8/21/2007

बाढ़ का कहर और देश का विकास



प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी देश के कई राज्य भयंकर बाढ़ की चपेट में रहे। इनमें सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य पहले की तरह बिहार राज्य ही चिन्हित किया गया। यहाँ एक करोड़ से अधिक लोगों के जनजीवन को बाढ़ ने प्रभावित किया। सैकड़ों लोग इस प्रलयकारी बाढ़ की भेंट चढ़ गए। हजारों मवेशी मारे गए। लाखों एकड़ फसल तबाह हो गई। जब बाढ़ और बारिश का सिलसिला थमा तो बाढ़ के उपरान्त फैलने वाली बीमारियों ने बाढ़ पीड़ित लोगों के जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया। परन्तु इसमें भी कोई शक नहीं कि बाढ़ की मार झेलने को ही अपनी नियति मान बैठने वाली बिहार की बहादुर व अति सहनशील जनता पुन: अपने दैनिक जीवन की व्यस्तताओं में पूर्ववत जुट गई। और शायद अब यही जनता करने लगी होगी प्रतीक्षा अगले वर्ष आने वाली संभावित बाढ़ की।

अभी मात्र कुछ माह पूर्व की ही तो बात है जबकि भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री ए पी जे अब्दुल कलाम ने बड़े उत्साहवर्धक वातावरण में इसी वर्ष जनवरी महीने में पटना में अनिवासी भारतीयों के एक सम्मेलन को संबोधित किया था। इस सम्मेलन में कलाम साहब ने उम्मीद जताई थी कि 2015 तक बिहार राज्य को देश के सबसे विकसित राज्य के रूप में पहचाना जाएगा। तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय यह भी कह चुके हैं कि हरित क्रांति की शुरुआत अब बिहार राज्य से किए जाने की ज़रूरत है। प्रश् यह है कि क्या बाढ़ में डूबे हुए बिहार को देखकर इस बात की कल्पना भी की जा सकती है कि यही राज्य वह राज्य है जिसके बारे में भारत के महान स्वप्दर्शी राष्ट्रपति ने देश के सबसे विकसित राज्य बनाए जाने का सपना देख रखा था? क्या इस प्रलयकारी बाढ़ के दृश्य देखने के पश्चात किसी अनिवासी भारतीय व्यवसायी से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह ऐसी प्राकृतिक विपदाओं को देखने के बावजूद बिहार में पूंजी निवेश भी करेगा?

इस वर्ष बिहार में आई बाढ़ के परिणामस्वरूप जहाँ प्रकृति के तबाही के दृश्य अत्यन्त भयानक व दयनीय थे वहीं इस बार बिहार से जुड़े राजनेताओं ने भी एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने तथा एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई अवसर गँवाना नहीं चाहा। सबसे बड़ी गैर जिम्मेदारी का काम तो स्वयं मुख्यमंत्री नीतिश कुमार द्वारा किया गया। वे बिहार में बाढ़ आने की चेतावनी सुनने के बावजूद अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार विदेश दौरे पर चले गए तथा विदेश में पांच सितारा वातावरण में बैठकर बाढ़ की त्रासदी झेल रही बिहार की जनता के विषय में जानकारी प्राप्त करते रहे। उन्होंने अपने विदेश दौरे को न्यायसंगत बताते हुए यह कहने में भी कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं की कि उनका दौरा तो बिहारवासियों के लिए गर्व की बात है। नीतीश कुमार के विरोधी नेताओं ने भी बाढ़ प्रभावितों की सहायता किए जाने पर तो कम ध्यान दिया जबकि मुख्यमंत्री के मॉरिशस दौरे की आलोचना में अधिक समय गँवाया। नीतीश कुमार सरकार के सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी के नेता व राज्य के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने तो लालू यादव को निशाना बनाते हुए कहा कि यदि लालू जी बिहार की समस्त रेलगाड़ियों को समय पर नियमित रूप से चलवा दें तो बाढ़ पीड़ितों को उपयुक्त सहायता समय पर पहुंचाई जा सकती है। जाहिर है मोदी का यह वक्तव्य केवल व्यंग्य मात्र ही था। क्योंकि बाढ़ में डूबी हुई रेललाईनों पर समय से व नियमित रूप से रेलगाड़ी चलाए जाने की कल्पना आंखिर कैसे की जा सकती है। तो क्या सुशील मोदी को लालू यादव पर व्यंग्य कसने का यही एक अवसर मिला था?

इसमें कोई शक नहीं कि भारतवर्ष इस समय जिन भीषण त्रासदियों के दौर से गुजर रहा है उनमें सूखा व बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदाएं भी शामिल हैं। यह न सिर्फ़ भारी आर्थिक क्षति का कारण बनती हैं बल्कि इनसे जान व माल की भी बड़ी तबाही होती है। यह ऐसी प्राकृतिक त्रासदी है जो गरीबी को जन्म देती है। और आगे चलकर यही गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा और अराजकता की राह तय करती है। यहाँ फिर यही प्रश्न उठता है कि क्या बिहार सहित अन्य बाढ़ प्रभावित राज्यों की जनता इसे अपनी नियति मानकर ही ख़ामोश बैठ जाए और हमेशा बाढ़ के दिनों में अपनी तबाही का मंजर अपनी ही आँखों से देखने के लिए विवश रहे। क्या यही बाढ़ जहाँ प्रभावित लोगों की तबाही के दृश्य प्रस्तुत करे वहीं यही बाढ़ राजनेताओं द्वारा किए जाने वाले हवाई सर्वेक्षण के रूप में उनके व उनके परिवारजनों के मनोरंजन का साधन मात्र बनकर रह जाए?

जी नहीं। भारत को 2020 तक विकसित राष्ट्र बनाए जाने का संकल्प करने वाले जनता के राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम ने देश के विकास हेतु जो खाका तैयार किया है तथा उनमें जिन प्रमुख योजनाओं को लागू किए जाने की ज़रूरत महसूस की है उन्हीं में से एक प्रमुख योजना है सभी भारतीय नदियों को आपस में जोड़ा जाना। हालांकि गत् 10 वर्षों से इस विषय पर सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर चर्चाएं होती रही हैं। परन्तु इस दिशा में प्रगति के कोई संकेत अभी तक नज़र नहीं आ रहे हैं। हाँ इतना ज़रूर है कि इस अति विशाल परियोजना से असहमति रखने वाले कुछ राज्यों ने इस परियोजना की आलोचना करने वाले अपने विरोधी स्वर ज़रूर बुलंद किए हैं। निश्चित रूप से नदियों को जोड़ने वाली परियोजना बहुत बड़ी व ख़र्चीली योजना है। परन्तु इसमें कोई शक नहीं कि इस विशाल परियोजना के पूरा होने के बाद न सिर्फ़ अनचाही बाढ़ से देशवासियों को राहत मिल सकेगी बल्कि बाढ़ का यही पानी सूखी पड़ी नदियों में जाकर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सिंचाई हेतु भी प्रयोग में लाया जा सकेगा।


परन्तु राजनीति प्रधान इस देश में जहाँ समस्याओं को ही राजनीति का केंद्र बिंदु माना जाता है, क्या इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि बाढ़ व सूखे जैसी विकराल समस्या से निपटने हेतु राजनेताओं द्वारा नदियों को जोड़े जाने जैसे गंभीर विषय को लेकर कोई रचनात्मक कदम उठाया जा सकेगा? न सिर्फ़ बिहार सरकार बल्कि और भी कई राज्यों में छिछली नदियों के आसपास की आबादी को बाढ़ के प्रकोप से बचाने हेतु बड़े-बड़े बांध बनाने का कार्य किया जाता है। बाढ़ रोकने के इस काम चलाऊ उपाय से हालांकि जनता को कुछ समय के लिए राहत जरूर मिल जाती है परन्तु प्राय: यही बांध टूटते या दरार पड़ते भी देखे जाते हैं जिनसे बाढ़ जैसी तबाही पुन: आ जाती है। तमाम स्थान तो ऐसे हैं जहाँ बांध बनाने का कार्य चलते रहने के दौरान ही बाढ़ आ जाती है तथा बांध बनाने हेतु की जाने वाली सारी शुरुआती कोशिशें व इन पर होने वाला भारी ख़र्च सब कुछ बाढ़ की भेंट चढ़ जाता है। राजनीतिज्ञों की इच्छा के अनुरूप इसी प्रकार यही 'सिलसिला' अगले वर्ष फिर नए सिरे से शुरु हो जाता है।

भारत भले ही विकसित राष्ट्र बनने की दौड़ में शामिल हो गया हो परन्तु आर्थिक रूप से अभी भी भारत एक गरीब देश ही है। यहाँ प्रत्येक वर्ष पानी में बह जाने वाली लघुकालीन एवं अस्थाई राहत योजनाओं के बजाए उन दीर्घकालीन एवं स्थाई योजनाओं को लागू किए जाने व उनपर अमल किए जाने की ज़रूरत है जो देशवासियों को स्थाई रूप से राहत पहुंचा सके। भारत के समस्त राजनैतिक दलों, उनके नेताओं व समस्त भारतवासियों को कलाम साहब के उन शब्दों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि जब तक समस्त भारतवासियों के चेहरे पर मुस्कान नहीं आती तब तक भारत को खुशहाल राष्ट्र नहीं कहा जा सकता।

अत: आज ज़रूरत है ऐसी ही दीर्घकालीन योजनाओं की जोकि समस्त भारतवासियों के चेहरे पर मुस्कान लाने का कारण बन सकें। भारतीय नदियों को आपस में जोड़े जाने की परियोजना भी एक ऐसी ही परियोजना है जो देशवासियों को बाढ़ व सूखे जैसी त्रासदी से तो निजात दिलाएगी ही साथ-साथ देश को विकसित राष्ट्र बनाए जाने की दिशा में भी मील का पत्थर साबित होगी। ज़रूरत है इसे तत्काल लागू किए जाने व इसे तत्काल कार्यान्वित किए जाने की।

-तनवीर जाफ़री
(सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी)
22402, नाहन हाऊस
अम्बाला शहर। हरियाणा

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