3/04/2006

ख़्वाब फूलों के


देखियेगा शबाब फूलों के
अब उठेंगे नका़ब फूलों के

उम्र-भर बाँटते रहे ख़ुशबू
तुमसे अच्छे हिसाब फूलों के

पत्थरों के भी दिल धड़क उट्ठें
हैं फक़त ये ही ख़्वाब फूलों के

उसने पूछे सवाल काँटों के
हमने भेजे ज़वाब फूलों के

सिर्फ़ नश्तर चुभोए हैं तुमने
फिर भी पाये ख़िताब फूलों के

उसने कल मुस्कुरा के देखा था
रात-भर आये ख़्वाब फूलों के

श्री अशोक अंजुम

1 टिप्पणी:

आलोक ने कहा…

ख़्वाब - क्या क्या करा देते हैं हमसे।