5/12/2009

भारत भवन में विश्वरंजन का कविता पाठ


भोपालभारत भवन में शुक्रवार को छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक और जाने-माने कवि विश्वरंजन का कविता पाठ हुआ। यह कार्यक्रम भारत भवन के वागर्थ की पाठ श्रंखला के अंतर्गत आयोजित किया गया था।


उन्होंने कविता पाठ कि शुरुआत ‘यह कविता मेरी नहीं सबकी है, मंत्र की भांति उठती है जमीन, समुद्र से आज भी, साथ लिए आदिम ध्वनियों की कंपन और एक जबदस्त कोशिश’ से की। अपनी अगली रचना पढ़ते हुए उन्होंने कहा, ‘शब्द बोलते-बोलते मौन होंगे सहसा॥, ऐसे लिखते-लिखते रोशनाई सूख जाती है, एक अर्से तक होता रहा तूलिका व रंग का खेल.. पर सहसा एक दिन रंग बिखरते-बिखरते गिरने लगा परत दर परत’।


इसके बाद श्रोताओं के अनुरोध पर ‘अंधेरे से लड़ने के लिए एक स्वप्न का होना बेहद जरूरी हैं, अध खुली खिड़की से झांकता अंधेरा॥खुली किताब फड़फड़ाते पन्ने, कोई नहीं है यहां..टेबल पर बिछ जाएगी लैंप की रोशनी.. यह सब जानते है हुए भी नहीं मानूंगा हार.. स्वप्न पैदा करूंगा उनकी आंखों में’का पाठ किया। इसके पहले विश्वरंजन ने कहा कि भारत भवन को बहुत अर्से पहले बनते और बढ़ते देखा है। यहां आकर सभी से मुखातिब होना अपने आप में एक अलग अनुभूति है। इस अवसर पर डीआईजी (इंटेलिजेंस) अनुराधा शंकर सिंह, आईजी (कानून व्यवस्था) संजीव सिंह, संस्कृति सचिव मनोज श्रीवास्तव, मदन सोनी, नवल शुक्ल आदि उपस्थित थे।

1 टिप्पणी:

दीपक ने कहा…

उनकी कविता पढने को मिलती और और अच्छा लगता !!