3/04/2006

कुँवारी चिट्ठियाँ




तुमसे अच्छी हैं तुम्हारी चिट्ठियाँ
मिलने आतीं प्यारी-प्यारी चिट्ठियाँ

तुम रूके रूसवाइयों के खौफ़ से
पर नहीं दुनिया से हारी चिट्ठियाँ

राज़ कितने अपने सीने में लिए
फिर रहीं ये मारी-मारी चिट्ठियाँ

जैसे हाथों में हो चेहरा चाँद-सा
इस तरह रक्खीं तुम्हारी चिट्ठियाँ

खूब हंगामा मुहल्ले में हुआ
मिल गयीं जब भी कुँवारी चिट्ठियाँ

प्यार की यदि ये निशानी हैं कभी
तो कभी ये हैं शिकारी चिट्ठियाँ

आ गया इनकार जबसे आपका
हो गयीं तबसे कटारी चिट्ठियाँ

तोड़कर रिश्ता वे हमसे कह रहे
हमको लौटा दो हमारी चिट्ठियाँ

0 श्री अशोक अंजुम
ट्रक गेट, कासिमपुर (पा.हा.)
अलीगढ़, उत्तरप्रदेश

1 टिप्पणी:

आलोक ने कहा…

चिट्ठी का लेखक कौन है?