1/26/2006

शंभूलाल शर्मा वसंत की 10 बाल कविताएँ

सूरज दादा

सूरज दादा करवा लो तुम
जल्दी से उपचार ।

तेज बुखार चढा है तुमको
कुछ तो करो विचार ।

उचित नहीं है इस हालत में
करना कुछ भी काम ।

कम से कम दोपहरी में तुम
करो तनिक विश्राम ।

चंदामामा

मत देखो जी घूर-घूर,
इक तो रहते दूर-दूर ।

तारों के संग बढिया-से
पर बेचारी बुढिया से ।

चरखा नित कतवाते हो,
उस पर तरस न खाते हो ।

रूप बदल नित आते हो,
बादल से घबराते हो।

मामाजी कहलाते हो,
फिर काहे शरमाते हो।

अभिमानी बादल

बादल ये कितने अभिमानी,
जब चाहे करते मनमानी ।

बिन मौसम चौमास रचाकर,
करते हैं कितनी शैतानी ।

खेत-खार के फसल सडाकर
तोडे कितने छप्पर-छानी ।

सर पर हाथ धरे रह जाते
कृषकों को होती हैरानी

रंग-भंग कर देते कितने
बरसा जाते जमकर पानी ।

सागर की छोरी


रिमझिम गाती लोरी है,
सागर की वह छोरी है ।

तेवर जब दिखलाती है,
जमकर शोर मचाती है ।

तड-तड बिजली चमकाती,
बाढ भयंकर ले आती ।

सूरज भी इससे डरता,
जो जग को रोशन करता ।

जीवन सबका पानी है,
देती बरखा रानी है ।

कर देंगे हंगामा


मामा, सुन लो ध्यान से ,
एक दिन अपने यान से ।

चन्द्रलोक में आयेंगे,
तुमसे हम बतियायेंगे ।

और तुम्हारी बस्ती में,
झूम-झूमकर मस्ती में ।

तनिक सुधा रस पी लेंगे,
तारों के संग फिर खेलेंगे ।

नील गगन में हंगामा,
कर देंगे चन्दामामा ।

कोयल रानी


बात करो नहीं जोर से,
उड जाती है शोर से ।

पेड लदे हैं बौर से,
देखना उसको गौर से ।

इक सुन्दर वह प्राणी है,
मीठी उसकी वाणी है ।

अमराई में आती है,
कुहू-कुहू वह गाती है ।

लगती बडी सुहानी है,
वह तो कोयल रानी है ।

जंगल


हैं बंदर, भालू, शेर,
तोते हैं, मोर, बटेर ।

ये हरे-भरे हैं पेड,
इनको तू कभी न छेड ।

हैं कंद-मूल-फल भरे,
गाय और बकरियां चरें ।

यदि काटे कोई पेड,
तो जाकर उसे खदेड ।

हो जंगल का विस्तार,
करना है उससे प्यार ।

पर्वत


गले लगते हैं नभ से,
अडिग खडे हैं ये कब से ।

लगते सीधे-सादे हैं,
इनके नेक इरादे हैं ।

मेघों से बतियाते हैं,
वर्षा खूब कराते हैं ।

तूफाँ-आँधी आते हैं,
इनसे टकरा जाते हैं ।

कभी न शीश झुकाते हैं,
ये पर्वत कहलाते हैं ।

मेरा गाँव

प्यारा-प्यारा मेरा गाँव,
अजब निराला मेरा गाँव ।

चहुँ दिशाएँ पेड घनेरे,
देते सबको ठंडी छाँव ।

पशु-पक्षी के मन हर लेते,
बाग-बगीचे ठाँव-ठाँव ।

श्रम के बल पर लोग यहाँ के,
धरें उन्नति-पथ पर पाँव ।

सह लेते मौसम के तेवर,
पर न खोते अपने दाँव ।

तोता


छेडो मत गुस्साता है,
पुचकारों तो गाता है ।

चोंच नुकीली लाली है,
इसकी बात निराली है ।

कितनी मीठी वाणी है,
हरे रंग का प्राणी है ।

बागों में भी जाता है,
मीठे फल वह खाता है ।

पालो पर स्वच्छंद रखो,
पिंजडे में मत बंद रखो ।

(शंभूलाल शर्मा वसंत समकालीन बाल साहित्य के वरिष्ठ स्तम्भ हैं । पेशे से शिक्षक हैं । अब तक इनकी 400 बाल कविता, शिशुगीत हिन्दी की महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में छप चुकी हैं । कई पुरस्कारों से सम्मानित हैं वे । उनकी कृतियों में -मामी जी की अमराई, सतरंगी कलियाँ, चंदामामा के आँगन में, मेरा रोबोट आदि काफी लोकप्रिय हुईं हैं । प्रकृति और पर्यावरण को लेकर लिखने वाले बाल साहित्यकारों में उनकी विशिष्ट छवि है । शहर से दूर गाँव में उनका डेरा है । वैसे हम उनका पता बताये देते हैं- श्री शंभूलाल शर्मा वसंत, शिव कुटीर, मुकाम-करमागढ, पो.आ. हमीरपुर, व्हाया तमनार, जिला रायगढ(छत्तीसगढ), 496106 । संपादक)

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