राजनीति शब्द से ही जैसा कि स्पष्ट हो जाता है कि राज करने अथवा राज चलाने सम्बन्धी नीति को ही राजनीति कहा जाता है। यहाँ यह समझ पाने में अधिक परेशानी नहीं होनी चाहिए कि राज करने या चलाने जैसी अति संवेदनशील एवं गम्भीर ज़िम्मेदारी को अंजाम देने के लिए इस पेशे में शामिल व्यक्ति को अत्याधिक योग्य, दक्ष, ईमानदार, समाज में स्वीकार्य तथा कुशल नेतृत्व प्रदान कर पाने की क्षमता रखने वाला व्यक्ति होना चाहिए। अशोक सम्राट, चन्द्रगुप्त, चाणक्य जैसे राजनीति के सिद्ध पुरूषों से लेकर सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लालबहादुर शास्त्री तथा इंदिरा गांधी सरीखे देश के सुप्रसिद्ध राजनैतिक महापंडितों तक भारतीय राजनीति का इतिहास ऐसे तमाम राजनैतिक दिग्गजों के नामों से भरा पड़ा है जिन पर न सिर्फ़ भारत की जनता बल्कि स्वयं देश की राजनीति भी गर्व महसूस करती है।
वास्तव में यह हमारे देश का सौभाग्य है कि प्राचीनकाल से ही हमारे देश को राजनीति के क्षेत्र में ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं मिलीं जिन्होंने अपने तमाम राजनीतिक फैसलों के द्वारा देश को आगे ले जाने, देशवासियों को न्याय देने, तथा देश की प्रगति और विकास में अपनी योग्यताओं एवं प्रतिभाओं का भरपूर इस्तेमाल किया। यदि हम आज के समय में पश्चिमी देशों की साम्राज्यवादी नीतियों के कारण विश्व के बिगड़ते हुए हालात पर नज़र डालें तथा प्रभावित देशों में मच रही तबाही व बर्बादी एवं आए दिन होने वाले कत्ले आम पर गौर करें तो हमें अपने देश के कुशल राजनीतिज्ञों की योग्यता पर यह सोचकर और भी गर्व होता है कि 200 वर्षों की गुलामी के बाद भी किस प्रकार उनके द्वारा बिना किसी भीषण संघर्ष किए देश को अंग्रजों की गुलामी की बेडिय़ों से मुक्ति दिलाई गई। देश की आजादी को आज 62 वर्ष बीत चुके हैं। स्वतन्त्र भारत दुनिया के अन्य विकासशील देशों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ता हुआ विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होने की तैयारी कर रहा है। यह सत्य है कि देश की विकास सम्बन्धी एक-एक ईंट में हमारे ही देश के कुशल नेतृत्व का पूरा योगदान है। परन्तु यदि इसी सिक्के के दूसरे पहलू पर हम आज नजर डालें तो हमें कुछ ऐसे तथ्य नजर आते हैं जिन्हें देखकर हमारी नजरें शर्म से झुक जाती हैं।
उदाहरण के तौर पर कल के नेताओं में बलिदान का जज़्बा था, वे नि:स्वार्थ सेवा भाव के साथ अपने पूरे कौशल एवं योग्यता के बल पर प्रभावी राजनीति किया करते थे। ऐसी राजनीति जिसमें कि नैतिकता एवं सिद्धान्त कूट-कूट कर भरे होते थे। ठीक इसके विपरीत आज की राजनीति मुख्य रूप से सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्य को केन्द्र बिन्दु मानकर किया जाने वाला एक ऐसा पेशा बन कर रह गई है जिसमें अनपढ़, गुण्डे, बदमाश, लफंगे, स्वार्थी, धनार्जन की इच्छा रखने वाले, अखबारबाजी व प्रेस नोट की राजनीति कर अपने नाम को जनता के मध्य उछालने वाले तथा छल कपट के द्वारा राजनीति के क्षेत्र में अपना स्थान बनाने तथा अपना नाम रौशन करने वालों की भीड़ नजर आती है, जिसके परिणामस्वरूप देश की तरक्क़ी उस रफ़्तार से नहीं हो पा रही है जैसी कि होनी चाहिए। राजनीति में नैतिकता की न सिर्फ कमी होती दिखाई पड़ रही है बल्कि ऐसा लगने लगा है कि राजनीति जैसे पवित्र पेशे के लिए नैतिकता की बात करना ही कोई अनैतिक वार्तालाप बनकर रह गया हो। पारदर्शिता नाम की चीज सियासत से खत्म होती जा रही है और तो और इसी प्रदूषित एवं निम्नस्तरीय स्वार्थी एवं भ्रष्टï राजनीति की वजह से ही स्वयं देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी को यह स्वीकार करना
पड़ा था कि विकास के नाम पर एक रूपया जब केन्द्र सरकार पंचायत के विकास कार्योंके लिए रवाना करती है तो पंचायत तक आते-आते वह एक रूपया मात्र 25 पैसे ही रह जाता है। स्व० राजीव गांधी का साफ कहना था कि 75 पैसे देश के खोखले राजनैतिक ढांचों तथा भ्रष्टï राजनैतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था की भेंट चढ़ जाता है। आज कांग्रेस का भविष्य समझे जाने वाले युवा नेता राहुल गांधी ने भी दो दशकों बाद अपने पिता की उसी सोच पर अपनी मुहर लगाते हुए यह पुर्णतय: स्वीकार किया है कि देश का राजनैतिक ताना-बाना हरगिज ठीक नहीं है। प्रश्न यह है कि यदि देश का राजनैतिक ढांचा चुस्त दुरूस्त एवं पारदर्शी हो तो क्या इस प्रकार के राजनैतिक व प्रशासनिक ह्रïास की कल्पना की जा सकती है। शायद नहीं।
दरअसल आज राजनीति में प्रवेश करने वाले लोगों पर यदि हम नजर डालें तो हमें यह देखकर दु:ख होगा कि इनमें अधिकांश वह लोग दिखाई देते हैं जो अशिक्षित होने के अलावा अपने जीवन के तमाम क्षेत्रों में असफल होने के बाद सफेद कुर्ते-पायजामे सिलवा कर समाज सेवा की आड़ लेकर राजनीति में सक्रिय हो गये हैं। ऐसे तत्वों की सक्रियता एक ओर तो राजनीति के क्षेत्र में इसलिए भी बढ़ती गई क्योंकि देश की जनसंख्या के साथ-साथ बेराजगारी भी अपने चरम पर पहुँच चुकी है। दूसरी तरफ ऐसे अपरिपक्व एवं असमाजिक लोगों के राजनीति में बढ़ते प्रवेश को देखकर योग्य, ईमानदार तथा देश सेवा का जज़्बा रखने वाले उन तमाम लोगों ने अपने आपको राजनीति के क्षेत्र से दूर रखना शुरू कर दिया जो असमाजिक तत्वों की राजनीति में घुसपैठ को कतई उचित नहीं समझते हैं। शरीफ एवं सज्जन व्यक्तियों द्वारा राजनीति से मुंह मोड़ लेने की घटना ने तीसरे दर्जे के ऐसे लोगों को इतना अधिक प्रोत्साहित किया कि आज राजनीति में जहाँ इनका वर्चस्व साफ नजर आता है वहीं योग्य एवं सज्जन राजनीतिज्ञ या तो राजनीति के दल-दल से दूर होता जा रहा है या फिर सक्रिय होते हुए भी स्वयं को असहाय एवं निष्प्रभावी महसूस करने लगा है। आज का आधारहीन तथाकथित नेता अपने आकाओं को तोहफे भेंट कर, अखबार नवीसों को तमाम प्रकार की 'भेंट देकर अपने राजनैतिक गॉडफादर के पक्ष में उसकी तारीफों के पुल बांधने वाले प्रेस नोट जारी कर स्वयं को सफल राजनीतिज्ञ मानता है। कोई दूसरे देशों के झण्डे जलाकर अपनी राजनीति चटकाता है तो कोई अफसरों व अन्य वरिष्ठï नागरिकों को स्मृति चिन्ह भेंटकर उन्हें सम्मानित करने के बहाने अपना ही मान-सम्मान बढ़ाने का प्रयास करता है। कोई अपने साथ चार लोगों को लेकर सड़कों पर दहशत फैलाने, कारों व जीपों में बैठकर तेज रफ़्तार से गाड़ी चलाने को ही सफल राजनीति मानता है तो कोई राष्ट्रीय राजमार्ग पर शहीदों की फोटो से लैस गाडिय़ों पर पिकनिक मनाए जाने की घटना को 'रथयात्रा का नाम देकर स्वयं को एक महान रथयात्री की श्रेणी में स्थापित करने का प्रयास करता है। अपराधियों की राजनैतिक सक्रियता का भी केवल एक ही उद्देश्य होता है, अपनी जान बचाना तथा शासन प्रशासन का संरक्षण प्राप्त करना। जाहिर है अपने इस उद्देश्य के लिए वे किसी एक राजनैतिक दल के साथ किसी सिद्धांतों के तहत बंधे नहीं होते। वे उसी दल के साथ होते हैं जो दल उनकी सुरक्षा की पूरी गारन्टी लेता हो।
उपरोक्त हालात को देखकर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे.एम.लिंगदोह द्वारा देश के राजनीतिज्ञों के बारे में की गई हंगामा खेज टिप्पणी ठीक ही प्रतीत होती है। साथ-साथ हमें भी इस निर्णय पर पहुँचने के लिए बाध्य होना पड़ता है कि देश की राजनीति के वर्तमान गिरते हुए स्तर के लिए काफी हद तक नेताओं की कमजोर नर्सरी ही ज़िम्मेदार है। यदि देश को इस नासूर से मुक्ति दिलानी है तो ऐसी व्यवस्था करनी पड़ेगी जिससे कि शिक्षित, योग्य, ईमानदार एवं नीतियों व सिद्धांतों पर विश्वास रखने वाले समर्पित लोग ही सक्रिय राजनीति में भाग ले सकें।
निर्मल रानी
1630/11, महावीर नगर,
अम्बाला शहर,हरियाणा
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