3/28/2006

बार के जंगल बुला रहे हैं......




यात्रा संस्मरण

एस. अहमद



मीलों लम्बा फैला जंगल, शाम के लहराते साये हैं । साल के ऊँचे पेड़ो पर उतरती शाम की रोशनी खिलखिलाकर हँस रही थी । खुली जिप्सी में कैमरों से लदे-फदे पाँच प्रकृति प्रेमी जंगल को बहुत नज़दीक से निहारने निकले थे । जिप्सी जंगली सड़क पर जंगल के भीतर उतरती चली जा रही थी।
गाईड बता रहा था थोड़े और पहले आ गए होते तो आपके कैमरों के पेट भी भर जाते, और आपका मन भी। चलिए देखते हैं क्या-क्या मिल सकता है... यह तो आपके समय और चांस पर निर्भर करता है... हाँ, आप चुप रहें, शोर बिल्कुल न करें... हम लोग जो थोड़ी देर पहले बतिया रहे थे, एकदम चुप्पी साध गए । जंगल की खामोशी जिप्सी की धीमी आवाज ही तोड़ रही थी।
अचानक ड्राईवर ने रफ्तार धीमी कर दी । गाईड इशारा कर रहा था । एक जंगली दंतैल सुअर तेजी से मैदान को पार कर रहा था। जब तक कैमरों के शटर खुलकर बन्द होते सुअर घनी झाड़ियों में गुम हो गया। गाड़ी फिर से चल पड़ी शटर पर रखी ऊँगलियाँ उदास हो गईं । शाम की रोशनी की लकीरें मध्यम पड़ने लगी थीं। ऊँचे पेड़ों पर काले मुँह के लंगूर उछल-कूद कर रहे थे.
जंगल में खुश्बू तैर रही थी। यह महुए फलने के दिन हैं। जंगल के भी नियम कायदे होते हैं। जैसे-जैसे शाम रात में बदलने लगती है, वहाँ के रहवासी अपने-अपने काम-धन्धों में लग जाते हैं। शाकाहारी जानवर जैसे बाईसन, हिरण, बारहसिंगा, चीतल, खरगोश, नीलगाय आदि पानी पीने के लिए ठिकानों की तरफ चल पड़ते हैं और यह समय होता है मांसाहारी हिंसक जानवरों के शिकार का.........।
शाम अभी उतरी नहीं थी, जंगल में सन्नाटा तैर रहा था। हम लोग जंगल की भीतरी तहों की तरफ बढ़ते जा रहे थे। मोरों की आवाजों से पूरा जंगल गूँज रहा था। बीच-बीच में टिटहरी की आवाजें भी उनमें शामिल हो जाती थी। हम सब चौंकन्ने थे। अभी रोशनी बची हुई थी। कैमरों के पेट भर सकते थे । जरूरत थी कि कोई सामने आए...।
तभी गाईड ने गाड़ी रोकने का इशारा किया। गाड़ी चरमरा कर रूक गई । घने पेड़ों के बीच में घास के मैदान में चीतलों का एक बड़ा झुंड घास चर रहा था। चौंकन्ना होकर हमारी गाड़ी की तरफ देखने लगा..........। गाईड ने खामोश रहने को कहा...........। हम कहाँ रूकने वाले थे । कैमरों के शटर तेजी से चलने लगे..........। कुछ ही पलों में चीतलों का झुंड तेजी से घनी झाड़ियों में समा गया..........और हम मुँह ताकते रह गए।
आगे का रास्ता ऊबड़-खाबड़ था। गाड़ी हिचकोले ले रही थी। हम सब कभी अपने आप को सम्हालते तो कभी कैमरों को, सूखी लकड़ियों के चक्कों के नीचे आने से हो रही आवाजों से खूब शोर हो रहा था । तभी एक मादा सुअर सामने से आती दिखी। ड्राईवर ने गाड़ी रोकी ही थी कि मादा सुअर भागकर चट्टानों के पीछे चली गई। गाईड ने ड्राईवर को दूसरे पॉइंट पर चलने के लिए कहा, उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
अब जंगल में हलका-हल्का अंधेरा उतरने लगा था। सूरज कभी का पहाड़ियों के पीछे जा छिपा था, जंगल की हवा में महुए की गंध के साथ-साथ अन्य गंध भी घुल-मिल गई थी। हम बाईसन पॉइंट की ओर बढ़ रहे थे। चढ़ाई खत्म हो कर ढलान में बदल गई थी। आगे मैदानी इलाका है, वहाँ पानी का सोर्स है। वहाँ कई तरह के जानवर हो सकते हैं गाईड बता रहा था।
आगे मोड़ था । जैसे ही हमने मोड़ पार किया, सामने बाईसनों का एक बड़ा झुंड बाँसों के झुरमुट के पास खड़ा था । जिप्सी रुक गई । बाईसन चौंकन्ने हो गए थे । लेकिन कैमरों की रेंज में थे, लेकिन रोशनी इतनी कम थी कि बिना फ्लैश लाईट के फिल्म उतारना कठिन था । जिप्सी की माथे पर लगी दोनों सर्च लाईट जला दी गई। पूरा झुंड रोशनी के घेरे में आ गया..........। अब हम सब के चेहरे खिले हुए थे........। कुछ अच्छे शॉट मिल गए थे..........। झुंड से एक ऊँचापूरा बाईसन आगे आया और सड़क को लाँघ गया । उसके बाद तो पूरा झुंड हवा की तरह सड़क पार कर घनी झाड़ियों में समा गया.......। गाईड ने बताया कि बाईसनों के हर झुंड का एक मुखिया होता है । उसी पर पूरे झुंड की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है।

अब हम लोगों का टारगेट टाईगर था। गाईड ने कहा – टाईगर तो चांस की बात है, लेकिन मैं आपको भालू, और तेंदुए को तो दिखा ही दूँगा.........। हम सब आशान्वित हो उठे । कैमरे पैक कर दिये । जंगल पूरा अंधेरे में मिल गया था । अब केवल मन को ही भरमाया जा सकता था........। गाईड चौंकन्ना हो जिप्सी की रॉड पकड़ हुए जंगल की परतों को आँखों से भेद रहा था । अचानक उसने रुकने का इशारा किया । रोशनी के घेरे में भालू था । देर तक निहारने के बाद हम आगे बढ़े........।
न तो बहुत देर हुई थी और न ही बहुत दूर गए थे । गाईड की चौंकन्नी और जंगल से अभ्यस्त नज़र ने एक तेंदुए को घेरे में ले ही लिया। दूरी बहुत थी, रास्ता भी नहीं था, लेकिन उत्साही ड्राईवर ने गाड़ी उस ओर बढ़ा दी । अब तेंदुआ ती-चालीस फीट की दूरी पर था । पर वह अपने आपको छिपा रहा था । और हम सब उसको उघाड़ने में लगे हुएथे । जहाँ तक हमें तेंदुए की आदतों के बारे में जानकारी थी, उसके अनुसार यह जीव बहुत ही खतरनाक और चालाक जानवर माना जाता है। डर भी लग रहा था। खुली जिप्सी में बैठे हैं, अगर वह चार्ज होकर हमला करता है तो हम अब उसकी पहुँच यानी एक छलांग के घेरे में थे। तभी वह पूरा खड़ा हो गया । अच्छा खासा भरापूरा था । रोशनी में चमकती नीली आँखें, खुले मुँह से दिखाई देते नुकीले दाँत.......... जिस्मों में सिहरन पैदा कर रहे थे।
ये बार के जंगल हैं... जहाँ चालीस तेंदुए, आठ शेर, सैकड़ों चीतल, बाईसन, नील गायें, भालू, बन्दर, मोर, सोन-कुत्ते, लकड़बग्घे, सियार लोमड़ी निवास करते हैं। बार के जंगल मिश्रित प्रजाति के जंगल हैं । जब शहर की तनाव भरी ज़िंदगी से ऊब होने लगे तो चले जाइये बार के जंगलों में जहाँ सुकून है, शांति है...। और देखने को इतना कुछ कि कहा नहीं जा सकता। ठहरने के लिए पर्यटन ग्राम के आरामदायक कमरे और खाने को बढ़िया रसोई और वो भी आपकी जेब की पहुँच के भीतर । बार के जंगल के रहवासियों से मिलने का सबसे बढ़िया मौसम है । अप्रैल और मई का, तब जंगल पतझड़ की गिरफ्त में होता है । महुए की गंध से महकता हुआ आपके स्वागत को तैयार......। जा रहे हैं न आप... .....?

(लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ फोटोग्राफर एवं कहानीकार हैं । उनके दो कहानी संग्रह कहानीकारों के मध्य चर्चा में रहे हैं । कहानी की सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ प्रकाशित होती रही हैं । जनसंपर्क विभाग, छत्तीसगढ़ शासन से सेवानिवृति के उपरांत स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं । फिलहाल रायपुर, छत्तीसगढ़ में डेरा है । संपादक )

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