सूरज दादा
सूरज दादा करवा लो तुम
जल्दी से उपचार ।
तेज बुखार चढा है तुमको
कुछ तो करो विचार ।
उचित नहीं है इस हालत में
करना कुछ भी काम ।
कम से कम दोपहरी में तुम
करो तनिक विश्राम ।
चंदामामा
मत देखो जी घूर-घूर,
इक तो रहते दूर-दूर ।
तारों के संग बढिया-से
पर बेचारी बुढिया से ।
चरखा नित कतवाते हो,
उस पर तरस न खाते हो ।
रूप बदल नित आते हो,
बादल से घबराते हो।
मामाजी कहलाते हो,
फिर काहे शरमाते हो।
अभिमानी बादल
बादल ये कितने अभिमानी,
जब चाहे करते मनमानी ।
बिन मौसम चौमास रचाकर,
करते हैं कितनी शैतानी ।
खेत-खार के फसल सडाकर
तोडे कितने छप्पर-छानी ।
सूरज दादा करवा लो तुम
जल्दी से उपचार ।
तेज बुखार चढा है तुमको
कुछ तो करो विचार ।
उचित नहीं है इस हालत में
करना कुछ भी काम ।
कम से कम दोपहरी में तुम
करो तनिक विश्राम ।
चंदामामा
मत देखो जी घूर-घूर,
इक तो रहते दूर-दूर ।
तारों के संग बढिया-से
पर बेचारी बुढिया से ।
चरखा नित कतवाते हो,
उस पर तरस न खाते हो ।
रूप बदल नित आते हो,
बादल से घबराते हो।
मामाजी कहलाते हो,
फिर काहे शरमाते हो।
अभिमानी बादल
बादल ये कितने अभिमानी,
जब चाहे करते मनमानी ।
बिन मौसम चौमास रचाकर,
करते हैं कितनी शैतानी ।
खेत-खार के फसल सडाकर
तोडे कितने छप्पर-छानी ।
सर पर हाथ धरे रह जाते
कृषकों को होती हैरानी
रंग-भंग कर देते कितने
बरसा जाते जमकर पानी ।
सागर की छोरी
रिमझिम गाती लोरी है,
सागर की वह छोरी है ।
तेवर जब दिखलाती है,
जमकर शोर मचाती है ।
तड-तड बिजली चमकाती,
बाढ भयंकर ले आती ।
सूरज भी इससे डरता,
जो जग को रोशन करता ।
जीवन सबका पानी है,
देती बरखा रानी है ।
कर देंगे हंगामा
मामा, सुन लो ध्यान से ,
एक दिन अपने यान से ।
चन्द्रलोक में आयेंगे,
तुमसे हम बतियायेंगे ।
और तुम्हारी बस्ती में,
झूम-झूमकर मस्ती में ।
तनिक सुधा रस पी लेंगे,
तारों के संग फिर खेलेंगे ।
नील गगन में हंगामा,
कर देंगे चन्दामामा ।
कोयल रानी
बात करो नहीं जोर से,
उड जाती है शोर से ।
पेड लदे हैं बौर से,
देखना उसको गौर से ।
इक सुन्दर वह प्राणी है,
मीठी उसकी वाणी है ।
अमराई में आती है,
कुहू-कुहू वह गाती है ।
लगती बडी सुहानी है,
वह तो कोयल रानी है ।
जंगल
हैं बंदर, भालू, शेर,
तोते हैं, मोर, बटेर ।
ये हरे-भरे हैं पेड,
इनको तू कभी न छेड ।
हैं कंद-मूल-फल भरे,
गाय और बकरियां चरें ।
यदि काटे कोई पेड,
तो जाकर उसे खदेड ।
हो जंगल का विस्तार,
करना है उससे प्यार ।
पर्वत
गले लगते हैं नभ से,
अडिग खडे हैं ये कब से ।
लगते सीधे-सादे हैं,
इनके नेक इरादे हैं ।
मेघों से बतियाते हैं,
वर्षा खूब कराते हैं ।
तूफाँ-आँधी आते हैं,
इनसे टकरा जाते हैं ।
कभी न शीश झुकाते हैं,
ये पर्वत कहलाते हैं ।
मेरा गाँव
प्यारा-प्यारा मेरा गाँव,
अजब निराला मेरा गाँव ।
चहुँ दिशाएँ पेड घनेरे,
देते सबको ठंडी छाँव ।
पशु-पक्षी के मन हर लेते,
बाग-बगीचे ठाँव-ठाँव ।
श्रम के बल पर लोग यहाँ के,
धरें उन्नति-पथ पर पाँव ।
सह लेते मौसम के तेवर,
पर न खोते अपने दाँव ।
तोता
छेडो मत गुस्साता है,
पुचकारों तो गाता है ।
चोंच नुकीली लाली है,
इसकी बात निराली है ।
कितनी मीठी वाणी है,
हरे रंग का प्राणी है ।
बागों में भी जाता है,
मीठे फल वह खाता है ।
पालो पर स्वच्छंद रखो,
पिंजडे में मत बंद रखो ।
(शंभूलाल शर्मा वसंत समकालीन बाल साहित्य के वरिष्ठ स्तम्भ हैं । पेशे से शिक्षक हैं । अब तक इनकी 400 बाल कविता, शिशुगीत हिन्दी की महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में छप चुकी हैं । कई पुरस्कारों से सम्मानित हैं वे । उनकी कृतियों में -मामी जी की अमराई, सतरंगी कलियाँ, चंदामामा के आँगन में, मेरा रोबोट आदि काफी लोकप्रिय हुईं हैं । प्रकृति और पर्यावरण को लेकर लिखने वाले बाल साहित्यकारों में उनकी विशिष्ट छवि है । शहर से दूर गाँव में उनका डेरा है । वैसे हम उनका पता बताये देते हैं- श्री शंभूलाल शर्मा वसंत, शिव कुटीर, मुकाम-करमागढ, पो.आ. हमीरपुर, व्हाया तमनार, जिला रायगढ(छत्तीसगढ), 496106 । संपादक)
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