आज मन पावन हुआ है
जेठ में सावन हुआ है
अभी तक दृग बन्द थे ये,
खुले उर के छन्द थे ये,
सजल होकर बन्द थे ये,
राम अहिरावण हुआ है
आज मन पावन हुआ है
कटा था जो पटा रह कर,
फटा था जो सटा रह कर,
डटा था जो हटा रह कर,
अचल था, धावन हुआ है
जेठ में सावन हुआ है
आज मन पावन हुआ ही
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
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1 टिप्पणी:
वाह.
प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.
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