2/02/2006

राम पटवा की लघुकथा

कुंडलिनी

बापू,
तुमने चरखा किस मुहूरत में चलाया ?
तुम्हारे चरखा चलाने के मुहूरत से आज यह देश बहुत दुखी है, क्योंकि आज तो इन लोगों ने एक चरखा चलाया है, जिससे यह देश निचोडकर फेंके गये गन्ने के छिलके की तरह पडा हुआ है । इनके पास चरखा की परिभाषा सिर्फ चरना और खाना है । तुम्हारे चिंतन, मनन, त्याग, तपस्या, बलिदान को ये ठीक से समझ नहीं पाये बापू, बल्कि तुम्हारी लँगोटी को पीछे से खींचने में ही व्यस्त हो गये ।
“संसद के मुख्य द्वार पर बद्धपद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में तुम हाथ पर हाथ धरे रह गये हो । तुम्हारी प्रतिमा का रंग भी कंरट में चिपके हुए आदमी की तरह हो गया है । ध्यानस्थ मुद्रा में बैठे तो तुम हो लेकिन कुंडलिनी इन लोगों की जागृत हो गई है, जिससे इनके ब्रह्मांड का सहस्त्रदल कमल खिल गया है और देश की बाँछे हमेशा-हमेशा के लिए मुरछा गई है ।”

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