3/04/2006

अशआर तुम्हारी आँखों में


आते-आते ही आया इक़रार तुम्हारी आँखों में
आखिर हमने ढूंढ ही लिया प्यार तुम्हारी आँखों में

ज़रा बात पर क्यूँ इनसे आँसू की धार निकाली है
लगता है इक बादल है उस पार तुम्हारी आँखों में

सोच-सोचकर परेशान, इन आँखों को क्या उपमा दूँ
मैंने तो पाया सारा संसार तुम्हारी आँखों में

ना जाने कितने ही मिसरे हैं इन आँखों के अन्दर
ना जाने कितने ही हैं अशआर तुम्हारी आँखों में

उनमें से दो सपने अब उनकी आँखों तक पहुँच गये
कल तक ‘अंजुम’ थे जो सपने चार तुम्हारी आँखों में

श्री अशोक अंजुम

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