2/17/2006
डॉ. इसाक अश्क के बासंती नवगीत
कण्ठ का कोहनूर
फाग के
हस्ताक्षर
पढती हवाएँ ।
दिन सुमेरू स्वर्ण टुकडे-सा तपाया
कण्ठ का कोहनूर वन में सुगबुगाया
रूप रति-सा
चौतरफ
गढती हवाएँ ।
इंगुरी आलोक में डूबे सिवाने
पथ लगे अलकापुरी से महमहाने
विन्ध्य शिखरों पर
लहक
चढती हवाएँ ।
फाल्गुन गाती हुई
आ-गयी
पिक- नंदिनी
पंचम-स्वरों में फाल्गुन गाती हुई ।
बौर-गुच्छों से सजी अमराइयाँ
इन्दीव होने लगी परछाइयाँ
घाटियों की
ठोस चुप्पी को
तरल-गुंजान पहनाती हुई ।
डहडहाते टेसुओं की आग से
भर उठा मन आक्षितिज अनुराग से
फूल-कलशों से
मदिर
रस-रूप छलकाती हुई ।
बौर आए
देखिये-तो
किस कदर फिर
आम-अमियों बौर आए ।
धूप पीली चिट्ठियाँ घर-आँगनों में
डाल हँसती-गुनगुनाती है वनों में
पास कलियों
फूल-गंधों के
सिमट सब छोर आए ।
बंदिशें टूटी प्रणय के रंग बदले
उम्र चढती जिन्दगी के ढंग बदले
ठेठ घर में
घुस हृदय के
रूप-रस के चोर आए ।
दिन-सुगंधों के
आ-गए
घर-आँगनों तक
दिन सुगंधों के ।
आम्र-कुंजों में प्रणय-प्रेरित कथाएँ
गूँजती है हर समय रसमय ऋचाएँ
वारूणी
डूबे- नहाए
बौर छन्दों के ।
ताल-झीलों की सतह पर स्वप्न बोने
घाट पत्थर के लगे फिर मोम होने
खेत
खलिहानों
खनकते बाजूबन्दों के ।
(हिन्दी की तमाम महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाले श्री अश्क हिन्दी के प्रख्यात नवगीतकार हैं । फिर गुलाब चटके, काश, हम भी पेड होते, लहरों के सर्प दंश उनके नवगीत संग्रह हैं । गीत संग्रह सूने पडे सिवान पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन का पुरस्कार प्राप्त हो चुका है । विगत 25 वर्षों से उनके द्वारा संपादित पत्रिका “समांतर ” को छत्तीसगढ राज्य की महत्वपूर्ण साहित्यिक संस्था “सृजन-सम्मान” द्वारा अखिल भारतीय साहित्यमहोत्सव में राज्य के गवर्नर महामहिम के. एम. सेठ द्वारा वर्ष 2004-05 का पद्मश्री मुकुटधर पांडेय सम्मान प्राप्त हुआ है । उनका पता है- तोतला मार्ग, तराना, जिला उज्जैन, मध्यप्रदेश ।-संपादक )
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें