2/05/2006

डॉ. महेन्द्र ठाकुर की कुछ कविताएँ

माँ

वह जो
फूँक फूँक कर
एक हाथ से आँखों को बन्द किए
धुँए से बचाती
चूल्हा जलाती है

माँ है...
वह जो
पिता भाई बहन मेहमान को खिला कर
खाली गंजी और कढ़ाई
बटलोही को खुरच खुरच कर
खा रही होती है
माँ है...

वह जो
मैले कपड़ों में
धूल भरे पप्पू के हाथ
बस्ता थमाकर
माथे पर चुम्बन दे
भविष्य के सपने को
आँखों में पालती
मंगल कामनाएं दे
विदा कर रही है
माँ है।


नवजात शिशु को देखकर

भोला भाला नवजात शिशु
जब मुस्कराता है
तब उसकी मुस्कान कितनी आकर्षक और
मोहक होती है।
जब वह निंद्रा में लीन होता है
तब उसका चेहरा कितना मासूम दिखाई
पड़ता है
उसकी किलकारियाँ
किसका मन नहीं मोह लेती
उसकी मुस्कान का, मासूमियत का
किलकारियों का
कोई मजहब नहीं होता।


मानू बेटा

मेरे अंधेरे जीवन में दीप जलाया था
तुम्हारी माँ ने
तुमने उसे और भी आलोकित िकया
तुम्हारी बाँहों का फैलाव
सीने से लगने की ललक
और किलकारियों से
असीम सुख झरता है
मेरे आँगन में
तुम्हारी हँसी भुला देती है
सारी चिंताएं
जगमगा उठता है घर
ऐसा जो मैं बता देना चाहता हूँ पूरी दुनिया को
और फैल जाती है मासूमियत समुचे विश्व में
जब तुम बैठकर बजाती हो तालियाँ, मारती किलकारियाँ
तब कितना सुख अनुभूत होता है मन को
तुम्हारी ये किलकारियाँ, ये तालियाँ अभिभूत कर देती हैं
सभी का मन।
कुछ दिन ही तो हुए, जब तुम खडी होने लगी थी
अब चलने लगी हो
पहले तुम घुटनों के बल चलती थी
गिरती सम्हलतती उठती थी
अब खड़ी होकर भी ऐसा ही करती हो
गिरती सम्हलती उठती हो
जिन्दगी में भी गिरकर सम्हलकर उठना पड़ता है बिटिया
आगे बढ़ने के लिए।
तुम बड़ी होकर भी रहना ऐसी ही निश्छल
मासूम भोली संघर्षशील
एक आदर्श होगी दुनिया के लिए
मगर मेरी प्यारी बिटिया
दुनिया में जीने के लिए छल प्रपंच जरूरी हैं
निश्छलता अभिशाप है
मासूमियत कष्टों का कारण
संघर्ष कटु यथार्थ
तुम्हें कितने ही कष्ट उठाने होंगे बिटिया
जीवन जीने, आगे बढ़ने
तुम इन संघर्षों में भी तपोगी
उभरोगी/झुकोगी नहीं तन कर खड़ी होगी
बनाओगी एक नया रास्ता
दिखलाओगी संसार को सत्य का मार्ग
सिखलाओगी धर्म का आचरण
तुम्हारा यही श्रेय और प्रेय
कर देगा अमर दुम्हें दुनिया में
जीवन होगा सार्थक तुम्हारा
और होगा जनम हमारा भई
सार्थक इसी के साथ मानू बेटा।


दुर्गाः एक दर्शन है कामरेड

दुर्गा शक्ति है
जो देती है ताकत
शोषण के खिलाफ उठाने हथियार।
एक प्रेरणा है
जो भर देती है स्फूर्ति
जेहाद की
अन्याय के खिलाफ
उठाती है कलम को
और देती है प्रेरणा
उनके साथ चलने की
जिन्होंने उठा ली है मशाल
अपने हाथों में।
दुर्गा माँ है
जो जगत में व्याप्त
अंधकार को चीरने के लिए
किसान और श्रमिक को
देती है संदेश
सूरज उगाने धरती पर
और इससे भी बड़ी बाद यह है कि
दुर्गा एक दर्शन है कामरेड।


(डॉ. महेन्द्र ठाकुर की कविताएँ मूलतः व्यंग्य और श्रृंगार रस की परिक्रमा करती हैं पर इन कविताओं का आस्वाद कुछ हटकर है । पेशे से छत्तीसगढ शासन में उपायुक्त, विक्रयकर हैं । अब तक 5 कविता संकलन एवं 1 गजल संकलन प्रकाशित हो चके हैं । इन दिनों एक उपन्यास पर काम कर रहे हैं पर ज्योतिष के अध्ययन में भी गंभीरता से संबंद्ध नजर आते हैं। संपादक )

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