9/23/2007

केवल भारत ही नहीं 'बाज़ीगरों' का देश

भारतवर्ष को स्वाधीन हुए हालाँकि 60 वर्ष बीत चुके हैं परन्तु अभी भी इस देश में ऐसी अनेकों घटनाएं होती रहती हैं जोकि हमारी नीयत, कार्यक्षमता, कार्यशैली यहाँ तक कि हमारी राष्ट्रभक्ति तक पर प्रश्चिह्न लगाती हैं। उदाहरण के तौर पर सरकारी प्रबंधन की कमियों के चलते किन्हीं क्षेत्रों में यदि बाढ़ या सूखे जैसे प्रकोप की स्थिति उत्पन्न होती है तथा उस स्थिति का सामना करने के लिए सरकार अथवा ग़ैर सरकारी संगठनों द्वारा बाढ़ या सूखा पीड़ित लोगों की सहायतार्थ कुछ राहत सामग्री अथवा धनराशि मुहैया कराई जाती है तो अधिकांशत: ऐसे स्थानों से यह समाचार सुनने को मिलता है कि राहत सामग्री अथवा नकद धनराशि के आबंटन में सरेआम धांधलीबाज़ी की जा रही है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस देश में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को यह तक दिखाई नहीं देता कि प्रभावित व्यक्ति किस हद तक ज़रूरतमंद है।

भ्रष्टाचार की इसी प्रवृत्ति ने देश में मिलावट का ज़हर भी घोल रखा है। खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर जीवन रक्षक दवाईयाँ, रोंजमर्रा प्रयोग में आने वाली तमाम वस्तुएं, मशीनरी के कलपुर्ज़े आदि सभी में मिलावट तथा नकली सामानों की भरमार देखी जा रही है। भ्रष्टाचार की यह बेल काफ़ी समय से निर्माण कार्यों में भी प्रवेश कर चुकी है। सड़कें, पुल व सरकारी इमारतों आदि में खुलमखुल्ला भ्रष्टाचार की ख़बरें अक्सर सुनाई देती हैं। इसके परिणामस्वरूप न सिर्फ़ देश को आर्थिक क्षति होती है बल्कि कभी-कभार भ्रष्टाचार के इन कारनामों के परिणामस्वरूप आम लोगों को अपनी जानें भी गंवानी पड़ जाती हैं।

भ्रष्टाचार के अतिरिक्त भी कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाएं इस देश में घटित होती हैं जो वास्तव में इन्सान को आश्चर्य में डाल देती हैं। जैसे कि 12 नवम्बर 1996 को हरियाणा राज्य के चरखी दादरी नामक कस्बे के आकाश में 14000 फ़ीट की ऊंचाई पर सऊदी एयरलाईन्स जम्बोजेट और कंजाक एयरवेंज इल्यूशिन चार्टर प्लेन का आकाश में ही आमने-सामने से टकरा जाना। ज्ञातव्य है कि इस आश्चर्यजनक हादसे में 351 लोग मारे गए थे। मुख्य मार्गों पर चलने वाली कारों, ट्रकों तथा बसों की आमने-सामने से होने वाली टक्कर तो केवल भारत की ही नहीं बल्कि इसे वैश्विक समस्या माना जा सकता है। परन्तु दो बड़े यात्री विमानों का 14000 फ़ीट की ऊंचाई पर आमने-सामने से टकरा जाना वास्तव में एक हैरतअँग्रेज़ घटना है। परन्तु इस दुर्घटना के पीछे का सत्य यह था कि दुर्घटना के दिनों में भारतीय पायलट हड़ताल पर थे। विदेशी पायलट्स को भारतीय विमान कम्पनियों द्वारा अपने विमान उड़ाने हेतु बुलाया गया था। विदेशी विमानों के पायलट तथा ट्रैंफिक कन्ट्रोल के मध्य भाषा व संदेशों को समझने में आने वाली समस्या काफ़ी रुकावट डाल रही थी। इसी के परिणामस्वरूप यह दुर्घटना घटित हुई। अर्थात् ए टी सी से संदेश कुछ और दिया गया तथा इत्तेंफांक से दोनों ही पायलटों द्वारा भ्रांतिवश उसी संदेश को कुछ और समझा गया। परन्तु इस दुर्घटना के तुरन्त बाद ही पश्चिमी देशों द्वारा भारतीय विमानन व्यवस्था का मंजाक उड़ाया जाने लगा। यहाँ तक कि कई पश्चिमी देशों के समाचार पत्रों में भारत को 'बाज़ीगरों', 'जादूगरों' व 'सपेरों' का देश कहकर सम्बोधित किया गया। और इसी विमान दुर्घटना की आड़ में कई तथाकथित आधुनिक देशों ने एयर ट्रैंफिक कन्ट्रोल से संबंधित अपनी करोड़ों रुपए की कई आधुनिक मशीनें, सिग्ल सिस्टम आदि भारत को बेच डाले।

इस प्रकार भारत के पंजाब राज्य में अभी मात्र तीन वर्ष पूर्व ही दो रेलगाड़ियों की भिड़ंत आमने-सामने से हो गई। दोनों ही रेलगाड़ियाँ एक ही पटरी पर परस्पर विपरीत दिशा से दनदनाती हुई चली आ रही थीं और वे आपस में टकरा गईं। इस हादसे में जान व माल की भारी क्षति हुई थी। पश्चिमी मीडिया में इस हादसे का भी मज़ाक उड़ाया गया था। वास्तव में यह हादसा था भी रेलकर्मियों की घोर लापरवाही व ग़ैर ज़िम्मेदारी को उजागर करने वाला। परन्तु भारत जैसे उस विशाल देश में जहाँ कि विश्व का सबसे बड़ा रेल जाल फैला हो, इस प्रकार के इक्का-दुक्का हादसे क्या इस बात के लिए काफ़ी होते हैं कि ऐसे हादसों के बाद तत्काल पूरे देश को 'सपेरों' या 'बाज़ीगरों' का देश कहकर पुकारा जाने लगे? क्या लापरवाही, निठल्लेपन या अयोग्यता के यह नज़ारे केवल भारत में ही दिखाई देते हैं, अन्य देशों में नहीं? भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान से लेकर विश्व के सबसे आधुनिक, शक्तिशाली व महान समझे जाने वाले अमेरिका जैसे देश में भी ऐसी तमाम घटनाएं होती रहती हैं जिन्हें देखकर हम भी यह कह सकते हैं कि भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ही 'सपेरों' या 'बाज़ीगरों' की दुनिया है।

अभी कुछ दिन पूर्व ही पाकिस्तान के कराची नगर में यातायात का एक बड़ा पुल उद्धाटन होने के मात्र एक सप्ताह के भीतर ही ढह गया। इस पुल का उद्धाटन पाक राष्ट्रपति परवेंज मुशर्रंफ द्वारा किया गया था। इस विशाल पुल के निर्माण में भारी लागत आई थी तथा प्रतिष्ठित सेतु निर्माण कम्पनी द्वारा इसे बनाया गया था। अचानक हुई इस दुर्घटना में कई लोग मारे भी गए थे। अब ऐसे सेतु निर्माण को जोकि 100 वर्षों के बजाए मात्र एक सप्ताह के भीतर ही अपनी आयु पूरी कर चुका हो इसे क्या कहा जाना चाहिए? क्या यह 'बाज़ीगरी' का एक नमूना कहा जाए? इसी प्रकार गत 1 अगस्त को अमेरिका के मिनिएपोलिस में मिसीसिपी नदी पर बना एक पुल अचानक ढह गया। इसमें भी काफ़ी लोग हताहत हुए। कहा जाता है कि अमेरिका, ब्रिटेन व और कई ऐसे सम्पन्न देश इस प्रकार के निर्माण के पूरा होने के समय ही निर्माण किए गए प्रोजेक्ट पर उसके समाप्त या अयोग्य होने की तिथि भी अंकित कर देते हैं। आख़िर मिसीसिपी के हादसे में ऐसा क्यों नहीं हो पाया? अमेरिका जैसे देश को स्वयं 'बाज़ीगरों' व 'सपेरों' जैसी राह क्यों तय करनी पड़ी? अमेरिका तो स्वयं को 'त्रिकालदर्शी' मानता है। फिर आख़िर उस 'त्रिकालदर्शी' को इस बात का अंदाज़ा क्यों नहीं हो सका कि मिसीसिपी नदी पर बना यह ऐतिहासिक पुल जिसपर कि लगभग 5 लाख वाहन प्रतिदिन गुंजरते हैं, अचानक किसी भी समय ढह सकता है।

यह तो था अमेरिका महान की इंजीनियरिंग 'बाज़ीगरी' का एक छोटा सा उदाहरण। राहत पहुँचाने व दैवी विपदाओं का सामना करने में भी अमेरिका कोई नेपाल या बंगलादेश से अधिक आधुनिक नहीं है। गत् कुछ वर्षों में अमेरिका ने कैटरीना व रीटा जैसे कई समुद्री तूंफानों का सामना किया है। इन तूफ़ानों की पूर्व सूचना मिलने के बाद भी अमेरिका अपने देशवासियों को इस प्राकृतिक विपदा के क़हर से बचा न सका। यहाँ तक कि हंजारों तूंफान पीड़ितों के मकान उजड़ गए। तमाम लोग घर से बेघर हो गए। अनेकों अपने रोंजगार गंवा बैठे। आज 4 वर्ष बीत जाने के बावजूद उन तूफ़ानों से प्रभावित व पीड़ित लोगों को न तो ठीक से राहत पहुँच पाई है न ही वे आत्मनिर्भर हो सके हैं। यहाँ तक कि कैटरीना व रीटा के बाद और भी तूंफानों का सिलसिला अमेरिका में जारी है परन्तु प्रभावितों को राहत के नाम पर वही 'बाज़ीगरों' व 'सपेरों' के देश जैसी कारगुज़ारियाँ।

ऐसी और भी तमाम बातें हैं जो हमें यह सोचने को बाध्य करती हैं कि केवल भारत को ही 'बाज़ीगरों' व 'सपेरों' का देश नहीं कहा जा सकता बल्कि स्वयं अमेरिका 'महान' भी इन्हीं देशों की सूची में आता है। अत: इस प्रकार के व्यंग्यबांण चलाने से पहले ज़रूरी है कि महान देशों द्वारा अपने देश की व्यवस्थाओं पर भी समुचित नज़र डाली जाए।

निर्मल रानी

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