3/06/2006
डॉ.सुधीर तीन कविताएँ
मेरे अपने हैं
नेताओं के पीछे
चीखते-चिल्लाते लोग
फूलों की मालाओं के साथ
दौड़ते-भागते सैकड़ों लोग
घोटालों और घटनाओं से
मदमस्त हुए लोग
बेईमानी की भीड़ में
छटपटाते पस्त-त्रस्त लोग
ये सब मेरे अपने हैं
मेरे ही इस देश के हैं
शक्कर के दानों के लिए
मोहताज होती नन्हीं चीटियाँ
फूलों के रस को तरसती
रंगबिरंगी अल्हड़ तितलियाँ
चूहों को लेकर भागती बिल्ली
और बिल्ली के पीछे दौड़ते कुत्ते
मेंढ़के को दबोचे साँप
कीड़ो के लिए लपकता मेंढ़क
ये भी सब मेरे अपने हैं
मेरे ही इस देश के हैं
मेरे अपनों ने ही काटें हैं इन्सानियत के पेड़
फल-फूल, तने-पत्ते और हरे-भरे खेतों की मेड़
अब इनकी निगाहें मिट्टी के भीतर जड़ों पर हैं
इसे बचाने का बोझ भी मेरे ही बड़े-बूढ़ों पर है
चट कर जाएँगे मिट्टी के साथ पूरा देश
न होंगे गली-मुहल्ले, कस्बे, ज़िले और प्रदेश
न होगी याद आज़ादी की कोई कहानी
न होंगे उसे सुनाने कोई नाना और नानी
क्या करूं, किसे समझाऊँ ये बातें
मेरे अपनों ने ही कर दी काली ये रातें
ये सब मेरे अपने हैं
भविष्य के ही सपने हैं
*****
पुष्प-गुच्छ
पुष्प-गुच्छ महज गुच्छ नहीं है फूलों का
इस में अलग-अलग रंगो की छटाएँ हैं
ख़ुशबू की अनेक मधुर फ़िज़ाएँ हैं
रंगों के संयोजन की सुन्दर निधि है
एकता और सफलता की प्रविधि है
आओ पुष्प-गुच्छ की भाँति मानव-गुच्छ बनाएँ
एकता और देश-प्रेम का अभिनव दीप जलाएँ
इस में गोरे, लाल और काले दिलों की बात न हो
सूरज की रोशनी हो , अँधियारी रात न हो
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कविता ! तू कैसी कविता है
कविता
तू कैसी कविता है
तुझ में न छंद है
न रस
और न ही अंलकार
फिर भी तू कविता है
मानवीय संवेदनाएँ
तेरे खोखले शरीर पर
दम तोड़ रही हैं
शब्दों के सिमटते अर्थ
तुझे लोप कर रहे हैं
संस्कृति ने तुझ से
मुँझ मोड़ लिया है
भनभनाते नए भँवरों
से नाता जोड़ लिया है
कविता
तू फिर भी कविता है
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डॉ. सुधीर शर्मा
(संपादक, साहित्य वैभव)
वैभव, प्रकाशन
शिवा इलेक्ट्रिकल के पास, अमीनपारा, रायपुर
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2 टिप्पणियां:
सुधीर जी आपकी कविताएं समकालीन परिवेश को समेटे मर्यादाओं का
शिक्षण हैं।
नेताऔ के बारे मे कहा सही है, हमने इन्हे अपना माना ये भी सही है,
पर ये हमें कब अपना मानेगे ये विडम्बना है, ऐसे सपने हमारे लिये क्या ठीक है,
फिर चाहे वर्तमान के हो या भविष्य के
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