7/07/2009

प्रमोद वर्मा सम्मान का मतलब


विश्वरंजन
प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान एक पंजीकृत संस्थान है जिसका गठन छत्तीसगढ़ में जन्मे एक महत्वपूर्ण कवि, लेखक, आलोचक, नाटककार और शिक्षाविद प्रमोद वर्माजी के मूल्यनिष्ठ कार्यों को जिन्दा रखने एवं प्रदेश की सांस्कृतिक चेतना को संपूर्ण देश में प्रतिष्ठा दिलाने के लिए किया गया है। पं. माधवराव सप्रे, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, मुक्तिबोध, श्रीकांत वर्मा तथा प्रमोद वर्मा इत्यादि ने न केवल छत्तीसगढ़ की ज़मीन अपितु समूचे राष्ट्र में आधुनिक संवेदनाओं को विस्तार दिया है । सच्चे अर्थों में वे छत्तीसगढ़ के ऐसे आइकॉन रहे हैं जिनसे यह राज्य अखिल भारतीय स्तर पर बौद्धिकों में शुमार होता है । ऐसे लोगों का सम्मान सांस्कृतिक राज्य छत्तीसगढ़ का सम्मान है ।

मुझे इस संस्थान का अध्यक्ष पुलिस महानिदेशक की हैसियत से नहीं बल्कि प्रमोद वर्मा के मित्र और शिष्य होने की हैसियत से बनाया गया है । उनकी साहित्यिक समझ को विकसित करने में, उसमें त्वरा या तेज़ी लाने में छत्तीसगढ़ के प्रमोद वर्मा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । जो प्रमोद वर्मा को जानते हैं, उन्हें बखूबी मालूम है कि प्रमोद वर्मा की नज़र में नेता, अभिनेता, अधिकारी का कोई महत्व नहीं था जब तक उसमें गहरी संवेदना परिलक्षित नहीं होती । प्रमोद वर्मा एक साहित्यिकार होने के नाते एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने परिस्थितियों के साथ कभी समझौता नहीं किया ।

इधर कुछ लोग उन पर होने वाले दो दिवसीय अखिल भारतीय आयोजन को लेकर तरह-तरह की टिप्पणी कर रहे हैं । ज़ाहिर है ये वो लोग हैं जो न प्रमोद वर्मा को जानते हैं, न ही साहित्य-संस्कृति की धरोहर को बरक़रार रखने में उनकी कोई दिलचस्पी है । उनकी सांस्कृतिक समझ नगद-नारायण की पूजा तक सीमित है जिससे वे दुनिया खरीदना चाहते हैं । वे नहीं जानते कि प्रमोद वर्मा वह शख्स हैं जिनके नाम पर पूरे हिन्दुस्तान में जो सांस्कृतिक और साहित्य की समझ रखनेवाले लोग हैं वे तन-मन-धन और कर्म से आगे आ जायेंगे । ये ऐसे लोग हैं जिनके लिए किसी का सिर्फ पुलिस महानिदेशक होना सामान्य विषय है ।

छत्तीसगढ़ को पहचान दिलानेवाले ऐसे संस्कृति रचयिता के ऐसे विरोधियों को प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के उद्देश्य और स्वप्न से परिचित होना भी आवश्यक है ताकि वे अपनी गिरेबां में झांकने की कोशिश कर सकें कि राज्य की पहचान सिर्फ़ सड़क, पानी, बिजली और उद्योग ही नहीं होते उसकी निजी अस्मिता भी होती है । मनुष्य का बौद्धिक और सांस्कृतिक विकास भी होता है । प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के उद्देश्यों में प्रमुख है –

प्रमोद वर्मा समग्र का प्रकाशन -

रचना शिविर-प्रदेश के विशेष कर दूरस्थ अंचलों के नवोदित,संभावनाशील युवा लेखकों की रचनात्मकता के दिशाबद्ध प्रोत्साहन के लिए प्रत्येक वर्ष निःशुल्क लेखन शिविर का आयोजन किया जायेगा जिसमें देश के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार, भाषाविद्, संस्कृति कर्मी, कलाकार मार्गदर्शन देंगे। इन शिविरों में पिछड़े, आदिवासी, दलित जाति के उभरते हुए रचनाकारों को विशेष प्राथमिकता दी जायेगी । कला, साहित्य, संस्कृति एवं वैचारिकी का एक राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन किया जायेगा।

राष्ट्रीय आलोचना सम्मान - वर्ष-2009 से प्रमोद वर्मा की स्मृति में दो सम्मान प्रारंभ किये जा चुके है जिसमें देश के दो आलोचकों को प्रत्येक वर्ष प्रमोद वर्मा राष्ट्रीय आलोचना सम्मान दिया जा रहा है । इसमें से एक सम्मान युवा वर्ग हेतु सुरक्षित रखा गया है । सम्मान स्वरूप 21 एवं 11 हज़ार रुपये की नगद राशि, प्रतीक चिन्ह, प्रशस्ति पत्र, शॉल श्री फल एवं प्रमोद वर्मा समग्र की प्रति भेंट की जायेगी । वर्ष 2009 के लिए चर्चित आलोचक श्रीभगवान सिंह, भागलपुर एवं युवा आलोचक श्री कृष्णमोहन, वाराणसी को प्रदान किया जा रहा है ।

व्याख्यानमाला - संस्थान द्वारा प्रमोद वर्मा स्मृति व्याख्यानमाला की श्रृंखला शुरू की जायेगी, इस दिशा में वर्ष में नियमित रूप से चार व्याख्यान आयोजित किये जायेंगे, जिसमें देश के महत्वपूर्ण रचनाकारों, विचारकों, आलोचकों को सुना जायेगा ।

प्रमोद वर्मा स्मृति संग्रहालय - प्रमोद वर्मा की स्मृति को जीवंत बनाये रखने, उन पर शोध कार्य करने वालों को प्रोत्साहित करने वाले विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए बिलासपुर में प्रमोद वर्मा स्मृति संग्रहालय की स्थापना की जायेगी जो एक उन्नत लायब्रेरी के रूप में भी विकसित होगी ।

शिष्य-वृति - प्रमोद वर्मा द्वारा विकसित किये गये जीवन-मूल्यों तथा स्वयं उनके द्वारा लिखित साहित्य पर शोध करने वाले छात्रों को प्रति वर्ष शिष्य-वृति प्रदान की जायेगी । इस रूप में चयनित शोधार्थियों को प्रतिवर्ष प्रतिमाह 5 हज़ार रुपये की राशि प्रदान की जायेगी ।

कृति प्रकाशन - प्रत्येक वर्ष आलोचना, कविता एवं नाटक पर केंद्रित 3 महत्वपूर्ण पांडुलिपियाँ आमंत्रित कर उनका प्रकाशन संस्थान द्वारा किया जायेगा । इस महती योजना में अप्रकाशित रचनाकारों लेखकों को वरीयता दी जायेगी जिनकी पांडुलिपियों का चयन एक संपादक मंडल द्वारा किया जायेगा ।

परिसंवाद- कला, संस्कृति, सभ्यता और आधुनिक जीवन से जुड़े मुद्दों पर वैचारिक विमर्श हेतु परिसंवाद, परिचर्चा का आयोजन वर्ष भर किया जायेगा जिसमें विभिन्न अनुशासनों के विद्वानों की प्रतिभागिता रेखांकित होगी। इन आयोजनों से नवागत पीढ़ी सहित समाज के विभिन्न वर्गों का संवेदनीकरण किया जायेगा।

प्रतियोगिताओं का आयोजन - समकालीन कला, साहित्य, संस्कृति के विभिन्न विधाओं और उनके युवा रचनाकारों सहित विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जायेगा और उन्हें सामाजिक स्वीकृति दिलाने के पुरस्कृत किया जायेगा । इसमें लुप्तप्राय विधाओं और उसके रचनाकारों को प्रमुखता दी जायेगी ।

स्मरण - मूल्यांकन - भूलने वाले इस दौर में देश के ऐसे महत्वपूर्ण रचनाकारों की कृतित्व के मूल्याँकन हेतु राष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठी, विमर्श आदि का आयोजन तथा प्रकाशन किया जायेगा, जिनका योगदान हिन्दी संस्कृति में विशिष्ट है । जिसमें देश भर के संपादकों, समीक्षकों, आलोचकों एवं वरिष्ठ साहित्यकारों को जोड़ा जायेगा ।

प्रमोद वर्मा स्मृति हिन्दी भवन - राज्य शासन की मदद से राजधानी में प्रमोद वर्मा स्मृति हिन्दी भवन का निर्माण कराया जायेगा । इससे विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं के आयोजन, राजधानी में ठहरने वाले साहित्यकर्मियों को प्रश्रय मिलेगा और राजधानी में नियमित सांस्कृतिक सम्मिलन को गति मिल सकेगी ।

वेबसाइट का संचालन - प्रमोद वर्मा जी के साहित्य, विचार को वैश्विक बनाने के लिए एक वेबसाइट (www.pramodverma.com) का संचालन किया जा रहा है ।

राज्य स्तरीय साहित्यकर्मी डायरेक्टरी प्रकाशन-राज्य के सभी जिलों और विशेष कर दूरदराज के संस्कृतिकर्मियों, लेखकों के नाम-पते और उनकी विधाओं की जानकारी एक साथ संग्रहीत कर प्रकाशन करना।

इसमें जनता भी सहयोग कर रही है और हम शासन से भी सहयोग की अपेक्षा करते हैं क्योंकि यह एक पंजीकृत संस्थान है । इमसें केदारनाथ सिंह, दिल्ली, डॉ. विजय बहादुर सिंह, कोलकाता, डॉ. विश्वनाथ तिवारी, गोरखपुर, डॉ. धनंजय वर्मा, भोपाल आदि जैसे राष्ट्रीय ख्याति के साहित्यकार संरक्षक हैं । संस्थान के संस्थापक सदस्यों में राज्य के वरिष्ठ बुद्धिजीवी, शिक्षाविद् एवं साहित्यकार सम्मिलित हैं । संस्थान के अपने नियम-कायदे बायलाज है जिसके अनुसार सारी गतिविधियों का संचालन हो रहा है । संस्थान का समस्त समस्त लेखा-जोखा पारदर्शी रखा गया है जिसे कोई भी किसी समय आकर अपनी आँखों से देख सकता है । जो लोग इस संस्था में आर्थिक सहयोग कर पा रहे हैं उन्हें बकायदा संस्थान द्वारा रसीद-दिया गया है ।


राज्य हित में सक्रिय और ऐसे पारदर्शी संस्थानों के विकास की न सोचकर उन पर प्रश्नचिन्ह लगानेवालों को यह भी समझने की कोशिश करनी चाहिए कि देश के किसी शासकीय अधिकारी को संविधान के नियमों द्वारा कला, साहित्य, संस्कृति और विज्ञान के क्षेत्र में काम करने को अनुचित नहीं ठहराया गया है ।

ऐसे मिथ्या आरोपों, कुप्रचारों, कुंठाओं और छूछे निरंकुशता से संस्थान को कोई हानि नहीं होनेवाली है और न ही संस्थान अपनी गतिविधियों पर विराम लगानेवाली......

विश्वरंजन
अध्यक्ष, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान
रायपुर, छत्तीसगढ़

2 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

आदरणीय विश्वरंजन जी ,आपको यह स्पष्टीकरण देने की कतई आवश्यकता नहीं है कि आपको इस संस्थान का अध्यक्ष क्यों बनाया गया .न ही किसीको यह पूछने का हक़ है इसलिये कि आदरणीय प्रमोद जी को दिवंगत हुए इतने वर्ष हो गये यहाँ किसने उनकी सुध ली . जो समर्थ थे और जो उनकी स्मृति को स्थायी बनाने के लिये कुछ कर सकते थे वे भी आगे नहीं आये अत: यह प्रश्न ही निरर्थक है . प्रमोद जी ने अपनी राष्ट्रीय छवि के बावजूद इस राज्य के कलमकारों को साहित्य के संस्कार देने का भरपूर प्रयास किया .उनकी पारखी दृष्टि सदैव यहाँ नई सम्भावनायें तलाशती रही वे यदि कुछ समय और जीवित रहते तो देश के साहित्यिक पटल पर यहाँ से कुछ और नाम उभर कर आते .इस अवसर पर उनकी स्मृति को नमन तथा आपको इस महत्वपूर्ण कार्य के लिये अनेक शुभकामनायें - भवदीय शरद कोकास sharadkokas.60@gmail.com

Jitendra Dave ने कहा…

विश्वरंजन जी आपने बिलकुल सही और भागीरथ प्रयास का बीडा उठाया है. तमाम अवरोधों के बावजूद आपके प्रयासों को ईश्वर साकार करें यही कामना है. संस्थान के सभी कार्यकर्ताओं को नमन.. सादर शुभकामनाएं.