6/17/2007

कलाम: आम भारतीयों की पहली पसंद


भारत को विकसित राष्ट्र बनाए जाने जैसे महान एवं अभूतपूर्व दर्शन से रूबरू करवाने वाले भारत के अब तक के सबसे अधिक लोकप्रिय राष्ट्रपति भारत रत्न डा. ए पी जे अब्दुल कलाम का कार्यालय 24 जुलाई 2007 को समाप्त हो रहा है। भारत में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर सरगर्मियाँ अपने पूरे चरम पर हैं। इस संबंध में कई सर्वेक्षण एजेन्सियों द्वारा अनेक स्तरों पर जो सर्वेक्षण कराए गए हैं तथा उनके जो परिणाम सामने आए हैं, उन्हें देखकर सांफतौर पर यही लगता है कि राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए डा. कलाम अब भी देश के आम नागरिकों, विशेषकर युवाओं व छात्रों की पहली पसंद हैं। परन्तु इस प्रकार के सर्वेक्षण मात्र सर्वेक्षण ही हुआ करते हैं। इनके आधार पर राष्ट्रपति का चुनाव नहीं हो सकता।

भारत में सत्तारूढ़ रही पिछली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन डी ए) की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में कलाम के नाम को राष्ट्रपति के रूप में प्रस्तावित किया गया था जिसका नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी कर रही थी। 2002 में गुजरात में हुए देश में अब तक के सबसे बड़े मुस्लिम विरोधी दंगों से आहत व भयभीत भारतीय मुसलमानों के आँसू पोंछने के लिए तथा दुनिया को अपना धर्म निरपेक्ष स्वरूप दिखाने के लिए भारतीय जनता पार्टी द्वारा कलाम जैसे सन्तरूपी महान ब्रह्मचारी एवं वैज्ञानिक व्यक्ति को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया गया था। यह कैसी विडम्बना है कि कल राजनैतिक स्वार्थ की जिस पराकाष्ठा ने कलाम के नाम को राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित किया था आज राजनैतिक स्वार्थ की वही पराकाष्ठा कलाम को राष्ट्रपति पद का पुन: उम्मीदवार बनाए जाने में सबसे बड़ी बाधा साबित हो रही है।

24 जुलाई को अपना कार्यकाल पूरा करने जा रहे राष्ट्रपति कलाम ने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान न सिंर्फ अपने आपको देश का अब तक का सबसे लोकप्रिय, हर दिल अजीज, स्पष्टवादी, निष्पक्ष, तथा दूरदर्शी राष्ट्रपति साबित किया बल्कि वे अपने महान दर्शन के चलते देश का भविष्य समझे जाने वाले युवाओं एवं छात्रों के लिए एक महान आदर्श व्यक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित कर पाने में भी पूरी तरह सफल रहे। अपने पूरे कार्यकाल के दौरान उनकी चिंताएं मुख्य रूप से इन्हीं प्रमुख मुद्दों पर केंद्रित रहीं कि भारत को 2020 तक किस प्रकार विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया जाए। कलाम ने अपने कार्यकाल के दौरान राजनीति में व्याप्त अनैतिकता तथा इसके निरंतर गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त की। वे हमेशा सुदृढ़ एवं आत्मनिर्भर राष्ट्र के पक्षधर रहे। वे सदैव आतंकवाद व गरीबी जैसे दानव के विरुद्ध खुली जंग का आह्वान करते रहे। उन्होंने हमेशा देश की आर्थिक, कृषि तथा सामरिक आत्मनिर्भरता की जबरदस्त वकालत की तथा इसके लिए हमेशा प्रयासरत भी रहे। बच्चों को देश का भविष्य मानने वाले भारतरत्न कलाम ने भारत में बच्चों पर बढ़ रहे अत्याचारों पर हमेशा अपनी गहन चिंता व्यक्त की। तथा इन सबसे बढ़कर देश का नासूर साबित होने वाली रिश्वतख़ोरी, भ्रष्टाचार, राजनैतिक अनैतिकता तथा साम्प्रदायिकता व जातिवाद जैसी बातों के वे हमेशा प्रबल विरोधी रहे।

कलाम के इसी उपरोक्त दर्शन ने आज उन्हें पुन: राष्ट्रपति पद हेतु देश का सबसे लोकप्रिय उम्मीदवार बना दिया है। कोई सर्वेक्षण एजेन्सी उन्हें 60 प्रतिशत लोकप्रियता के आधार पर प्रथम स्थान दे रही है तो कोई अन्य सर्वेक्षण एजेन्सी 54 प्रतिशत लोकप्रियता के आधार पर उन्हें प्रथम श्रेणी में रखे हुए है। इतना ही नहीं बल्कि एक सर्वेक्षण एजेन्सी का तो यह भी दावा है कि 60 प्रतिशत प्रभावशाली सांसद भी व्यक्तिगत रूप से कलाम को ही राष्ट्रपति पद के लिए अपनी पहली पसंद बता रहे हैं। प्रश्न यह है कि फिर आंखिर कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी जैसे देश के बड़े राजनैतिक दल कलाम को अपना उम्मीदवार बनाने से क्यों हिचकिचा रहे हैं? यदि सर्वेक्षण के आधार पर कलाम ही देश की आम जनता की पहली पसंद हैं तो वे समस्त राजनैतिक दलों की पहली पसंद क्यों नहीं? यह कितना महत्वपूर्ण प्रश्न है कि जब डा. कलाम ने अपने वर्तमान कार्यकाल के दौरान न सिर्फ देशवासियों के मध्य गहन लोकप्रियता अर्जित की, राष्ट्रपति पद की गरिमा को बनाए रखा तथा दुनिया में भी अपने महान आदर्शों के चलते देश का गौरव बढ़ाया, फिर आखिर कलाम को पुन: उम्मीदवार बनाए जाने हेतु बड़े राजनैतिक दलों में आपसी सहमति का वातावरण क्यों नहीं बन पा रहा है? यहां यह बात याद रखनी चाहिए कि कलाम के राष्ट्रपति पद पर चुने जाने के बाद तीसरे दर्जे की सोच रखने वाले कुछ सत्तालोभी पेशेवर राजनैतिक लोगों ने कलाम के राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होने के पश्चात अपनी प्रतिक्रिया में यह कहा था कि भारत के राष्ट्रपति के पद पर किसी वैज्ञानिक के बजाए किसी पेशेवर राजनीतिज्ञ को ही निर्वाचित होना चाहिए था।

दरअसल ऐसे ही पेशेवर स्वार्थी राजनीतिज्ञों की नकारात्मक सोच कलाम को पुन: राष्ट्रपति बनने से रोकना चाह रही है। अपने कार्यकाल के दौरान कई विवादित विधेयकों को लेकर कलाम ने भारतीय संसद को 'आईना' दिखाने का प्रयास किया है। एक से अधिक बार राष्ट्रपति महोदय ऐसे विवादित विधेयक संसद में पुनर्विचार हेतु वापिस भी भेज चुके हैं। जाहिर है भारत सरकार की 'रबर स्टेम्प' के रूप में प्रसिद्ध हो चुके राष्ट्रपति के इस पद पर कलाम जैसा स्पष्टवादी, दूरदर्शी एवं बेबाक व्यक्ति भारतीय राजनीति के गले के नीचे कैसे उतर सकता है। देश के विकास के लिए भले ही कलाम ने कितने ही सपने क्यों न संजो रखे हों तथा भारतीय युवाओं के समक्ष कलाम कितने ही बड़े स्वप्दर्शी आदर्श पुरुष क्यों न हों परन्तु भारत के सफेदपोश राजनीतिज्ञों को कलाम जैसा व्यक्ति संभवत: अपनी इन्हीं विशेषताओं के चलते नहीं भाता।

यहां कलाम के विषय में कुछ और बातें बताना न्यायसंगत हैं। अपने कार्यकाल के दौरान कलाम ने राष्ट्रपति भवन की पिछली सभी परम्पराओं व सीमाओं को तोड़ते हुए राष्ट्रपति भवन के प्रवेश द्वार को आम लोगों, जिज्ञासु व्यक्तियों, बच्चों, विशेषकर छात्रों तथा अपनी फरियाद लेकर आने वाले आम लोगों के लिए खोल दिया था। जबकि यही राष्ट्रपति द्वार उनके अपने सगे संबंधियों व रिश्तेदारों के लिए बन्द हो गया था। कलाम ने राष्ट्रपति पद के अपने प्रथम चुनाव से पूर्व भी अपनी उम्मीदवारी हेतु सिंफारिश ढूँढने (लॉबिंग) का न तो काम किया था और इस बार भी वे ऐसा नहीं कर रहे हैं। बल्कि कलाम साहब तो राष्ट्रपति पद के दूसरे कार्यकाल की उम्मीदवारी हेतु अपनी अनिच्छा भी जाहिर कर चुके हैं। कलाम अपने कार्यकाल को पूरा करने के बाद अपने सबसे लोकप्रिय, सार्थक एवं रचनात्मक पेशे अर्थात् अध्यापन की ओर वापस जाना चाहते हैं। हालांकि भारतीय राजनीति पर निष्पक्ष रूप से अपनी गहरी नंजर रखने वाले लोगों का भी यही मानना है कि कलाम जैसे महान वैज्ञानिक एवं दूरदर्शी व्यक्ति ने राष्ट्रपति जैसे देश के सर्वोच्च पद पर बैठकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की गरिमा को निश्चित रूप से बढ़ाया है। परन्तु रचनात्मक रूप से वे देश को उतना कुछ नहीं दे सके जितना कि वे इस सर्वोच्च पद पर बैठे बिना दे सकते थे। इसका कारण एकमात्र भारतीय संविधान में निहित राष्ट्रपति के सीमित अधिकार ही हैं। अर्थात् जब संसद ही सर्वोच्च है तो राष्ट्रपति अपने आप ही असहाय बन जाता है। ऐसे में चाहे कलाम जैसा व्यक्ति ही राष्ट्रपति क्यों न हो परन्तु उसे करना तो उतना ही है जितना कि उसके अधिकार क्षेत्र में शामिल है।

लिहाज़ा आम भारतीय नागरिक तो इसी उम्मीद में बैठा है कि ईश्वर सभी राजनैतिक दलों को सद्बुद्धि दे कि वे अपनी पारम्परिक राजनैतिक कलाबाजियों से बाज आकर तथा अपनी सीमित व स्वार्थी सोच का त्याग कर कलाम जैसे महान व्यक्ति को पुन: राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुने जाने में अपनी सहमति बनाएं। अन्यथा आंखिरकार मजबूरीवश कलाम के प्रशंसकों को तो यही सोचना पड़ेगा कि न तो कलाम को भारतीय राजनीति रास आई न ही भारतीय राजनीतिज्ञों को कलाम जैसा स्पष्टवादी एवं आदर्शवादी महान वैज्ञानिक रास आया। अब इसे देश के भविष्य के लिए शुभ लक्षण माना जाए या अशुभ कि भारत को 2020 तक विकसित राष्ट्र का स्वप् दिखाने वाले इस महान पुरुष की उम्मीदवारी के नाम पर राजनैतिक दलों की सहमति ही नहीं बन पा रही है। और यदि ऐसा होता है तो निश्चित रूप से देश के लिए इससे बड़ा शुभ लक्षण और क्या होगा। मेरे जैसे अति दूरदर्शी व्यक्ति का तो यहाँ तक मानना है कि भारतीय संसद को एकमत होकर कलाम साहब को 2020 तक के लिए भारत के राष्ट्रपति पद पर बने रहने दिया जाना चहिए। भले ही देश हित के लिए इस विषय पर संविधान में संशोधन ही क्यों न करना पड़े।


तनवीर जांफरी
सदस्य हरियाणा साहित्य अकादमी
2240/2, नाहन हाऊस
अम्बाला शहर, हरियाणा

1 टिप्पणी:

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सहमत!

श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने कहीं पर कहा था कि राष्ट्रपति पद पर दुबारा निर्वाचन सही नही।

लेकिन जब हमारे हां के अपराधी सांसद विधायक दुबारा चुने जा सकते हैं, एक ही आदमी दल बदल कर कई बार मंत्री बन सकते हैं तो कलाम साहम जैसा व्यक्ति दुबारा राष्ट्रपति क्यों नही बनाया जा सकता।