3/06/2006
होलियाना दोहे
एक बार फिर ले गयी, मृगया उसकी जान ।
कल चपेट में राम थे, आज रहे रहमान ।।
जिसे चलाते गोलियाँ, देखा था समुदाय ।
बिन सबूद वो भी हुआ, बरी, देखिए न्याय ।।
हुआ ‘मुलायम’ को कठिन, अब सम्हालना ताज ।
मुंसिफ़ ने बरपा दिया, उनके सर पर गा़ज ।।
‘डेनमार्क’ को लिख रहे, मनमोहन जी पत्र ।
बैठे लिए हुसैन हैं, पद्मविभूषण क्षत्र ।।
जिनके घुटने पेट को, मुड़ जाते हर बार ।
वो क्या सोयेंगे भला, अपने पैर पसार ।।
बिन मुद्रा के मुद्रिका, कब आवे है काम ।
जैसे ‘लक्ष्मी’ के बिना, ‘नारायण’ का नाम ।।
आखिर फिर होने लगा, मुर्गों का उद्धार ।
कुर्बानी पर था टिका, अरबों का व्यापार ।।
श्री के. पी. सक्सेना ‘दूसरे’
शांतिनाथ नगर, टाटीबंध
रायपुर, छत्तीसगढ़
492011
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