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आकार
(हिन्दी साहित्य का निःशुल्क त्रैमासिक)
संपादक
बसन्त कुमार परिहार
आकार
(हिन्दी साहित्य का निःशुल्क त्रैमासिक)
संपादक
बसन्त कुमार परिहार
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दिनाँकः 25 दिसंबर 2006
आपका पत्र प्राप्त हुआ । सृजन-सम्मान के सम्मान के पाँचवें साहित्य महोत्सव की जानकारी हुई । पंचम सृजन-सम्मान से सम्मानित किए जानेवाले साहित्यकार मित्रों के नाम पढकर हार्दिक प्रसन्नता हुई । श्री कांति कुमार जैन, श्री राजेन्द्र अवस्थी, डॉ. मिथिलेश कुमारी एवं सुदूर कैलिफोर्निया, अमेरिका में निवसित श्री देवेन्द्र नारायण शुक्ल को इस बार सम्मानित करके आप बडा ही शुभ कार्य करने जा रहे हैं । ऐसे पुरस्कारों और सार्वजनिक सम्मानों से साहित्यकारों को अपनी रचनाशीलता की समानता, गौरव और आनन्द की अनुभूति होती है । ऐसे शंसनीय आयोजन करके आप साहित्य का बडा उपकार कर रहे हैं । समय इसे याद रखेगा । इन पुरस्कारों का गौरव, अर्थवत्ता और अहमियत तब और भी बढ जाती है जब “सृजन-सम्मान" जैसी बहुआयामी साहित्यक संस्थाएँ स्वच्छ आचरण नीति के तहत ऐसे पुरस्कार/सम्मान देती हैं, प्रतिवर्ष योग्यतम् साहित्यकारों को देश-विदेश के कोने-कोने से ढूँढ निकालना भी अपने आप में एक भगीर्थ कार्य है । मैं आपके माध्यम से पुरस्कृत साहित्यकारों को बधाई देता हूँ और “सृजन-सम्मान” संस्था के रहबरों को ऐेसे सात्विक आयोजनों के लिए साधुवाद और शुभकामनाएँ देता हूँ । विश्वास है कि संस्था भविष्य में खूब फूले-फलेगी और नए कीर्तिमान स्थापित करेगी । डॉ. बल्देव को भी मैं शष्ठीपूर्ति अभिनन्दन ग्रंथ के लोकार्पण-अवसर पर अभिनन्दन देता हूँ । वे दीर्घायु-सम्पन्न हों ऐसी अभ्यर्थना करता हूँ ।
यह जानकर भी प्रसन्नता हूई कि इस समारोह में देश के चुनिन्दा लघुपत्रिका संपादकों को संस्था द्वारा उनके रचनात्मक योगदान हेतु मानपत्र एवं साहित्यिक कृतियाँ भेंट कर सम्मानित करने जा रहे हैं । इस सूची में “आकार” भी शामिल है, यह जानकर सुख मिला । आपकी संस्था ने अहिन्दी भाषी राज्य गुजरात से निकल रही “आकार” पत्रिका के संपादक की सेवाओं को सम्मान के योग्य समझा यह भी अपने आप में कम महत्वपूर्ण नहीं है । आपके इस स्नेह के लिए मैं आभारी हूँ ।
बंधुवर, 12-13 फरवरी को संपन्न होने जा रहे इस सारस्वत अनुष्ठान में सम्मिलित होने की उत्कट इच्छा होते हुए भी मैं अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए क्षमाप्रार्थी हूँ । सत्तर वर्ष पूरे कर चुका हूँ और इतनी लम्बी यात्राएँ अकेले कर पाने का साहस अब नहीं जुटा पाता । “आकार” का नया अंक भी 10 जनवरी के दिन पोस्ट करना है । मैं अकेला ही संपादन, संचालन के सारे काम करता हूँ । यहाँ अहिन्दी प्रदेश में कम्प्युटर वर्क और छपाई के लिए बडी दौडधूप करनी पडती है । असमर्थता के लिए क्षमा करेंगे । संस्था के कार्यकर्ताओं की नजर इतनी दूर तक पहुँची, मेरे लिए यह भी बडा सम्मान है । “आकार” के कुछ पुराने अंक और पुस्तकें भेज रहा हूँ । आयोजन की सफलता और नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ...
आपका
बसंतकुमार परिहार
पुनश्चः-आपका पत्र यथासमय मिल गया था किन्तु मैं एक महीने तक अहमदाबाद से बाहर था । पंजाब की ओर गया हुआ था । देर से उत्तर दे रहा हूँ, अन्यथा न लें
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टीपः- श्री परिहार जी का पत्र हमें डाक से प्राप्त हुआ है । वे अहिन्दी भाषी एवं वयोवृद्ध संपादक हैं । पत्र हम हू-ब-बू प्रकाशित कर रहे हैं-संपादक
दिनाँकः 25 दिसंबर 2006
आपका पत्र प्राप्त हुआ । सृजन-सम्मान के सम्मान के पाँचवें साहित्य महोत्सव की जानकारी हुई । पंचम सृजन-सम्मान से सम्मानित किए जानेवाले साहित्यकार मित्रों के नाम पढकर हार्दिक प्रसन्नता हुई । श्री कांति कुमार जैन, श्री राजेन्द्र अवस्थी, डॉ. मिथिलेश कुमारी एवं सुदूर कैलिफोर्निया, अमेरिका में निवसित श्री देवेन्द्र नारायण शुक्ल को इस बार सम्मानित करके आप बडा ही शुभ कार्य करने जा रहे हैं । ऐसे पुरस्कारों और सार्वजनिक सम्मानों से साहित्यकारों को अपनी रचनाशीलता की समानता, गौरव और आनन्द की अनुभूति होती है । ऐसे शंसनीय आयोजन करके आप साहित्य का बडा उपकार कर रहे हैं । समय इसे याद रखेगा । इन पुरस्कारों का गौरव, अर्थवत्ता और अहमियत तब और भी बढ जाती है जब “सृजन-सम्मान" जैसी बहुआयामी साहित्यक संस्थाएँ स्वच्छ आचरण नीति के तहत ऐसे पुरस्कार/सम्मान देती हैं, प्रतिवर्ष योग्यतम् साहित्यकारों को देश-विदेश के कोने-कोने से ढूँढ निकालना भी अपने आप में एक भगीर्थ कार्य है । मैं आपके माध्यम से पुरस्कृत साहित्यकारों को बधाई देता हूँ और “सृजन-सम्मान” संस्था के रहबरों को ऐेसे सात्विक आयोजनों के लिए साधुवाद और शुभकामनाएँ देता हूँ । विश्वास है कि संस्था भविष्य में खूब फूले-फलेगी और नए कीर्तिमान स्थापित करेगी । डॉ. बल्देव को भी मैं शष्ठीपूर्ति अभिनन्दन ग्रंथ के लोकार्पण-अवसर पर अभिनन्दन देता हूँ । वे दीर्घायु-सम्पन्न हों ऐसी अभ्यर्थना करता हूँ ।
यह जानकर भी प्रसन्नता हूई कि इस समारोह में देश के चुनिन्दा लघुपत्रिका संपादकों को संस्था द्वारा उनके रचनात्मक योगदान हेतु मानपत्र एवं साहित्यिक कृतियाँ भेंट कर सम्मानित करने जा रहे हैं । इस सूची में “आकार” भी शामिल है, यह जानकर सुख मिला । आपकी संस्था ने अहिन्दी भाषी राज्य गुजरात से निकल रही “आकार” पत्रिका के संपादक की सेवाओं को सम्मान के योग्य समझा यह भी अपने आप में कम महत्वपूर्ण नहीं है । आपके इस स्नेह के लिए मैं आभारी हूँ ।
बंधुवर, 12-13 फरवरी को संपन्न होने जा रहे इस सारस्वत अनुष्ठान में सम्मिलित होने की उत्कट इच्छा होते हुए भी मैं अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए क्षमाप्रार्थी हूँ । सत्तर वर्ष पूरे कर चुका हूँ और इतनी लम्बी यात्राएँ अकेले कर पाने का साहस अब नहीं जुटा पाता । “आकार” का नया अंक भी 10 जनवरी के दिन पोस्ट करना है । मैं अकेला ही संपादन, संचालन के सारे काम करता हूँ । यहाँ अहिन्दी प्रदेश में कम्प्युटर वर्क और छपाई के लिए बडी दौडधूप करनी पडती है । असमर्थता के लिए क्षमा करेंगे । संस्था के कार्यकर्ताओं की नजर इतनी दूर तक पहुँची, मेरे लिए यह भी बडा सम्मान है । “आकार” के कुछ पुराने अंक और पुस्तकें भेज रहा हूँ । आयोजन की सफलता और नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ...
आपका
बसंतकुमार परिहार
पुनश्चः-आपका पत्र यथासमय मिल गया था किन्तु मैं एक महीने तक अहमदाबाद से बाहर था । पंजाब की ओर गया हुआ था । देर से उत्तर दे रहा हूँ, अन्यथा न लें
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टीपः- श्री परिहार जी का पत्र हमें डाक से प्राप्त हुआ है । वे अहिन्दी भाषी एवं वयोवृद्ध संपादक हैं । पत्र हम हू-ब-बू प्रकाशित कर रहे हैं-संपादक
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