3/15/2006

सप्ताह का व्यंग्य


प्रेस क्लब में रावण

।।विनोदशंकर शुक्ल।।

पत्रकारों में सूंघने की असाधारण क्षमता होती है। उनके पास जितने हॉर्सपॉवर की घ्राणशक्ति होती है, उसका मुकाबला श्वान की घ्राणशक्ति भी नहीं कर सकती। नर हो, नारी हो या नेता हो – पत्रकार दूर से ही उसकी गंध सूँघ लेते हैं। कौन नर है और कौन नर के लेबल में वानर, उन्हें भांपते देर नरीं लगती। इसी तरह कौन नेता है, कौन चमचा और कौन उपचमचा – शक्ल देखते ही वे पहचान लेते हैं।
किस मंत्री ने पूरा-पूरा बाँध गटक लिया, किस अफसर ने कौन सी सड़क पचा ली और सरकारी योजनाओं की मलाई, कौन-कौन चींटे और चींटियाँ चाट रहे हैं- हर हेराफेरी की खबर उनके पास रहती है।

कुछ माह पहले पत्रकारों ने रावण की गंध सूँघ ली। वह साधू का वेष धारण कर कुछ राजनीतिक दलों के दफ्तरों के आस-पास चक्कर लगा रहा था। पत्रकारों ने अचानक उसे सूँघ लिया। कहा – अरे ! आप तो असली लंकेश हैं। आपके चाल की अकड़ और स्वर्ण कमण्डल पर आपकी पकड़ बता रही है।
साधूरूपधारी रावण चकित रह गया। बोला – कमाल है, रामायण युग को बीते शताब्दियाँ हो गई; फिर भी आपने पहचान लिया।

पत्रकारों के गैंग का सरगना बोला – रावणत्व की गंध मरी कहाँ हैं ? वह कलिकाल के नेताओं में आज भी जीवित है। पहले से ज्यादा प्रखरता के साथ।
रावण ने आश्चर्य से कहा – विश्व के प्रथम पत्रकार नारद ने भी नर्क में मुझे यही सूचना दी थी । कहा था, तुम अपने रावणत्व पर गर्व करना छोड़ दो। पृथ्वी पर इन दिनों तुमसे भी शक्तिशाली रावण पैदा हो गए हैं। हिन्दी में उन्हें नेता और अंग्रेजी में लीडर कहते हैं। मैं अपने इन्हीं उत्तराधिकारियों के दर्शनार्थ पृथ्वी पर आया हूँ।
सरगना ने कहा – राक्षसश्रेष्ठ ! आपने तो केवल सीताहरण किया था। आपके उत्तराधिकारी स्वतंत्रताहरण, सम्पत्तिहरण, शीलहरण आदि नाना हरण-उद्योग में लगे हुए हैं। आपकी हरण परम्परा को विकसित करने में उन्होंने आकाश-पाताल कुछ नहीं छोड़ा।
रावण मोगेम्बो की तरह खुश हो गया। बोला – मुझे भूमण्डलीय स्तर की प्रसन्नता हो रही है। रावणत्व का प्रसार दिन दूना बढ़ता जा रहा है। बेचारा राम मुझे मारकर भी नहीं मार पाया।
भेद खुलने पर रावण अपने असली रूप में आ गया। पत्रकारों के आग्रह पर उसने अपने नौ सिर विदड्रॉ कर लिए। दशानन होने पर अजायबघर में बंद किए जाने का खतरा था।
पत्रकारों ने रावण को प्रेस क्लब में आमंत्रित किया। ताकि कल के अखबारों को चटपटा और मसालेदार बनाया जा सके। आखिर रावण स्टार खलनायक जो था।
प्रेस क्लब में औपचारिक स्वागत के बाद प्रश्नोत्तर का सिलसिला शुरु हुआ।
दैनिक चनाजोरगरम के सवाददाता ने पूछा– रावणजी ! क्या यह सच है कि आपकी लंका सोने की थी ?
रावण ने चिरपरिचित कलफदार ठहाका लगाया। बोला – आपको संदेह क्यों है ? देवलोक पर मेरे सारे आक्रमण सोने के लिए ही थे। वैसे ही जैसे इराक पर अमेरिका का आक्रमण तेल के लिए था। देवराज इंद्र का खजाना मैंने इतनी बार लूटा कि देवताओं के पास छोटी सी अंगूठी बनाने के लिए भी सोना नहीं बचा। देवपत्नियों को नकली आभूषणों से संतोष करना पड़ा।
साप्ताहिक भूकम्प के नगर प्रतिनिधि ने सवाल किया – लंकेश्वर ! लगता है, सोना आपकी सबसे बड़ी कमजोरी है ?
रावण ने फिर ज़ोर का अट्टहास किया। उसके अट्टहास प्रेस क्लब की छत हिल गई और मंच काँपने लगा। प्रेस क्लब के अध्यक्ष ने हाथ जोड़कर दीरे हँसने की विनती की।
इस प्रार्थना पर रावण को जोर से हँसी आई, परंतु उसने उसे बलपूर्वक रोक लिया। बोला – सोना और सुन्दरी किस शासक की कमजोरी नहीं होती ? ये दोनों जिसके पास, जितनी ज्यादा, वह उतना बड़ा शासक ! मेरी लंका में सार्वजनिक नल, नालियाँ और नहरों के किनारे तक सोने के थे।
पाक्षिक गरम मसाला के प्रतिनिधि ने पूछा – आपकी नज़र में अच्छे शासक का प्रधान गुण क्या होना चाहिए ?
रावण बोला – अच्छा शासक आज के अमेरिका की तरह होना चाहिए। अच्छा शासक दूसरों का ऐश्वर्य नहीं देख सकता। हर हालत में वह दूसरों को नीचा दिखाने और अपना झण्डा ऊँचा रखने की कोशिश करता है।
सिने मासिक सेक्सबम की रिपोर्टर देहदर्शनी ने पूछा – आपको स्वर्ग मिला है या नर्क ?
रावण अट्टहास करते-करते रुक गया फिर भी क्लब की दीवारों में थोड़ा कम्पन लक्षित हुआ। संयमित होने के बाद रावण बोला – शिव की अखण्ड भक्ति के कारण मुझे स्वर्ग मिला। परंतु मेरे विरोध में देवताओं ने हड़ताल कर दी। देवराज इन्द्र विरोध में वैसे ही खड़ा हो गया, जैसे कांग्रेस भाजपा के और भाजपा कांग्रेस के विरोध में खड़ी रहती है। अंततः मेरे लिए एक दूसरे स्वर्ग की रचना करनी पड़ी। उसी प्रकार जैसे जब दो प्रतिद्वंद्वियों में प्रधानमंत्री पद का फैसला नहीं हो पाता तो एक को उपप्रधानमंत्री बनाकर हल निकाला जाता है।
दैनिक डमडमडिगा के ब्यूरो चीफ ने प्रश्न किया – आपके कारण स्वर्ग भी दो हो गए। दो नम्बरी स्वर्ग में क्या आपने खलनायकी छोड़ दी ?
रावण मुस्कराया। बोला – हम वो दरिया नहीं, जो चढ़ के उतर जाता है। संसार में मेरा अस्तित्व ही खलनायकी से है। मैं शतप्रतिशत खलनायक हूँ। मेरा व्यक्तित्व पूर्णतः मौलिक है, अनूदित नहीं। नायक मर जाते हैं लेकिन खलनायक कभी नहीं मरता।
साप्ताहिक चलती का नाम गाड़ी के प्रतिनिधि ने पूछा – लंकापति, यह बताएं कि स्वर्ग में रिश्वत चलती है या नहीं ?
रावण ने उत्तर दिया – रिश्वत कहाँ नहीं चलती ? उसका तीनों लोकों में बोलबाला है। एक बार एक जीवात्मा रोती हुई मेरे पास आई। सेना में भर्ती के लिए अधिकारी उससे चारस्वर्ण मद्राएँ मांग रहे थे। मैंने कोषालय अध्यक्ष से मुद्राएं दिलाकर उसका दुख दूर किया। मेरे ख्याल से रिश्वत राजकर्मियों का जन्मसिद्ध अधिकार है।
अंतिम प्रश्न कोरा कागज नामक सांध्य दैनिक के प्रतिनिधि ने पूछा – विश्व का पहला विमान पुष्पक आपके पास था। क्या उसे लंका के किसी वैज्ञानिक ने आविष्कृत किया था?
रावण ने उत्तर दिया – पुष्पक को मैंने देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर से छीना था। महाबली शासक को किसी की कोई चीज पसंद आ जाए तो वह उसे छीने बिना नहीं रहता। लंका विजय के बाद राम ने उसे हथिया लिया। मुझे शक है कि लंका का राज्य पाने के लिए विभीषण ने उसे रिश्वत के रूप में राम को दे दिया होगा।

अभी पत्रवार्ता चल ही रही थी कि रावण विरोधी तख्तियाँ लेकर भाजयुमो के युवक वहाँ पहुँच गए। वे नारे लगा रहे थे – रावण को बाहर निकालो... रावण मुर्दाबाद... रावण हाय-हाय !
रावण को चिंता हुई की भाजपाई नकली की जगह असली रावण को न जला दें। अतः वह वार्ता अधूरी छोड़ फौरन नौ दो ग्यारह हो गया।

संपर्कः-
मेघ मार्केट के सामने
बूढ़ापारा, रायपुर
छत्तीसगढ़

(रचनाकार देश के वरिष्ठतम व्यंग्यकार हैं । देश की तमाम पत्र-पत्रकाओं में छपते हैं । कई व्यंग्य संकलन इनके प्रकाशित और चर्चित हो चुके हैं । हाल ही में इन्हें सृजन-सम्मान द्वारा समरथ गवंईहा (व्यंग्य लेखन के लिए) सम्मान-2004 से छ.ग. के राज्यपाल द्वारा पुरस्कृत किया गया है ।- संपादक)

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