2/28/2006

फाग के दोहे

सत्ता मौसम हाथ में सौंपे शिशिर निराश
सन्यासी बनकर मिला पहिने वसन पलाश


केशर कस्तूरी कुसुम फागुन भेजे पत्र
गंध बांटने हम खड़े यत्र तत्र सर्वत्र


फूलों के संग आ गई गंधों की बारात
अंग गई छूकर पवन ऊँची नीची जात


मुस्काती हैं चूड़ियाँ खनकें बाजूबन्द
केशर रंग गुलाल ने रचे फागुनी छंद


केशर ऐपन हाथ ले संखियाँ करें किलोल
फागुन ‘वो’ सखि लिख गया छूकर सुर्ख कपोल


देह लासनी पर खिंचे इन्द्रधनुष के रंग
सांसे भीजीं रस-मदन मन में मिलन तरंग


सरसों ने ऐसा किया धरती का श्रृंगार
चन्दा छिप-छिप कर तके व्योम करे मनुहार


सुन टेसु भौंचक हुआ लवंग लता का राग
उसके मन में आग है अपने तन में आग


भंवरे कलियों से कहें अपने मन की बात
फागुन कैसे चुप रहे बिना किए उत्पात


श्री प्रमोद सक्सेना
91, चित्रगुप्त नगर, कोटरा सुल्तानाबाद
भोपाल,मध्यप्रदेश

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