आखिर आप क्या सोचते हैं?
रायशुमारी हेतु विचार आमंत्रित
रायशुमारी हेतु विचार आमंत्रित
रायपुर। नक्सली हिंसा के खिलाफ चल रहे आदिवासियों के स्वः स्फूर्त सत्याग्रह “सलवा जुड़ुम” के खिलाफत कर इसे बंद करने की मांग लगातार की जा रही है। जबकि बस्तर में नक्सली हिंसा के चलते निरीह निर्दोष आदिवासी लोग बैमौत मारे जा रहे हैं।
ऐसे समय में अभिव्यक्ति की आजादी के हिमायती समय-समय पर सलवा जुड़ुम को बंद करने की मांग पता नहीं किससे करते हैं ? इसमें देश के बड़े-बड़े तथाकथित समाजसेवी, संगठन, बुद्धिजीवी भी हैं जो इन दिनों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता से रायपुर आकर मानव अधिकार के नाम से हो हल्ला मचा कर एक तरह से नकस्लवाद को हवा दे रहे हैं । अगर वे सरकारों से मांग कर रहे हैं तो मुगालते में है क्योंकि ये आंदोलन 5 जून 2005 को फरसगढ़ थाना के अंबेली गांव से स्वः स्फूर्त शुरु हुआ है और इससे नक्सलादियों का असली चेहरा सामने आ गया है।
उधर जनता की मान्यता है कि आदिवासियों के हक के लिए शुरू हुई सहस्त्र क्रांति का चरित्र ही बदल गया है। असहाय आदिवासी और निर्दोष ही मारे जा रहे हैं । सारे राज्य में एक अदृश्य आतंक छाया हुआ है । सबसे बड़ी बात की आदिवासी ही इस हिंसा के शिकार हो रहे हैं । ऐसे समय में जन सरोकार के मुद्दों से जुड़ी संस्था लोकमान्य सद्भावना समिति एवं मिनीमाता फाउंडेशन ने इस मुद्दे पर जनता की राय आमंत्रित की है।
संस्था के अध्यक्ष तपेश जैन एवं रामशरण टंड़न ने सभी वर्गों से “नक्सली हिंसा या सलवा जुड़ुम बंद किया जाए ?” विषय पर उनका अभिमत अधिकतम 300 शब्दों तक 30 जून 207 तक आमंत्रित किया है। इसके साथ ही पासपोर्ट साईज फोटो एवं पूरा पता भी संलग्न किया जाना होगा ।
प्राप्त विचारों को पुस्तक के रुप में प्रकाशित कर आम लोगों को और देश भर में अवगत कराया जायेगा।
विचार इस पते पर भेज सकते हैं-
लोकमान्य सद्भावना समिति, जैन बाड़ा बैजनाथपारा रायपुर (छ.ग.) ।
रामशरण टंडन
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