्रशासनिक शब्दकोष में जोड़ा जा चुका है । चाहे हम लाख नकारें – अंतरजाल या इंटरनेट आज के विकसित समाज की पहचान बन चुका है । इन कथनों के साथ कहीं भी यह निहितार्थ नहीं कि मैं इंटरनेट की बुराईयों को नकारना चाहता हूँ । पर सच यह भी है कि मिडिया के अद्यतन घटकों में कोई भी घटक ऐसा नहीं है जो सर्वथा कृष्णपक्षीय दूर्गुणों से मुक्त है । इतनी भूमिका के साथ यदि हम छत्तीसगढ़ की उपस्थिति का जायजा लें तो आश्चर्च भी होता है और सुखद एहसास भी होता है और उस एहसास के पीछे है युवा ललित निबंधकार और तन-मन-धन से छत्तीसगढ़ की प्रतिष्ठा के सक्रिय इंटरनेट विशेषज्ञ जयप्रकाश मानस ।

यदि आप भी सच्चे मन से मूल्याँकन करना जानते हैं और वैश्विक मीडिया पर छत्तीसगढ़ की प्रतिष्ठा को रेखांकित करने की प्रविधियों से गुजर सकते हैं तो आपको इस छरहरी काया वाले 42 वर्षीय युवा की तस्वीर साफ-साफ दिखाई देगी । सीधे शब्दों में हम कहें तो आज विश्व स्तर पर किसी इकाई, घटना, व्यक्तित्व आदि के मूल्याँकन का माध्यम प्रिंट मीडिया या इलेक्टॉनिक मीडिया नहीं अपितु वेब मीडिया ही है । और मुझे यह लिखते हुए अतिशय प्रसन्नता हो रही है कि विश्व मीडिया में इस जुझारू और खुशमिजाज व्यक्तित्व के मालिक जयप्रकाश मानस ने जितना छ्त्तीसगढ का नाम प्रतिष्ठित किया है शायद ही किसी ने किया होगा । अब छत्तीसगढ़ी और छत्तीसगढ़ की रचनात्मकता भी इंटरनेट के माध्यम से समूचे विश्व में पढ़ी जाने लगी है ।

यह कोई भी भी नकार नहीं सकता सूचना, जानकारी और ज्ञान का सबसे विश्वसनीय माध्यम अब किताब, शोध ग्रंथ, समाचार पत्र या इलेक्ट्रानिक मीडिया नहीं अपितु वेबमीडिया है । जिसके सहारे सुदूर दक्षिण अफ्रीका के किसी अविकसित गाँव या फिर अमेरिका के किसी विकास के अद्यतन सुविधाओं से सम्पन्न नगर वांछित ज्ञान या सूचना प्राप्त करता है या अपनी जिज्ञासा को शांत करता है । अभी एक साल पहले की ही बात है कि जब हम इंटरनेट पर छत्तीसगढ़ को (हिंदी भाषा में)तलाशते थे तो भारत सरकार का एकमात्र वेबसाइट नज़र आता था जिसमें छत्तीसगढ़ की संस्कृति की कुछ जानकरी मिलती थी और वह भी भ्रामक । एनआईसी जो कि राज्य सरकार का नहीं अपितु भारत सरकार का ही वेबसाइट है में भी जो जानकारी मिलती थी वह केवल छ्तीसगढ़ शासन से संबंधित कुछ जानकारी हुआ करती थी । दुख की बात यह कि उसमें आपकी हमारी अपनी भाषा में कुछ भी नहीं । यानी कि सारा का सारा ज्ञान या सूचना अंगरेज़ी में । अब यह उन्हें कौन समझायें कि हिंदी भारत में ही प्रयुक्त होने वाली भाषा नहीं अपितु विश्व की सबसे ज्यादा बोली जानी वाली दूसरे क्रम की भाषा भी है । आज आप छ्त्तीसगढ़ को इंटरनेट के हजारों पृष्ठ में देख सकते हैं । चाहे वह साहित्य का पृष्ठ हो या फिर कला या किसी अन्य विधा का । और इसे आकार दे रहे हैं - जयप्रकाश मानस ।


छत्तीसगढ़ का पहला ब्लॉगजीन- सृजन-गाथा
छत्तीसगढ़ के साहित्य वैभव को वैश्विक मंच पर और वह भी उसकी अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में प्रतिष्ठित करने में आज जयप्रकाश मानस का योगदान प्रत्यक्षतः देखा जा सकता है । और इसके पीछे कोई परियोजना का लोभ, कोई पुरस्कार, कोई प्रोत्साहन कोई या कोई आर्थिक लाभ नहीं अपितु छ्त्तीसगढ़ की अस्मिता को समूचे विश्व तक ले जाने का सपना ही काम कर रहा है । अपनी इस मुहिम के बारे में वे बताते हैं – “मैंने पाया कि इंटरनेट पर हिंदी भाषा में काम करने की तकनीक के बावजूद इंटरनेट पर छत्तीसगढ़ से संबंधित पृष्ठों की संस्था लगभग शून्य है । यह बात मुझे कचोट गई कि सचमुच छत्तीसगढ़ दरिद्र है ? जबकि यहाँ का लेखन सदैव राष्ट्रीय क्षितिज पर अव्वल रहा है । बस्स, मैंने उसी दिन ठान लिया कि मैं अपने तरफ से जितना भी बन पड़े कार्य करूँगा । इसे आप प्रेरणा कहें या कारण ।” उनकी लगन और निष्ठा के बदौलत ही छत्तीसगढ़ से हजारों पृष्ठ इंटरनेट पर जुड़ चुके हैं । इंटरनेट की सबसे क्रांतिकारी तकनीक साबित हुई है ब्लॉगिंग । यह खर्चीले वेबसाइट का एक तरह से विकल्प है जिसमें लिखने की स्वतंत्रता सूचना और प्रौद्योगिकी आधारित विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियाँ प्रोत्साहन और अवसर मुहैया करा रही है । युनिकोड़ अर्थात् अंतरजाल पर हिंदी में लेखन की तकनीक ने इसे और गति प्रदान की है । इसी तकनीक में प्रवीणता हासिल करते हुए श्री मानस ने अपनी यात्रा की शुरुआत की । सबसे पहले उन्होंने सृजनगाथा नामक ब्लॉगजीन तैयार की जो छत्तीसगढ़ की पहली ब्लॉगजीन है । इस का पता है –
www.srijansamman.blogspot.com । यह एक तरह से इंटरनेट में राज्य की पहली पत्रिका भी है । जो विश्व के 30 से अधिक देशों के 5000 से अधिक शोध, छात्रो, इंजिनियरों, विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, और आम पाठकों में नियमित पढ़ी जाती है । इस ब्लॉगजीन में न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि देश के ऐसे सैकड़ो कवि, लेखक, निबंधकार, लघुकथाकार, कथाकार छप चुके हैं जिनके लिए हिंदी साहित्य में अग्रग्रण्य और महत्वपूर्ण होने के बावजूद इंटरनेट तकनीक के ज्ञान और जानकारी के अभाव या असुविधा के कारण नेट आधारित पत्र-पत्रिकाओं में छपना कठिन कार्य था। इनमें पद्मश्री मुकुटधर पांडेय, गुरुदेव काश्यप चौबे, राजेन्द्र अवस्थी, विष्णुनागर, उमाकांत मालवीय, बालशौरि रेड्डी, कुँवर नारायण, वरिष्ठ गीतकार एवं नवगीतकार स्व. हरि ठाकुर, देवेन्द्र शर्मा इन्द्र, नईम, डॉ. इसाक अश्क, यश मालवीय, अशोक अंजुम, संतोष रंजन, फिराक गोरखपुरी के नाती और कवि, विश्वरंजन, प्रेमशंकर रघुवंशी, हाइकुकार डॉ. भगवत शरण अग्रवाल, रमाकांत श्रीवास्तव, आलोचक स्व. प्रमोद वर्मा, खगेन्द्र ठाकुर, डॉ. बल्देव, रमेश अनुपम, व्यंग्यकार विनोद शंकर शुक्ल, गिरीश पंकज, डॉ. कांतिकुमार जैन, रमेश दत्त दुबे, राजेश गनोदवाले, कहानीकार डॉ. परदेशी राम वर्मा, के.पी. सक्सेना दूसरे, डॉ. मालती शर्मा, एस. अहमद, विजय देव, बच्चू जांजगिरी, सुधीर शर्मा, राम पटवा, डॉ.चित्तरंजन कर, संजय द्विवेदी, अजय पाठक, संतोष रंजन, नंदकिशोर तिवारी, सतीश जायसवाल । इसमें प्रेमचंद परिवार के जीवित सदस्यों में सबसे वरिष्ठ कृष्ण कुमार राय का मार्मिक संस्मरण भी समादृत है जो 81 वर्ष की अवस्था में भी लगातार सृजनरत हैं ।

ऑनलाइन किताबों में अव्वल राज्य छत्तीसगढ़
शायद ही भारत का कोई राज्य होगा जहाँ के निवासी साहित्यकारों की किसी समग्र कृतियाँ संपूर्णतः इंटरनेट पर ऑनलाइन होगीं । यह काबिले तारीफ है कि मानस जी ने जटिल और श्रमसाध्य कार्य होने के बावजूद रात-दिन एक करके अब तक 14 किताबों को समूची दुनिया तक पहुँचा दिया है । इसमें छत्तीसगढ़ के युवा गीतकार अजय पाठक का गीत संग्रह गीत गाना चाहता हूँ(
http://ajaypathak1.blogspot.com/), होना ही चाहिए आँगन (www.kaviayan.blogsplt.com), युवाकवि अनुपम वर्मा की कविता संग्रह दस्तक (http://dastakkavita.blogspot.com/) के.पी. सक्सेना की किताब (http://kpsaxenadoosre.blogspot.com/), पत्रकार तपेश जैन का छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण चीजों पर लिखा आलेख संग्रह (http://tapeshjain.blogspot.com/) । इतना ही नहीं (http://jrsoni2.blogspot.com/) एक ऐसे जाल स्थल का पता है जहाँ आप डॉ. जे. आर. सोनी का उपन्यास पछतावा मुफ्त में पढ़ सकते हैं । ज्ञातव्य हो कि यह अंतरजाल पर छत्तीसगढ़ का पहला ऑनलाइन उपन्यास भी बन चुका है । इसके अलावा श्री सोनी की कृति चन्द्रकला भी अब अंतअंतरजाल पर पहले छत्तीसगढ़ी उपन्यास (http://jrsoni.blogspot.com/) के रूप में समूचे विश्व के लिए उपलब्ध हो चुका है । हिरण्यगर्भ गौतम पटेल की शोधकृति है जो ईश-ज्योतिष और प्रकृति विज्ञान पर केंद्रित है । इस कृति में भगवान राम सहित चारों भाई, सीता व राम परिवार के सभी सदस्यों की जन्म कुंडलियों का विश्लेषण विशेष उल्लेखनीय है जो दुर्लभ है । इस वेबजाल का पता है - http://hiranyagarva.blogspot.com/ । श्री मानस अपने रम्य - ललित निबंधों के लिए भी समकालीन साहित्यिक बिरादरी में जाने जाते हैं, अतः उनके लालित्य प्रेम का ही प्रतिफल है – इंटरनेट पर ललित निबंधों की श्रृंखला । ललित निबंध नामक ब्लॉग पर राज्य के रम्य रचनाओं के वरिष्ठ लेखक डॉ. शोभाकांत झा के चुनिंदे 12 रचनाओं का ऑनलाइन आनंद पूरे विश्व के पाठक, शोधछात्र आदि ले रहे हैं । यहाँ वे हिंदी के सभी ललित निबंधकारों को रखने जा रहे हैं ।

अंतरजाल पर हिंदी की प्रतिष्ठा अभियान में केवल शहर-नगर निवासी साहित्यकारों को ही तरजीह दी जा रही है ऐसा कहना अनुचित होगा । वे दूर-दराज और इंटरनेट की सुविधा से वंचित जनपदों के साहित्यकारों को भी विश्वव्यापी मीडिया – इंटरनेट पर मौका दे रहे हैं । इसमें आप नथमल शर्मा जैसे गीतकारों को भी गिन सकते हैं जिनकी ‘एक गीत तुम्हारे नाम ‘ आदि को शुमार कर सकते हैं । हिंदी साहित्य के अति प्रतिष्ठित और महत्वपूर्ण काव्य कृतियों को भी वे बिसारे बिना अंतरजाल पर लाते जा रहे हैं । इसमें मैथिलीशरण गुप्त जी के खंडकाव्य सैरेन्ध्री को रखा सकता है जो khandkavya1 नामक वेबपृष्ठ में समग्रतः पढ़ा जा सकता है जिसके लिए विश्व के कई देशों के पाठकों से उन्हें सहयोग बधाई का आश्वासन मिला है ।

वे इन दिनों जिन परियोजनाओं पर सघनता से काम कर रहे हैं उनमें कविता संचयन – विहंग-बीसवीं सदी की हिंदी कविता में पक्षी(संपादक- रमेश दत्त दुबे, जयप्रकाश मानस), ललित निबंध संग्रह- झरते फूल हरसिंगार के (डॉ. श्रीराम परिहार)बाल कविता संग्रह-एक हमारा देश(गिरीश पंकज), खंडकाव्य- हनुमान (डॉ. चित्तरंजन कर), शोध ग्रंथ –लघुकथाः दिशा और दशा (डॉ. अंजलि शर्मा), उपन्यास- एक डिप्टी कमिश्नर की डायरी(डॉ. महेन्द्र ठाकुर), आलेख संग्रह- मत पूछ हुआ क्या-क्या(संजय द्विवेदी), लघुकथा संग्रह (राम पटवा) कविता संग्रह- जुड़ने और टूटने के बीच(संतोष रंजन) । ये किताबें अतिशीघ्र इंटरनेट पर पूर्णतः ऑनलाइन उपलब्ध हो रही हैं ।

हिंदी और छत्तीसगढ़ी साहित्य के महत्वपूर्ण किताबों को आने वाले दिनों में पूरी दुनिया बिना असुविधा के ऑनलाइन पढ़ सकें इसके लिए श्रमरत श्री मानस की निष्ठा पर किसी तरह प्रश्नचिन्ह न करें तो वह दिन दूर नहीं जब हम इंटरनेट पर रामचन्द्र शुक्ल का निबंध संग्रह चिंतामणि, रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कृति संस्कृति के चार अध्याय, महादेवी वर्मा का संस्मरण संग्रह श्रृंखला की कडियाँ, मुकुटधर पांडेय की कृति ‘छायावाद और अन्य निबंध’, अज्ञेय की कृति हरी घास पर झण भर, हरिठाकुर का गीत संग्रह(संपादक- चेतन भारती), नरेश मेहता की काव्य कृति चैत्या, धर्मवीर भारती द्वारा इंक्कीस देशों की आधुनिक कविताओं का अनुवाद संकलन देशान्तर, श्रीकांत वर्मा की कृति भटका मेघ, माधवराव सप्रे की कहानियाँ, प्रभाकर श्रोत्रिय की आलोचना किताब रचना एक यातना है, गुरूदेव काश्यप चौबे का संपादकीय लेखों का संग्रह, परवीन शाकिर का ग़ज़ल संग्रह- ग़ज़लें मेरी, सुदीप बेनर्जी की कविता इतने गुमान, पंजाबी कवि पाश का संग्रह बीच का रास्ता नहीं होता, सतीश जायसवाल का कहानी संग्रह कहाँ से कहाँ तक डॉ. बल्देव की काव्य-कृति ‘वृक्ष में तब्दील हो गई औरत’, नारायण लाल परमार का बाल कविता संग्रह, डॉ. बिहारी लाल साहू की की शोध कृति- ‘छत्तीसगढ़ी प्रहलिकाएं’, गिरीश पंकज का पुरस्कृत व्यंग्य उपन्यास - ‘मिठलबरा की आत्मकथा’, डॉ. मन्नू यदु द्वारा संपादित शोध आलेख संग्रह- राम और रामकाज सहित कई किताबों को संपूर्ण दुनिया को पढ़ते हुए देख सुन सकेंगे ।

सृजनगाथा ने छत्तीसगढ़ का किया नाम रौशन
इन दिनों हिंदी पत्र-पत्रिकों की जैसे बाढ़ आयी हुई है । ऐसा कोई जनपद नहीं जहाँ से कोई न कोई लघुपत्रिका न निकल रही हो । इसमें अपना राज्य छत्तीसगढ़ भी सम्मिलित है किन्तु अंतरजाल या इंटरनेट की वेबमैग्जीन की बात उठती है तो हम दायें-बायें झाँकने को विवश हो जाते हैं । भारत में अंतरजाल की आयु 10 वर्ष हो जाने के बाद भी हिंदी की चार-छह साहित्यिक पत्रिकाएं ही इंटरनेट पर दिखती हैं । इनमें हंस और वागर्थ भी हैं जो व्यवस्थित प्रंबंधन या धनिकों के सरंक्षण में संचालित होती है । इनमें भी वागर्थ इंटरनेट पर अनियमित है । पिछले कई अंक इंटरनेट पर नहीं आ पाये हैं । बहरहाल छत्तीसगढ़ राज्य से सृजनगाथा का प्रकाशन न केवल राज्य की प्रतिष्ठित संस्था सृजन-सम्मान के लिए गौरव की बात है अपितु वह उन लोगों और संस्थाओं के लिए भी प्रेरणास्पद बन चुका है जो हिंदी के अंतरराष्ट्रीय विकास हेतु बिना दुकानदारी चलाये संकल्पित हैं । इसके पीछे भी लिटिल वेबमास्टर प्रशांत रथ और उनके पिता जयप्रकाश का गंभीर समर्पण है जो रात-दिन इस वेबसाइट के उन्नयन में सक्रिय रहते हैं । इंटरनेट पर मासिक मैग्जीन चलाना कोई बच्चों का खेल नहीं है इसे मैं व्यक्तिगत तौर पर श्री मानस के साथ बैठकर देख समझ पाया हूँ । अब तक इंटरनेट पर मात्र 8 अंक ही प्रकाशित हो सकी हैं पर यह अब विश्व की चर्चित हिंदी पत्रिकाओं में गिनी जाने लगी है । सृजनगाथा डॉट कॉम को अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन के कई विश्वविद्यालय जहाँ हिंदी की पढ़ाई होती है एक संदर्भ ग्रंथ के रूप में ले रही है । इतना ही नहीं विश्व के कई देशों के हिंदी छात्रों, पाठकों, प्रवासी नागरिकों ने अपना लिंक देकर सम्मानित किया है । आज सृजनगाथा की पहुँच 50 से अधिक देशों तक पहुँच गई है । इसमें पश्चिम के देश भी सम्मिलित हैं जिसके कई हिंदी लेखक लगातार सृजनगाथा में बाकायदा प्रकाशित भी होते हैं । www.srijangatha.com यूँ तो छत्तीसगढ़ और भारत के हिंदी रचनाकारों को अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर स्थापित करने के लिए संचालित की जा रही है खुशी की बात है कि इसका पहला संपूर्ण विशेषांक ब्रिटेन की प्रवासी हिंदी कविता पर प्रकाशित हुआ है । जिसमें 20 से अधिक प्रवासी कवियों की 125 से अधिक कवितायें समादृत हैं । दूसरे विशेषांक में ग़जल विशेषांक को देख सकते हैं जहाँ पहली बार हिंदी की 300 ग़ज़लें और हिंदी ग़ज़ल की दशा-दिशा और मूल्याँकन से संबंधित कई महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित हैं ।

छत्तीसगढ की इस पहली वेबमैग्जीन में मात्र कविता, ग़ज़लें, हाइकु, दोहे, कहानी, लघुकथा, साक्षात्कार, ललित निबंध, पुस्तक समीक्षा ही नहीं बल्कि, कला, तकनीकी, पर्यावरण, विज्ञान, इतिहास, परंपरा, चिकित्सा, संगीत, लोक, संस्कृत आदि पर आधारित उत्कृष्ट रचनाएं प्रकाशित होती हैं जो सृजनगाथा डॉट कॉम को एक संपूर्ण वेबमैग्जीन साबित करती हैं । यहाँ इंटरनेट के अल्प जानकारों और युनिकोड़ फोंट में कार्य जानने वाले रचनाकारों को अंक संपादित करने का मौका भी उपलब्ध किया जा रहा है जिसमें दिल्ली के आईआईटी के छात्र शैलेष भारतीय ने युवा अंक का संपादन खास उल्लेखनीय है ।

इंटरनेट पर हिंदी में कामकाज करने की सुविधा के बावजूद यह विडंबना ही है भारतीय और खासकर जनपदीय संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्टित कराने के लिए भारतीय युवाओं, लेखकों और संगठनों सहित शासकीय उपक्रमों में कोई खास रूझान नज़र नहीं आ रहा है परन्तु यहाँ मानस की साधना की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने इस दिशा में भी अपना काम प्रारंभ कर दिया है । यहाँ इस बात का खास चर्चा होनी चाहिए कि ऐसे समय में जब दिल्ली से बैठे-बैठे दो-चार इंटरनेट विशेषज्ञ अपने तथाकथित छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी प्रेम को प्रदर्शित करने के नाम पर छत्तीसगढ की कमजोरियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत कर रहे हैं जयप्रकाश मानस का कर्म कम खास नहीं जिनके एक विस्तृत आलेख छत्तीसगढ़ के साहित्यकार नामक लेख को स्वयं विश्व इनसायक्लोपीडिया(विकिपीडिया) वालों ने अपनी हिंदी विकिपीडिया में रखने का अनुरोध किया और आज आज वह विश्वकोश का अंग बन चुका है । मानस बताते हैं – “मैं इंटरनेट पर पश्चिम जर्मनी से संचालित इस खुली इनसायक्लोपिडिया पर छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति, इतिहास, पत्रकारिता और विभिन्न मुद्दों को शामिल करने की परियोजना पर भी अपना सक्रिय हूँ । पर समय, धन और तकनीकी सहयोग के कारण यह धीमी गति से ही हो पायेगा । कोई शासकीय प्रोत्साहन या संस्थागत सहयोग भी तो दूर-दूर तक नज़र नहीं आता ।” इतना ही नहीं श्री मानस के कई शोध आलेख आज कई तरह के विश्वकोश और संदर्भकोश वाले संस्थाओं के वेबसाइट में समादृत हो चुके हैं ।

विश्वकोष में छत्तीसगढ़ के कवियों की धमक
छत्तीसगढ़ के साहित्यिक बिरादरी और संस्कृति को वैश्विक क्षितिज तक पहुँचाने की ललक रखने वालों के लिए यह सुखद प्रसंग होगा कि इंटरनेट पर विश्व हिंदी कविता कोश की एक बृहत परियोजना में जयप्रकाश मानस एक संपादक के रूप में भूमिका निभा रहे हैं । www.hi.literature.wikia.com/wiki/ विकिपीडिया तकनीक पर आधारित हिंदी कविता का विश्वकोश है जो पाँच देशों के 5 तकनीकी विशेषज्ञ और संपादकों द्वारा संचालित हो रहा है जिसके पहले चरण में छत्तीसगढ़ राज्य के अति प्रतिष्ठित तीन कवियों छायावाद के संस्थापक कवि पद्मश्री मुकुटधर पांडेय, सरस्वती के संपादक पदुमलाल पन्नालाल बख्शी और श्रीकांत वर्मा की कविताएं शामिल की जा चुकी हैं । अगले चरण में अन्य महत्वपूर्ण कवियों की 10-10 कविताएं सपरिचय इस महत्वपूर्ण इनसायक्लोपिडिया में प्रतिष्ठित करने का काम के प्रति मानस लगातार जुटे हुए हैं । इसके लिए वे लगातार भारत के कई प्रांतो में बसे हिंदी कवियों से उनकी कविता का संग्रह कर रहे हैं । ज्ञातव्य हो कि इस कोश में पहले चरण में हिंदी के अति प्रतिष्ठित कवियों की 1000 से अधिक वेबपेज जुड़ चुके हैं तथा इस साइट को कई देशों के विश्वविद्यालयों के हिंदी और भाषा विभागों ने अपने छात्रों के लिए अनिवार्य संदर्भ के रेंखांकित कर रहे हैं । श्री मानस के इन योगदानों अर्थात् हिंदी इंटरनेटिंग के क्षेत्र में अभियानात्मक कार्य के लिए अमेरिका के एक विश्वविद्यालय ने तो उन्हें शोध की मानद डिग्री का आमंत्रण भी दिया है जो किसी भी छत्तीसगढ़िया और हिंदी सेवी के लिए सुखद और गर्व की बात हो सकती है ।

यदि इसी गति से मानस जैसे लोग जुटे रहे तो हजारों किमी दूर अफ्रीका के किसी गाँव से भी छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ की सभ्यता और संस्कृति के बारे में इतमीनान से जाना-समझा जा सकेगा । जैसा कि मानस स्वयं कहते हैं – इंटरनेट पर हिंदी माध्यम से सामग्री को लाना केवल मनोरंजन या साहित्यिक कार्य नहीं यह तो हिंदी को विश्व पर प्रतिष्ठा दिलाने का अभियान सा है जो आज दूसरे स्थान पर है । इसे हम प्रथम स्थान पर लाये बिना नहीं थम सकते । वैश्विक दुनिया के इस दौर में छत्तीसगढ़ की संस्कृति और साहित्य को प्रतिष्ठित कराने के लिए ऐसी शुरुआतों में साथ देने लिए निश्चय ही जागरुक लोग और संस्थायें सामने आयेंगी । इधर सरगुजा जैसे सुदूर और तकनीकी मामले में कथित रूप से पिछड़े इलाके से सरगुजा डॉट कॉम और राजधानी से दो अखबारों ने भी अपने अखबारों को वेबमीडिया में रखना प्रारंभ किया है । इतना तो विश्वास किया जाना चाहिए कि भविष्य में छत्तीसगढ़ अपनी वैश्विक छवि सूचना और संचार की प्रचलित प्रौद्योगिकी के सहारे गढ़ सकेगा ।
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0राम पटवा
प्रकाशन अधिकारी
संस्कृति संचालनालय
छत्तीसगढ़ शासन
रायपुर, छत्तीसगढ़

माइक्रोसॉफ्ट की कार्यशाला रायपुर में 11 अप्रैल को संपन्न


छात्र प्रशांत रथ को विशेष आमंत्रण

रायपुर । विश्व की सुप्रसिद्ध आईटी एवं सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट द्वारा रायपुर में एक कार्यशाला का आयोजन होटल बेबीलोन में आगामी 11 नवंबर को किया गया । आईटी एवं कंप्यूटर के विशेष उपयोग से जुड़े लोगों को माइक्रोसाफ्ट के उत्पादों के बेहत्तरीन उपयोग से परिचित कराने के लिए देश भर में माइक्रोसॉफ्ट इंडिया द्वारा कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ में आयोजित कार्यशाला में छत्तीसगढ़ की पहली वेब पत्रिका सृजनगाथा डॉट कॉम के तकनीकी संपादक और वेब मास्टर प्रशांत रथ सहित सृजनगाथा से जुड़े 2 अन्य सदस्यों को विशेष तौर पर माइक्रोसॉफ्ट के दिल्ली कार्यालय द्वारा सीधे आमंत्रित किया गया । ज्ञातव्य हो कि लिटिल फ्लॉवर इंग्लिश स्कूल में अध्ययनरत 13 वर्षीय इस छात्र द्वारा छत्तीसगढ़ में वेब-पत्रकारिता की तकनीकी शुरूआत करते हुए आज से 12 माह पूर्व प्रथम वेब पत्रिका सृजनगाथा डॉट कॉम बनाया गया था जो 40 से अधिक देशों में चर्चित और साहित्य की मासिक पत्रिका है । तत्पश्चात छत्तीसगढ़ी भाषा में पहली पत्रिका लोकाक्षर और पत्रकारिता पर केंद्रित मीडिया विमर्श नामक ऑनलाइन इंटरनेट पत्रिका भी बनाया जा चुका है ।

छत्तीसगढ़ में माइक्रोसॉफ्ट की भारतीय इकाई द्वारा आयोजित पहली कार्यशाला का विषय ‘जुडिए प्रगति के साथ’ रखा गया था। इस कार्यशाला में माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के विशेषज्ञ तथा स्माल बिजीनेस स्पेश्लिट कम्यूनिटी के अनुभवी अधिकारियों के साथ चयनित प्रतिभागियों को चर्चा का विशेष अवसर मुहैया कराया गया । कार्यशाला माइक्रोसॉफ्ट आफिस, विंडो विस्टा, माइक्रोसॉफ्ट डायनामिक्स, विंडो स्माल बिजीनेस सर्वर ब्रांच के संयुक्त तत्वाधान में किया गया । यह कार्यशाला होटल बेबीलोन में संपन्न हुई । कार्यशाला में तीन सत्रों में चर्चा की गई । इन सत्रों का विषय था- बेटर टुगेदर- आफिस 2007 एंड विस्टा, फर्स्ट सर्वर राइट सर्वर ऑपरचुनेटी, लाइसेंसिंग, गेट जेनुइन सोल्यूशन आदि।

(राम पटवा की रिपोर्ट)