9/06/2007

बेसहारों का सहारा थीं मदर टेरेसा


5 सितम्बर: पुण्यतिथि पर विशेष

विश्व इतिहास ऐसे अनेकों समाजसेवियों तथा समाज के प्रति समर्पित सद् पुरुषों, महात्माओं, ऋषियों, मुनियों व सन्तों के नामों से भरा पड़ा है, जिन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों, दीन-दुखियों तथा असहाय लोगों की सेवा हेतु समर्पित कर दिया। प्रत्येक युग में ऐसे अनेकों अवतारी अथवा अवतारी कही जा सकने वाली हस्तियों ने जन्म लिया है। ऐसी ही एक अवतार रूपी महिला का नाम था मदर टेरेसा। 27 अगस्त 1910 को मैकेडोनिया में जन्मी मदर टेरेसा का सम्बन्ध अल्बानियाई परिवार से था। बताया जाता है कि 12 वर्ष की आयु में ही उन्हें ईश्वर की आवाज का आभास होने लगा था। चूंकि वे एक ईसाई परिवार में जन्मीं थीं इसलिए स्वाभाविक रूप से उनका पहला झुकाव अपने आराध्य प्रभु ईसा मसीह की ओर ही था। अत: बाल्यकाल में ही उन्होंने यीशू मसीह का प्रेम सन्देश जन-जन तक पहुंचाने का निर्णय लिया। 18 वर्ष की आयु में मदर टेरेसा ने अपना घर व परिवार त्याग दिया तथा एक ऐसी मिशनरी में शामिल हो गईं जोकि भारत में भी अपना कामकाज देखती थी। डबलिन में कुछ महीनों के प्रशिक्षण के बाद उन्हें मिशनरी की ओर से भारत भेज दिया गया। यहां 24 मई 1931 को मदर टेरेसा ने एक साधारण नन के रूप में अपना कार्यभार ग्रहण किया।
हालांकि मदर टेरेसा ने भारत की धरती पर कदम रखने के बाद सर्वप्रथम कोलकाता में 1931 से 1948 तक सेंट मेरी हाई स्कूल में एक शिक्षक के रूप में कार्य किया। परन्तु इस दौरान उन्होंने कोलकाता में रहते हुए अपने स्कूल की चहारदीवारी के बाहर गरीबी, भुखमरी तथा असहाय लोगों की जिस पीड़ा का दर्शन किया व उसे महसूस किया, उस पीड़ा ने मदर टेरेसा को अधिक दिनों तक उस स्कूल में शिक्षक के रूप में नहीं रहने दिया। मदर टेरेसा अपने स्कूल से बचे हुए समय में उन गरीबों व दुखियारों से मिलने उनकी गन्दी बस्तियों में अधिक से अधिक समय उन्हीं के साथ रहकर उनकी सेवा में बितातीं। दरअसल मदर टेरेसा प्रभु यीशू मसीह के प्रेम, सहयोग व सहायता के सन्देश को गिरिजाघरों में दिए जाने वाले पादरी के प्रवचनों तथा बाईबल में प्रकाशित प्रभु के कथनों से बाहर निकाल कर उसे धरातल पर लाना चाहती थीं। मदर टेरेसा इन दीन-दुखियों की सहायता के प्रति इतनी समर्पित व गंभीर हो गईं की 1948 में उन्हें अपनी मिशनरी की ओर से भी इस बात की इजांजत मिल गई कि वे शिक्षक का कार्य छोड़कर गरीब व असहाय लोगों की सहायता हेतु स्वयं को समर्पित कर दें। उन्होंने ऐसा ही किया। बिना किसी आर्थिक फंड के मदर टेरेसा ने मिशनरींज की मुख्यधारा से अलग हटकर तथा ईसाई धर्म प्रचार के शुद्ध एवं सीधे लक्ष्य को त्याग कर केवल और केवल सेवा को ही अपना धर्म वर् कत्तव्य मानकर उसी पर अमल करना शुरु कर दिया। खुले आसमान के नीचे जमीन पर बैठकर मदर टेरेसा ने उन गरीबों के बच्चों को जब पढ़ाना शुरु किया उस समय मदर के इस जज्बे को देखकर आम आदमी चकित रह गया। चिलचिलाती धूप हो या कंपकंपा देने वाली ठंड या फिर तेंज बारिश, दिन हो या अंधियारी रात, मदर को हर समय इन्हीं दीन-हीन दुखियों के पास देखा जाने लगा। मदर की इस तपस्या व त्याग का असर यह हुआ कि आम लोगों के बीच उनकी चर्चा होने लगी तथा आहिस्ता आहिस्ता समाज सेवा की भावना रखने वाले स्वयंसेवी मदर की ओर आकर्षित होने लगे।

मदर समाज के प्रत्येक उस व्यक्ति के सामने मददगार के रूप में खड़ी दिखाई देतीं जो प्राय: अपने ही घर परिवार, बिरादरी या समाज की उपेक्षा, उत्पीड़न या अवहेलना का शिकार होता था। आज के जमाने की सच्चाई भी यही है कि कोई भी वृद्ध व्यक्ति अपने ही परिवार में एक बोझ समझा जाने लगा है। दुर्भाग्यवश यदि किसी व्यक्ति को कुष्ठ रोग अथवा कोई ऐसी अन्य संक्रामक बीमारी हो जाती है तो उसके अपने परिवार के सदस्य ही उसे नंफरत की नज़र से देखने लगते हैं। उसे अछूत समझा जाने लगता है। इसी प्रकार यदि किसी गरीब परिवार की महिला तांकतवर लोगो के हाथों बलात्कार का शिकार हो जाए तो समाज ऐसी महिला को जीने नहीं देता। ऐसे लोगों के समक्ष आत्महत्या के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं बचता। परन्तु मदर ऐसे प्रत्येक व्यक्ति के समक्ष अवतार के रूप में खड़ी हो जातीं थीं। वे उसे सफलतापूर्वक यह समझातीं कि उसके साथ जो कुछ गुंजर रहा है उसमें चूंकि उसका कोई दोष नहीं है लिहाज़ा आत्महत्या का प्रयास करना ग़लत हैे। और इस प्रकार उसे अपनी ही छत्रछाया में अपने होम में रखकर उसे पूरा मान सम्मान देतीं व नए सिरे से नया व सम्मानपूर्ण जीवन जीने हेतु उसे प्रेरित करतीं। मदर टेरेसा की ऐसी ही कारगुज़ारियों ने आम आदमी को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया था कि वास्तव में मदर एक साधारण इंसान थीं या कलयुग के इस दौर में खुदा की तरंफ से इंसान के रूप में धरती पर भेजा गया एक फरिश्ता।

मदर टेरेसा की ऐसी कारगुज़ारियों के चर्चे धीरे धीरे पूरी दुनिया में होने लगे। विश्व के अनेकों देशों का बड़े से बड़ा सम्मान मदर को मिलने लगा। और सम्मानों का ज़िक्र ही क्या करना, 1979 में विश्व का सर्वोच्च सम्मान समझा जाने वाला नोबल शांति पुरस्कार मदर को प्राप्त हुआ। इसी प्रकार मदर टेरेसा को भारत में भी यहां के सर्वोच्च सम्मानों पदमश्री, नेहरू पुरस्कार यहां तक कि 1980 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। विश्व का शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जिसे विश्व के इतने सम्मान प्राप्त हुए हों। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि मदर ने अपने व्यक्तित्व को अपने समर्पित सेवा भाव के द्वारा इतना ऊंचा उठा दिया था कि विश्व के बड़े से बड़ा सम्मान उनके व्यक्तित्व की बुलंदी के सामने बौना लगने लगा था।
ऐसा भी नहीं कि उनके विरोधी या आलोचक बिल्कुल नहीं थे। भारत में हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाला वर्ग मदर टेरेसा का विरोधी था। इस विचारधारा के नेताओं का मानना था कि मदर टेरेसा समाज सेवा के बहाने धर्म परिवर्तन को प्रोत्साहन देती थीं। इन नेताओं का आरोप है कि मदर टेरेसा समाज सेवा की आड़ में ईसाईयत का प्रचार करती थीं तथा पीड़ित व्यक्ति की सेवा कर उसे ईसाई धर्म अपनाने हेतु प्रोत्साहित करती थीं। उनकी मृत्यु के समय जब उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम विदाई दी गई, उस समय भी इसी विचारधारा के संगठनों ने मदर टेरेसा को राजकीय सम्मान दिए जाने का विरोध किया था। यह वर्ग उन्हें भारत रत्न से नवांजे जाने का भी विरोधी था।

बहरहाल भारत भूमि का सदियों से यह इतिहास रहा है कि इस धरती पर न सिर्फ मदर टेरेसा बल्कि उन जैसे और भी तमाम सूंफी सन्त व फकीर चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने से क्यों न आए हों, वे यहां आकर यहीं की सोंधी मिट्टी व सर्वधर्म सम्भाव की खुशबूदार हवा में समाकर रह गए। मदर टेरेसा की आलोचना करने वालों को यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि मदर टेरेसा के होम में उसी व्यक्ति को पनाह की दरकार होती थी जो अपने समाज, बिरादरी व परिवार द्वारा तिरस्कृत किया जाता था चाहे वह किसी भी धर्म या सम्प्रदाय का क्यों न हो।

5 सितम्बर 1997 को नोबल शांति पुरस्कार विजेता, भारत रत्न मदर टेरेसा ने अपने करोड़ों प्रशंसकों व लाखों आश्रितों को अलविदा कहते हुए भारत के कोलकाता महानगर में अपनी अन्तिम सांस ली थी। इसमें कोई शक नहीं कि कोलकाता महानगर ही नहीं बल्कि पूरा देश इस बात के लिए स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस करता है कि अवतार रूपी मदर टेरेसा भारतवर्ष की मिट्टी में समाकर यहां की धरती को गौरवान्वित कर रही हैं। इस महान आत्मा को शत-शत नमन।



निर्मल रानी
163011, महावीर नगर,
अम्बाला शहर,हरियाणा।

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