8/22/2006

पं. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल नहीं रहे

पं. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल की स्मृतियों की गंध सदियों तक रहेगी

रायपुर, 20 अगस्त ।छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एवं साहित्यकार-चिंतक-समाजसेवी संस्कृति पुरुष पंडित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल के असामयकि निधन के बाद आज वैभव प्रकाशन परिसर में छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति तथा सृजन-सम्मान संस्था के द्वारा श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया । छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों ने पंडित शुक्ल को आधुनिक छत्तीसगढ़ का साहित्य-संस्कृति का निर्माता बताया । ज्ञातव्य हो कि श्री शुक्ल का 20 अगस्त को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया ।

प्रारंभ में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सचिव डॉ. सुधीर शर्मा ने पं. शुक्ल का विस्तृत जीवन करिचय दिया । समिति के कार्यकारी अध्यक्ष श्री गिरीश पंकज ने भावविभोर होकर संस्मरण सुनाए और उन्होंने कहा कि ऐसे महापुरुष दुनिया में कम ही पैदा होते हैं । श्री शुक्ल मूलतः कवि थे। कवि बसंत दीवान ने कहा कि धर्म-संस्कृति,आध्यात्म पर वे अधिकारपूर्वक बोलते थे। डॉ. चित्तरंजन कर ने कहा कि पं. शुक्ल में गुणग्राहिता अत्यधिक थी। वे लोगों की प्रतिभा का सम्मान करते थे। साहित्यकार होने के कारण वे राजनीति में खरे उतरे । हाइवे चैनल संपादक प्रभाकर चौबे ने कहा कि संसदीय परंपरा –संस्कृति के वे आधार-स्तंभ ते । उन्होंने उनकी युवावस्था के चित्र प्रस्तुत किए । संगीतविद् प्रो. गुणवंत व्यास ने कहा कि वे कला एवं संगीत के क्षत्र में भी दिलचस्पी रखते थे। प्रो. विनोद शंकर शुक्ल ने रायपुर में उनकी साहित्यिक सक्रियता का स्मरण किया । वे साहित्य को प्रथम प्राथमिकता देते थे।

विधानसभा के पूर्व जनसंपर्क प्रमुख एच.एस.ठाकुर ने कहा कि उनके व्यक्तित्व के आसपास ऐसी संस्था विद्यामान रहती थी जिसके चारों ओर एक आभा मंडल प्रकाश बिखरा रहता था । छत्तीसगढ़ में साहित्यिक –सास्कृतिक वातावरण का निर्माण उन्होंने किया । वरिष्ठ पत्रकार श्री बसंत तिवारी ने बताया कि राजनीति में साहित्य के स्वभाव प्रेरणा उन्हें पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र से मिली । साहित्य-संस्कृति और समाजसेवा में कार्यरत लोगों को ही पीढ़ियां याद करती हैं , इस कार्य को राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल ने समझ लिया था। डॉ. महेशचंद्र शर्मा ने कहा कि रामायण मेरे की सफलता का जिक्र किया । वे तुलसी के उपासक थे। सृजन-सम्मान के महासचिव श्री राम पटवा ने कहा कि आज का दिन अत्यंत दुखद है। श्री शिवकुमार त्रिपाठी ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वे सचमुच में सद्भावना के सिपाही थे। डॉ. शोभाकांत झा ने कहा कि वे लोगों को पहली नज़र में जान जाते थे।

श्रद्धांजलि सभा में रायपुर दूरदर्शन केंद्र निदेशक श्री बैकुण्ठ पाणिग्रही ने कहा कि प्रथम विधानसभा के समय का दृश्य मुझे याद है। उनसे बेझिझक मिला जा सकता था। वे निर्भीक सहज-सरज थे।

श्रद्धांजलि सभा मे हिंदी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष श्री रमेश नैयर ने कहा कि वे पत्रकारिता के मूल्यों को समझते थे। वे राष्ट्रीय मुद्दों पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विचार व्यक्त करते थे। उनके मन की व्यथा को वे सूक्तियों में व्यक्त किया करते थे। उनका निवास साहित्य का तीर्थ बन गया था। पं. शुक्ल की स्मृतियों की गंध समूचे छत्तीसगढ़ में सदियों तक फैलता रहेगा। कवि श्री रामेश्वर वैष्णव ने कहा वे प्रखर चिंतक,मुखर वक्ता एवं शिखर राजनीतिज्ञ थे।

श्रद्धांजलि सभा में आसिफ इकबाल, सुरेन्द्रनाथ पाठक, जयप्रकाश मानस ,ऋषिराज पांडेय, पी. अशोक शर्मा, आदेश ठाकुर,राजेश केशरवानी, के.के. सिंह, रामेश्र्वर वैष्णव सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, साहित्यकार एवं पत्रकार उपस्थित थे। समिति के अखिल भारतीय महामंत्री अनंतराम त्रिपाठी, राजेन्द्र जोशी आदि ने दूरभाष पर श्रद्धांजलि दी है।

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