2/15/2006

छत्तीसगढ के रचनाकार (एक जानकारी)


छत्तीसगढ़ अपनी साहित्यिक परम्परा के परिप्रेक्ष्य में अति समृद्ध प्रदेश है। इस जनपद का लेखन हिन्दी साहित्य के सुनहरे पृष्ठों को पुरातन समय से सजाता-संवारता रहा है। हिन्दीभाषी प्रदेशों में छत्तीसगढ़ का बौद्धिक हस्तक्षेप सदा ही दूसरों के लिए आश्चर्य का विषय बना है कि विभिन्न प्रसंगों में पिछड़ा प्रतीत होने वाले इस अंचल की सांस्कृतिक ऊर्जा का स्रोत आखिर क्या है ? दरअसल यह विरोधाभास भी इस प्रदेश की साहित्यिक दक्षता, योग्यता और ऊर्जा की प्रेरणा है। ऐसा कहने में कोई अहंकार नहीं, कोई दर्प नहीं कि छत्तीसगढ़ की असली पहचान उसकी सांस्कृतिक अस्मिता है। छत्तीसगढ़ का मतलब लोक-संस्कृति से आलोकित जन-संकुल। भौतिक संसाधन, कृषि संपदा आदि के कारण किसी प्रदेश की पहचान और वैचारिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक शक्ति के नाम से किसी प्रदेश की पहचान का आशय एक नहीं हो सकता, किन्तु हमारा छत्तीसगढ दोनों चरित्रों के बल पर समूचे देश में अपनी विशिष्ट पहचान बनाता है।

यदि हम सीधे-सीधे साहित्यिक हस्तक्षेप का स्मरण करें तो पांडुवंशीय काल में भास्कर भट्ट, ईशान कवि और सुमंगलकवि की छवि उभर आती है। कलचुरियों का समय छत्तीसगढ़ का समृद्ध समय माना जाता है। इस काल में नारायण, कीर्तिघर, वत्सराज, धर्मराज कुमार पाल, त्रिभुवनपाल, रत्नसिंह और भाभे आदि कवियों ने छत्तीसगढ़ को साहित्यिक गरिमा प्रदान की। गोंड राज में मंडला के दीक्षित वंश, महेश ठाकुर का वंश और जयगोविन्द कवि को साहित्यकार के रूप में हम जान सकते हैं। यह छत्तीसगढ़ की ऊंचाई का प्रमाण है कि पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक वल्लभाचार्य ने पूर्व मीमांसा, भाषा उत्तर मीमांसा या ब्रज सूत्र भाषा, सुबोधिनी, सूक्ष्मटीका, तत्वदीप निबंध तथा सोलह प्रकरण की रचना की, जो रायपुर जिले के चम्पारण(राजिम के समीप) में अवतरित हुए थे। अष्टछाप के संस्थापक विट्ठलाचार्य उनके पुत्र थे। वल्लभाचार्य के पौत्र गोकुलनाथ ने चौरासी वैष्णव की वार्त्ता और दो सौ बावन वैष्णव वार्त्ता लिखकर साहित्य को संपुष्ट किया। रामानंदी आंदोलन की अनुगूंज भी छत्तीसगढ़ को प्रभावित करती है, शायद यही कारण है कि यहां बैरागी और दस नामो सन्यासी के छंद गूंजते रहे।

मुक्तक काव्य परम्परा में खैरागढ़ राज्य के चौथे राजा कमलनारायण ने राजकाज के साथ अपनी काव्य प्रतिभा का भी परिचय दिया था – विनोद कमल, कमल नारायण, नारायण प्रहर्ष, कमल नारायण रागमाला, शीतला यश मालिका आदि ग्रंथ रचकर। गोपाल कवि रचित जैमिनी अश्वमेघ को संपादिक कर मुंबई से प्रकाशित कराने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। श्रीमद् भागवत का पद्यानुवाद (अपूर्ण) भी कमलनारायण ने किया था। राजा चक्रधर सिंह तो छत्तीसगढ़ के गौरव पुरुष हैं। उनके जैसा संस्कृति संरक्षक राजा विरले ही हुए हैं । वे हिन्दी साहित्य के युग प्रणेता महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवनपर्यन्त नियमित आर्थिक सहयोग करते रहे। रम्यरास, जोश-ए-फरहत, बैरागढ़िया राजकुमार, अलकापुरी, रत्नहार, काव्यकानन, माया चक्र, निकारे-फरहत, प्रेम के तीर आदि उनकी ऐतिहासिक महत्व की कृतियां हैं। उनकी कई कृतियाँ 50 किलो से अधिक वजन की हैं । पंडित बालशास्त्री झा ने धर्मवंश एवं लाल प्रद्युम्न सिंह नागवंश ग्रंथ का प्रणयन किया। भक्तिकालीन रचनाकारों में हमारे सम्मुख गोपाल मिश्र, माखन मिश्र, बाबू रेवाराम, उमराव बख्शी का नाम आता है।

भारतेन्दु काल का जिक्र करते ही ठाकुर जगमोहन सिंह का नाम हमें चकित करता है, जिनकी कर्मभूमि छत्तीसगढ़ ही रहा और जिन्होंने श्यामा स्वपन जैसी नई भावभूमि की औपन्यासिक कृति हिन्दी संसार के लिए रचा। वे भारतेन्दु मंडल के अग्रगण्य सदस्य थे। महामहोपाध्याय जगन्नाथ भानु ने गद्य एवं पद्य दोनों में कालविज्ञान, श्रीकाल प्रबोध, अंक विलास, तुलसी तत्व प्रकाश, तुलसी भाव प्रकाश, श्रीरामायण वर्णमाला, रामायण प्रश्नोत्तरीमाला तथा पद्य कृतियों में छंद प्रभाकर, काव्य प्रभाकर, काव्यालंकार, छंद सारावली, रस रत्नाकर, नायिका भेद, शब्दावली, काव्य कुसुमांजलि, जयहरि चालीसा और तुम्हीं तो हो उल्लेखनीय हैं। इस युग की प्रवृत्तियां मेदिनी प्रसाद पांडेय के काव्य में दृष्टव्य हैं जिन्होंने श्रृंगार सुधार संग्रह, गणेशोत्वस दर्पण, पद्य प्रसून, सतसंग विलास आदि ग्रंथों की सर्जना की। यह दुःखद प्रसंग है कि उनका काव्य आज भी प्रकाशन की बाट जोह रहा है। ठाकुर मालिक राम त्रिवेदी को रामराज्य वियोग, प्रबोध चंद्रोदय नाटक के लिए हम चर्चा की परिधि में रख सकते हैं। इस क्रम में अनंतराम पांडेय (कपटीमुनि नाटक), जहावसिंह वैद्य, पुत्तीलाल सुक्ल (बिलासपुर विभूति), राजनांदावं के राजा कृष्ण किशोर दास (श्रीराधाकृष्ण चंद्रिका, सुपुत्री रानी सूर्यमुखी बाई), कन्हई (चित्रकाव्य), रघुवरदयाल, दशरथलाल (श्री कृष्ण लीलामृत), बालमुकुन्द हेमराव (सीता प्रसाद स्वयंवर), कवि वनमाली (मातृवंदना), सुखलाल प्रसाद पांडेय (बाल शिक्षक, पहेली, बाल गीत, पद्य-पंचामृत, मैथिली मंगल), सैय्यद अमीर अली मीर (ललित काव्य) आदि रचनाकार विशेष स्मरणीय हैं। यहां सुखलाल प्रसाद पांडेय का विशेष उल्लेख करना समीचीन होगा कि उन्होंने शेक्सपियर के नाटक कॉमेडी ऑफ एरर्स का गद्यानुवाद किया, जिसे भूलभुलैया के नाम से जाना जाता है।

द्विवेदी युग में भी छत्तीसगढ़ की धरती ने अनेक साहित्य मनीषियों की लेखनी के चमत्कार से अपनी ओजस्विता को सिद्ध किया। इस ओजस्विता को चरितार्थ करने वालों में लोचन प्रसाद पांडेय का नाम अग्रिम पंक्ति में है। आपकी प्रमुख रचनाएं हैं – माधव मंजरी, मेवाड़गाथा, नीति कविता, कविता कुसुम माला, साहित्य सेवा, चरित माला, बाल विनोद, रघुवंश सार, कृषक बाल सखा, जंगली रानी, प्रवासी तथा जीवन ज्योति। दो मित्र आपका उपन्यास है। पंडित मुकुटधर पांडेय, लोचन प्रसाद के लघु भ्राता थे जिन्होंने छायावाद काव्यधारा का सूत्रपात किया। वे पद्मश्री से सम्मानित होने वाले छत्तीसगढ़ के प्रथम मनीषी हैं। अन्य रचनाकारों हलालुराम सौरी (राजगोंड वंशज बालरवि), देवदत्त सिरोतिया राघवशरण (अंधे की लाठी), शिवदास पांडेय (प्रिय मिलन), भीष्मकाल मिश्र (प्रेम पीयूष), गजराज बाबू (रामायाष्टक), लाल प्रद्युम्न सिंह (धर्म रहस्य), बाबा शंभुगिरि एवं पंडित जयगोविन्द महत्वपूर्ण हैं।

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की झलमला को हिन्दी की पहली लघुकथा मानी जाती है। इन्होंने ग्राम गौरव, हिन्दी साहित्य विमर्श, प्रदीप आदि कृति रचकर हिन्दी साहित्य में अतुलनीय योगदान दिया। छत्तीसगढ़ के शलाका पुरुष बख्शी जी विषय में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि उन्होंने सरस्वती जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका का सम्पादन किया। रामकाव्य के अमर रचनाकार डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ने कौशल किशोर, साकेत संत, रामराज्य जैसे ग्रंथ लिखकर चमत्कृत किया। मावली प्रसाद श्रीवास्तव का कवित्व छत्तीसगढ़ की संचेतना को प्रमाणित करती है। इंग्लैंड का इतिहास और भारत का इतिहास उनकी चर्चित कृतियाँ हैं। श्यामाचरण सिंह, उदय प्रसाद उदय, झुमुकलाल दीन, रामचरण गुप्त, शिशुपाल, बलदेव यादव, पतिराम साव, राम प्रसाद कसार को हम इस अनुक्रम में याद कर सकते हैं। प्यारेलाल गुप्त छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ रचनाकारों में एक हैं जिन्होंने सुधी कुटुम्ब (उपन्यास) आदि उल्लेखनीय कृतियाँ हमें सौंपी। द्वरिका प्रसाद तिवारी विप्र की किताब गांधी गीत, क्रांति प्रवेश, शिव स्मृति, सुराज गीत (छत्तीसगढ़ी) हमारा मार्ग आज भी प्रशस्त करती हैं। काशीनाथ पांडेय, धनसहाय विदेह, शेषनाथ शर्मा शील, यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव, पंडित देवनारायण, महादेव प्रसाद अजीत, शुक्लाम्बर प्रसाद पांडेय, पंडित गंगाधर सामंत, गंभीरनाथ पाणिग्रही, रामकृष्ण अग्रवाल भी हमारे साहित्यिक पितृ-पुरुष हैं।

टोकरी भर मिट्टी का नाम लेते ही एक विशेषण याद आता है और वह है – हिन्दी की पहली कहानी। इस ऐतिहासिक रचना के सर्जक हैं – माधव राव सप्रे। पंडित रविशंकर शुक्ल हमारे मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री मात्र राजनीति ही नहीं थे, उन्होंने आयरलैण्ड का इतिहास भी लिखा था। पंडित राम दयाल तिवारी एक योग्य समीक्षक के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। शिवप्रसाद काशीनाथ पांडेय का कहानीकार आज भी छत्तीसगढ़ को याद आता है।

गजानंद माधव मुक्तिबोध को न केवल छत्तीसगढ़ अपितु सारा देश कभी भी नहीं भूल सकता। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार हैं। वे हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले कवि हैं। वे कहानीकार भी थे और समीक्षक भी। उनकी विश्व प्रसिद्ध कृतियाँ हैं – चांद का मुँह टेढा़ है, अंधेरे में, एक साहित्यिक की डायरी। छत्तीसगढ़ में बहुत से ऐसे कवि हुए हैं जिनका नाम बुहुश्रूत नहीं है, किन्तु उन्होंने अपनी सर्जनात्मकता से हिन्दी का मान बढ़ाने में सदैव स्वयं को लगाए रखा। घनश्याम सिंह गुप्त, बैरिस्टर छेदीलाल, वनमाली प्रसाद शुक्ल, विश्वनाथ वैशम्पायन, दाउ गोवर्धन दास, कविराज शीतल प्रसाद, परमानंद सुहाने, दुलीचंद जैन, मुकुदीलाल, श्रीवास्तव, राजू लाल मधुकर, बाबूलाल मयाशंकर दुबे, भगवान दास सिरोठिया, राजा लक्ष्मण दास, पंडित कुशल राम, पंडित सियाराम, पंडित गोपीनाथ दादूराम, चतुरानन दास, धानूलाल श्रीवास्तव, भीमसेन, लाला मधुमन दास, मनमोहन किशोरीदास, शिवचरण राय, दीनदयाल, दीवान गंगा प्रसाद अग्निहोत्री, काजी अशरफ महमूद, सुरेन्द्र नाथ मुंशी, उजियारे लाल सक्सेना, कमलावती, प्रेमदास वैष्णव, मेहनवान सिंह, शिवनाथ मिश्र, शंकर प्रसाद तमेर, भूषणजी, वनमाली शुक्ल, श्यालमलाल पोतदार, नरेश ललित कुमार, आनंद मोहन बाजपेयी, रामप्रसाद सिंह चौहान, विचारदार शास्त्रई, ज्वाला प्रसाद मिश्र, डॉ. गोविन्द प्रसाद अम्बिकेश, रघुवीर पसाद, पंडित केदारनाथ ठाकुर, पंडित द्वारिकानाथ तिवारी, पंडित राधिकारमण दुबे, फूलचंद शर्मा, लक्ष्मण प्रसाद यादव, कविराज तीरथराम कुलिमत्र, युगलानंद तिवारी पथिक आदि को हम ऐसी सूची में रेखांकित कर सकते हैं।
हिन्दी के आधुनिक काल में श्रीकांत वर्मा राष्ट्रीय क्षितिज पर प्रतिष्ठित कवि की छवि रखते हैं, जिनकी प्रमुख कृतियाँ माया दर्पण, दिनारम्भ, छायालोक, संवाद, झाठी, जिरह, प्रसंग, अपोलो का रथ आदि हैं।
इधर विनोद कुमार शुक्ल का शिल्प काव्य के नए शिल्प के रूप में माना जा रहा है। आपकी प्रमुख कृतियां है- नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे। हरि ठाकुर सच्चे मायनों में छत्तीसगढ़ के जन-जन के मन में बसने वाले कवियों में अपनी पृथक पहचान के साथ उभरते हैं। जिनका सम्मान वस्तुतः छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के संघर्ष का सम्मान है। इनके समग्र मूल्यांकन के सम्मान को मैं पद्मश्री जैसे राष्ट्रीय अलंकरण से कतई कम नहीं मानता हूँ। उन्होंने कविता, जीवनी, शोध निबंध, गीत तथा इतिहास विषयक लगभग दो दर्जन कृतियों के माध्यम से इस प्रदेश की तंद्रालस गरिमा को जगाया है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – गीतों के शिलालेख, लोहे का नगर, अंधेरे के खिलाफ, हंसी एक नाव सी। गुरुदेव काश्यप, बच्चू जांजगीरी, नारायणलाल परमार, हरि ठाकुर के समकालीन कवि हैं।

समकालीन हिन्दी कविता में अपनी सतत् उपस्थिति से छत्तीसगढ़ प्रदेश को पहचान देने वाले कवियों में डॉ. बलदेव, प्रभात त्रिपाठी, एकांत श्रीवास्तव, नासिर अहमद सिकंदर, माझी अनंत, बसंत त्रिपाठी, परितोष चक्रवर्ती, रामकुमार तिवारी, वंदना केंगरानी, डॉ. प्रेम दुबे, भगत सिंह सोनी, रजत कृष्ण, विजय सिंह, ललित सुरजन, डॉ. राजेन्द्र सोनी, अशोक सिंघई, संजीव बख्शी, विद्या गुप्ता, मंगला देवरस आदि प्रमुख हैं। इधर शीलकांत पाठक, जयप्रकाश मानस, त्रिजुगी कौशिक, राजेश गनोदवाले, सुधीर सोनी, पुष्पा तिवारी आदि संभावना से पूर्ण कवि के रूप में सामने आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के अन्य महत्वपूर्ण कवियों में विश्वेन्द्र ठाकुर, डॉ. सालिकराम शलभ, डॉ. अरूण कुमार शर्मा, सुभाष त्रिपाठी, हरकिशोर, कंदर्प कर्ष, ईश्वर शरण पांडेय, ठाकुर जीवन सिंह हैं।

हिन्दी गीत रचकर अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वालों में आनंदी सहाय शुक्ल, नारायणलाल परमार, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, नरेन्द्र श्रीवास्तव, विद्याभूषण मिश्र, रामप्रताप विमल, बच्चू जांजगीरी, मुस्तफा हुसैन, चम्पा मावले, अनिरुद्ध नीरव, रामेश्वर वैष्णव, डॉ. श्यामसुन्दर त्रिपाठी, रामअधीर, स्वर्गीय रवीन्द्र कंचन, श्याम कश्यप बेचैन, जीवन यदु राही, संतोष झांझी, त्रिभुवन पांडेय, दानेश्वर शर्मा, विमल पाठक, डॉ. चितरंजन कर, श्रीधर आचार्य शील, मुकुंद कौशल, डॉ. राजन यादव, संतोष रंजन शुक्ल, रामगोपाल शुक्ला प्रमुख हस्तियां हैं।

छत्तीसगढ़ प्रदेश के ग़ज़लकारों के सार्थक हस्तक्षेपों का यहां जिक्र करना लाज़िमी है। मौलाना अब्दुल रउफ महवी रायपुरी, लाला जगदलपुरी, स्व. बंदे अली फातमी, स्व. मुकीम भारती, स्व. मुस्तफा हुसैन मुश्फिक, शौक जालंधरी, रजा हैदरी, काविश हैदरी, अमीर अली अमीर, शाद भंडारवी, तवंगर हुसैन, अलियार साबरी, अनवार आलम, रामेश्वर वैष्णव, मोहसिन अली सुहैल, मुकुन्द कौशल, मंजूर अली राही, अब्दुल कलाम कौसर, असगर अमजद, हनुमंत नायडू, राज मलकापुरी, गिरीश पंकज, सुखनवर हुसैन, अली सज्जाद रुसवा ईरानी, रशीद रायपुरी, रऊफ परवेज, विजय राठौर, स्व. रवीन्द्र कंचन, नवाब तालिब, हसन जफर, मुमताज, नीलू मेघ, डॉ. महेन्द्र ठाकुर, अजीत रफीक, डॉ. देवधर महंत, हफीज कुरैशी, डॉ. चितरंजन कर, जयप्रकाश मानस, प्रफुल्ल पटनायक, जयशंकर डनसेना, सतीश सिंह ठाकुर आदि इस परिप्रेक्ष्य में समादृत किए जा सकते हैं।

अब छत्तीसगढ़ प्रदेश व्यंग्य प्रदेश के रूप में चर्चित होने लगा है। क्यों न हो ? यहां व्यंग्यकारों की एक फौज जो खड़ी चुकी है। शब्दों के बम से वार करने वाले ऐसे सेनापतियों को हम प्रदेश के प्रथम व्यंग्यकार शरद कोठारी (दास्तान दो जमूरों की, चित्र और चरित्र), तीस से अधिक व्यंग्य संग्रहों के रचनाकार लतीफ घोंघी, विनोद शंकर शुक्ल (मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएं, कबिरा खड़ा चुनाव में), प्रभाकर चौबे (विज्ञापन के बहाने), त्रिभुवन पांडेय (पम्पापुर की कथा), रामेश्वर वैष्णव (अस्पताप बीमार है), प्रदीप मेहता (बड़े साहब का वसंत पर्व), रमेश नैय्यर (बुक ऑफ चारा रिकॉर्ड), अश्विनी कुमार दुबे (घूँघट के पट खोल), गिरीश पंकज (भ्रष्टाचार विकास प्राधिकरण एवं मिठलबरा की आत्मकथा), ईश्वर शर्मा (सुकुल जी की भैंस), महावीर अग्रवाल (गधे पर सवार इक्कीसवीं सदी), गजेन्द्र तिवारी, विनोद साव (मेरा मध्यप्रदेशीय हृदय), शिवानंद कामड़े (इंटरव्यू के चोचले), रमेश चंद्र मेहरोत्रा (टेढ़ी-मेढ़ी बात), स्नेहलता पाठक (द्रोपदी का सफरनामा), अख्तर अली, पी.के.श्रीवास्तव, रवि श्रीवास्तव, चेतन आर्य, गुलबीर भाटिया, अन्तर्यामी प्रधान, डॉ. महेन्द्र ठाकुर, पुरुषोत्तम अनाशक्त, काशीपुरी कुंदन, डॉ. राजेन्द्र सोनी, जी.एस. रामपल्लीवार, प्रभंजन शास्त्री आदि के नाम से जानते हैं। स्व. रवीन्द्र कंचन के व्यंग्य लेखन ने जो जोखिम उठाया वह कम लोगों को ज्ञात है। उनके एक व्यंग्य पर (सूचक, इंदौर में प्रकाशित) घरघोड़ा में इतनी हाय तौबा मची कि उन्हें प्राण बचाने के लिए महीनों घर छोड़कर अंडरग्राउंड रहना पड़ा। यह अलग बात है कि उनकी व्यंग्य रचनाओं का संग्रह अब तक अप्रकाशित है।

छत्तीसगढ़ में कहानी लेखन का स्वर्णिम इतिहास रहा है। टोकरी भर मिट्टी (सप्रेजी), देश की पहली कहानी मानी जाती है। लाल मोहम्मद रिजवी पुरानी पीढ़ी के कहानीकार हैं। एक लम्बे अंतराल के बाद छत्तीसगढ़ के दैदीप्यमान नक्षत्र कवि विनोद कुमार शुक्ल अपना कलावादी कहानियों के लिए ख्याति प्राप्त कर रहे हैं। कथा लेखन की परम्परा में आगे श्रीकांत वर्मा, बच्चू जांजगीरी, लाला जगदलपुरी, महरुन्निसा परवेज, गुलशेर अहमद शानी, स्व. दामोदर सदन, विभु खरे, सतीश जायसवाल, परितोष चक्रवर्ती, माताचरण मिश्र, विनोद मिश्र, एस. अहमद, तपन त्रिपाठी, लोक बाबू, जया जादवानी, परदेशी राम वर्मा, कैलाश वनवासी, महेश गुप्त, स्नेहलता मोहनीश, दुर्गा हाकरे, आनंद हर्षुल, शिवशंकर पटनायक, भावसिंह हिरवानी, हरिहर वैष्णव तथा हिम्मत लाल ठक्कर अपनी चर्चित कहानियों के लिए जाने जा रहे हैं। इतर विधाओ के साथ छुटपुट रूप से कहानी लिखने वाले कहानीकारों में प्रभात त्रिपाठी, जयप्रकाश साव, रामकुमार तिवारी, रमेश शर्मा परिधि का नाम लिया जा सकता है।

प्रमोद वर्मा, डॉ. बलदेव, नंद किशोर तिवारी, राजेन्द्र मिश्र, विभु खरे, प्रभात त्रिपाठी, रमेश अनुपम, डॉ. प्रेम दुबे, जयप्रकाश, डॉ. सुधीर शर्मा, तथा रवीन्द्र गिन्नौरे आलोचक-समीक्षक के रूप में ख्यात हैं।
छत्तीसगढ़ में ललित निबंधकारों की सघन उपस्थिति का अभाव खलता है। सप्रे, बख्शी जी के बाद याहं इस दिशा में नीरवता नजर आती है। किन्तु राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल के संस्कृतिका प्रवाह, डॉ. शोभाकांत झा के स्मृतिगंध, मन न भये दस बीस, रावनु रथी विरथ रघुवीरा, समूचे के कवि तुलसी, विजय कुमार दुबे के पलाश से नया विश्वास उभरता है। डॉ. शोभाकांत झा देश के समकालीन ललित निबंधकारों में प्रमुख हैं, जिनका समग्र मूल्यांकन अभी शेष है। डॉ. पालेश्वर शर्मा के निबंधों में लालित्य का साम्राज्य है। इधर जयप्रकाश मानस के काम के भाग, ग्राम के प्रथम शुभचिंतक, घर आंगन के रचयिता, देवरास, जामुन का पेड़ आदि ललित निबंधों ने भी ध्यान आकृष्ट किए हैं। अभी हाल ही में उनका पहला ललित निबंध संग्रह-दोपहर गाँव सारे हिन्दी जगत का ध्यान आकृष्ट कर रहा है । यह समूचे छत्तीसगढ से अब तक प्रकाशित पहली किताब है जो संपूर्णतः अंतरजाल (इंटरनेट)नर्मदा मिश्र नरम भी ललित निबंधकार हैं। अभी हाल ही में शिवशंकर पटनायक का निबंध संकलन आप मरना क्यों नहीं चाहते हैं प्रकाशित हुआ है।

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, गजानंद माधव मुक्तिबोध, विनोद कुमार शुक्ल, गणेश खरे, स्व. विश्वेन्द्र ठाकुर, त्रिभुवन पांडेय, परदेशीराम वर्मा, गिरीश पंकज, महेश गुप्त, विनोद साव, दु्र्गा हाकरे, स्नेह मोहनीश, गिरीश पंकज आदि हमारे प्रदेश के प्रमुख उपन्यासकार हैं। इधर नौकर की कमीज जैसे महत्वपूर्ण उपन्यास लिखकर विनोद कुमार शुक्ल ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की है। संतोष रंजन द्वारा ब्रिटिश उपन्यासकार मेरी कोरेली की चर्चित उपन्यास द सोल आफ लिलिथ का अनुवाद किया जा रहा है जो स्वर्ग से उतरा गुलाब के नाम से प्रकाशित होने वाला है ।

हिन्दी लघुकथा को विधा के रूप में प्रतिष्ठा मिले यद्यपि अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, तथापि डॉ. विभु खरे, सरोज द्विवेदी, डॉ. राजेन्द्र सोनी, रवीन्द्र कंचन, डॉ. महेन्द्र ठाकुर, गिरीश पंकज, महेश राजा, जयप्रकाश मानस तथा हेमंत चावड़ा आदि आठवें दशक के लघुकथाकारों के रूप में जाने जाते है। रवि श्रीवास्तव, विनोद शंकर शुक्ल, डॉ. रविकांत झा, आनंद हर्षुल, श्रीराम पटवा, संजय बहिदार, सनत, भरतलाल नायक, अल्का राठी, सुधीर सोनी, आलोक सातपुते, महेश राजा, उदयप्रकाश, डॉ. अरुण कुमार शर्मा, डॉ. आभा झा, डॉ. जे. आर. सोनी का सशक्त लघुकथा लेखन पाठकों को पर्याप्त ध्यान आकृष्ट करता है। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की झलमला को हिन्दी की पहली लघुकथा मानी जाती है। अब तक इस विधा में प्रदेश के वरिष्ठ कथाकार डॉ. राजेन्द्र सोनी के संयोजन में डॉ. अंजली शर्मा (लघुकथा का विकास यात्रा), डॉ. आभा झा (लघुकथा का उदभव, विकास एवं संभावनाएं) ने लघुकथा के शोध की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है।

विभिन्न विधाओं में रचने वाले साहित्यकारों में केशव प्रसाद वर्मा, राजेश्वर गुरु, स्वराज प्रसाद त्रिवेदी, पं. श्यामलाल चतुर्वेदी, कुमार साहू, बबन प्रसाद मिश्र, गोविन्दलाल वोरा, विष्णु सिन्हा, सरयूकांत झा, बालचन्द्र कछवाहा, केयूर भूषण, डॉ. मन्नूलाल चदु, डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र, प्रो. देवी सिंह चौहान, नर्मदा प्रसाद राठौर, हरि प्रसाद अवधिया, मनोज कुमार शुक्ल मनोज, लालता प्रसाद सिंह, सुरेन्द्र मिश्र, विश्वनाथ जोशी, रूपनारायण वर्मा वेणु, डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल, ईश्वरशरण पांडेय, डॉ. रामकुमार बेहार, शेषनाथ शर्मा शील, डॉ. जगमोहन सिंह, मदन लाल गुप्त, स्व नंदूलाल चोटिया, स्व. कुंजबिहारी चौबे, स्व. भवानी प्रसाद षड़ंगी, स्व. किशोरी मोहन त्रिपाठी, स्व. शंकर शेष, स्व. कृष्ण किशोर श्रीवास्तव, भगवती सेन, नेदकिशोर तिवारी, अमृतलाल दुबे, डॉ. बिहारी लाल साहू, अमीचंद डालमिया, प्रो. राम नारायण शुक्ल, ललित मोहन श्रीवास्तव, प्रो. बाँके बिहारी शुक्ल, श्रीपति बाजपेयी, डॉ. अरविन्द शर्मा, टिकेन्द्र टिकरिहा, जमना प्रसाद कसार, डॉ. विनय कुमार पाठक, ब्रजभूषण सिंह आदर्श, डॉ. विजय सिन्हा, मैथ्यू जहानी जर्जर, डॉ. गिरधर शर्मा, नित्यानंद पांडेय, ईश्वरी प्रसाद यादव, कनक तिवारी, केदारचन्द्र झा, विश्वनाथ मिश्र, जयनारायण सोनी निर्झर, डॉ. सरोज मिश्रा, जी.एल. जोशी, मन्नीलाल कटकवार, डॉ. अश्विनी केशरवानी, उपेन्द्रधर दीवान, डॉ. डी.डी. मिश्र, स्व. प्रद्युम्नदास वैष्णव, भूपेन्द्र कसार, बसंत देशमुख, गेंदराम सागर, अजीत जोगी, डॉ. सुशील त्रिवेदी, डॉ. इंदिरा मिश्र, बी.के.एस.रे, चितरंजन खेतान, बी.एल.तिवारी, सुभाष मिश्र, एच.एस.ठाकुर आदि हैं। जिन रचनाकारों का उल्लेख नहीं हो पाया है उनकी रचनात्मकता एवं योगदान को भी मैं विनम्रता से स्वीकारता हूँ।
छत्तीसगढ़ में बाल साहित्य की दीर्घ परम्परा न होते हुए भी आश्चर्य है कि पिछले एक-दो दशक से यह प्रदेश बाल साहित्य लेखन प्रक्षेत्र के रूप में चमका है। देश के श्रेष्ठ बालकवि नारायणलाल परमार की बाल लेखन परम्परा में इंदिरा परमार, रचना परमार, लक्ष्मी नारायण पयोधि, अनवार आलम, शंभूलाल शर्मा वसंत, गिरीश पंकज, हेमंत चावड़ा, चम्पा मावले, डॉ. शकुंतला चौधरी, इंदरमन साहू, जयप्रकाश मानस, अक्षय मिश्र, ठाकुर जीवन सिंह, डॉ. श्यामसुन्दर त्रिपाठी, एस.आर.शर्मा, डॉ. शोभाकांत झा, स्वराज्य करुण, देवेन्द्र शर्मा पुष्प, इन्द्रपाल पटनायक आदि ऐसे रचनाकार हैं जिनकी एक या एक से अधिक कृतियाँ प्रकाशित होकर चर्चित भी हो चुकी हैं। अश्विनीकुमार सोनी, हरिप्रकाश वत्स, आनंद तिवारी पौराणिक, भारती राजा, गजानंद प्रसाद देवांगन, सनत, राधिका दुबे, प्रदीप कुमार शर्मा की रचनाएं उत्कृष्ट बालसाहित्य की कड़ी को आगे बढ़ा रही हैं।

यदि हम महिला लेखन जैसे विशेषण से छत्तीसगढ़ के रचनाकारों को स्मरण करें तो मेहरून्निसा परवेज, डॉ. कुन्तल गोयल, श्रीमती शांति यदु, हेमलता आंजनेयलु, डॉ. स्नेहलता पाठक, डॉ. कल्याणी वर्मा, स्नेह मोहनीश, दुर्गा हाकरे, डॉ. शकुन्तला वर्मा, इंदिरा परमार, प्रभा सरस, डॉ. सुमन वर्मा, संतोष झांझी, जया जादवानी, नीलू मेघ, पुष्पा तिवारी, चम्पा मावले, डॉ. निरुपमा शर्मा, डॉ. उर्मिला शुक्ला, डॉ. सत्यभामा आडिल, डॉ.अर्चना पाठक, डॉ. मृणालिका ओझा, आशा मानव, साधना कसार, वसुन्धरा गुप्ता, मंगला देवरस, उषा तिवारी, उषा जोशी, शशि तिवारी, डॉ. आभा झा, वंदना केंगरानी, फातिमा बेगम हिना, आशा श्रीवास्तव, डॉ. रत्ना वर्मा, लतिका भावे, शशि मिश्रा, चन्द्रकला त्रिपाठी, रजनी शुक्ला, विपुला पांडेय, युक्ता राजश्री झा, डॉ. तृषा शर्मा, निर्मला बेहार, शशि परगनिहा, सविता शुक्ला, शकुन्तला तरार, मनीषा पाडेय, स्व. गीता पटनायक, सरल जैन, वसुन्धरा गुप्ता, समिधा भट्टाचार्य, डॉ. प्रतिभा गुर्जर, अलका राठी, डॉ. दमयंती ठाकुर, डॉ. शोभा निगम, उज्मा अख्तर, विद्या केडिया, कल्पना नायक, हेमप्रभा, रजनी पाठक, मीना अवधिया, पुष्पा दीक्षित, माधुरी कर, गोधुलि वर्मा, डॉ. अंजलि शर्मा, नमिता जिंदल, सिन्धु देवी रथ, कल्पना श्रीवास्तव, गोमती अग्रवाल, डॉ. अनुसूइया अग्रवाल, वीणा मिश्र, चन्द्रकला सिंह भाटिया, सुशीला कुजूर, पूर्णिमा पंडा, अंजु पांडेय, सुभदा तामस्कर, भारती त्रिपाठी, विभा मिश्रा, भारती चौहान, भाग्यश्री पांडेय आदि की रचनाएं विविध भाव-भंगिमाओं को अभिव्यक्त करती हैं। इनमें शांति यदु, डॉ. कुन्तल गोयल, मेहरुन्निसा परवेज, डॉ. शकुन्तला वर्मा, शशि तिवारी, डॉ. स्नेह मोहनीश आदि की रचनाएं राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं (यथा ज्ञानोदय, कल्पना, धर्मयुग, सारिका, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, छाया आदि) में प्रकाशित होती रही हैं।

लघु पत्रिकाओं के अभाव में साहित्य का विस्तार एवं मूल्यांकन कार्य कठिन हो जाता है। छत्तीसगढ़ का वर्तान इस दिशा में ज्यादा सतर्क दिखता है। क्यों न दिखे। छत्तीसगढ़ में हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता के जनक माधवराव सप्रे व पं. रामराव चिंचोलकर ने जो लौ छत्तीसगढ़ मित्र प्रकाशित कर लगाई थी उसकी अनुप्रेरणा आज भी छत्तीसगढ़ में विद्यमान है। संज्ञा (हरि ठाकुर), हस्ताक्षर (विभु खरे), जारी (भगतसिंह सोनी) आदि प्रमुख हैं। पत्रिकाओं के अलावा प्रसारिका (बच्चू जांजगीरी), ऋचा शक्ति (शांति यदु), छत्तीसगढ़ की अस्मिता (डॉ. मन्नु यदु), साम्य (विजय गुप्त), पहचान यात्रा (डा. राजेन्द्र सोनी), सापेक्ष (महावीर अग्रवाल), सदभावना दर्पण (गिरीश पंकज), बहुमत (विनोद मिश्र), सूत्र (विजय सिंह), कार्टून वाच (त्र्यंबक शर्मा), अक्षर पर्व (ललित सुरजन), संगत (बहादुरलाल तिवारी), नारी का संबल (शकुन्तला तरार), छत्तीसगढ़ परिक्रमा (अर्चना पाठक), छत्तीसगढ़ टुडे (जगदीश यादव), सर्वहारा (पंचराम सोनी), बालमितान (इंदरमन साहू), बालबोध (जयप्रकाश मानस), छत्तीसगढ़ी हिन्दी मानस धारा (पं. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल), संप्रेषण (डॉ. चितरंजन कर), शोध प्रकल्प (डॉ. सुधीर शर्मा), शोध उपक्रम (डॉ. रामकुमार बेहार), छत्तीसगढ़ विवेक (आर.पी.मिश्रा), बिहनिया (संस्कृति विभाग) लघु पत्रिका के संपूर्ण कर्त्तव्यों का निर्वहन कर रही हैं। डॉ. सुधीर शर्मा एवं डॉ. अशोक सप्रे द्वारा पुनर्प्रकाशन की सूचना एक सुखद प्रसंग है।

हि्न्दी के साथ हम छत्तीसगढ़ी भाषा जो हिन्दी को ही पुष्ट करती है, के रचनाकारों का स्मरण न करें तो यह अस्पृश्य भावना का परिचायक होगा। कबीर दास के शिष्य और उनके समकालीन (संवत 1520) धनी धर्मदास को छत्तीसगढ़ी के आदि कवि का दर्जा प्राप्त है, जिनके पदों का संकलन व प्रकाशन हरि ठाकुर जी ने किया है। बाबू रेवाराम के भजनों ने छत्तीसगढ़ी की इस शुरुआत को बल दिया। छत्तीसगढ़ी के उत्कर्ष को नया आयाम दिया – पं. सुन्दरलाल शर्मा, लोचन प्रसाद पांडेय, मुकुटधर पांडेय, नरसिंह दास वैष्णव, बंशीधर पांडेय, शुकलाल पांडेय ने। कुंजबिहारी चौबे, गिरिवरदास वैष्णव ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में अपनी कवितीओं की अग्नि को साबित कर दिखाया। इस क्रम में पुरुषोत्तम दास एवं कपिलनाथ मिश्र का उल्लेख भी आवश्यक होगा। 70 के दशक में पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी, बाबू प्यारेलाल गुप्त, कोदूराम दलित, हरि ठाकुर, श्यामलाल चतुर्वेदी, कपिलनाथ कश्यप, बद्रीविशाल परमानंद, नरेन्द्र देव वर्मा, हेमनाथ यदु, भगवती सेन, नारायणलाल परमार, डॉ. विमल कुमार पाठक, लाला जगदलपुरी, केयूर भूषण, बृजलाल शुक्ल आदि ने छत्तीसगढ़ी साहित्य की विषय विविधता को सिद्ध कर दिखाया। छत्तसीगढ़ी भाषा और रचनाओं को लोकप्रिय बनाने में दानेश्वर शर्मा, पवन दीवान, लक्ष्मण मस्तुरिहा, रामेश्वर वैष्णव, और विमल पाठक ने न केवल कवि सम्मेलनों के मंचों में अपना लोहा मनवाया अपितु उन्होंने सार्थक एवं अकादमिक लेखन भी किया है, जो इस प्रदेश के जन-जन के मन में रमे हैं। इधर डॉ. सुरेन्द्र दुबे ने देश-विदेश के मंचों में कविता पढ़कर छत्तीसगढ़ी का मान बढ़ाया है। छत्तीसगढ़ी के विकास में विद्याभूषण मिश्र, मुकुन्द कौशल, हेमनाथ वर्मा विकल, मन्नीलाल कटकवार, बिसंभर यादव, माखनलाल तंबोली, रघुवर अग्रवाल पथिक, ललित मोहन श्रीवास्तव, डॉ. पालेश्वर शर्मा, बाबूलाल सीरिया, नंदकिशोर तिवारी, मुरली चंद्राकर, प्रभंजन शास्त्री, रामकैलाश तिवारी का विशेष योगदान रहा है। डॉ. हीरालाल शुक्ल, डॉ. बलदेव, डॉ. मन्नूलाल यदु, डॉ. बिहारीलाल साहू, डॉ. चितरंजन कर, डॉ. सुधीर शर्मा, डॉ. व्यासनारायण दुबे, डॉ. केशरीलाल वर्मा, डॉ. निरुपमा शर्मा, मृणालिका ओझा, डॉ. विनय पाठक ने भाषा एवं शोध के क्षेत्र में जो कार्य किया है वह मील का पत्थर है।

छत्तीसगढ़ी का गद्य साहित्य भी निरन्तर पुष्ट हो रहा है। इसके प्रमाण में हम हीरू के कहिनी, (पं. वंशीधर शर्मा), दियना के अंजोर (शिवशंकर शुक्ला), चंदा अमरित बगराईस (लखनलाल गुप्त), कुल के मरजाद (केयूर भूषण), छेरछेरा (कृष्णकुमार शर्मा), प्रस्थान (परदेशीराम वर्मा), को प्रस्तुत कर सकते हैं जो उपन्यास कृतियाँ हैं। खूबचंद बघेल, टिकेन्द्र टिकरिहा, रामगोपाल कश्यप, नरेन्द्रदेव वर्मा, विश्वेन्द्र ठाकुर सुकलाल पांडेय, कपिलनाथ कश्यप, नंदकिशोर तिवारी के नाटक, शायमलाल चतुर्वेदी, नारायणलाल परमार, डॉ. पालेश्वर शर्मा, परदेशीराम वर्मा, डॉ. बिहारी लाल साहू की कहानियों, जी.एस. रामपल्लीवार, परमानंद वर्मा, जयप्रकाश मानस, सुशील यदु एवं राजेन्द्र सोनी के गद्य व्यंग्यों को भी इसी श्रृंखला में रखा जा सकता है। जयप्रकाश मानस द्वारा लिखित कलादास के कलाकारी को प्रसिद्ध विद्वान स्व. हरि ठाकुर ने छत्तीसगढी भाषा का प्रथम व्यंग्य संग्रह माना है । स्व. रवीन्द्र कंचन की छत्तीसगढ़ी रचनाएं देश की विभिन्न पत्रिकाओं में साग्रह छापी जाती रही हैं। यह छत्तीसगढ़ी की संप्रेषणीयता एवं प्रभाव का ही प्रतीक है। समरथ गंवइहा, रामलाल निषाद, जीवन यदु, गौरव रेणु नाविक, डॉ. पी.सी. लाल यादव, नारायण बरेठ, राम प्रसाद कोसरिया, हफीज कुरैशी, ठाकुर जीवन सिंह, शिवकुमार यदु, चेतन भारती, पंचराम सोनी, शत्रुहनसिंह राजपूत, मिथलेश चौहान, रमेश विश्वहार, परमेश्वर वैष्णव, देवधर महंत, डॉ. सीताराम साहू, डुमनलाल ध्रुव, पुनुराम साहू, भरतलाल नायक, राजेश तिवारी, रुपेश तिवारी, तीरथराम गढ़ेवाल, राजेश चौहान आदि छत्तीसगढ़ी के समर्थ रचनाकार हैं। यहां डॉ. राजेन्द्र सोनी के बहुआयामी लेखन का जिक्र करना उचित होगा, जिन्हें छत्तीसगढ़ी में प्रथम लघुकथा संग्रह (खोरबहरा तोला गांधी बनाबो), प्रथम क्षणिका संग्रह (दूब्बर ला दू असाढ़), प्रथम हाइकू संग्रह (चोर ले जादा मोटरा उतिअइल) रचने का गौरव प्राप्त है।

छत्तसीगढ़ी पत्रिकाओं में छत्तीसगढ़ी मासिक (दयाशंकर शुक्ल), छत्तीसगढ़ी सेवक (जागेश्वर प्रसाद), भोजली (डॉ. विनय पाठक), मयारू माटी (सुशील वर्मा), छत्तीसगढ़ लोक (दुर्गा प्रसाद पारकर), छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर (नंदकिशोर तिवारी) आदि का विशिष्ट योगदान रेखांकित करने योग्य है। नए राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का उदय होने के पश्चात छत्तीसगढ़ी भाषा एवं साहित्य के अनुष्ठानिक माहौल का साफ संकेत है कि अब इस भाषा की वास्तविक प्रतिष्ठा होकर रहेगी।

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

छत्तीसगढ़ी भासा के लिखइया मन के बारे में जान के मोर परान बहुत खुस हो गीस. ये छत्तीसगढ़ी पत्रिका मन के पता ठिकाना जरुर छापहू, काबर कि कोई ल लेना मंगाना होही तब अच्छा रही.

कोई छत्तीसगढ़ी में ब्लॉग-चिट्ठा चालू करहू का जेमे दू-चार झन छत्तीसगढ़ी मा लिखइया मन मिल-जुल के लिखबो?

बेनामी ने कहा…

हमर बडे भाई रवी के बात से महु सहमत हाबो कि कोई छत्तीसगढ़ी में ब्लॉग-चिट्ठा लिखे के शुरूवात होना चाहिये, जेमा हमन अपन बात ला अपन महतारी छत्तीसगढी भाषा मे लिख सकन ।

बेनामी ने कहा…

manas ji,
malikram trivedi "bhogha" ko aapne thakur malikram trivedi likha hai, sudhar kar len aur malikram bhogha natak ke sath kavya aur sheorinarayan mahatmya bhi likhen hai.
prof. ashwini kesharwani