6/24/2008

पाँच कविताएँ


इंसान यहाँ पर बिकते हैं

इंसान यहाँ पर बिकते हैं
कुछ होते पैदा, कुछ मिटते हैं
कुछ करते हैं हवा से बातें
कुछ पाँव यहाँ पे घिसते हैं
ये इंसानो की धरती है
इंसान यहाँ पर बिकते हैं।।
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गुलाम


हम कल भी गुलाम थे
आज भी गुलाम हैं
ना कल ही खास थे
ना आज ही आम हैं।।

000


काश़ हम भी बच्चे होते


काश हम भी बच्चे होते
कितने सुंदर, सच्चे होते
बात-बात पे हँसते
बात-बात पे रोते
काश हम भी बच्चे होते।।
मन साफ-
न कोई छल होता
जी भर के लेते हम निंदिया
सुंदर सपनों में हम खोते
काश हम भी बच्चे होते।।
000

ये तंग-तंग जहान है
वो खुला-खुला सा आसमान
ये तंग-तंग जहान है
वहाँ प्यार का फरमान था
यहाँ अपना भी अंजान है
वो खुला-खुला सा आसमान
ये तंग-तंग जहान है ।।
इंसान नहीं इंसान यहाँ
हैवानियत का रूप है
तन से सुंदर दिखते हैं पर
मन से बडे कुरूप हैं
उम़्र तो यारो ढलती है
यहाँ चाह बनने की नौजवान है
वो खुला-खुला सा आसमान
ये तंग-तंग जहान है ।।
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खुला सा आसमान हो

वो खुला सा आसमान हो
न कहीं कोई अंजान हो
न इंसान के दाम हों
न नफरत की शाम हो
न मदिरा का ज़ाम हो
न मुल्ला, न राम हो
बस प्यार का पैगाम हो
वो खुला सा आसमान हो।।
न भूखा कोई हो
न नंगा हो
सब का अपना धंधा हो
न हाथ में किसी के डंडा हो
बस प्यार ही जीने का फंडा हो
न अपना कोई अंजान हो
बस प्यार का पैगाम हो
वो खुला सा आसमान हो ।।
000

एक बहाना
आऒ ढूंढें एक बहाना
दर्द भरा है जीवन माना
सीखो यारो दर्द भुलाना
सुख - दुख तो है आना जाना
आऒ ढूंढें एक बहाना ।।
साथ रहेगा तेरे ज़माना
जो दर्द में भी मुस्कराऒगे
जिस आँक से देखोगे
जीवन वैसा पाऒगे
बनना पडेगा तुझे दिवाना
आऒ ढूंढें एक बहाना ।।
जो दर्द भुलाना सीखोगे
तो मन को अपने जीतोगे
खोजोगे खुशियों का ख़जाना
दर्द भरा है जीवन माना
आऒ ढूंढें एक बहाना ।।

0सुशील कुमार पटियाल
गाँव मसलाणा खुर्द
डाक घर झंञ्जियाणी
तहसील बडसर, जिला हमीरपुर
हिमाचल प्रदेश -१७४३०५

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

हमारे अनुकूल हैं बलों के संघर्ष के रूप में खुद को जन्म बुद्धिमान प्रजाति है . परन्तु वे शांत हैं और शर्मीला , वे हैं जाने की माँग की है , में नहीं आने के विदेशी fleets में आकाश के तारे पृथ्वी पर है , लेकिन आसपास है , जंगल में एकान्त में ambiance के झरने , और हां , घास के मैदानों में और अब भी चराई शायद ही कभी नीचे हमारे हाथ की थी .

क्या आपने कभी पाया शब्दों के लिए अपने आप को खो दिया है ?

इसके जवाब देने की कोई आवश्यकता नहीं है . मैं तो यह कहना है कि बड़े पैमाने पर निर्भर करता है कि आप क्या इच्छा है और डर है . इन दो देहद्रव bedfellows के लिए किया जा सकता है , और कई बार कर रहे हैं , एक सम्पूर्ण जीवन का विकर्षण ; पुनः आकार बदलने tumbleweeds सदा हमारे स्वयं के धारणा है , इस भ्रम को बनाए रखने में मदद के व्यक्तित्व और अलग है .

क्या आपने कभी सोच को रोकने की कोशिश की है ?

यह एक कठिन है . इस मान्यता की चुप्पी बहुत शोर बनाता है . विचार है , जब वह स्वयं की टिप्पणी थी , जानता है कि यह एक विरोधाभास है . हर बार जब आप सोचते हैं कि आपने सोचा ग्रहण समारोह में एक और रूप और आप देखते हैं कि आप केवल clutching पैरामीटरों की है . और इन मानकों के रूप में मैं ने कहा , वस्तुओं की इच्छा हमेशा रहे हैं और डर है , कि क्या तथाकथित " असली " या सार है . इसके अलावा की इच्छा को ' प्रबंधन ' की इच्छा और डर है ( और पारस्परिक के डर से ऐसा करने का प्रबंध नहीं ) के कारण हमें करना कभी एक सेट से चलती " रूसी गुड़ियों " कई बार उल्लेख के रूप में " अहं " ( सूचक के लिए एक उपयोगी सबसे बड़ी गुड़िया ) . इस पुनरावर्ती , आत्म referential प्रकृति के मन में कुछ करने के लिए की जा सकती है सार की भावना को फँसा के भीतर की जा रही है . यदि हम कर सकते हैं लेकिन शायद खुद को देखने के बिना किसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हैं , के प्रलोभन का विरोध करने के लिए खुद को बढ़ाना या घटाना , हम शायद ही हो सकता है … … जा रही अनजाने की दिशा में पहला कदम पर कहीं नहीं है .

विज्ञान अंतिम समाधान नहीं कर सकते हैं प्रकृति के रहस्य है . और कारण है कि , पिछले विश्लेषण , हम खुद का एक हिस्सा हैं कि हम इस रहस्य को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं .

Unknown ने कहा…

हमारे अनुकूल हैं बलों के संघर्ष के रूप में खुद को जन्म बुद्धिमान प्रजाति है . परन्तु वे शांत हैं और शर्मीला , वे हैं जाने की माँग की है , में नहीं आने के विदेशी fleets में आकाश के तारे पृथ्वी पर है , लेकिन आसपास है , जंगल में एकान्त में ambiance के झरने , और हां , घास के मैदानों में और अब भी चराई शायद ही कभी नीचे हमारे हाथ की थी .

क्या आपने कभी पाया शब्दों के लिए अपने आप को खो दिया है ?

इसके जवाब देने की कोई आवश्यकता नहीं है . मैं तो यह कहना है कि बड़े पैमाने पर निर्भर करता है कि आप क्या इच्छा है और डर है . इन दो देहद्रव bedfellows के लिए किया जा सकता है , और कई बार कर रहे हैं , एक सम्पूर्ण जीवन का विकर्षण ; पुनः आकार बदलने tumbleweeds सदा हमारे स्वयं के धारणा है , इस भ्रम को बनाए रखने में मदद के व्यक्तित्व और अलग है .

क्या आपने कभी सोच को रोकने की कोशिश की है ?

यह एक कठिन है . इस मान्यता की चुप्पी बहुत शोर बनाता है . विचार है , जब वह स्वयं की टिप्पणी थी , जानता है कि यह एक विरोधाभास है . हर बार जब आप सोचते हैं कि आपने सोचा ग्रहण समारोह में एक और रूप और आप देखते हैं कि आप केवल clutching पैरामीटरों की है . और इन मानकों के रूप में मैं ने कहा , वस्तुओं की इच्छा हमेशा रहे हैं और डर है , कि क्या तथाकथित " असली " या सार है . इसके अलावा की इच्छा को ' प्रबंधन ' की इच्छा और डर है ( और पारस्परिक के डर से ऐसा करने का प्रबंध नहीं ) के कारण हमें करना कभी एक सेट से चलती " रूसी गुड़ियों " कई बार उल्लेख के रूप में " अहं " ( सूचक के लिए एक उपयोगी सबसे बड़ी गुड़िया ) . इस पुनरावर्ती , आत्म referential प्रकृति के मन में कुछ करने के लिए की जा सकती है सार की भावना को फँसा के भीतर की जा रही है . यदि हम कर सकते हैं लेकिन शायद खुद को देखने के बिना किसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हैं , के प्रलोभन का विरोध करने के लिए खुद को बढ़ाना या घटाना , हम शायद ही हो सकता है … … जा रही अनजाने की दिशा में पहला कदम पर कहीं नहीं है .

विज्ञान अंतिम समाधान नहीं कर सकते हैं प्रकृति के रहस्य है . और कारण है कि , पिछले विश्लेषण , हम खुद का एक हिस्सा हैं कि हम इस रहस्य को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं .

dil se nikli awaz ने कहा…

sushil ji apki kavitayein padne ka moka mila. do took kahoo to jab pada tab ek ehsas hua ki kash is kavi ki yeh kalpana sakar ho jisme na mulla ho na ram ho. kyonki aaj din suru bhi ram se hi hai or samapt bhi mulla per hoti hai.
umeed karte hai ki apki yeh sunder bhaw ki kavitayien hame aage bhi padne ko milengi.