1/06/2006

सृजन-सम्मान द्वारा हिन्दी चिट्ठाकारी को प्रोत्साहन

पिछले एक दशक से संस्था की चिन्ता एवं लक्ष्य में हिन्दी का विकास सबसे महत्वपूर्ण बिषय रहा है । संस्था ने पिछले 2 वर्षों में अपने राज्य के रचनाकारों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों की अंतरजाल(INTERNET) में उपस्थिति के अध्ययन के लिए लगातार मेहनत की । संस्था के सदस्यों ने जयप्रकाश मानस के संयोजन में इस दरमियान अंतरजाल पर लगभग 77000 बेबसाईट्स को खंगाला । अधुनातन एवं सभी सर्च इंजिनों का सहारा लिया गया । हमने पाया कि हम और हमारे विचारों को अंतरजाल में नहीं के बराबर जगह मिली है । यदि हम 2-4 जगह हैं तो भी अपनी भाषा में अभिव्यक्त नहीं हो पाये हैं । यानी कि वहाँ हिन्दी-छत्तीसगढी का चेहरा अंग्रेजी भाषा के दर्पण में दिखाई देता है ।
संस्था का अपना विश्वास रहा हैं कि प्रत्येक भाषा की अपनी मौलिक अस्मिता, संस्कृति और संस्कार होते हैं । प्रत्येक भाषा के अपने निजी शब्द होते हैं । उन प्रत्येक शब्दों का अपना विशिष्ट कौशल व आलोक-वलय होते हैं, जिसकी बराबरी अन्य भाषा के समांतर शब्द भी नहीं कर सकते हैं । अनुवाद में भी मूल रचना या भाव के साथ कहाँ न्याय हो पाता है ? जाहिर है हिन्दी या छत्तीसगढी की आत्मा तक पहुँच मार्ग अन्य कोई भाषा नहीं हो सकती है । इतर भारतीय भाषा तो हिन्दी के पाठकों को हिन्दी की जडों तक कतई नहीं पहुँचा सकती हैं ।
हमें यह देख कर बडा ही दुख होता था कि हिन्दी का अस्तित्व अंतरजाल में अत्यंत क्षीण है । जबकि इसे विश्व की दुसरी सबसे भाषा होने का गौरव प्राप्त है । हम झटपटाते रहे साथ ही शर्माते भी रहे कि हमारे अपने गृहराज्य छत्तीसगढ की स्थिति तो अत्यंत दयनीय है । ठीक विपरीत धुर्वों से हमारे राज्य के आई.टी. स्पेश्लिष्ट दावा करते हैं कि छत्तीसगढ में लगभग 33 हजार बेबसाईट्स बन चुके हैं । हम अपनी कमजोरी बखुबी समझते थे कि तकनीकी रूप से विकसित नहीं हो पाने के कारण यह सरल और संभव भी नहीं था कि अतंरजाल में हिन्दी ही हिन्दी नजर आये और उस मातृभाषा हिन्दी को अंतरजाल में विशेष रूप से प्रतिष्ठित कराने में छत्तीसगढ के लोगों को अव्वल होने का श्रेय जाय । जैसे कि हम अन्य क्षेत्र में अव्वल होने की बात छेडकर आत्ममुग्ध होते रहते हैं ।
कुछ दिन पहले की ही बात है-हमें पता चला कि अब यह तकनीक विकसित हो चुका है कि कोई भी व्यक्ति अपनी बात इंटरनेट में और वह भी हिन्दी या छ्त्तीसगढी में रख सकता है । स्वयं को अभिव्यक्त कर सकता है । दुनिया के कोने-कोने तक अपनी बात नियमित रूप से पहुँचा सकता है । उस पर विश्व में कहीं भी बैठे पाठक, व्यक्ति की प्रतिक्रिया भी जान सकता है । यानी कि वह परस्पर संवाद भी कायम कर सकता है । अब हमारे पाँव अब जमीं पर नहीं थे । इस खुशी के लिए यहाँ हमारे साथी श्री अशोक शर्मा और श्रीमती अमिता शर्मा जी का जिक्र करना समीचीन होगा । हम "ब्लाग" जैसे जादूई चमत्कार का मंत्र पा चुके थे । हमने सबसे पहले अपना ब्लाग बनाया । हम तो देख कर ताज्जुब रह गये कि कुछ ही मिनटों में हम अपना साईट स्वयं गढ चुके हैं । हिन्दी के माध्यम से हम अब समूचे दुनिया तक अपनी बात रखने में सक्षम हो चुके हैं । दरअसल यह हमारा प्रयोग था कि इसमें कम्प्युटर और तकनीकी ज्ञान, कौशल की कितनी जरूरत है ? सच बतायें यह तो अल्लदीन का चिराग है भाई, उनके लिए जो हिन्दी में काम करते हैं । जो प्रोग्रामिंग नहीं जानते । न किसी फोंट का झगडा, न ही किसी लिपि का झंझट । न ही जेब काटने पर ही हिन्दी या छत्तीसगढी के सेवक सिद्ध हो पाने की विवशता । और क्या चाहिए- कम्प्युटर और इंटरनेट के एक सामान्य जानकार के लिए समूचे विश्व में छा जाने के लिए ?
अतंरजाल में हिन्दी की प्रतिष्ठा के लिए स्वैच्छिक अभियान-संस्था ने तय कर लिया है कि अब अंतरजाल में हिन्दी को प्रतिष्टित कराने में वह तब तक सतत् रूप प्रोत्साहन, प्रशिक्षण, अनुश्रवण कार्य करती रहेगी । जब तक हमारे अपने राज्य और राजधानी रायपुर का नाम भारत और शायद दुनिया के सबसे बडे हिन्दी चिट्ठाकारों का अड्डा के लिए न जाना जाय । निर्णयानुसार हम लगातार कार्यशालाओं (ऑफलाईन या ऑनलाईन) का आयोजन करते रहेंगे । जिसमें कोई भी बिना किसी फीस, बिना किसी शर्त्त के अपने स्वयं का बेवब्लाग या इंटरनेट डायरी तैयार कर सकता है
कार्यशालाओं में हम निम्नलिखित वर्ग को प्रथम चरण में सम्मिलित कर रहे हैं:-
1. पत्रकार
2. साहित्यकार,
3. शिक्षाविद् और शिक्षा-प्रशासक, शिक्षक
4. कॉलेज और स्कूल के विद्यार्थी
5. कैफे संचालक
6. बुद्धिजीवी (वकील, चिकित्सक एवं अन्य)
7. जन सामान्य
इच्छुक व्यक्ति संस्था के महासचिव ( 98262-48165)से संपर्क कर सकता है ।
सुझाव आमंत्रित- आप में से कोई भी इस अभियान के संबंध में अपना सुझाव निसंकोच प्रदान कर सकता है । हम आपके स्वागत में पलक लगाये बैठे हैं ।
आईये, आप भी कुछ सोंचे इस दिशा में । क्या आपके शहर या राज्य में हिन्दी या मातृभाषा की सेवा के लिए इतना योगदान-समयदान नहीं दिया जा सकता है ?

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