रिश्वत, भ्रष्टाचार, धक्केशाही, ज़ोर ज़बरदस्ती, निकम्मापन जैसी बातें तो देश के लगभग सभी राज्यों की पुलिस में समान रूप से देखी जा सकती हैं। परन्तु हरियाणा पुलिस को लेकर गत् कुछ वर्षों के भीतर कई ऐसे मामले उजागर हुए हैं जोकि हरियाणा पुलिस का एक अपराधिक रूप एवं चरित्र पेश करते हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश व बिहार के मेहनतकश मंजदूरों से ज़बरदस्ती चलती ट्रेन में पैसे छीनने की कई ऐसी घटनाएँ घटित हो चुकी हैं जिनमें हरियाणा पुलिस को आरोपी बनाया जा चुका है। अभी मात्र दो वर्ष पूर्व ही अम्बाला शहर रेलवे स्टेशन पर हरियाणा पुलिस के जी आर पी में तैनात सिपाहियों द्वारा एक प्रवासी कामगार से ज़बरदस्ती पैसे छीनने का मामल उजागर हुआ था जिसमें दोषी पुलिसकर्मियों को गिरफ़्तार भी किया गया था।
यह घटना मीडिया में काफ़ी दिनों तक इसलिए भी छाई हुई थी क्योंकि पैसे की लूट में गिरंफ्तार एक पुलिसकर्मी ने इन जैसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर उच्च पुलिस अधिकारियों को दोषी ठहरा दिया था। गिरफ़्तार पुलिसकर्मी ने उस समय अपने आला पुलिस अधिकारियों पर निशाना साधते हुए कुछ ऐसे रहस्योद्धाटन किए थे जिनसे कि हरियाणा पुलिस का एक ख़ौफनाक चेहरा सामने आया था। इसी हरियाणा पुलिस के कुछ पुलिसकर्मियों को अम्बाला-सहारनपुर मार्ग पर लूट खसोट करने के चलते सेना के जवानों ने चलती हुई ट्रेन में क़ाबू कर लिया था तथा उन्हें पीट-पीट कर न सिर्फ़ उन्हें उनके किए की सज़ा दी थी बल्कि बाद में उन्हें उत्तर प्रदेश में जी आर पी के हवाले भी कर दिया था।
चण्डीगढ़ में हरियाणा पुलिसकर्मियों द्वारा अपने पुलिस कैम्प में सामूहिक बलात्कार किए जाने की घटना भी अभी कुछ समय पहले ही की बात है। इस घटना से भी हरियाणा पुलिस बेहद शर्मसार हुई थी। और उसके पश्चात अब रोहतक के ताज़तरीनसरिता-बलात्कार एवं ख़ुदकुशी कांड ने एक बार फिर हरियाणा पुलिस की ख़ाकी वर्दी को दाग़दार कर छोड़ा है।
हरियाणा पुलिस वैसे तो वी एन राय, आलोक जोशी, राजबीर देसवाल, मनोज यादव जैसे कई बुद्धिमान एवं साहित्यिक रूचि रखने वाले अधिकारियों से लबरेज़ है। परन्तु वहीं इन्हीं के मध्य कुछ अधिकारी ऐसे भी हैं जो भ्रष्ट पुलिसकर्मियों के लिए प्रेरणास्रोत साबित होते हैं। उदाहरण के तौर पर डी जी पी राठौड़ प्रकरण को ही ले लीजिए। जब राज्य का सबसे बड़ा पुलिस अधिकारी ही एक युवती की हत्या में आरोपी हो तथा सी बी आई जाँच का सामना कर रहा हो, ऐसे में तुलनात्मक दृष्टि से छोटा दृष्टिकोण रखने वाले साधारण पुलिसकर्मियों से आंखिर क्या उम्मीद की जा सकती है। ज़ाहिर है जब सेनापति ही दुश्चरित्र होने का प्रमाण पत्र लिए घूमने लग जाए फिर आख़िर साधारण पुलिसकर्मियों पर उंगली कैसे उठाई जाए। कहना ग़लत नहीं होगा कि राठौड़ प्रकरण के बाद हरियाणा पुलिस में नैतिक गिरावट के मामलों में वृद्धि देखने को मिली है।
रोहतक का सरिता बलात्कार एवं ख़ुदकुशी कांड वास्तव में हरियाणा पुलिस की एक साथ कई ख़ामियों को उजागर करता है। एक तो सरिता के पति की अकारण गिरफ़्तारी। फिर उसे छोड़ने के लिए उसकी पत्नी को बदनियती के साथ थाने बुलाया जाना। थाने में बुलाकर सरिता को उसके पति को छोड़ने की लालच देकर उससे दो वर्दीधारी पुलिसकर्मियों द्वारा बलपूर्वक बलात्कार करना। फिर पीड़ित महिला की शिकायत पर उन बलात्कारी पुलिसकर्मियों के विरुद्ध न तो मुक़द्दमा क़ायम करना न ही उन्हें गिरफ़्तार करना और हद तो उस समय हो गई जबकि बलात्कार की शिकार पीड़ित सरिता अपने दो मासूम बच्चों को लेकर रोहतक से लगभग 300 किलोमीटर दूर हरियाणा पुलिस के पंचकुला स्थित मुख्यालय पहुँची। वहां भी उसकी फ़रियाद सुनने वाला कोई न मिला। अन्ततोगत्वा हरियाणा पुलिस मुख्यालय पंचकुला में ही उस अभागी महिला द्वारा बांकायदा पूर्व चेतावनी देकर ज़हर खा लिया गया तथा अपने दो छोटे-छोटे बच्चों व पति को छोड़कर उस दुखियारी सरिता द्वारा अपने जीवन की लीला समाप्त कर ली गई। हरियाणा पुलिस की वर्दी पर न तो इससे अधिक बदनुमा दांग कोई दूसरा देखने को मिल सकता है, न ही इससे बड़ा तमांचा। अब चाहे हरियाणा सरकार मुआवज़े के तौर पर पीड़ित परिवार को अधिक से अधिक धनराशि उपलब्ध कराए या मृतका के पति को सरकारी नौकरी दे परन्तु यह सभी उपाय ख़ाकी वर्दी पर लगे कलंक रूपी धब्बे को धो पाने के लिए क़तई नाकाफ़ी हैं।
साधारण समाज में बलात्कार अथवा बलात्कार के परिणामस्वरूप आत्महत्या किए जाने की घटनाएँ पहले भी कई बार घटित हो चुकी हैं। परन्तु समाज के रक्षकों द्वारा बलात्कार किया जाना तथा सुनवाई न होने पर पुलिस मुख्यालय पहुँचकर पीड़िता द्वारा आत्महत्या करने की शायद यह पहली घटना प्रकाश में आई है। जहाँ देश की सरकारें पुलिस में महिलाओं की अधिक से अधिक भर्ती कर, यहां तक कि विशेष शुद्ध महिला थाने स्थापित कर महिलाओं के दिल से पुलिस का ख़ौफ़ निकालने एवं महिलाओं की पुलिस तक बे रोक टोक पहुँच को सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही हैं, वहीं इसी विभाग में कुछ वहशी दरिंदे पूरे के पूरे हरियाणा पुलिस विभाग को अपनी ऐसी काली करतूतों के द्वारा बदनाम करने में लगे हैं।
मेरे विचार से साधारण समाज हेतु ऐसे दुष्कर्मों की जो संजा भारतीय दंड संहिता में निर्धारित की गई है, क़ानून के रखवालों के लिए इससे अलग हटकर सज़ा का प्रावधान होना चाहिए। क्योंकि आम समाज का कोई व्यक्ति यदि कोई जुर्म या धोखा करता है तो कम से कम वह अपने ऊपर ख़ाकी वर्दी, सरकारी पदवी अथवा सरकारी रक्षक होने जैसा लेबल आदि नहीं लगाए होता है। ठीक इसके विपरीत एक वर्दीधारी व्यक्ति वर्दी की आड़ में या वर्दी के भरोसे पर या वर्दी का रोब दिखाकर बड़े से बड़े जुर्म को आसानी से ऐसे कर डालता है जैसे कि उसे जुर्म करने का लाईसेंस सरकार ने ही दे रखा हो। लिहाज़ा भले ही ऐसे पुलिसकर्मियों पर भारतीय दंड संहिता की उन्हीं धाराओं का प्रयोग क्यों न हो जो आम समाज के अपराधियों पर लागू होती हैं परन्तु वर्दीधारियों हेतु ऐसे अपराधों के लिए कम से कम दोगुनी अधिक संजाओं का प्रावधान अवश्य होना चाहिए।
निर्मल रानी
163011, महावीर नगर,
अम्बाला शहर,हरियाणा
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