इक्कीसवीं सदी की दुनिया बदल चुकी है. आज के व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताओं में रोटी कपड़ा और मकान के साथ-साथ इंटरनेट भी सम्मिलित हो चुका है. मोबाइल उपकरणों पर इंटरनेट की उपलब्धता और प्रयोक्ताओं की इंटरनेट पर निर्भरता ने इस विचार की सत्यता पर मुहर-सी लगा दी है. ऐसे में, इंटरनेट पर विविध रूपों में वेब पत्रकारिता भी उभर रही है. चिट्ठा यानी ब्लॉग को भी वेब पत्रकारिता का आधुनिक स्वरूप माना जा सकता है.
चिट्ठे – हर संभव विषय पर
यूं तो चिट्ठों का जन्म ऑनलाइन डायरी लेखन के रूप में हुआ और इसकी इस्तेमाल में सरलता, सर्वसुलभता और विषयों के फैलाव ने इसे लोकप्रियता की उच्चतम मंजिल पर चढ़ा दिया. आज इंटरनेट पर व्यक्तिगत स्तर पर लिखे जा रहे कुछ चिट्ठों की पाठक संख्या लाखों में है जो कि बहुत से स्थापित और प्रचलित पारंपरिक पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार संख्या से भी ज्यादा है. चिट्ठों में इनपुट नगण्य-सा है और आउटपुट अकल्पनीय. चिट्ठों में एक ओर आप किसी चिट्ठे पर लेखक के - सुबह किए गए नाश्ते का विवरण या फिर वो चाय किस तरह, किस बर्तन में बनाता है - जैसा बहुत ही साधारण और व्यक्तिगत विवरण पढ़ सकते हैं तो दूसरी ओर किसी अन्य चिट्ठे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की असामयिक-रहस्यमय मृत्यु पर शोघ परक आलेख भी. इंटरनेट पर तकनीकी व विज्ञान से संबंधित आलेखों की उपलब्धता का एकमात्र सर्वश्रेष्ठ साधन (हिन्दी में अभी नहीं, परंतु अंग्रेज़ी में) आज के समय में ब्लॉग ही हैं.
इंडिया ब्लॉग्स (http://www.labnol.org/india-blogs.html) में कुछ बेहद सफल भारतीय ब्लॉगरों की विषय-वार सूची दी गई है जिसमें व्यक्तिगत, साहित्य, हास्य-व्यंग्य, समीक्षा, फ़ोटोग्राफ़ी, फ़ाइनेंस, प्रबंधन, टीवी, बॉलीवुड, तकनॉलाज़ी, मीडिया, यात्रा, जीवन-शैली, भोजन, कुकिंग, तथा गीत-संगीत जैसे तमाम संभावित विषयों के ब्लॉग सम्मिलित हैं. यानी हर विषय पर हर रंग के लेख-आलेख और रचनाएँ ब्लॉगों में आपको मिल सकती हैं. सामग्री भी अंतहीन होती है. ब्लॉग की सामग्री किसी पृष्ठ संख्या की मोहताज नहीं है. यह अनंत और अंतहीन हो सकती है, और चार शब्दों की भी. यह बहुआयामी और बहुस्तरीय हो सकती है. फिर, यहाँ किसी मालिकाना-प्रबंधन की संपादकीय कैंची जैसी किसी चीज का अस्तित्व भी नहीं है – इसीलिए चिट्ठों में अकसर भाषा बोली के बंधन से अलग, एक कच्चे आम की अमिया का सा ‘रॉ’ स्वाद होता है.
चिट्ठे – द्वि-स्तरीय, तत्क्षण संवाद
पारंपरिक पत्रकारिता की शैली में संवाद प्रायः एक तरफा होता है, और विलम्ब से होता है. कोई भी रपट, पाठक के पास, तैयार होकर, संपादकीय टेबल से सरक कर सिस्टम से गुजर कर आती है. प्रिंट मीडिया में – जैसे कि अख़बार में - किसी कहानी के पाठक तक आने में न्यूनतम बारह घंटे तक लग जाते हैं. फिर, रपट को पढ़कर, सुनकर या देखकर पाठक के मन में कई प्रश्न और उत्तर अवतरित होते हैं. वह उत्तर देने को कुलबुलाता है, प्रश्न पूछने को आतुर होता है. मगर उसके पास कोई जरिया नहीं होता. उसके प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं और वह एक तरह से भूखा रह जाता है. चिट्ठों में ऐसा नहीं है. चिट्ठों में रपट तत्काल प्रकाशित की जा सकती है. उदाहरण के लिए, मोबाइल ब्लॉगिंग के जरिए आप किसी जाम में फंसकर वहाँ का हाल सीधे वहीं से प्रकाशित कर सकते हैं. ऊपर से यहाँ संवाद दो-तरफ़ा होता है. आप कोई रचना या कोई रपट या कोई अदना सा खयाल किसी चिट्ठे में पढ़ते हैं और तत्काल अपनी टिप्पणी के माध्यम से तमाम प्रश्न दाग सकते हैं. चिट्ठे पर लिखी सामग्री की बखिया उधेड़ कर रख सकते हैं. वह भी सार्वजनिक-सर्वसुलभ, और तत्क्षण. चिट्ठा मालिक आपके प्रश्नों का जवाब देता है तो दूसरे पाठक भी आपके प्रश्नों के बारे में अपने प्रति-विचारों को वहीं लिखते हैं. विचारों को प्रकट करने का इससे बेहतरीन माध्यम आज और कोई दूसरा नहीं हो सकता.
चिट्ठे – विविधता युक्त, लचीला माध्यम
पारंपरिक पत्रकारिता में लचीलापन प्राय: नहीं ही होता. माध्यम अकसर एक ही होता है. यदि पत्र-पत्रिका का माध्यम है तो उसमें चलचित्र व दृश्य श्रव्य माध्यम का अभाव होता है. रेडियो में सिर्फ श्रव्य माध्यम होता है व क्षणिक होता है तो टीवी में दृश्य श्रव्य माध्यम होता है परंतु पठन सामग्री नहीं होती और यह भी क्षणभंगुर होता है. किसी खबर का कोई एपिसोड उस खबर के चलते तक ही जिंदा रहता है उसके बाद वह दफ़न हो जाता है. दर्शक के मन से उतर जाता है. चिट्ठों में ये सारे माध्यम अलग-अलग व एक साथ रह सकते हैं. किसी घटना की विस्तृत रपट आलेख के साथ, चित्रों व आडियो-वीडियो युक्त हो सकते हैं, और दूसरे अन्य कड़ियों के साथ हो सकते हैं जहाँ से और अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है. और ये इंटरनेट पर हर हमेशा, पाठक के इंटरनेट युक्त कम्प्यूटर से सिर्फ एक क्लिक की दूरी पर उपलब्ध रहते हैं.
चिट्ठे – व्यावसायिक पत्रकारिता के नए पैमाने
गूगल के एडसेंस जैसे विचारों ने चिट्ठों में व्यावसायिक पत्रकारिता के नए पैमाने संभावित कर दिए हैं. पत्रकार के पास यदि विषय का ज्ञान है, वह गंभीर है, अपने लेखन के प्रति समर्पित है, तो उसे अपनी व्यावसायिक सफलता के लिए कहीं मुँह देखने की आवश्यकता ही नहीं है. चिट्ठों के रूप में उसे अपनी पत्रकारिता को परिमार्जित करने का अवसर तो मिलता ही है, उसका अपना चिट्ठा उसकी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी सक्षम होता है. और, इसके एक नहीं अनेकानेक, सैकड़ों उदाहरण हैं.
निकट भविष्य में चिट्ठे पारंपरिक पत्रकारिता को भले ही अप्रासंगिक न बना पाएँ, परंतु यह तो तय है कि आने वाला भविष्य वेब-पत्रकारिता का ही होगा और उसमें चिट्ठे प्रमुख भूमिका निभाएंगे.
- रविशंकर श्रीवास्तव
2 टिप्पणियां:
आपने बहुत अच्छा विषय उठाया और लगभग वे सारीं बातें समेट ली हैं जो वेब मीडिया के बारे में कही जा सकती हैं.
भविष्य में चिट्ठे वैकल्पिक मीडिया होंगे. ज्यादा देर नहीं है. शायद 2009 में हम आप विस्तार के साथ-साथ बेलगाम हो चुके वेब मीडिया में नैतिकता की बहस कर रहे होंगे.
जानकारी से भरपूर लेख है. आखिरी पेराग्राफ तक आते आते लगा कि कौन हो जो इतना अच्छा लिखता है. अचानक देखा कि यह तो रविशंकर श्रीवास्तव का लेख है. तभी तो यह इतनी अधिक जानकारी समेट है -- शास्त्री जे सी फिलिप
आज का विचार: चाहे अंग्रेजी की पुस्तकें माँगकर या किसी पुस्तकालय से लो , किन्तु यथासंभव हिन्दी की पुस्तकें खरीद कर पढ़ो । यह बात उन लोगों पर विशेष रूप से लागू होनी चाहिये जो कमाते हैं व विद्यार्थी नहीं हैं । क्योंकि लेखक लेखन तभी करेगा जब उसकी पुस्तकें बिकेंगी । और जो भी पुस्तक विक्रेता हिन्दी पुस्तकें नहीं रखते उनसे भी पूछो कि हिन्दी की पुस्तकें हैं क्या । यह नुस्खा मैंने बहुत कारगार होते देखा है । अपने छोटे से कस्बे में जब हम बार बार एक ही चीज की माँग करते रहते हैं तो वह थक हारकर वह चीज रखने लगता है । (घुघूती बासूती)
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